Public Program Day 3, Vibrations that is Love

Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

1974-03-27 Public Program, Chaitanya Lahari Kya He, Mumbai Hindi Pasq, 72'
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Chaitanya Date 27th March 1974 : Place Mumbai Public Program Type Speech Language Hindi

[Orginal transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

कोई शंका नहीं कर सकते। जो विदित है जो दिखाई Viberations, that is love, that is दे रहा है, ये viberations क्या है? एक हैं वो knowledge, that is joy । पहला शब्द है Viberation, जिसको कि आप लहरियाँ कह सकते हैं, परम कह सकते हैं। जब कोई तार छूती है, इसमें से जो संगीत सल्फरडायाक्साइड के रेणु में जो अनन्त अणु किस चीज से Viberated हैं, इसमें Viberations क्या चीज है? इसके बारे में Science ने एक शब्द के तरंग उठते हैं, इसे आप viberations कह सकते viberations के सिवा और कुछ नहीं कहा। ऐसे मैंने पहले भी आपसे कहा था कि हमारे हृदय में जो हैं। भाषाओं का बड़ा चक्कर है। बहरहाल भाषा में उसे आप कुछ भी कहें, लेकिन साक्षात् में इसे आप देख सकते हैं। अभी हाल ही में मैं जब लन्दन में स्पन्दन हो रहा है, इसमें कौन सी शक्ति है, ये अगर डॉक्टरों से पूछा जाए तो सिवा इसके कि ये एक से थी तो वहाँ पर Electro Microscope कुछ अणु रेणुओं में, Molecules के फोटोग्राफ T.V. पर वो लोग दिखा रहे थे उसमें उन्होंने बताया एक Autnmous Nervous System है, स्वयंचालित एक संस्था के सिवाय कोई भी बात हमारे Doctor लोग sulpherdioxide का रेणु जिसमें कि एक Sulpher का अणु है और दो Oxygen के रेणु हैं, आपस में किसी बाँध से बंधे हुए हैं। आँखों से दिख रहा था, नहीं बता सकते। इसका मतलब ये नहीं कि उन्होंने जो खोजा वो ज्ञान नहीं, ज्ञान है लेकिन अधूरा ज्ञान है, बहुत ही अधूरा, छोटा सा, इसका एक अंश मात्र है जिसको कि न्यूटन ने एक बार कहा था। am इसका चित्र दिख रहा था। इसके बारे में कोई प्रश्न या भाषा या कोई शंका की बात नहीं है। आप आँखों से देख रहे हैं। इस तरह के तीन बिन्दुओं के बीचोंबीच एक शक्ति दौड़ रही थी मानो जैसे दोनों like the small child collecting pebbles on the shores of knowledgel न्यूटन जैसे महाज्ञानी तक को यह विचार आ गया था कि मैं अभी बहुत अज्ञानी हूँ, इसी जगह ज्ञान की शुरुआत हो जाती है हाथों से झर-झर, झर-झर कोई चीज जा रही हो, जैसे की sulpher के दो हाथ हों और वो अपने हाथ से कुछ चीज़ Oxygen की ओर डाल रहे हैं और जब मनुष्य सोचने लगता है कि ‘सूरदास की सभी अविद्या दूर करो नन्दलाल।’ ये जो viberations आपको उसमें दिखाई दे रहे हैं उसके बारे में आप Oxygen कुछ चीज़ Sulpher की ओर आ रही है। आप अपनी आँख से देख सकते हैं। लग रहा था से कुछ भी नहीं कह पा रहे हैं। क्या मनुष्य का ज्ञान इतना अधूरा है कि हर रेणुओं में, हर अणुओं के बीच में जो तरंग उठ रहे हैं उसके बारे में कुछ भी हिल रहा है। और उसके बारे में उन्होंने ये बताया कि तीन तरह के viberations होते हैं, तीन तरह के तरंग होते हैं, जो किसी भी matter में, किसी भी जल पदार्थ में भी दिखाई देते हैं, ये अब Science ने पता आप नहीं कह पाए? इसका मतलब ज्ञान तो हुआ ही नहीं। Viberations जो कि ज्ञान स्वयं हैं, वो ज्ञान है, सम्पूर्ण ज्ञान हर अणु-रेणु अन्दर में स्थित है जैसे मेरी सम्पूर्ण भाषा और ज्ञान जो मेरे मुख से जा रहा है इन दोनों में स्थित है लेकिन ये दोनों मूुर्ख इतने अनभिज्ञ हैं कि कौन सा ज्ञान इसमें से गुजर रहा है। लगाया है और इसके बारे में आदिकाल से ही संसार में बहुत से लोगों ने बताया। ये जो viberations चल रहे हें जो कि जड़वस्तु में आपके सामने हमारे भी अन्दर वही ज्ञान तरंगित है लेकिन हम भी साफ-साफ नजर आते हैं, इसके बारे में क्या आप ন

