Gudi Padwa/Navaratri Puja Talk

(भारत)

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Gudi Padwa Puja Date 5th April 2000: Noida Place Type: Puja Speech

[Original transcript Hindi talk, scanned from Chaitanya Lahari]

अपने यहाँ हिन्दुस्तान में देवी के दो नवरात्र पवित्र कर देती थी। इतनी संहारक थी। ये माने जाते हैं। ये चैत्र नवरात्र जिसमें आज जो सातवीं शक्ति है उसे संहारक शक्ति का दिन जो शैल पुत्री के अवतरण का है। कहते हैं। उसके बाद संहारक शक्ति आई शैल पुत्री माने जब उन्होंने हिमालय में जन्म Right Side में चली गई इसी Right Side में लिया था इसलिए उनको शैल पुत्री कहते हैं सावित्री गायत्री आदि हैं। पर संहारक शक्ति और फिर उसमें और भी उनके नाम हैं । का जो प्रादुर्भाव हुआ मतलब एक दिशा Left लेकिन शैल पुत्री की विशेषता ये है कि में गई एक दिशा Right में गई और जो उनका प्रथम जन्म शैल पुत्री के रूप है । तो हिमालय की उस ठण्ड में देवी का जन्म संहारक शक्ति है वो Centre में चली गई। उसमें आप देखते हैं कि देवी के अनेक रूप हुआ और जो कुछ भी उन्हें करना था वो बही-शैल पुत्री ने किया लेकिन आगे की उनके रूप हैं जिससे उन्होंने संहार किया। कहानी तो आपको मालूम ही है कि दक्ष ने वो हृदय पर विराजमान हैं। हृदय चक्र में, Heart चक्र में हैं, जैसे दुर्गा है और भी जो जो हवन बनाया था, उसमें उन्होंने शिवजी हमारे हृदय चक्र में वो विराजती हैं। तो इस. को आमन्त्रण नहीं दिया ये शिवजी की पत्नी हृदय चक्र की एक शक्ति तो ये है ही कि कोई आपको परेशान करे या आप पर आघात थरीं। तो फिर देवी ने उनको सती कह दिया 1 तब सती हुई थीं। उन्होंने जाकर के उस करे या आपको दुविधा में डाल दे तो वो जो हवन कुण्ड में अग्नि में अपनी आहुति दे दी, शक्ति है, हृदय में, वो आपका Protection तब शिवजी आए और उनके शरीर को उठाकर करेगी और जो आपको सताएगा उसका निकले। तो अनेक जगह उनके शरीर के संहार करेगी। तो वहाँ पर सबसे जो शक्ति टुकड़े गिर गए और उस जगह हम लोग का प्रादुर्भाव है यासबसे ज्यादा इसका असर मानते हैं कि देवी की शक्ति है, जैसे है वो है कुण्डलिनी का वहाँ पर आना जब विंध्याचल में है हर जगह । तो उनकी शक्ति कुण्डलिनी हृदय चक्र पर आती है, क्योंकि वहाँ विचरण करती है ऐसा कहते हैं। और कुण्डलिनी जगदम्बा शक्ति है, अम्बा, इसलिए वो जो शक्ति थी वो किसी भी चीज को जब वो आती है तब उसकी शक्ति और बढ़

जाती है। तो जब मनुष्य सहजयोग को प्राप्त होने चाहिए। गर गणेश में गड़बड़ हैं तो फिर होता है और ये शक्ति कुण्डलिनी के जागरण उनको सही करना चाहिए। इस प्रकार से उसके हृदय में स्थित होती है तो वो पूरी नाना-विध उनकी क्रियाएं हैं पर आज की तरह से आपको सम्भालती है। आपका रक्षण विशेषता ये है कि कहते हैं कि सर्वप्रथम करती है पूरी तरह से। आपका बाल भी नहीं उन्होंने शैल पुत्री के नाम से जन्म लिया और बॉका हो सकता। पर उसको हृदय में रखना ये बात सत्य ही होगी लेकिन उससे पहले चाहिए। माँ को हृदय में रखना चाहिए। ये जब आदिशक्ति इस संसार में आई तो एक माँ की शक्ति है, मातृत्व की शक्ति। और गाय के रूप में उन्होंने जन्म लिया । मतलब मातृत्व शक्ति ऐसी है कि वो अपने बच्चों को परम चैतन्य की जो बस्ती है उसमें उन्होंने हमेशा संरक्षित रखती है, हमेशा संरक्षण करती अवतरण लिया