Christmas Puja

Ganapatipule (भारत)

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Christmas Puja 25th December 1990 Date : Ganapatipule Place Type Puja

आपमें से लोग मेरी बात इंग्लिश में नहीं समझ पाये होंगे। ईसामसीह का आज जन्म दिन है और मैं कुछ समझा रही थी कि ईसामसीह कितने महान हैं। हम लोग गणेश जी की प्रार्थना और स्तुति करते हैं क्योंकि हमें ऐसा करने को बताया गया है। पर यह है क्या? गणेशजी क्या चीज़ हैं? हम कहते हैं कि वो ओंकार हैं, ओंकार क्या है? सारे संसार का कार्य इस ओंकार की शक्ति से होता है। इसे हम लोग चैतन्य कहते हैं, जिसे ब्रह्म चैतन्य कहते हैं। ब्रह्म चैतन्य का साकार स्वरूप ही ओंकार है और उसका मूर्त-स्वरूप है या विग्रह श्री गणेश हैं। इसका जो अवतरण ईसामसीह हैं। इस चीज़ को समझ लें तो जब हम गणेश की स्तुति करते हैं तो बस पागल जैसे गाना शुरू कर देते हैं। एक-एक शब्द में हम क्या कह रहे हैं? उनकी शक्तियों का वर्णन हम कर रहे हैं। पर क्यों? ऐसा करने की क्या जरूरत है? इसलिए कि वो शक्तियाँ हमारे आ जायें और हम भी शक्तिशाली हो जायें । इसलिए हम गणेश जी की स्तुति करते हैं। ‘पवित्रता’ उनकी सबसे बड़ी शक्ति है। जो चीज़ पवित्र होती है वो सबसे ज़्यादा शक्तिशाली होती हैं। उसको कोई छू नहीं सकता। जैसे साबुन से जो मर्जी धोइए वो गन्दा नहीं हो सकता। एक बार साबुन भी गन्दा हो सकता पर यह ओंकार अति पवित्र और अनन्त का कार्य करने वाली शक्ति है। इस शक्ति की उपासना करते हुए हमें याद रखना है कि इसे हम अपने अन्दर उतार लेना चाहते हैं जिससे हमारे अन्दर पूरी शुद्धता आ जाये। हमारे चक्र सारे शुद्ध हो जायें, हमारा जीवन शुद्ध हो जाये, हमारे समाज, देश और सारे विश्व में शुद्धता आ जाए। उस शुद्धता में ही आनन्द है । शुद्ध होने पर बड़ा अच्छा लगता है। जैसे नहा-धो कर साफ कपड़े पहन लेना । जब आपका पूरा जीवन इस ओंकार से स्वच्छ हो जाता है तब आत्मानन्द मिलता है। आत्मा में भी जो शक्ति है वो भी ओंकार ही की शक्ति है। लेकिन हम यह नहीं समझते कि ओंकार क्या चीज़ है, केवल यह कह देने से कि यह ओम है और अर्ध मात्रा है हम इसे समझ नहीं पाते। यह चार शक्तियाँ (चत्वारी) श्री गणेश की है । ईसामसीह के जीवन में उन्हीं का प्राद्र्भाव आप पाते हैं। ईसामसीह चार साल तक ही जीवित रहे और पता नहीं उनके बारे में हिन्दुस्तान में बहुत कम जानकारी रही पर पाश्चिमात्य देशों में लोग उन्हें मानने लगे। पर अब ये लोग केवल खोपड़ी मात्र है । उनमें हृदय तो है ही नहीं । अर्थात् उसके अन्दर संवेदन शक्ति आनी चाहिए जिससे वह प्रकाश के पुंज बन जाये। आप देखिये कि ये प्रकाश जो आँखों पर पड़ रहा है इससे आँखें धुंधला जाती हैं। परन्तु अन्दर के प्रकाश से सब कुछ दिखाई देने लग जाता है। उस आत्मा के प्रकाश को पाने के लिए आज्ञा चक्र पर ये आप देखिये मेधा है जिसे हम ब्रेन प्लेट कहते हैं। इसपे यहाँ आज्ञा चक्र है। जब मेधा खुलती है, तभी आज्ञा चक्र खुलता है। जब इसके अन्दर से कुण्डलिनी ऊपर आती है तो मेधा के ऊपरी हिस्से में छा जाती है तो मनुष्य की बुद्धि से परे की, एक विलक्षण दैवीय शक्ति प्लावित होती है और इस दैवीय शक्ति से आप समझने लग जाते हैं कि सत्य क्या है और असत्य क्या है। इस शक्ति का प्रवाह आपके हाथों में आ जाता है और धीरे-धीरे अच्छे-बुरे की पहचान के लिए आपको हाथों की भी आवश्यकता नहीं

