Keep the attention on yourself

मुंबई (भारत)

1975-12-21 Keep The Attention On Yourself, 51' Download subtitles: EN,RU,TR (3)View subtitles:
Download video - mkv format (standard quality): Watch on Youtube: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

Apani Or Drushti Rakhe Date 21st December 1975 : Place Mumbai : Seminar & Meeting Type Speech Language Hindi

[Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

सहजयोगियों का प्रेम इतना अगाध है कि शब्द जितने जल्दी मिथ्या हमारे अंदर से मिटता जाता है सूझ नहीं रहे कि किस तरह से बात की जाए। उतनी ही जल्दी हम लोग उस चित्त को हलका आपको पता है कि संसार में हर जगह आज सहजयोगी उत्क्रांति की ओर, evolution की ओर चित्त परमेश्वर से जाकर मिलता है। यही चित्त उस बढ़ रहा है। बहुत से सहजयोगी बड़ी ऊँची दशा सर्वव्यापी, परमेश्वर के प्रकाश में जा कर डूब जाता में चले गए हैं। आनंद के स्रोत उनके अंदर बह रहे है । यही मानव का चित्त जो कि हम प्रकृति का रूप हैं। कुछ तो बिल्कुल निमित्तमात्र हो करके ही समझते हैं, प्रकृति का जो ये फूल है वो परमात्मा के संसार में एक विशेष रूप से कार्यान्वित हैं। लेकिन प्रेम सागर में विसर्जित हो जाता है । लेकिन ये चित्त हर एक देश की एक अपनी अपनी, मैं देखती हैं कि कितना बोझिल है, कितना अव्यवस्थित है. कभी परिपाटी है। मानव हर जगह एक ही है। इसमें कभी देखते ही बनता है। कोई अंतर नहीं है और सहजयोग एक अन्तर्तम की ही व्यवस्था है जिसका कि बाह्य से कोई सम्बंध है कितने आनंद में उतरे, आप कितने शांति में उतरे, ही नहीं। तो भी चित्त जो कि प्रकृति का एक स्वरूप है, जिसे हम कुण्डलिनी के नाम से जानते सहजयोग को नहीं प्राप्त कर सकते। हमारी मेहनत हैं, उसके अंदर आप जिस जिस देश से गुजरे हैं, से क्या हो सकता है? ज्यादा से ज्यादा हमारे जिस जिस जन्म से गुजरे हैं, जिस जिस प्रणालियों कुण्डलिनी पर बिठा कर आपको हम वहाँ छोड़ देंगे से गुजरे हैं, जिस जिस व्यवस्थाओं में से आपका लेकिन आप बार बार गिर आते हैं। उसका आंनद कर लेते हैं। सहजयोग में यही चित्त जो है, ये सहजयोग की पहचान एक ही है कि आप आप कितने प्रेम में उतरे। मिथ्या में रहने वाले लोग व्यवहार हुआ है, उस सभी का टेपरिकार्ड है। भी नहीं उठा पाते जहाँ आपको पहुँचाया है। हर इसके कारण हर एक देश का, मैं देखती हैँ, मानव एक देश में एक अजीब- अजीब तरह की समस्याएं थोड़ा थोड़ा सा भिन्न हो जाता है। बड़े आश्चर्य की बात है कि मानव जितना कुछ लेना चाहिए क्योंकि हमें अपनी समस्या पहले मिथ्या है उसे कितने जोर से पकड़ लेता है और समझनी चाहिए। अपने प्रति । दूसरे देशों की समस्या हैं। अपने देश की समस्या है, इसको पहले समझ सत्य को पकड़ने में कितना कतराता है! कितना है उसे भी समझना चाहिए। जैसे कि अभी यू.के. में ढीला होता है! इतने मुश्किल से अपनाता है सत्य मैंने अपना कार्य बहुत धीमा शुरु किया है। बहुत को और असत्य को बहुत बुरी तरह से अपने अंदर थोड़े लोगों को हाथ में लिया है। ज्यादा लोगों को पकड़े रहता है। आश्यर्च इसीलिए होता है। पहले लेना नहीं चाहती थी सोचा पहले 25 आदमी ऐसे तो मैं सोचती थी कि मानव अपना नाम, अपना गाँव, जमा लिए जाएं जो कि सहजयोग में जम जाएं। अपनी शिक्षा, अपना ओहदा, इन सब चीजों को आपको आश्चर्य होगा कि बड़ी पहुँची हुई विभूतियाँ हैं वो। नितांत श्रद्धा है उनकी सहजयोग पर। वो बड़ा महत्वपूर्ण समझता है लेकिन अन्त्तम में कितना गहरा इसका असर है उसको देखते ही बनता है। सोचते हैं कि सहजयोग के बगैर कोई इलाज है ही जितने जल्दी ये चीज अपने अंदर से छूट जाती है, नहीं । आज की दशा में पहुंचने पर सहजयोग