और वहाँ एक गाय बनकर है। सो इसीलिए कि जब कभी हम लोग रहीं। खास बात ये है कि वहाँ गोकुल पहले परेशान होते हैं तो Medical Terminology बना और वहाँ ये गाय रही। हरेक चीज़ ने ऐसा कहा है कि यहाँ पर जो हड्डी है वो पहले बनी और उसका प्रतिबिम्ब (Reflection ) हिलने लग जाती है और उससे जो चारों हमारे अन्दर है. जैसे सदाशिव हुए तो उनसे तरफ फैले हुए हमारेAnti Bodies हैं, जिनको शिव बन गए। सबके ऐसे Reflections आए हमारी भाषा में तो हम गण कहेंगे., उन गणों हैं; उसी प्रकार देवी का भी है। सो देवी का को खबर आ जाती है और वो फौरन तैयार प्रादुर्भाव जो हुआ वो तो पहले जब जन्म हो जाते हैं। तो गणों की भी वो महाराज्ञी हैं। लिया मनुष्य रूप में तो शैल पुत्री है। इसलिए उन्हीं के आधार पर, उन्हीं की आज्ञा पर वो आज का बड़ा महात्म्य है। लेकिन उस दशा चलते हैं। इन लोगों, में जैसे गणेश और देवी में, जहाँ पर मैं बता रही हूँ, जिसको कि आप में कोई कभी भी झगड़ा होने का सवाल ही कहते हैं परम चैतन्य कि जो व्यवस्था है, नहीं आता। वैमनस्य होने का सवाल ही नहीं स्वर्ग कहिए, चाहे जो भी कहिए उसमें उन्होंने आता। वो दोनों ही शक्ति मानों जैसे आदिशक्ति के नाम से जन्म लिया और वो एकाकारिता। तो गणेश उनके बेटे हैं और एक गाय के स्वरूप में थीं इसलिए हम वो उनकी माँ। तो जो लोग गणेश जी को लोग गाय को नहीं मारते क्योंकि वो माँ हैं । मानते हैं और जिन्होंने प्राप्त किया है गणेश यहाँ कि गाय में और विदेश की गाय में बहुत फर्क है। इनकी शक्ल और होती है, उनकी बिल्कुल अलग होती है मुझे याद है मेरी लड़कियाँ छोटी थी ये Grand Daughters , तो पूछती थीं कि नानी यहाँ की भैंसें सफेद जी को सहज में भी उनको वो बिल्कुल अपने बच्चे जैसे सम्भालती हैं पग-पग पर हर जगह उनको देखती हैं क्योंकि वो माँ हैं और आप गणेश हैं। पर आपके गणेश निर्मल

क्यों हैं? तो भैंस के और गाय केExpression में कोई फर्क ही नहीं है, तो लगेंगी कैसी? शाकाम्भरी देवी का प्रादुर्भाव हुआ। उनमें ये शक्ति थी कि वो उपज को बढ़ाती थीं हम अब ये आदिशक्ति के जन्म लेने का समय भी मेरठ में थे तो हमने भी वहाँ खेती नहीं था क्योंकि पहले आप जानते हैं कि बाड़ी करी। तो इतने बड़े-बड़े बैंगन आप द्वापर, त्रेता आदि होते गया वो कलियुग में खा नहीं सकते! ये बड़े-बड़े टमाटर और ही उनको आना था क्योंकि सारे ही चक्रों ककड़ियाँ, इतनी मोटी इतनी लम्बी कुछ को लेकर, सारी ही देवियों को लेकर, सारी समझ में भी नहीं आता था लोगों को कि ये बहुत ही शक्तियों को लेकर के कलियुग में आना क्या है! हमें तो पाँच या छः Prizes मिले पड़ा। नहीं तो कार्य नहीं होता इतना घोर वहाँ! वो शाकाम्भरी देवी की शक्ति है। तो कलियुग है । इस घोर कलियुग में कार्य जहाँ जिस शक्ति का प्रार्दुभाव होता है वहाँ करना बड़ा कठिन है और उसने महामाया ये शक्ति जो भी हो वही कार्य में ज्यादा रत स्वरूप लिया क्योंकि घोर कलियुग में यदि होती है। अब लोग कभी चामुण्डा कहेंगे कोई जाने कि ये आदिशक्ति हैं तो ऐसे ही कभी कुछ कहेंगे तो उसमें सबकोConfusion मारने को दौड़े। इसलिए महामाया बन गईं होता था। लेकिन शक्ति के अनेक स्वरूप हैं और पहले का जो स्वरूप था तो वो इस और जिस चीज़ की जरूरत होती है उनको तरह महामाया स्वरूप नहीं था। वो पूरा-पूरा इस्तेमाल करती हैं। तो ऐसे कोई नहीं