रहती। आप फौरन से जान जाते है कि ये झूठा है या अच्छा है। कुछ लोग बहुत जल्दी इस गहनता में उतर आते हैं, मैं कहती हूँ उनमें ईसामसीह का आशीर्वाद हो गया। पर कुछ लोग अब भी बुद्धि के चक्कर में रहते हैं जैसे बेकार के धर्म-अधर्म, जाति-पाति में फँसना, संकुचित विचार तथा अनुदारिता की बुराईयाँ। हमारे देश में जैसे कहीं और न मिलने वाले पराश्रयी जीव मच्छर, खटमल आदि मिलते हैं वैसे ही कहीं अन्य न मिलने वाली बहुत सी बुराईयाँ भी हैं। मनुष्य कहाँ तक गड्ढे में जा सकता है। वह यहीं देखा जा सकता है कभी -कभी आश्चर्य होता है कि जिस देश में इतने बड़े-बड़े अवतरण हुए, जिस देश की संस्कृति परमात्मा को मानने वाली है, वहीं ये मैला-कुचैलापन तथा रूढ़िवादी से लोग सड़ते जा रहे हैं। जाति-पाति आदि बुराईयाँ मानव को कीड़े-मकोड़े सम बनाये जा रही है । | ‘विश्व निर्मल धर्म’ ओंकार का धर्म है, पवित्रता का धर्म है। इसमें ये बुराईयाँ यदि आप चला रहे हैं तो आप गहराई में नहीं उतर सकते हैं। जितना मर्जी आप कहिये कि हम तो माताजी की पूजा करते हैं, फोटो लगाते हैं, उनको मनाते हैं आदि, इससे न आपको कुछ फायदा हो सकता है न दुनिया को। इस तरह जो हम अपने से ठगी कर रहे हैं। सहजयोगियों को पहले विश्वास कर लेना चाहिए कि हम सब अपने को ठगने वाले नहीं हैं। ठगी छोड़कर सहजयोग में पूरी तरह उतरने से ही आपको इसका लाभ होगा। आधे-अधूरे लोगों को कभी किसी गुरुओं के पास जाने से या गलत लोगों की संगति से तकलीफ हो जाती है क्योंकि आज कृत – युग है। आज ब्रह्म चैतन्य कार्यान्वित है। अब आप न तो खुद को ठग सकते हैं न मुझे ठग सकते हैं। जिसने ठगी का रास्ता लिया उसको उसकी ठगी का फल मिल गया। एक साहब आकर कहने लगे कि, ‘माँ, मैं ‘ध्यान’ करता हूँ। तो मेरा मुँह इतना बड़ा हो जाता है। ‘कैसा हो जाता है?’ ‘हनुमान जी जैसा।’ तो मैंने कहा, ‘अच्छा है, तुम हनुमान हो गये। तो कहने लगा, ‘नहीं माँ, मुझे घबराहट हो रही है। मेरा मुँह फट जाएगा।’ ‘आप तम्बाकू खाते हैं न?’ ‘यह बात तो है,’ कहने लगा। मैंने कहा, ‘फिर तम्बाकू ही खाओ, काहे का ध्यान करते हो।’ तम्बाकू भी खायेंगे और ध्यान भी करेंगे तो मुँह तो ऐसे बढ़ेगा ही। एक और साहब आये और कहने लगे, ‘माँ, मेरी अंगुली कट गयी। इसमें चोट आ गई।’ ‘अच्छा, सिगरेट तुम पी रहे थे ?’ कहने लगा, ‘हाँ।’ एक और साहब की मोटर की दुर्घटना हुई। उन्होंने आकर बताया कि, ‘माँ, सिर्फ यही अंगुली गयी। इसी में चोट आई क्योंकि मैं सिगरेट पीता था।’ सहजयोग में आकर भी सिगरेट पीते हैं, शराब पीते हैं। दुनिया भर के छेद हैं आपमें और सहजयोग का इतना बड़ा बैज आप लगा लेते हैं। तो यह बैज ही आपकी खोपड़ी तोड़ेगा। मैं बता दे रही हूँ कि बैज लगाना इतनी सरल चीज़ नहीं है। जिस बैज को आपने लगाया है, मर्यादा विहीनता की अवस्था में यही आकर आपकी खोपड़ी तोड़ेगा। मैं न ऐसा चाहती हूँ न करती हूँ। पर यह बैज कोई कम चीज़ नहीं है, एक विग्रह है। इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। मतलब यह कि इसमें से चैतन्य बहता है। वही चैतन्य घोल घूमा कर आपका गला अगर धोटे तो कहेंगे, ‘माँ, मैं तो बैज लगाये सो रहा था फिर ऐसा कैसे हो गया ? वो जो बैज था न वही निकल के आया और खोपड़ी तोड़ दी। १ इसलिए बैज मत लगाओ-अगर लगाना है तो उसके योग्य रहो । लौकेट आदि यदि पहनना है तो पहनो पर सम्हाल | के-नहीं तो मुझे दोष न लगाना कि, ‘माँ मैं यह पहन कर गया था तो भी फिसल पड़ा और पैर टूट गया। तो उससे कुछ मिला तुमको? इसको यदि पहनना है तो आपमें पात्रता होनी चाहिए। यदि वह योग्यता नहीं है तो ईसामसीह

से भगवान बचाए और गणेश जी तो उनसे भी बढ़कर हैं। वो तो सदा अपने बायें हाथ में फरसा लिये होते हैं और इस मामले में मेरी कोई सुनते हैं? बैज, लौकेट, अंगूठी जो भी पहनना हो पहनो , पर बहुत ही सम्भल के रहिये। गुसलखाने आदि जाते हुए इसे उतार कर रखिये। इसे बहुत सम्हालिए, मेरे बालों को भी। मेहरबानी करके जहाँ भी मिलें वापिस कर दीजिए । क्योंकि मेरे बाल यम के दिये हुए हैं और यम इनके पीछे रहता है। मैं नहीं कहती कि आपको कोई कष्ट हो। अत: बहुत सम्भल के रहिये क्योंकि मैं माँ भी तो हूँ, पर ये लोग तुम्हारे माँ-बाप नहीं हैं, ये तो तुम्हारे भाई लोग हैं और डंडा लिये घूमते हैं आपके पीछे-पीछे | इसलिए सहजयोगी की विशेषता को समझ लीजिए। यह परमात्मा का घर है और परमात्मा माँ नहीं है। माँ तो प्रेममयी है और बच्चों की छोटी- मोटी गलतियों को अनदेखा करती हैं। कितनी मेहनत करके आपकी माँ ने आपको सहजयोग दिया है। आपका पाँव कहाँ डगमगा रहा है? आप कौन सा गलत काम कर रहे हैं? सम्भल के रहना चाहिए। मैं यह जरूर कहँगी कि आदिशक्ति परमात्मा की शक्ति है, उनकी इच्छा है। लेकिन परमात्मा देख रहे हैं कि ये सारी मेहनत जो हो रही है, इतना नाटक जो इन लोगों ने बना रखा है, इसमें सत्य-असत्य कितने लोग हैं और उन्हें किस-किस को ठिकाने लगाना है। वो इसका हिसाब जोड़ रहे हैं। जो अच्छे हैं उनको भी कभी देखना चाहिए न, वैसा नहीं है। जो झूठे हैं उनको पकड़े बैठे हैं और सबको डंडा मारेंगे। इसलिए मेहरबानी से जो भी करना है शुद्ध मन से और दिल खोलकर कीजिए। हमने आपसे जो बातें बताईं कि यदि आपके अन्दर अंधश्रद्धा हो, जातिवाद हो, हम हिन्दुस्तानी बहुत उँचे हैं-यह या कोई और झुठी भावना हो-तो इसमें पावित्र्य नहीं है। यह सारी भावनायें निकाल करके कृपया मेरा लौकेट पहनिये क्योंकि हर लौकेट, बैज या अंगूठी के साथ एक-एक गण लगा हुआ है आपके आगे पीछे, उतनी आपकी वो रक्षा करते हैं, उतनी ही रक्षा एक तरह से करते हैं कि आप कोई गलत काम न करें-क्योंकि वो अन्दर-बाहर से जानते हैं। इसलिए आज के दिन ये भी आपके लिए चेतावनी सी हो जाती है। अगर ईसामसीह इस संसार में न आते और अपने को आज्ञा चक्र में बिठा