और sulpher के रेणुओं जैसे अनभिज्ञ हैं कि हमारे अन्दर कौन सा ज्ञान प्लावित है और खोज दूर ही से हों रही है। जैसे कि मैने आपसे उसी oxygen कहा कि Suipherdioxide के एक रेणु के अन्दर हैं। किस चीज को फिर आप सच मानकर बैठे उसके अणु के अन्दर से viberations हैं ये वही हुए संगीत के तार हैं जिनकी मैं बात कर रही हूँ और और जब कभी कोई भी आदमी उस सत्य की जुरा वही viberations आपके अन्दर से भी बह सकते हैं और फूट कर के उस कार्य को पूरा कर सकते हैं जिसके लिए आप संसार में आप मनुष्य रूपेण आए और अहंकार आदि चीजों से सब अलंकृत सी भी पहचान कराने आता है, तो क्योंकि असत्य में खड़े हैं इसीलिए हम द्वेष में भी खड़े हैं। उस सत्य की झलक मात्र भी कोई आदमी कहने आता है तो उसे हम क्रॉस पर चढ़ा देते हैं या उसको हम murder कर देते हैं, उसको हम खत्म कर देते हैं कि जो वो सत्य है हमारे ऊपर किसी तरह से भी किए गए। और अन्त में उस संगीत के आप धुनी न खुल जाए। इससे भी बचकानापन क्या और हो बने। बड़ा संगीत का सारा साज सजाया गया था, सकता है? जिस सत्य के कारण स्वयं आनन्द सब बड़े सुन्दरता से जतन करके जमाया गया रंग, लेकिन तार को छेड़ने वाला गुर नहीं मिलेगा तो संगीत कैसे उत्पन्न हो सकता है? इसीलिए संसार में कहीं भी, जहां कि वड़ी अमीरी भी है, जहाँ पर लोग बड़े बलिष्ठ हैं, जहाँ बड़े सत्तावान लोग बैठे हैं, आनन्द मैने कहीं नहीं देखा। और न आप ही पाइयेगा कि किसी के अन्दर वो आनन्द की उपलब्धि आपके अन्दर में खिलना चाहता है, आपके हृदय में घुसना चाहता है, आपके हृदय में बसना चाहता है उसी मार्ग को आप अज्ञान में बन्द किए हैं। अब दूसरी तरह से समझना चाहें तो आपको समझाऊ कि एक तानपूरा की बात है जिसमें कि उसकी लकड़ी भी है और उसका नीचे का हिस्सा जिसमें कि आवाजू गूंजती है और ऊपर र है। कारण उसका एक ही है कि वो तार जिससे कि आनन्द, की उपलब्धि होती है आपके हाथ नहीं में उसके तार हैं। जब तक उंगलियाँ तार को नहीं छेड़ेगी तब तक कोई भी संगीत तैयार होने वाला नहीं, उसमें से संगीत सुनाई देने वाला नहीं। लेकिन उंगलियाँ तार पे नहीं हैं, हमारा चित्त उस तार पे नहीं है जिससे आनन्द की उपलब्धि होती है, हमारा जो ये शरीर मन, बुद्धि, लगा है और उसका कारण ये है क्योंकि वो किसी आकार प्रकार में या किसी विशेष स्वरूप में नहीं होता। इसका कोई भी स्वरूप नहीं है। ये एक energy जैसा है, गुर आप कल बिजली को पकड़ सकते हैं तो उसे भी पकड़ सकते हैं। लेकिन आप बिजली को नहीं पकड़ते, उसी तरह से आप उसे नहीं पकड़ सकते हालांकि वो आपके अन्दर है, आपके हृदय में स्पन्दित है, आपके जितने भी स्वयंचालित कार्य हैं- शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सब वही करता है और वही आपको अपनी ओर खींच रहा है। उसे जानना हमारे चित्त उस तानपूरे पर है अहंकार आदि है। उस तार पे जब तक आपकी उंगली छिड़ेगी नहीं आपको किसी भी चीज से आनन्द की उपलब्धि हो नहीं सकती। आप संसार की कोई सी भी चीज़ ढूँढ डालिए, जो भी आपकी आजतक युगों से खोज हे, वो सारी ही खोजें आप कर डालिए, लेकिन आनन्द की उपलब्धि तभी लिए परम आवश्यक ही नहीं किन्तु परम जीवन का होगी जब सहज में ही आप उन तारों को छेड़ देंगे जिससे कि संगीत उत्पन्न होता है। उस तारों की लक्ष्य मात्र हैं। जब तक संसार इस चीज को सोचेगा