है कि प्रचण्ड था क्योंकि इन दिनों में ऐसी कोई दुर्गा हैं तो फिर ये चामुण्डा कौन हैं? ऐसी बात नहीं थी कि देवी को कोई मार डालेगा। बात नहीं है, ये सब हैं और इनका होना जरूरी है। अलग-अलग देवता हैं जिस प्रकार वो जमाना और था, और वो भी उनका जन्म कार्य करते हैं, इसी प्रकार देवी को भी शक्ति और स्वरूपा माना है देवी के बगैर कोई भी जो हुआ हिमालय की गोद में हुआ उसके बाद विवाह शिव जैसे महान अवतरण कुछ नहीं कार्य कर सकता चाहे वो शक्तिशाली के साथ तो बहुत बार लोगों गुरु हा चाहे वो रामवतार हो या कृष्णावतार हो, क्राइस्ट हो, कोई हो। सबके पीछे में एक देवी की शक्ति होती थी। इसलिए हमारे देश में माँ को इतना मानते हैं लोग। को ये प्रश्न होता है कि एक नवरात्र ये है एक नवरात्र वो। एक देवी के लिए कहते हैं कि महाकाली है, महासरस्वती सब हैं लेकिन सब आदिशक्ति के ही अंग-प्रत्यंग हैं। इनका जो प्रादुर्भाव हुआ वो भी ऐसे ही समय में हुआ कि जिस कार्य को करना था, जैसे अब आपके मेरठ में अब चलिए ऐसा कहना चाहिए भारतीय जो हैं शक्ति के पुजारी हैं। बाकी ऐसे ही जो चीज़े बढ़ चली, झगड़े झगडूं सब लोग करते

हुए, पर वास्तव में सब लोग शक्ति पुजारी को लोग आध्यात्म का चरम लक्ष्य समझें। हैं। जो विष्णु को मानते हैं वो भी शक्ति सब कुछ समझें पर यहाँ की जो औरतों की पूजारी हैं, जो शिव को मानते हैं वो भी स्थिति है, खासकर उत्तर हिन्दुस्तान में, वो शक्ति पुजारी हैं क्योंकि माँ-माँ को तो कोई बहुत दुखदायी है। औरत की इज़्जत करना, नहीं बॉट सकता। तो ये ऐसी बड़ी भारी माने महापाप, उसको मारना पीटना ये तो संस्था माँ की अपने देश में है और इसलिए चलता ही रहता है। Dowry System, फिर हमें उसका बड़ा आदर करना चाहिए। बड़े अनेक तरीकों से आदमी अपने को उससे लोगों को भी करना चाहिए और बच्चों को ऊँचा बड़ा दिखाना चाहता है। वो है नहीं। भी। अभी तक हमारे देश की औरतें इतनी आदमी जिस चीज में है उसमें है लेकिन बिगड़ी नहीं हैं पर वो समझती नहीं हैं कि माँ औरत सम उसके अन्दर क्षमता नहीं। उसके बनने के लिए कौन से, कौन से ऐसे गुण अन्दर वो शक्ति नहीं। बच्चा नहीं पैदा कर होने चाहिए, जिससे अलंकृत हों और उसी सकता। जो औरत की इज्जत नहीं करते वो से अच्छे बच्चे बनें। अब आजकल क्योंकि देश भी नष्ट हो जाते हैं और जो माँ की जरा औरतों में और चक्कर चल पड़े हैं तो इज्जत नहीं करते वो भी देश नष्ट हो जाते उनको बच्चे ही नहीं होते क्योंकि ऐसी हैं क्योंकि शक्ति ही खत्म हो गई। तो ये औरतों को क्यों बच्चे होंगे और जैसे दसरे नहीं होना चाहिए कि औरतों के पीछे भाग देश हैं जहाँ माताएं ठीक नहीं हैं तो वहाँ रहे हैं, औरत का Nomination कर रहे हैं । बच्चे ही पैदा नहीं होते। जर्मनी में माइनस Equal हम लोग हैं पर Similar नहीं, है, अमरीका में माइनस है, गोरे लोग माइनस अलग-अलग हैं। अपनी व्यवस्था अलग है हैं। सब जगह ये क्यों माइनस हैं? क्योंकि और उसकी अलग है। पर जो मैंने देखा है। इन लोगों में मातृत्व नहीं है अब धीरे-धीरे North India में बहुत ही बुरी हालत औरतों समझ रहे हैं इस बात को। मातृत्व न होने से की है। उनको कोई मानता ही नहीं । मैंने बच्चे क्यों पैदा होंगे? वो तो ऐसी जगह पैदा खुद ये देखा है कि औरत की कोई इज्जत होंगे जहाँ प्यार मिले, उन्हें कोई संवारे। नहीं और हर तरह से उसको परेशान