कर तारण का मार्ग, पुनर्जीवन का मार्ग न बनाते तो सहजयोग साध्य न हो सकता। उनका आना अति आवश्यक था। लेकिन इन सब अवतरणों में आपस में कोई झगड़ा नहीं। एक जीवंत पेड़ पर इन सब लोगों की उत्पत्ति हुई इस पेड़ को पनपाया गया और अन्त में सहस्रार पर आना हुआ और इस सहस्रार से कार्य हुआ। यदि पेड़ ही नहीं होता तो सहस्रार कहाँ से आता। इस पेड़ ने ही सहस्तर बनाया है। इस पेड़ की भी जिम्मेदारी है कि सहस्र को देखे, सम्हाले और इसकी पूरी रक्षा करे और इसके विरोध में जाने वालों को ठिकाने लगाये। तो आज का दिन आप लोगों के लिए समझने का है कि अगर ईसामसीह नहीं आते तो हम लोगों का पुनर्जीवन (रिजरक्शन) न होता। श्री गणेश से प्रार्थना की जाती है कि हमारे मोक्ष के समय हमारा रक्षण करें। मोक्ष के समय वे साक्षात आज्ञा चक्र पर पधारते हैं और आपका रक्षण करते हैं। इसलिए आज का दिन हम सबके लिए बड़ा शुभ है। बहुत प्रसन्नता देने वाला है और इसी तरह चेतावनी भी देता है कि सम्भल के रहिये। यदि आज्ञा चक्र पर आप पिछ्ड़ गये तो पागलखाने में चले जाएंगे या कोई और बीमारी हो जाएगी। आज्ञा चक्र की पवित्रता रखनी चाहिए यानि की हमारे विचार हमेशा पवित्र होने चाहिए। अपवित्र विचार यदि आ जायें तो उसको क्षमा कर देना चाहिए| जैसे-जैसे आपकी उन्नति होगी आपके अन्दर अपवित्र विचार आयेंगे ही नहीं। सहजयोग सिर्फ आपके आनन्द, आपकी महानता, आपके गौरव और आपकी पूर्ण प्रगति के लिए बना हुआ है। लेकिन इस महान कार्य में पूर्ण हृदय से संलग्न लोगों के साथ जो सहयोग न देंगे उन पर आफत भी आ ০

सकती है। पूर्ण हृदय से आपको कार्य करना चाहिए। कुछ लोगों में कंजूसी की बीमारी भी मैं देखती हूँ कंजूसीपना कर रहे हैं। किसी तरह चार रूपये यदि बेचते हैं तो बचा लो। चार रूपये की बचत आप करेंगे तो आपके कम से कम चार सौ रूपये जाएंगे। सहजयोग में दिया हआ एक रूपया भी लाख रूपये के बराबर हो सकता है। ये बात मैं आपसे कह तो रही हूँ। हमें सोचना है कि हम कुछ नहीं दे रहे हैं। सब कुछ माँ का ही है। माँ का माँ को दे रहे हैं। और हम कुछ लेते नहीं है। आप तो जानते हैं कि सुबह शाम झगड़ा हो रहा है कि हमको कोई चीज़ नहीं चाहिए, हमें साड़ियाँ मत दो। सुबह से शाम तक पाँच साल से झगड़ा चल रहा है कोई सुनता नहीं है। कुछ भी चीज़ नहीं चाहिए हमको। लेकिन सहजयोग के लिए तो पैसा लगता है। लेकिन यहाँ तो लोग हैं जो मुफ्त में खाना बड़ी मर्दानगी समझते हैं। बाद में उनके पेट में यदि शिकायत हो जाय तो मैं इसके लिए जिम्मेदार नहीं हूँ। यह जगह भिखारियों के लिए नहीं, रईसों के लिए है। तबीयत-तबीयत चाहिए। राजा की तरह आपकी तबीयत है तो आइए । कोई जरूरी थोड़े है कि आपके पास पैसा होना चाहिए। बहुत से पैसे वाले महाकंजूस होते हैं और बहुत से मेरे जैसे गरीब उनको देते रहने में ही मजा आता है। एक हाथ खुलने पर यदि दूसरा हाथ खुलेगा तभी दूसरे हाथ से आएगा नहीं तो वहीं पर रूक जाएगा। इसलिए कंजूसी की बातें सुनकर मुझे बहुत घिन चढ़ती है। उस दिन का नज़ारा मुझे बहुत अच्छा लगा जब कुछ नहीं रहा तो