अत्यन्त अप्रतिम है, Dynamic चीज है और वो अपने पीछे डण्डा लेकर लगे हुए हैं मैंने उनसे कोई प्रोग्राम है सहजयोग का तो उनके लिए उससे कहा कि आप अपने को जूते मार सकते हैं, आपके बढ़कर महत्वपूर्ण संसार में कोई चीज है ही नहीं ऊपर जो बाधाएं हैं उनके लिए । मैंने 108 बार कहा, और घण्टों तक वे उसी में लगे रहेंगे कि सहजयोग वो 3 में अपने को जैसे की ये पता नहीं क्या परमात्मा की मारते रहते हैं। हमसे कहने लगे कि कोई गालियाँ चीज आई हुई है जो दुनिया भर में देने की है, और सिखाओ हम अपने को देना चाहते हैं। ये हम ही वास्तविकता ये है ही इसमें कोई शंका नहीं। खराब हैं, कोई individually बात करते हैं। कभी लेकिन इतनी बड़ी वास्तविकता समझने पर भी मैने देखा नहीं कि किसी की शिकायत या किसी उनका एक बड़ा भारी, मैं दोष तो नहीं कहूँगी, की कोई बात। अपने को ही कहते हैं। और दूसरे लेकिन कारण है। कारण वो भारतवर्ष की योग- के बारे में यही कहते हैं कि वो इतना बढ़िया भूमि में पैदा नहीं हुए। परमात्मा ने ऐसे सज्जनों को आदमी है कि हमें अपने पे लज्जा आती है। वो न जाने क्यों उस भोग भूमि में पैदा किया? इस योग भूमि में आप पैदा हुए हैं और वो पैदा उसकी तरफ दृष्टि ही नहीं करते जिसको वे गलत हुए हैं उस भोग भूमि में जहाँ पर के उनके उपर सोचते हैं अपने ही को गलत समझते हैं पूरे कोई भी, किसी भी प्रकार का संस्कार है ही नहीं । समय । उनको ये भी पता नहीं है कि माथे पर सिन्दूर अगर बार 108 मारते हैं। जहाँ देखो वो अपने को कितना बढ़िया है हम तो अपने पर शर्मिन्दा हैं। आपको आश्चर्य होगा कि अपने ही पीछे डण्डा लेकर लगे हुए हैं। यहाँ मैं देखती हूँ कि उसके लगा रहे हैं । उनको पूजन की विधि मालूम नहीं, बिल्कुल उल्टी बात है। सारी दृष्टि अपनी ओर लगा अर्चन की विधि मालूम नहीं। परमेश्वर के बारे में कर इतनी तपस्विता उन लोगों के अन्दर है और कुछ भी मालुमात नहीं। उनको नीचे बैठना तक छोटे बच्चों जैसे मासूम बिल्कुल। मैं आने लगी तो झर झर झर झर आँसू उनके बहने लगे । सहजयोंग हैं कि आरती बजाने पर ताली कैसे देना चाहिए ये उन पर डाला। सब कुछ कर लिया पर उनके आँसू मालूम नहीं। और इतनी बड़ी-बड़ी विभूतियाँ हैं, नहीं रुके। इतनी सहज सरल उनकी भावना है। इतने आंतरिक हैं वो लोग! इतने प्रेममय हैं। इतना अभी तो सिर्फ 21 आदमी से ज्यादा नहीं ऐसे लोग, उनको मेरे ऊपर प्रेम है, इतना आदर है मेरे प्रति मैं जोड़ पाई हूँ। लेकिन है ये बात। और जिसको कि मैं आश्चर्य करती हूँ। सामने गुजरते वक्त कभी कहते हैं genuine असली। खुद मैं genuine नहीं हूँ, ये वो समझते हैं। कहते हैं कि कोई मेरे अंदर प्रति प्रेम उनको है कि संसार की कोई सी भी चीज आकर कह रहा है कि मैं genuine नहीं हूँ। नहीं मेरे आगे उनको तुच्छ लगती है। इतना उनको मेरा हूँ मैं genuine | माताजी मेरे अंदर ये कपट है। मैं महात्म्य है कि समझ में नहीं आता कि किस तरह इस झूठ को लिए हुए हूँ। पूर्णतया दिल को से मेरे आदर को पूरा करें इस पर बड़ा आश्चर्य खोलकर कहते हैं और उनको कोई बात में शर्म होता है कि वो इस चीज का इतना महात्म्य नहीं आती। अपने को कहने में उनको जरा भी समझते हैं और अपने प्रति अत्यंत उदासीन हैं. शर्म नहीं आती। लेकिन दूसरों को judgement वो लगता है तो वो नाक पर लगा रहे हैं या सर पर नहीं आता। कुछ भी वो नहीं जानते। इतने अनभिज्ञ भी भी सीधे नहीं गुजरते हैं, झुक करके । इतना मेरे बुरा

अपने भाग्य को सराहते हैं और कहते हैं कि बिल्कुल नहीं करते। फिर ये भी बताते हैं कि हाँ मैंने ये गलत काम क्यों किया, इसकी वजह यह हमारे परम भाग्य हैं कि हम पहले माँ से मिले और थी। अपना ही सब बताएंगे कि मेरे बाप ऐसे थे, एक कहते हैं कि इस धरती में इतने लोग आप को ऐसे बार ऐसा हुआ था, psychologically ये बात है मिलेंगे। एक दिन सहजयोग बहुत ऊँचे पद पर इसलिए मैं ऐसा करता हूँ। मैंने ये बात ऐसे क्यों पहुँचने वाला है, इसमें कोई शंका नहीं। लेकिन आप हमारी नींव हैं। नींव के पत्थर कितने जबरदस्त करी, इसका कारण वे बताते हैं कि ऐसा हुआ था इसलिए मैं ऐसा करता हूँ। एकाध दो लोग ऐसे भी होने चाहिए? पहली चीज हमें ध्यान में लानी आते हैं जिन पर बहुत बाधा थी। वो अपने दिन चाहिए कि क्या हम genuine हैं? अपनी ओर नहीं भूलते हैं बिल्कुल भी और चुप रहते हैं। कहते नजर करें, दूसरों की ओर नहीं। अपनी ओर नजर कहते हैं कि नहीं, अभी हममें जो असर करें। क्या हम genuine हैं ? देखिए कि उनको थे वो निकलने दो पूरे। हो सकता है कि कहीं छिपे कोई मंत्र भी बोलना नहीं आता। उनसे श्री कृष्ण भी हुए असर हों। इतनी मौन आत्मसात करते हैं बोलना नहीं आता बेचारों को बहुत मुश्किल से लेकिन उनके अंदर ये कमी है कि वो पूजन भी राधा कृष्ण कह पाते हैं। आपके लिए कितना सरल नहीं जानते, अर्चन