किया जाता है। सो ये इसको बदलने का हम सोच रहे हैं । काफी प्रयत्न करना चाहिए। ये दूसरा सृजन का कार्य है किसी का नाश करने का नही, सृजन का कार्य है। अगर ये हो जाए. ये सृजन का कार्य बन जाए तो हमारी भारत लेकिन उसी के साथ-साथ मैं सोचती हूँ कि हिन्दुस्तान के आदमियों को औरत की इज्जत करनी है और उसको प्यार करना है। ये जरूरी है क्योंकि आप लोगों को बहुत थोड़े दिन में ये हो सकता है कि भारतवर्ष भूमि जो है शस्य श्यामलाम् हो जाए। हमें

इसके लिए कायदे कानून बनाने की जरूरत नहीं, अन्दर से ही हमें ये समझना चाहिए। स्त्री जो है ये देवी के ही लक्षण में है। अब वो इस तरह से देवी के अनेक स्वरूप हमारे शास्त्रों में वर्णित हैं और वो सब बिल्कुल सही हैं। उनमें कोई त्रुटियाँ नहीं है, गलती अगर कुछ खराब हो तो दूसरी बात है। पर नहीं है। पर इसकी गहनता समझने के लिए स्त्री एक देवी है और उसकी इज्जत करना, सहज में उतरना पड़ेगा। वो vibration से उसको सम्भालना और उसको हर तरह मदद आपको पता लगेगा और उसमें discrimin- ation आप देखेंगे कि हरेक शक्ति के अलग करना, ये हरेक पुरुष का कर्त्तव्य है। पर ऐसे होता नहीं है। पुरुष हमेशा ऊपर में जमा viberation हैं। ये बड़ी सूक्ष्म बात है, इसलिए ये जितनी आपकी प्रगति होगी उतनी ही रहता है। हरेक मामले में उसके पास बद्धि आप समझ पाएंगे। उसका मतलब नहीं कि ज्यादा होती है पर हृदय तो स्त्री के पास होता है। इसलिए कोशिश ये करनी चाहिए अब आप उसी में लगे रहिए., मतलब ये है कि स्त्री का मान रखा जाए। स्त्री को भी कि आप सिर्फ ध्यान धारणा से अपनी गर शक्ति बढाएं और अपने को उस स्तर पर समझना चाहिए कि जब तक वो देवी स्वरूप उतार लें तो आप खुद ही समझ जाएंगे। इंसान को देखते ही आप समझ जाएंगे कि ये कैसा आदमी है। एकदम वो ज्ञान, एकदम कुछ हो जाती है तो उसका क्यों मान किया जाए? इसलिए उसमें भी ये गुण विशेष आने चाहिएं और उसमें भी ये बात आनी चाहिए। ग़र है तब तक ठीक है पर वो गर और आ जाएगा क्योंकि हम ज्ञानवादी हैं और हमारी नसों में ज्ञान आ गया है। तो ये सब किसी स्त्री में ये गुण नहीं है तो उसको आप छोड़ दीजिए। उसको आप अलग हटा पता हो जाएगा। पर उसके लिए ध्यान करना बहुत जरूरी है और कोई इसका मार्ग नहीं है कि आप बड़े पूजन करिए भजन करिए और ये करिए। कुछ नहीं, ध्यान करना चाहिए जबरदस्त औरतें हैं उनकी पूजा होता है और उसके साथ ही साथ Introspection । और जो बेचारी अच्छी हैं उनको लोग लताड़ते मैं क्यों कर रही हैं, इसे मैं ऐसे क्यों कर रहा हैं। तो अपने को अपने जो अच्छे सहज हूँ? मुझे ऐसे क्या करना है? अपने ऊपर आदर्श हैं एक अच्छे पति पत्नी बनना चाहिए ध्यान होना चाहिए, दूसरे का नहीं क्योंकि दीजिए । पर जिसमें हैं उससे ठीक बर्ताव करें अधिकतर क्या देखा जाता है कि जो में और आपस में बहुत प्रेम और आपस उसका कोई फायदा नहीं होने वाला। आपने बहुत understandings हो नी चाहिए। तभी सहजयोग असली फलेगा, नहीं तो नहीं फल तो अपने को ठीक करना है, तभी दूसरे की आप त्रुटि ठीक कर सकते हैं तो अपने ऊपर ध्यान होना चाहिए कि मैं क्या कर रहा सकता।