मेरे फोटो ही लोगों ने बड़े प्रेम से लिए। माँ, हमें फोटो दे रहे हैं। सब आए, बड़ा अच्छा लगा। तो समाधान पहले आना चाहिए। ईसामसीह जैसा त्याग तो कोई नहीं कर सकता पर समाधान के बाद त्याग को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। थोड़ी सी तकलीफ हो जाएगी। लेकिन बहत बड़े महान कार्य जो पड़े हैं जिन्हें हम अपने लिए ही नहीं सबके लिए कर रहे हैं। अगले साल मैं सबकी लिस्ट मंगाऊंगी। मैं देखना चाहती हूँ, खास कर बम्बई वालों की यह शिकायत है कि वो पैसा देने से बिल्कुल इन्कार कर देते हैं । बम्बई में महालक्ष्मी का मंदिर है । क्या फायदा उस बेचारे मंदिर का जहाँ महालक्ष्मी स्वयं ही जमीन से ऊपर आ गई। वहाँ के लोग इस कदर कंजूस हैं कि वे कुछ भी पैसा नहीं देना चाहते, सोचते हैं सब तो माँ कर ही रही है। आराम से रहो, बस मजा आ रहा है । ऐसे तो सब हो ही जाएगा चाहे वो पैसा दें चाहे न दें। लेकिन उनका क्या होगा यह सोच लेना चाहिए। महालक्ष्मी तत्व तभी जागृत होता है जब हम अपने अन्दर समाधान प्राप्त कर लेते हैं, लक्ष्मी-तत्व जब पूरा हो जाता है और हम सत्य को खोजने लगते हैं। अगर आपमें समाधान नहीं है तो आप महालक्ष्मी के तत्व में उतर नहीं सकते। देखिये सीता जी का जीवन प्रभु रामचन्द्र जी के साथ कितना दिव्य है, राधा जी का जीवन और उनके बाद ईसामसीह की माँ का जीवन तीनों में कितना त्याग है। बगैर महान समाधान के ये हो ही नहीं सकता। महालक्ष्मी तत्व से तो मनुष्य समाधान हो जाता है, इस तत्व से वो सत्य को ढूंढता है और सत्य को ढूंढते हुए असत्य को छोड़ता जाता है। तो आज के इस महालक्ष्मी पूजन में जहाँ कि ईसामसीह और उनकी माँ मैरी को भी पूज रहे हैं, हमको समाधान में उतरना चाहिए। सांसारिक तथा भौतिक चीज़ों से जब हमारे अन्दर समाधान आ जाता है तभी महालक्ष्मी का तत्व हमारे अन्दर जागृत हो जाता है। फिर महालक्ष्मी तत्व, लक्ष्मी तत्व को संवारता है और लक्ष्मी तत्व अपने आप बनने लग जाता है, अपने आप कार्यान्वित हो जाता है, अपने आप इसका लाभ दे देता है। अपने आप सारी चीजें बन कर खड़ी हो जाएंगी।

तो कहना यह है कि अपने दिल को बड़ा करें, दिल बड़ा करें और दिल के अन्दर उस ओंकार को बसायें, उस आत्मतत्व को बसायें, ईसामसीह को, श्री गणेश को बसायें जिनके कारण हमारे बिगड़े काम ठीक हो जाएंगे | आपको मेरे ऊपर अधिकार आ जाए क्योंकि उन लोगों के बगैर मैं आपको अधिकार नहीं दे सकती। कुण्डलिनी के जागरण में भी जब तक मूलाधार से आज्ञा नहीं आती है, जब तक मूलाधार में बैठे गणेश जी हाँ नहीं करते हैं, मैं क्या कोई भी कुण्डलिनी को जगा नहीं सकता। उनके अधिकार अपने हैं। अगर कोई सोचता हो कि हम माँ के बहुत नजदीक हैं तो ये समझ लें कि अगर वो नजदीक हैं और वास्तविकता में नजदीक हैं तो यह भी श्री गणेश जी की ही इजाजत से हो रहा है, ईसामसीह की इजाजत से हो रहा है। उनकी इजाजत के बगैर मैं किसी को नहीं मान सकती। यह एक बन्धन है हम पर। इसलिए मैं बार-बार कहती हूँ कि सम्भल के रहिए, सनके बन्धन को मानना ही पड़ेगा । ये जो भी आपके बारे में सोचते हैं उसकी ओर मुझे जरूर देखना पड़ता है। मैं कितना भी माफ कर दें, माँ की दृष्टि से | कुछ भी कह दूं लेकिन इनके आगे मैं हारी हुई हँ। यह भी जान लेना चाहिए कि ये लोग स्वयं आपकी मदद के लिए हैं, आपको स्वच्छ करने वाले हैं, आपके लिए सबकुछ करने वाले हैं। पर एक चीज़ की इनको उम्मीद नहीं ‘मैं निर्वाज्य हूँ।’ मैं आपसे कुछ नहीं चाहती हं, लेकिन अगर आपने मेरे प्रति कोई गलत बात कही या की, या सहजयोग में किसी तरह का ओछापन आपने किया, या किसी तरह की ठगी की तो ये आपके पीछे पड़ जाएंगे । इसलिय मैं बार-बार आपसे कह रही हूँ कि आज के शुभ अवसर पर हमें ये जानना चाहिए कि हमारे साथ कितनी बड़ी शक्तियाँ खड़ी हुई हैं। क्यों न हम उस शक्ति को स्वीकार करके शहंशाह जैसे रहे ? क्यों हम छोटे से बन कर रहें? जब हमारे पास इतना बड़ा सिंहासन है तो हम शान से सिंहासन पर बैठे, शान से रहें। अब आप सहजयोगी हो गये हैं। योगीजन हैं, बहुत बड़ी चीज़ हैं। इतने योगी थे ? आरै इतने योगी इस गणपतिपुले में आए हैं जहाँ पर कि महागणेश बैठे हुए हैं। इन महागणेश के कभी हुए परिवार में हम लोग यहाँ आए हुए हैं। इनके इस प्रांगण में हम आ पहुंचे हैं और इनके आशीर्वाद से हमारे अन्दर उन्हीं के जैसी महाशक्तियाँ आ सकती हैं। पर सबसे पहले शक्ति को भी सहन करने के लिए उनकी पवित्रता होनी चाहिए, उनकी भक्ति होनी चाहिए । जिस तरह उनकी भक्ति नि:स्वार्थ है। हमारी भक्ति भी अगर वैसे ही हो जाये तो आपके चाकर बन कर तो आपको सम्भाले रहते हैं। यदि आप उल्टे तरह से चलें तो आपकी हानि भी कर सकते हैं। एक सूझबूझ की बात मैं समझा रही हूँ क्योंकि एक माँ को ऐसा लगता है कि ये मेरे बड़े प्यारे बेटे हैं और इनसे आप लोगों का लाभ ही होना चाहिए। ये भी लगता है कि कहीं ये तुम लोगों के कान न पकड़ लें। इसलिए आप लोगों को यह भी समझा रही हूँ कि जब इतना सुन्दर समागम हम लोगों ने बिठाया है, इतने सुन्दर परिवार के लोग यहाँ आ गये हैं तो ये जो आपके बड़े भाई लोग हैं इनको आप लोगों को थोड़ा सा मानना पड़ेगा। इनकी पूजा करके यदि आप इन्हें खुश कर लें तो बड़ा अच्छा रहेगा। परन्तु हम जानते हैं कि यह जल्दी खुश नहीं होते। हममें जब तक अन्दर की स्वच्छता नहीं होगी ये खुश नहीं होंगे। इसलिए स्वच्छ हृदय से आज प्रण कीजिए कि सब तरह की क्षुद्रता तथा ओछापन हम त्याग देंगे और इनकी महानता और शुद्धता की ओर नजर करके इन्हें अपना आदर्श मान कर अपनी जिन्दगी बनायेंगे। यह करने से हमारा लाभ ही लाभ है।

आपको अनन्त आशीर्वाद हैं हमारे। आप लोग इतने प्यार से यहाँ आये। माँ आपको धन्यवाद तो नहीं कह सकती। पर यही है कि मेरा हृदय भरा हुआ है और इस हृदय में आप सन्त समाये हुए हैं। मैं आपसे अत्यन्त प्यार करती हूँ। नितान्त प्यार से मैं आपको देखती हूँ। हमेशा आपकी रक्षा के विचार में रहती हूैँ, आपके प्रति मेरा पूरा चित्त है, तवज्जो है। किसी भी प्रकार की तकलीफ हो आप मुझे लिख सकते हैं। पर आप स्वयं स्वच्छ हो जाएं, शुद्ध हो जाएं और मंगलमय हो करके इस आनन्द को अनन्त तक भोगें।