भी नहीं जानते बेचारों को है कि आप अपनी विशुद्धि को साफ कर लें। समझ में नहीं आता। मैंने उनसे कहा कि मैं कुछ राधा-कृष्ण आपने कह दिया हो गया काम खत्म। अब वो राधा कृष्ण नहीं कह सकते बेचारे तो कृष्ण एक दिन ऐसे ही मैंने कहा कि मुझे ये डबलरोटी जी जरा नाराज हो जाते हैं बात-बात पर उनका खाते थे वो मैंने कहा मुझे ये बहुत पंसद आती है तो pronunciation भी ठीक नहीं, और आपको आसानी जितने लोग आएंगे एक एक डबलरोटी ले कर। मैंने से मिल जाते हैं। उनको कुमकुम लगाना नहीं कहा इतनी सारी डबलरोटी कौन खाने वाला है? मैंने आता। उनको सिन्दूर का मालूम नहीं, उनको फूल ऐसे ही कह दिया था कहने को ऐसे थोड़ा है कि चढ़ाना नहीं आता, उनको गणेश जी बनाना नहीं मैं रोज खाती हूँ। उनकी समझ में नहीं आता कि आता, उनको स्वास्तिक बनाना नहीं आता, हर बार किस तरह से समर्पण करें सब बहुत पढ़े लिखे उल्टी बना देते हैं बेचारे। कभी उन्होंने जाना नहीं भी नहीं कुछ, पैसा नहीं लेती हूँ कुछ भी नहीं लेती हैँ। ये सब चीज़ें लेकिन अत्यंत शरणागत होते वास्त्र उन्होंने जितने आपके अंग्रेजी में लिखे हैं, सब वे लोग उसे नहीं पाते जिसे तुम लोग पा चुके हो। तुमने बहुत पाया है। लेकिन उसका महात्म्य अभी मुश्किल नहीं। वो कहते हैं कि ये जड़ से सूक्ष्म में तक बहुत कम लोगों के आता है समझ में । ये नहीं उतरने का तरीका सहजयोग है। उन लोगों ने मेरा कि उनको सहज मिल गया है, ये नहीं कि उनको में ही दिया है। उन्होंने भी ऐसे ही पाया विद्वान, सब कुछ जानते हैं आपके सारे शास्त्र हुए पढ़ डाले। उनके लिए सहजयोग समझाना कोई introduction लिखा है। अभी किताब आप पढ़कर मुफ्त दंग रह जाएंगे। सारे दुनिया के philosophers को जैसे आप लोगों ने पाया है। लेकिन उनका मेरे प्रति लाकर उन्होंने माँ के चरणों में डाल दिए। ये सब जो प्रेम है इतना नितांत है, लगता है कि जैसे भी नहीं है इन्होंने क्या? इन्होनें तो प्रश्न खड़े जन्म-जन्मान्तर का वो सम्बंध समझ गए हैं और कुछ किए, माँ ने उसका उत्तर दिया। तुम लोग अभी तक समझ नहीं पा रहे हो। अपने

ही में क्यों सीमित हो? सब तुम एक ही- शरीर के गणेश दो गणेश के सामने सर पटक पटक कर रोम-रोम होते हुए भी, एक ही शरीर में स्पंदन होते पटकर पटक कर, कान पकड़ पकड़ के पश्चाताप हुए भी अलग अलग महसूस करते हो। और वहाँ की पूरे धुन में लगे। और उसमें एक वीरता भरी है। ये प्रश्न ही नहीं खड़ा होता team work का प्रश्न इतना बड़ा उनके अंदर जागरण अपने प्रति और ही नहीं खड़ा होता। आपस में एक वहाँ पर लड़का दूसरों के प्रति भी और सहजयौग के ऐसे ऐसे है जिसने smoking शुरु की सब लोग उसको अनुभव और ऐसी ऐसी बातें उन्होंने बताई। आपके फाड़ खा गए उसको इस तरह से उन्होंने ठिकाना पास एक चिट्ठी मैंने भेजी थी वो उन सब लोगों ने किया कि उसकी छूट गई smoking। उसके सारे मिल करके उसका पता लगाया। मेरे भी असलियत arguments ठीक किए, उसकी पूरी मदद की, जैसे ही वो smoking करे उसको अपने पास बुलायें, नज़र में आई बात पर उनके आ गई। वो समझ गए उसके साथ बैठ जाएं। उसके घर में जाकर ये बात है, ये ये चीज है। कहने को महामाया है, सिगरेट-विगरेट निकाल दिये पैसे ले जाकर छिपा अंदर बात ये है। का पता उन्होंने लगाया। अभी तक आप के नहीं दिए। सिगरेट की smoking नहीं थी उसकी क्या वो करता। और कहने लगे कि अब अगर तुमने सर्वस्व लगाकर वे लोग लगे हुए हैं। वो समझ गए और किया तो पुलिस में inform कर देंगे। अच्छा हैं कि उत्कांति का समय आ गया है, सतयुग उन्होंने इतना आनंद नहीं पाया है। लेकिन वो लड़का इसका बुरा नहीं मानता। वो कहता कि दरवाजे पर है। और वो ये भी समझ रहे हैं कि गर हाँ भई तुम कर दो कुछ। वो लड़का खुद कहता है सतयुग का दरवाजा नहीं खुला तो दूसरा संहार का और भागता है उस चीज से दूर और उन लोगों के दरवाजा खुलने वाला है और सबकी जिम्मेदारी है पास आ जाता है और कहता है कि भई मुझे इस चीज की इसकी जिम्मेदारी वो सोचते हैं कि बचाओ। इस वक्त मुझे आ रही है वो इच्छा। इस हमें ये करने का है। वो जिम्मेदार हैं सहजयोग के वक्त तुम मुझे बचा लो, बचा लो इस वक्त । अपने लिए। मजाल है कोई सहजयोग के विरोध में एक को correct करने के लिए कितनी मेहनत वो कर अक्षर बोल दे। आपस में तो बोलने का