हूँ, ऐसे क्यों सोच रहा हूँ, मेरे दिमाग में ऐसी बातें क्यों आती हैं? अपनी तरफ ध्यान होना देखना है और दूसरे ये कि कहाँ तक मैं प्रेम খে करता हूँ? कहाँ तक मैं शुद्ध हूँ? कहाँ तक मैं चाहिए और दूसरे की तरफ प्रेम दृष्टि होनी अहंकार से बचा हूँ? ये अगर आप देखने चाहिए। प्रेम की दृष्टि कि मैं तो प्रेम में बैठा लग जाएं तो धीरे-धीरे सभी दोष भाग जाएंगे, हूँ और अन्दर मेरे क्या प्रेम हो रहा है सबके जैसे अगर कोई दुष्ट आदमी समझ लीजिए लिए? मैं सबको प्रेम दृष्टि से देखता हूँ? मैं आपके घर में आए आपकी उसके ऊपर सबको माफ कर देता हूँ? इस तरह से दो नजर पड़ी तो वो भाग जाएगा कि नहीं? चीज़ हैं- एक तो ध्यान और एक उसी प्रकार ये जो बैठे हैं घुसपैठ करने वाले, आत्मावलोकन, जिसे कहते हैं। तो ये दो ये सब भाग जाएंगे यंदि आपintrospection 1 चीज़ों से मनुष्य की प्रगति होती है। माने करें। पर अगर आप अहंकार में, मैं तो ठीक एक तो ध्यान वो तो बात सही है कि ध्यान हूँ मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ ऐसे चले तो यही से आप अपने अन्दर और चैतन्य अन्दर लेकर सफाई करने की जरूरत है। यही निर्मलता, के और बढ़ते हैं, और अपने अवलोकन से यही स्वच्छता अन्दर आने की जरूरत है अपनेintrospection से भी आप अपने अन्दर और कण्डलिनी तो अपना कार्य कर ही रही के जो obstacles हैं उनको निकाल देते हैं। छुड़ाएगी। ये तो कोई कह है, वही आपको जैसे एक नदी का प्रवाह बह रहा है, अब नहीं सकता कि हम छुड़ाएंगे लेकिन आपकी उसके अन्दर बहुत से पत्थर हैं, कुछ हैं, तो प्रवाह ठीक से बह नहीं सकता। गर वो दृष्टि पड़ते ही आपकी वो जो बातें हैं दौड़ पत्थर क्या हैं आप देखते हैं और निकाल लें तो जाएगी । अब किसी को थोड़ी-थोड़ी लोलुपता कुण्डलिनी का प्रवाह बिल्कुल बड़े जोरों होती है जैसे सत्ता मिल गई फिर भी रूके में बह सकता है और बहेगा। इसके बाद नहीं। तो चाहते हैं फिर और कोई सत्ता यही बात है। आप स्वयं ही इसको महसस करेंगे। इसकी प्रचीती होगी कि आप हैं- इसका कोई अन्त नहीं होता। और गर मिले। फिर उसके पीछे दौड़ रहे हैं, दौड़ रहे एकदम ये चीज आपके नजर में आ जाए कि मैं तो स्वच्छ हो गए, अब कुछ रहा नहीं आपमें. पागलों के जैसे दौड़ रहा हूँ, ये सत्ता के पीछे एक दम स्वच्छ हो गए। वो चीज़ अन्दर से आने से उसमें एक तरह से मैं कहती हैं में, इसमें क्या है? बेकार है। शान्ति से बैठे ध्यान तो आप लोग करते हैं, ये मुझे मालूम जो मिलता है उसका उपभोग हो। अब दौड़ रहे हैं, दौड़ रहे हैं। जो मिला है उसको भी है, लेकिनintrospection अपने बारे में सोचना चाहिए। उसमें आलोचना करने की जरूरत नहीं भोग रहे, उसका भी नहीं आनन्द उठाया और दूसरे के पीछे भागे और दूसरे के पीछे । नहीं अपनी, लेकिन उसको साक्षी भाव से

जब ये दशा आ जाएगी जिसको मैं मानते ही हैं ठीक है। लेकिन हम आपको सहजावस्था कहती हैँ तो सहजावस्था में मनवाते हैं और लोगों को, इनको भी मानो. सारी दैवी शक्तियाँ जितनी हैं आपके चरणों उनको भी मानो उनको भी मानो। लेकिन मे आ जाएंगी। आपको सम्भालेगी आपको गर हमें न मानते होते, किसी भी अवतरण गाइड करेंगी, आपको वरदान देंगी। सारी को मानते होते, क्राइस्ट को ले लें, तो उन्होंने चीजें आ जाएंगी। पर सहजावस्था आनी कहा तो है कि हम आपके पास भेज देंगे चाहिए। उसमें मैं ये करने वाला हूँ, मुझे ऐसा एक अवतार, और ऐसी आदिशक्ति करना चाहिए मुझे ये करना है, वो करना है, आएंगी (Holy Ghost Would come) आखिर ये जब शुरू रहता है तो मैं कहती हैँ कि अभी गर वो अपना कार्य पूरा कर गए होते तो काहे को कष्ट