कोई सवाल रहा है! यहाँ तो आपका समाज ही corrected है । ही नहीं पर कोई बोलता है तो फौरन उसको वहीं कितनी आपको, आपको पता नहीं कि आप कितनी झाड़ कर रख देते हैं। उनसे अगर मैं कहूँ कि 24 स्वर्गभूमि में रह रहे हैं! जहाँ पर माँ बहन का पता घण्टे तुम बगैर खाना खाए बैठे रहो, बैठे रहेंगे। नहीं, इतनी वहाँ गंदगी है उस देश में जहाँ पर लेकिन इसका ये अर्थ नहीं कि आप लोग कुछ कम घर घर में शराब चलती है। इतने गंदे आपस में हैं। आप लोगों में से किसी किसी ने जो height सम्बंध हैं। किसी के घर का ठिकाना नहीं, माँ का साधी है, जिस height पे पहुंच गए हैं जिस ऊँचाई ठिकाना नहीं, बाप का ठिकाना नहीं। उससे पूछो पर पहुँच गए हैं, बहुत कमाल की चीज है। लेकिन भई तुम्हारी माँ कहाँ है ? वो कहते हैं पता नहीं सबको अपने अपने लिए बड़ा घमण्ड है ये बड़ा कहाँ चली गई, उसने किससे शादी कर ली! problem है। चित्त को एकाग्र करना भी एक अर्थ चरित्रहीन, मूलाधार चक्र सबका चौपट । ऐसे देश में रखता है। इसका मतलब ये नहीं कि यहाँ देखो पैदा हो करके भी, गणेश को ले कर आए। माँ हमें वहाँ देखो। एकाग्र तभी होता है चित्त जब उसके

ऊपर का सारा मैल बह जाता है। सब हल्का हो गर इतना एक कर ले कि जैसे राखहु तैसे ही रहिहु। जैसे भी रखो मंजूर है हमको। देख लेते है जाता है। अब अपने देश के जो curses हैं या अपने देश तुम कैसे रखते हो और हम कैसे रहते हैं। हर एक के जो समझ लीजिए बड़ा भारी शाप है अपने देश चीज का एक मजाक हो सकता है। हर एक चीज पर कि हम लोगों के चित्त पर एक बड़ी भारी चीज में एक आंनद आ सकता है। कैसे रखोगे? जैसे है जिसे कि मैं कहती हैूँ Sins Against the father, अपने बाप प्रभु परमेश्वर के खिलाफ हमने चलेंगे, चाहे घोड़े पे बिठाओ तो घोड़े पे चलेंगे। ऐसी पाप किया। वो कौन सा पाप है? कि हर समय मस्ती में जब आप आ जाइएगा, बाकी तो भगवान सोचना कि हम दरिद्र हैं, हम गरीब हैं, हमारे पास की कृपा से ऐसी योगभूमि में आप पैदा हुए हैं कि पैसा नहीं है । हमारा कैसा होगा, हमारे पेट का बाकी का हिस्सा ठीक है। आपके माँ-बाप ठिकाने कैसा होगा। बिल्कुल भिखारी पन की बातें हमारा से हैं आपके बीबी बच्चे ठिकाने से हैं. आपका चरित्र खर्चा कैसे चलेगा ? हमारे बाल-बच्चों का क्या भी इतना गड़बड़ शड़बड़ नहीं है। है कुछ लोगों होगा? गर आपका परमात्मा पर विश्वास है तो कम का, बो भी गड़बड़ है पर इतना गड़बड़ नहीं है, से कम इतना तो उस पर छोड़ दो कि वो तुमको ठीक हो सकता है वह भी वहाँ पर इतना ज्यादा खाना पीना तो देगा, नहीं तो ऐसे परमेश्वर पर दूसरा वाला पाप है, सबकी आँखें यो यों यों यों विश्वास करने से फायदा क्या ये बड़ा भारी हम औरतों आदमियो की चलती रहती हैं हर समय लोग पाप करते हैं। परमात्मा पर खाना पीना और माने बाधा है उनके अंदर । एक से दूसरे की बाधा ये व्यवस्था गर हम लोग छोड़ दें तो हिन्दुस्तानी आदमी बहुत ऊँचा उठ सकता है। दो तरह के पाप हैं। एक पाप तो ये है कि बाप के पितृत्व पे शंका ने औरत को देखा। ये ही चलते रहता है वहाँ पर । करना और दूसरा मैं कहती हूँ कि Sin Against चक्कर ही ऐसा है। हमसे कहने लगे ये माँ हम सब the mother, वो वहाँ पर हो रहा है, जिसमें चारित्रिक के बाधा घुस जाती है करे क्या? मैने कहा आँख दोष, indulgences भोग, घर गृहस्थी का तोड़ जरा नीची रखें। लक्ष्मण जी सीताजी के सिर्फ पैर देना, बेछूट हो जाना, ये महादोष हैं दोनों नरक के देखते थे नीची आँख। धीरे धीरे आपने आप ये रास्ते सीधे जाने की व्यवस्था है। राखहु तैसे ही रहिहु। चाहे पैदल चलाओ तो पैदल जा रही है। एक औरत आई उसने आदमी को देखा आदमी बाधा छूट जाएगी। जब आप ऐसे धंधे ही नहीं पैसे के लिए कुछ भी करो! पैसे के लिए जो करिएगा तो काम क्या है बाधा का? अपने आप जो चाहे वो गलत काम करो वो ठीक है। ये हिन्दुस्तानियों का काम हैं। मैं सरकारी बात नहीं कर रही हूँ, मैं कर रहा है वो अपने आप ही वहाँ से भाग जाएगा। भूत आपके अंदर में घूम रहा है, आपके अंदर काम परमात्मा की बात कर रही हूँ परमात्मा के राज्य की गर आप इधर उधर ऑँख नहीं घुमाइयेगा तो बात कर रही हूँ। जब आप परमात्मा के राज्य में हैं एकदम से भूत भाग जाएंगे। और जब तक आप तो देगा तो देगा नहीं तो नहीं देगा। इतनी कम से अपनी आँख घुमाते रहिएगा तो वो भूत वहाँ बैठे कम वृत्ति ले आने में क्या लगता है? करेगा नहीं तो रहेंगे। फौरन आँखे सबकी यों। रास्ते पर चलते हैं नहीं करेगा जैसे र तैसे ही रहिहु। सहजयोगी आँखे यों करके। माँ ने कह दिया, मान लिया। ये राखहु