उठाते। मोहम्मद साहब ने भी कहा, सबने ये क्यों कहा कि उद्धरण संसार सहजावस्था नहीं है। और जब सहजावस्था आई तो जैसे छोटा एक बच्चा पालने में पल जाए ऐसे ही माँ की शक्ति के स्वरूप में वो का होने वाला है। मानो उन्होंने भविष्य की बैठा है और ये जितनी भी शक्तियों का वर्णन बात करी, इसका मतलब ये होता है, है वो सारी शक्तियाँ हर पल हर तरह से सीधा-सीधा, कि उन्होंने जो भविष्यवाणी कही मदद करेंगी। जिसकी जो जरूरत होती है वो इसलिए कि वो जानते थे कि अभी समय वो पूरी करती है हरेक शक्ति में कोई न कोई नहीं आया है कि इनको हम पूर्णता में ले ऐसी विशेषता है और इसलिए शक्ति की हम जाएं, पूर्ण में ले जाएं और उनकी पूर्णता आने लोग पूजा करते हैं और उसको मानते हैं। के लिए स्थिति आने वाली है, ये कह देने से, किसी भी अवतरण से ज्यादा हम शक्ति को ये बता देने से कि आपकी ऐसी स्थिति आने मानते हैं, सब लोग। उसका कारण ये है कि वाली है। कोई न कोई ऐसे आने वाले हैं और शक्ति ही हमको अवतरण की ओर अग्रसर उसके लिए आप सिर्फ अपना जो चित्त है करती है, उसी की दृष्टि से हम अवतरण को साफ रखें और परमात्मा को याद करें रस्ता पहचान सकते हैं नहीं तो हम पहचान नहीं बता देते हैं। लेकिन किसी ने सामूहिक चेतना सकते। इसलिए शक्ति ही है, आपकी गुरु शक्ति ही आपकी माता है और शक्ति ही जिसकी वजह से वो चीज अब आप लोगों ने आपकी अगुआ है। इसलिए और किसी को प्राप्त की है। अब आपको तो बहुत जोरों में मानने की जरूरत नहीं। जब एक बार शक्ति इसमें प्रगति करनी चाहिए। बस दो ही चीज़ को आपने मान लिया तो शक्ति सबको मनवा तो करनी है. एक तो ये कि ध्यान करना है लेगी, सबको समझा देगी। और अब आपने और एक introspection और उसमें तीसरी नहीं दी। चेतना भी बहुत कम लोगों को है। सहज में देखा है अब आप लाग सब हमें तो चीज जो है जब आपको जो उसमें होगा.

मतलब सौन्दर्य दृष्टि आ जाएगी। हरेक आनन्द उठाना सीखना ये शक्ति का ही काम है। शक्ति आनन्द में ही है, आनन्ददायी है और जब ये आनन्द आने लगेगा तब आप देखिएगा कि आप समझ जाएंगे कि अब तो आदमी की सुन्दरता दिखाई देगी, उसकी अच्छाई दिखाई देगी। कितना भी आदमी आपसे दुष्टता से व्यवहार करे तो समझ में आएगा नहीं। इनमें ये बात जरूरी थी। ये हम हो गए सहज। तो ये सहजावस्था है कि सीखने की बात है। तो आपकी नजर बुराई से उठकर के अच्छाई पर जाएगी और जब अच्छाई पर जाएगी तो आप अच्छाई संहार नहीं करना है. वो तो देवी का काम है. अपनाएंगे। लेकिन आपकी बुराई पर नजर आपको नहीं करना है। तो सारी दुनिया का रहेगी तो आप कैसे अच्छाई अपना सकते जो आनन्द अलग-अलग जगह छिपा हुआ हैं? इसलिए ये जो स्थिति है जिसमें कि है उसका आँकलन, उसका उपभोग लेना आप, मैंने कहा कि आप, अपने को भी आपके नसीब में है। इसलिए आज के दिन, आत्मनिरीक्षण करें। गर आपमें सुन्दरता है क्योंकि आज मैंने बताया पहला दिन है, तो आपको अपने ही से आनन्द आएगा। ग्र दृष्टि ही आपकी गलत चीजों पर नहीं जाएगी। क्या फायदा? क्योंकि आपको कुछ सीधा | उनका शैल पुत्री का और उन शैल पुत्री का मतलब ये भी होता है कि उनकी अवलोकन शक्ति, क्योंकि हिमालय में पैदा हुई। हिमालय सबसे ऊँचा पर्वत है और वहाँ से सारी दुनिया का अवलोकन, मतलब उनकी दृष्टि सब पर पड़ने दीजिए । पहले शैल -पुत्री का दिन वो आप दूसरों में देख रहे हैं तो और आनन्द आएगा। तो सुन्दरता