बच्चों के लक्षण हैं। आपके भले के लिए, कल्याण दो दरवाजे की और देखो। वो कुछ और नहीं के लिए कह रही हूँ। आपको भी समझना है कि जानता है सिर्फ ये जानता है कि हाँ मैंने पाया है सहजयोग में हमने जितना पाने का है वो पाना है न मैंने देखा है न, मुझे मालूम है, vibration आ रहे इसी जन्म में हमको पाने का है किसी और को है मेरे अंदर से। सहस्रार मेरा छिदा है। होता है। नहीं, हमको ही पाने का है, हमको लेने का है। मैंने जाना है। उसी बात को पकड़े हुए हैं, उसी दूसरों को नहीं, दूसरों की चिन्ता छोड़ो। अपनी दरवाजे को पकड़े हुए हैं। फिर माँ कुछ भी कह दे। सोचो कि हमने कितना पाया। हम इसके कितनी ये नहीं कि मैं ये नहीं मानता, वो नहीं मानता। जो गहराई में उतरे। हमने क्या पाया है? हमने अपने भी कह रही हैं हर एक बात सही है और जैसे ही साथ क्या व्यवहार कर रहे हैं? हम क्यों ढोंग कर वो कहते हैं सारा का सारा उनके आगे ज्ञान आते रहे हैं अपने साथ? हम क्यों अपने को ठगा रहे है? जा रहा है। हम क्यों झूठ बोल रहे हैं? हम अपने साथ क्यों ऐसी ज्यादती कर रहे हैं? हमने क्या पा लिया? जमनी चाहिए। उनसे तो बैठक शब्द नहीं मैं कह अरे सारा भण्डार खोल दिया है, आ जाओ अंदर। जैसे भी हो आ जाओ। हम नहला धुलाकर तुमको नहीं जानते। अंग्रेजी भाषा ऐसी क्या काम की है बिठा देंगे। फिर सोच क्यों? कितने गहरे उतरे उनकी कोई ऐसी संस्कृति ही नहीं है उनका कोई हम? गंगा की शीतल धारा में कितने अंदर वहते ऐसा culture ही नहीं है ऐसी वहां बात ही नहीं है। गए हम। वो तो बह रही है पूरी तरह से कि लो बेटे कितने अभागी लोग हैं और बड़े बड़े साधुसंत है लो, लो जो लेना है लो। कितनी गागर भर ली और आप लोग कितने सौभाग्यशाली हैं। आप ही हमने? चित हमारा इधर उधर दौड़ रहा है। अपनी के देश में मेरा जन्म हुआ है इसी योगभूमि में मेरा ओर दृष्टि करते ही तुम समझ जाओगे कि तुमने जन्म हुआ है लेकिन आपने क्या पाया है ये देखिए । ही अपने साथ छलना की किसी और ने की दूसरों ने क्या पाया है? दूसरों ने क्या किया है, नहीं। ये बड़ा भारी अंतर है। सहजयोग के लिए दूसरों ने क्या कहा? दूसरे कहाँ हैं। ये वगैरह से नुकसानकारी है। अपनी ओर दृष्टि न रखना मतलब नहीं। आपने क्या पाया है। जैसे ही आपने सहजयोग के लिए बहुत बड़ी नुकसान की चीज है पा लिया आप निमित्त हो जाएंगे परमात्मा के आप और अपनी ओर उसी मनुष्य की दृष्टि होती है हैं क्या? आप तो उसके अंदर एक निमित्त मात्र हैं। स्वभावतः ही जो जन्म-जन्मांतर से खोज रहा है। 1000 आदमी मुझे चाहिएं, मैंने कहा है, जो इस बो जानता है कि मेरी गलितयों की वजह से ही सहस्रार पर बैठ जाएं। 1000 घोड़े पर बिठाने वाले मैंने नहीं पाया था। अब और गलती मैं नहीं करूंगा। जैसे कुन्दधर के अंदर आप बंद है और निर्लेप हों। गर आप सहजयोग के लिए कुछ कर निकलने का रास्ता नहीं। जिसने दस जगह दरवाजे रहे हैं तो अपने ही लिए तो कर रहे हैं । ऐसा तो पर ठोका मारा है जिसका दस जगह सर फूटा है कोई हो जो कहे कि भाई मैं गया मैंने इतना बाजार वो सोचता है नहीं रास्ते की ओर नजर रखो। में अपने लिए सोना खरीदा। इतनी मैंने चीजें दरवाजे की ओर नजर रखो। सब दूर से मार खाने खरीदी, इतनी मैंने मेहनत की आपने इतनी जो भी आप लोगों की बैठक बननी चाहिए। बैठक सकती कि बैठक जमाओ। बेचारे बैठक शब्द भी 1 | | 1000 आदमी ऐसे चाहिएं जो बिल्कुल न पकड़े। जो