ही देखने के लिए है। आदमी की अच्छाई देखनी चाहिए और उसमें फिर आपको आश्चर्य होगा कि हरेक आदमी में कोई न कोई खूबी तो है ही। लेकिन उसका मज़ा कोई नहीं उठा सकता। अब सब देख लें है क्या? छोटे बच्चों को भी जैसे एक फूल है। फूल के अन्दर सुगन्ध लेकिन गर आपके पास नाक ही नहीं हो तो है? वो कौन है? उसी तरह शैल पुत्री का आप सुगन्ध कैसे लेंगे? ऐसी बात कि आपके कार्य है और उस पर से और भी नाम है। अन्दर वो हृदय होना चाहिए जो उस प्यार शैलजा। ये वो हैं। पर जो अपने यहाँ ग्रन्थों देखिए, सबको देखते हैं ये कौन हैं? वो कौन है। को, उस महत्ता को, उस बडप्पन को समझ में माना जाता है नवरात्रि जो चैत्र की नवरात्रि सके और उसको आप अपनाइए। तो जितना है उसमें जो पहले देवी का अवतरण हुआ वो वो आदमी अपने को नहीं आनन्दित कर हैं शैल पुत्री । हर जगह चैत्र की, जिसको सकता आप कर सकते हैं। उसमें जो छिपा बहुत मानते हैं, जैसे बिहार में आपके यहाँ हुआ है उसको आप जान सकते हैं और छठ होती है षष्ठी के दिन षष्ठी के दिन उसका आनन्द उठा सकते हैं। सो दूसरों से वहाँ होती है छठ। वो ये इस दिन में से है।

अब गायत्री मंत्र भी बहुतRight Sided आदमी कि वो सरल हृदय लोग थे। तो वो यही को नहीं कहना चाहिए क्योंकि Right side चीज़ देखते थे, इसको ही प्राप्त करते थे और प्राप्त किया। उनके हृदय में शक्ति थी की Powers उनको तनाव की ओर ले जाती है उससे अच्छा Left side के मंत्र कहें जो ग्रहण करने की। अब हम लोग जरा बंट गए बहुत Right sided है। जो Left sided है वो हैं IRight sided हो गए है। तो भी सहजावस्था right side के मंत्र कहें। इस तरह सेBalance प्राप्त होनी चाहिए। सहजावस्था का जो आ जाएगा। तो मतलब, ये समय आनन्द- आनन्द है उतना उनको नहीं आनन्द आया विभोर होने का है । इतना बड़ा महत्वपूर्ण होगा जितना वो आपको आएगा चैती के समय है और हमारा भी जन्म ऐसे ही समय गाने सुन के। बड़ा आनन्द आएगा, इतना में हुआ था। कमाल तो ये है कि इसके बाद, उनको नहीं आएगा। हो सकता है उनमें हमारे जन्म के बाद नवरात्र भी यहीं से शुरू हुए थे और हमारे जन्म के बाद ही नवरात्र इतनी आकलन शक्ति नहीं पर आप लोग बड़े आनन्द से उसको सुन सकते हैं। तो ये शुरू हुए थे। सो इसके बड़े कमाल के बड़ा विशेष है और सबसे विशेष ये है कि combinations हैं। तो 21 मार्च के बाद ही विक्रमादित्य ने जब उसे स्वीकार किया तो नवरात्र आता है उससे पहले नहीं । इस इसी को ये जो है तृतीया, इसी को उसने से प्रकार इस चैत्र की जो है बड़ी कमाल है माना, कि इसी शुरू करना है माने एक और अपने यहाँ चैत्र वगैरा ऐसे गाने भी होते तारीख, ये इसको अक्षय तृतीया ही नाम रख हैं। उसका एक ढंग होता है गाने का, चैती दिया। अक्षय तृतीया से ही उन्होंने अपने गाना। क्योंकि क्या है कि पहले के साध शुरू करे कलैण्डर। वैसे ही शालिवाहन ने सन्तों ने कवियों ने और बहुत सारे गायकों जो संवतसर बनाया, वो भी इसी तारीख से ने जब चैत्र की वो खुशियों को पाया तो वो आखिर उन्होंने और इन्होंने भी, इनकी तारीख एक जो है दोनों की । आश्चर्य की बात है स्वर में बंध गया तो वो गाना शुरू हो गया। चैत्र का आनन्द जो है कि गाँवों में बहुत क्योंकि इसमें विक्रमादित्य का राज्य था उसमें मानते हैं चैत्र को उस वक्त जो गाने आप उन्होंने शालिवाहन ने Attack किया। उनको सुनिए ऐसा लगता