से अपने पैर काट रहे हैं। गुटबाजी कर रहे हैं। लिए नहीं। आपने देखा है क्या करूँ, मेरी समझ में नहीं आता है। एकदम न। जो भी आपने किया है उसका लाभ अपने बेवकूफी की बातें कर रहे हैं। अरे तुम अलग हो ही को है। बहुत से लोग हो गए संसार में, उन्होंने कहाँ। मैं यहाँ एक जरा सी उंगली घुमाती हूँ तो पाया। एकाध दो एक युग में हुए हैं बहुत थोड़े सबके सहस्रार चलते हैं। थोड़ा सा पाँव झनकाती हूं मेहनत की जो भी आपने किया अपने ही लिए तो किया है। किसी और के कुछ आप जानते हैं आपसे मिले हैं कितने लोग realized तो सबके सहस्रार में झनकार आते हैं। है? बहुत थोड़े से ही। और आजकल तो कलयुग तुम लोग अलग कहाँ हो जो अलग अलग कर का बिल्कुल घोर निनाद चल रहा है। इस वक्त तो रहे हो। क्या तुम समझते नहीं? तुम अलग हो ही नहीं सकते। ये तो ऐसा है कि एक हाथ तोड़ के 1. पशु ही हैं अधिकतर । बिना पूँछ के पशु बहुत सारे हैं। पर इसी कलयुग में इसी कीचड़ में एक विशेष तुम उधर ले जाओ और वो कहे कि हाँ भई मैं इस रूप से कार्य होने वाला है और ये आप जानते हैं हाथ को अलग करके बड़ा भारी कार्य करूँगा । मुझे ये हो रहा है। ऐसे में आपको चाहिए कि जो ले बड़ा दुख हो रहा है इस पूरे शरीर के साथ चिपकने सकते है लें, नहीं तो ये जो क्रांति का process है में तो मैं अलग हो जाऊँगा। इसी तरह की ये बात Evolution का process है उसमें से आप फेंक होती है। अपनी अगर मुक्ति चाहिए हो तो मनुष्य दिए जाएगें वो समय दूर नहीं है। 79 मैंने बता ऐसे ही एकता से काम करता है। लेकिन जिस दिया है कि 79 तक ही ये कार्य होगा उसके बाद आदमी को ये समझ में आ गया कि एक सामूहिक 99 साल तक सब कुछ पूरा mature हो जाएगा। व्यक्तित्व के collective personality के आप एक हाँ आपकी अक्ल पर है नहीं तो कलयुग भी आप अंश है उसी क्षण सारा काम ठीक हो जाता है। ही की बदौलत पनपेगा। आप लोग अगर इसको आप हैं आप जानते हैं, आप हैं आप जानते हैं, आप नहीं चलाना चाहेंगे तो जो विध्वंस विनाश होगा हैं उसमें । सारे सहजयोगी जानते हैं। कोई England से चला आए. कोई अमेरिका से चला आए, कोई हिन्दुस्तान से चला आए। जब बात करेगा तो यही कि आज्ञा पकड़ रहा है कि हृवय पकड़ रहा है कि फलाना पकड़ रहा है। सब कोई जानते हैं ये बात, उसका बोझा आप ही के सर पर है। अपनी अक्ल को ऐसा लगाइए, अपनी बुद्धि को सुबुद्धि में लाइए और सोचिए कि हमने गंगा जी से क्या लिया? क्या पाया? क्या पाने का है? आपने बहुत आनंद पाया है? उस आनंद का जो भी क्षण ये तो कोई भी और नहीं जानते लोग। उनको तो आपने पाया है उसको याद करते रहना चाहिए ये भाषा ही मालूम नहीं। नई भाषा है. आप लोगों ने और मन से कहना चाहिए कि उसी क्षण में हमेशा सोचा है कभी। रहना है मुझे। चिपक जाएगें आप वहाँ पर । और 1 फौरन आपको पता हो जाता है किसका क्या जो भी इधर-उधर के फालतू के विचार आ रहे हैं पकड़ रहा है कौन कहाँ कितने गहरे पानी में है. उनको बंद करिये। किसी भी उम्र के आदमी को ये क्या हो रहा है, क्या नहीं हो रहा ? फर्क इतना ही मना नहीं है। किसी भी वर्ण के आदमी के लिए ये है कि अपनी ओर दृष्टि कम होने की वजह से मना नहीं है। किसी भी व्यवस्था के आदमी के लिए अपने लिए क्या हो रहा है वो नहीं दिखाई दे रहा, ये मना नहीं है। लेकिन अधिकतर लोग अपने हाथ दूसरे का दिखाई दे रहा है । ये तो ऐसा ही है कि

ये गर हाथ सड़ रहा है और ये हाथ इस हाथ का को निकाल देते हैं। जब देखते हैं कि साड़ी में छेद नहीं सोच रहा है तो ये तो सड़ जाएगा ही और हो गया है तो आप उसको सी देते हैं । आपको इस हाथ का क्या फायदा होने वाला है? किसी को जिस चीज से प्रेम होता है उसको आप ठीक कर भी नीचे गिरना नहीं है खुद भी और दूसरा भी नहीं देते हैं और जिस चीज से आपको प्रेम नहीं होता गिरना चाहिए। लेकिन आप खुद मत गिरिए, पहली उसको आप छोड़ देते हैं। हमने आपसे इतना प्रेम चीज ये है। अव्याहत चल रहा है ये सारा काम। किया, आपने अपने से कब प्रेम किया? अपने प्रति सारे चारों तरफ छाया हुआ है। जिसको कि प्रेम करें जिस दिन ये लहर एक तार हो जाएगी unconscious कहते हैं जिसको कि प्रणव कहा एक इसमें हम लोग आ जाएंगे, वो दिन की मैं राह जाता है, जिसको कि मैं Divine Love कहती हैं। देख रही हूँ। अब आप लोगों को इसमें कोई शक चारों तरफ आपकी मदद के लिए मंडरा रहा है नहीं रहा, क्योंकि vibration आप लोगों ने जाने हैं। चारों तरफ आपकी मदद के लिए। भैरव नाथ जी इसमें तो किसी को शक नहीं है। साक्षात् शंकर हैं इस वक्त यहाँ बैठे हुए हैं। यहीं हनुमान जी बैठे आप भी। (मराठी) हुए हैं। आपके साथ हजारों आदमी लगे हुए हैं यहाँ पर । आपके लिए मेहनत कर रहे हैं। जिस हैं। उन की ओर देखिए जो ऊपर उठ गए हैं। कुछ कुछ लोग बहुत पहुँच गए और सब उन्मुख अनुभव को आपने पाया है संसार में कितनों ने नजर करो उनकी ओर और ऊपर बढ़ो। खट से खींच लिए गए ऊपर को जैसे मछलियों को एक ही बड़े बड़े साधू सन्यासी हो गए। हो गए होगें, तार में बाँध करके खींचा जाता है वैसे ही खींच किसी ने भी सामूहिक चेतना पर इतना clearly लिए गए । लेकिन पहले उस जाल में फँसे रहो प्रेम लोग जानते हो? कितनी के। माँ के प्रेम के जाल से नहीं निकलना। अपनी पाया था आजतक, बताइए। जाना है जितना तुम किताब पढ़ डालो। वो मुझसे पूछते हैं साधू सन्यासी अपनी अकल मत लगाओ। तुम लोगों की अकल मैं बड़े बड़े साधू उसमें से किसी किसी ने जन्म लिया जानती हूँ कहाँ तक चलने वाली है। तुम लोगों को है किसी किसी ने नहीं लिया, कि इनको किस मालूम था कि कुण्डलिनी कहाँ है क्या है? कुछ सिलसिले में आपने दिया है? बहुत बड़ी चीज है। नहीं मालूम था ना? फिर तुम कुछ बड़े हो, बुजुर्ग मैंने अपने सहस्रार से तुमको जन्म दिया है। उन हो, उम्र में बड़े होओगे मेरे से, लेकिन मैं तो हजारों लोगों को नहीं दिया था। उनके उपर उतर के साल की पुरानी हूँ। तुम ऐसे कैसे बड़े हो सकते दिया था। तुम लोगों को अपने हृदय में स्थान हो? मेरे तो बेटे ही हो न, मेरे तो बच्चे ही हो। मैं देकर अपने सहस्रार से जन्म दिया है। कितनी बड़ी चाहती हूँ कि इस आनंद के सागर में तो लुट खुद तुम्हारी स्थिति है। ऐसा तो श्री गणेश को भी जन्म ही जाओ और सारे संसार की व्यवस्था करो। थोड़ा नहीं दिया था जैसा कि तुमको दिया है। ये विशेष सा धक्का देने की जरूरत है, थोड़ा सा अपने को | वस्तु है न? अत्यंत प्रेम से प्लावित करके दिया पकड़ने की जरूरत है, अभी नैया पार होगी। थोड़ी हुआ है। अपने से प्रेम करो। जब अपने से प्रेम सी बगड़-दगड़ चल रही है, आगे जाती है पीछे होगा तभी अपना दोष दिखेगा। जब आपको साड़ी जाती है। अभी भी सहजयोग की नैया मैं नहीं से प्रेम होता है तो आप साड़ी में लगे हुए सभी दोष कहती कि किनारे पर पहुँच गई है। अभी खींच

रही हूँ आप लोगों के through, आप ही लोग इधर उधर खींचते हैं कभी कभी कुछ उधर खींच क्या कहेंगे कि माँ ऐसे कैसे हो सकता है? कैसे उसी प्रकार आपका गर आज्ञा पकड़ा है तो आप रहे है कुछ इधर खींच रहे हैं। नाव को किनारे पर लाना है पर group बाजी करना नहीं है ये छुड़वाना ह आदमी अच्छा नहीं है, वो आदमी अच्छा नहीं है। है? उसको तो छुड़वाना है जो बुरी चीज है उसमें ऐसी ज्यादती हो गई, उसमें ये गड़बड़ हो उसको तो निकालना है। काम खत्म । एक सीधी गई. उसमें ये गड़बड़ हो गया। मुझे कोई भी सादी बात है इसमें वाद – विवाद क्या और इसमें शिकायत नहीं लगाए। मैं सबको अंदर बाहर से कहना सुनना क्या है ? किसी के कहने सुनने से जानती हूँ। मैं किसी की भी शिकायत नहीं सुनने आज्ञा चक्र छूटता हो तो छुड़वा लो। वाद -विवाद वाली। पकड़ा है मेरा आज्ञा? अरे भाई है तो है। उसको तो है। सहस्रार पर चक्कर है। कैसे चक्कर से किसी का छूटता है तो छुड़वा लो। बातचीत से सूक्ष्म से सूक्ष्मतर, ये प्रेम का पहला हिसाब। तुम कहाँ थे और कहाँ से कहाँ थोड़ी होने वाला है। ये गए। बस ये देखते रहो। और वहाँ से कहाँ जाने चक्कर है। इससे होता है। आप लोग पार हुए हैं. का है, बस ये देखते रहो। आप जब कहीं रास्ते पर वो कोई तुम्हारे वाद-विवाद से पार ह हैं क्या? या चल रहे हैं तो आप क्या यही कहते रहते हैं क्या? तुम्हारी पंडिताई से, तुम्हारी किताबों से पार हुए आप कहते हैं कि कब वहाँ पहुँचूंगा, कब वहां हैं क्या? पार कैसे हो गए आप? एक चमत्कार पहुँचूंगा। जो हमें सता रहा है करके आओ। उसको बाहर, फिर देखो आप उसके महाराज कहते थे न कि माताजी ये कैसे हुआ अंदर। सब छोड़ो पिछला। हर एक क्षण पीछे छोड़ समझ में नहीं आता है कि आप आए और सबकी दो। इस क्षण में खड़े हो जाओ अंदर घुसने की बात है। हम बैठे हुए हैं यहाँ पर ढकेलने के लिए आ रहा। एक को भी उन्होंने आजतक पार नहीं सबको। मगर सब के सब मेरी खोपड़ी पर मत गिर जाना। दो चार गिरेंगे तो ठीक है, काहे का वाद विवाद सहजयोग में हो सकता है? अरे भई गर तुम्हारा आज्ञा पकड़ा है तो पकड़ा है है तो पकड़ा है। उसमें वाद-विवाद करना नहीं वो बच्चे हैं हिन्दुस्तान में भी बहुत है। वो भी सत्यानाश छूटना ही पड़ेगा। बुरा जब पकड़ा है, तो पकड़ा है। छुड़वाना है तो लगाइए। उनके भी मन में द्वेष भावना, उनके भी छुड़वाना है। अरे अपने को अगर कैंसर हो, कैंसर गन्दी