है कि अन्दर से उन्माद है, उत्साह और बहुत प्यार और आनन्द का शालीवाहन शायद उनको हराया और उसके उसमें अभिभाव है। तो वो इन देहाती औरतों बाद उन्होंने बनाया ये शालीवाहन का शक में कहाँ से आया? देहात के लोगों में कैसे और इस शालीवाहन के शक की जो पहली आया? वो इतनी सुन्दर कविताएं लिखते हैं, तारीख है वो भी अक्षय तृतीया है और उनकी इतनी सुन्दर कि वो कहाँ से आया? वो ये ही भी जो पहली तारीख है वो भी अक्षय तृतीया हराया वो तो बब्रुवाहन उनके मतलब

है। बड़े आश्चर्य की बात है। और मुसलमानों से कहा जाए? अब मेरे लिए तो रोज़ ही प्रश्न का जो हिजरी होता है न वो भी यही है। है कि अब वो आ रहे हैं तो उनसे क्या first यही है वो । सबने इसी तारीख को माना कहेंगे? वो आ रहे हैं तो उनसे क्या कहेंगे? firstऔर पारसी भीनवरोज कहते थे। कारण इनको कैसे समझाएंगे? लेकिन ये शक्ति जो है प्यार की, ये जब हम देखते हैं चारों तरफ क्या? कारण ये कि एक ही शक्ति से प्रेरित लोग थे। तो उन्होंने इसी दिन को माना। प्यार ही प्यार, आनन्द में है इस सबमें देखते ये हैं हर जगह प्यार ही प्यार है। तो वो प्यार बहुत महत्वपूर्ण है और इस दिन जो भी कार्य हमारे अन्दर समा जाता है। ये आदान प्रदान करो वो सफल हो जाता है और खास कर से है और फिर उसके बाद उस प्यार से ही लोग कुछ गर विशेष कार्य करना है तो आप सबसे बात करें। सहजयोगियों को चाहिए उसको आज के दिन करते हैं क्योंकि आज किसी पर बिगड़ें नहीं, किसी से नाराज़ नहीं का दिन सबसे ज्यादा, सबसे ज्यादा पुण्य हों, वो मेरे पर छोड़ दें। शान्ति पूर्वक सब से Auspicious दिन है। तो बड़ी खुशी की बात मिलो एकदम सात्विकता आपके अन्दर आनी है कि आप सब लोग आए यहाँ और इसके चाहिए लोगों को समझना चाहिए कि आप बहुत सात्विक हैं और आपके अन्दर कोई घृणा क्रोध आदि नहीं। तब लोग समझेंगे ये बारे में हम लोगों ने इतना जाना। तो आज हम लोगों को अपने अन्दर यही बहुत जरूरी है। अब तो आप लोग पार हो निश्चय कर लेना चाहिए कि हम लोग रोज गए, सब कुछ हो गया। अब जो आगे का ध्यान करेंगे और उसी के साथ intro- कार्य है उसके लिए जैसा व्यक्तित्व चाहिए spection | जब सोचेंगे तो अपने ही बारे में वो में बता रही हैूँ। आशा है आप लोग इस दूसरे के बारे में नहीं। अपने बारे में सोचेंगे चीज का अनुसरण करेंगे और इसको अपने और फिर उसको किस तरह से मधुरता से अन्दर की जो Introspection है उसको प्रेम हम अपना जीवन बिता देते हैं। बात करने से, अपने को भी प्रेम से देखना चाहिए. में, किसी से व्यवहार में हम उसको किस hatred से नहीं और फिर आपको समझ में तरह से मधुरता से हम अपने विचारों को आ जाएगा कि अरे मैं क्यों मैं ये कर रहा हूँ? प्रकट करें ये सब सीखना चाहिए। जिससे जाने दो, छोड़ो। इस तरह से आदमी में एक हम किसी को दूख नहीं दे सके. जिससे सात्विकता आ जाएगी। आदमी बड़े सात्विक तकलीफ न हो। उल्टे ही जो कुछ कहना है हो जाएगे। इसी प्रकार से सहजयोग बहुत बो कहो। कभी-कभी जरूर कहना पडता है सुन्दर हो जाएगा और मेरा जो ये स्वप्न है जोरों में, पर अधिकतर जिससे आप कह रहे कि सारी दुनिया में इतने सहजयोगी हो हैं उसको ये हमेशा एहसास होना चाहिए कि जाए कि दुनिया ही बदल जाए। तो अनन्त आशीर्वाद ये प्यार में कहा जा रहा है। तो उस प्यार में ही आपको बोलना चाहिए तो वो किस तरह सबको अनन्त आशीर्वाद