बातें सिखाएंगे। पूरी समझ सुन सुन के. सुन हो गया है डॉक्टर के पास जाएंगे। डॉक्टर बोले सुन के बच्चे भी खराब हो जाएंगे लेकिन वहाँ पर कि आपको कैंसर हो गया है तो उसको क्या आप ऐसा नहीं है। वहाँ ऐसे जबरदस्त बच्चे हैं जो मारने को दौडेंगे कि उसने बोला आपको कैंसर हो गया, बोलेंगे कि भईया मुझे कैंसर हो गया है उसे बच्चे तैयार हो रहे हैं। दस साल के अंदर बो बच्चे हुए उसे पहले माफ़ घटित हुआ है और खट से पार हो गए। गगनगढ़ कुण्डलनियाँ खड़ी हो गईं। ये तो समझ में ही नहीं किया, गगनगढ़ महाराज ने और उनको जान देने के लिए हजारों आदमी तैयार हैं! (मराठी) अपने यहाँ ऐसे बच्चे भी खराब हो जाएंगे हृदय पकड़ा क्योंकि हम लोग ही आधे अधूरे हैं। ऐसे पहुंचे हुए 1 मानने की कौन सी बात है, जाएंगे क्योंकि जबरदस्त माँ-बाप। उनको भी ठिकाने माँ-बाप से भी भिड़ लेते हैं इस बात पर । वो सब भी तैयार हो जाएंगे और आपके भी घर में ऐसे बच्चे ठीक कर दो।

आएंगे और ऐसे बहुत से बच्चे है जो अपनी सत्ता उसको भी, सबको बंधन दो आज घर पर जाकर पे खड़े हैं। जैसे ही ये बच्चे बड़े हो जाएंगे ये बंधन दो। इसको भी आना चाहिए उसको भी आना अपनी सत्ता पर खड़े हो जाएंगे। उनको सहयोग चाहिए और आप खुद उपस्थित होकर सबको बंधन सिखाने की जरूरत नहीं। वो सीखे-सिखाए हैं, दो। परमात्मा का आर्शीवाद आपके उपर आएगा। पुराने हैं, मेरे अपने हैं। लेकिन फिर यही कहूँगी कि आप लोग मील के पत्थर हैं, बम्बई वाले। (मराठी) मत करो कि वे फलाने हैं ये इस जगह रहते हैं वो सबका कहना ये है कि सहजयोग में बड़े मेरे हैं, वो मेरे हैं, उनके साथ ये ज्यादती हो गई। धीरे-धीरे लोग बढ़ते हैं। उसका कारण ये है कि ये नहीं। मैं सहजयोग के लिए क्या कर सकता हूँ? आप लोगों को देख के लोग कहते हैं कि ये फलाने आने चाहिएं ढिकाने आने चाहिएं। उधर सहजयोगी हैं? भगवान बचाए इनसे। हमें नहीं चित्त लगाओ आपके चित्त पे शक्ति बैठी हुई है। चाहिए ऐसा सहजयोग। आप ही लोगों को देख करके सहजयोग बढ़ने वाला है। बहुत बार लोग जगह पर लगाओगे तो सो जाएगी। सहजयोग में कहते हैं कि इनके पीछे में सहजयोगी संस्था लगा लगाओगे तो चमक जाएगी। इसको हमने ठीक दो मैंने कहा नहीं नहीं ऐसा मत करो । ये तो भई ऐसा चिपक जाएगा मामला। किसी को ऐसे लगा बीमारी ठीक की थी, उससे मिले थे, उससे बातचीत नहीं सकते। कहने लगे क्यो? ये ऐसा है कि आज M.A. हैं तो कल बिल्कुल गधे। आज आकाश में हैं मुझसे सहजयोग के अलावा कोई और बात करने तो कल एकदम पाताल में इसमें आप किसी को की नहीं। मैं कुछ और सुनने को अब तैयार नहीं। डिग्री नहीं दे सकते। आपने गर डिग्री दी तो बहुत हो गया मेरी बीबी भाग गई मेरा पति भाग किसी और इंसान से अपना ldentification आप चित्त पे शक्ति बैठी हुई है। उसको अगर गलत किया था उसको हमने ठीक किया था । उसकी | की थी। उस पर आज बैठ कर चित्त लगाओ अब मुश्किल हो जाएगी। ऐसा झगड़ा है। तो अब हम गया मेरे बच्चे का ठिकाना हो गया ये अब आ गए हैं अब बताइये क्या-क्या आपने सोचा है सहजयोगियों से मैं सुनने वाली नहीं। बस बहुत हो तथा क्या आपने करना है? आज आपने घर जाकर गया उसने मेरे को ऐसी कहा, उसने मेरे को सोचना है। डाँटा, उसने मेरे को मारा। मैं किसी से सुनने वाली महीने भर की छुट्टी लेकर जा रहे हैं। अभी दो नहीं और जिनको ये बातें करनी है वे अब छुट्टी दिन तो प्रोग्राम है ही देखते हैं क्या क्या उसमें आप करें सहजयोग से। जिसको आनंद लेना है वो यहाँ करामात करते हैं। बढ़ाओ अपना चित्त। Meditation आएं। जिसको प्रेम लेना है वो यहाँ आएं। सारे में बैठो तीन दिन Meditation में जाकर ये कहो संसार का सुख जिसे लेना है वो यहाँ आए। सारी कि कौन कौन लोग ध्यान में क्या करेंगे। कौन सम्पदा परमात्मा ने जो तुम्हारे लिए उड़ेली हुई है, कौन लोग ध्यान में आएंगे। चित लगाओ अपने वो लेना है तो यहाँ आए। और आप लोग ही चित्त पहचान करो। चित्त में ही सारी शक्ति है। leader हैं। उस सतयुग के leader हैं जो आने चित्त को लगाओ कि ये भी आना चाहिए, वो भी वाला है आपका नाम इतिहास में जाएगा। इतने 1 आना चाहिए। ये भी आ सकता है वो भी आ सकता है। लगाओ चित्त इसको भी आना चाहिए आप न आएं। पहली मर्तबा मैं ये कह रही हूँ । महत्त कार्य में, गर आप इतने महत्त नहीं हैं तो