नहीं, जब तक इस ओर पूरी तरह से दृष्टि नहीं डालेगा तब तक संसार का कोई सा भी प्रश्न ठीक की किताब नहीं पढ़ता। कितनी विचित्र सी बात है! जब तक Sex लिखा न जाए तक तक वह धर्म की बात नहीं सुनता। Sex का और धर्म का कोई भी सम्बन्ध नहीं है। चाहे वो आज हो, चाहे अनादिकाल नहीं होगा। अभी लन्दन में भी मेरी कुछ लोगों से बातचीत हुई, अजीब-अजीब लोग बातें पूछते हैं । एक साहब पूछने लग गए कि वियतनाम में इतने लोग मर रहे हैं और आप अपना सहजयोग लेकर नहीं, उसके लिए कुछ भी कहे, Sex का और ध तक भी मनुष्य इस बात को न भी माने, समझे भी बैठे हैं! मैने कहा, बहरहाल आपके बड़बड़ाने से मेमं का कोई भी सम्बन्ध नहीं है। ये हम सिद्ध करके आपको दिखा सकते हैं, अगर आप किसी भी हमारे प्रोग्राम में आएं। इस कुण्डलिनी की जागृति Sex से सम्बन्धित है ही नहीं। उल्टे Sex जब छोटे बच्चे वियतनाम का वार नहीं ठहरने वाला। कहने लगा आपके ऊपर गुर कोई बन्दूक लेकर आए और आपको मार डाले तो आप क्या करिएगा? मैने कहा पहले आप बन्दूक तो लेकर आने दीजिए । इस viberation की शक्ति अभी तक किसी ने आज़माई नहीं। हमारे सामने तो ऐसे ही कोई जुरा सा भी कोई पिस्तौल लेकर आए तो थर-थर काँपकर के उसके हाथ मुँह दबदबाने लगते हैं। आपमें से बहुत सों ने देखा है। जैसे हो जाता है, तभी कुण्डलिनी आपकी माँ जागृत होती हैं। इस तरह से कलयुग में एक विचित्र सा confusion है। उस वक्त में viberations का देखा जाना कम से कम इशारा तो इस ओर करता ही है कि मनुष्य चाहे कितनी भी डींग मारे वह बहुत कम ही जान पाया है। बहुत ही थोड़ा जान पाया है। बहुत ही थोड़ा। और जो नहीं जान पाया उसको सब उसने नाम दे दिए है बड़े बड़े! जैसे कि मैने आपसे कहा प्रेम की शक्ति को किसी ने आजमाया ही नहीं, और गर प्रेम की बात करो तो लोग उसे हवाई बात समझते हैं हालांकि अणु-रेणु और हरेक मनुष्य कि viberations, कहीं इसे कहता है कि स्वयंचालित संस्था, और कहीं वो कहता है कि universal के हृदय के हरेक स्पन्दन में ही उसकी शक्ति कार्य करती है। प्रेम ही एक शक्ति है जो सारी सृष्टि की unconscious! रचना, सृजन, सारा कार्य करती है। इसी प्रेम की शक्ति को लोग Divine कहते हैं। नाम कुछ भी दीजिए, इसको समझने की बात है, हिन्दुस्तान में जाते हैं कि माताजी ने ऐसे कैसे कहा। लेकिन जो शंकराचार्य ने बहुत साफ-साफ इस बात की ग्जना शक्ति सारे संसार को चलाती है, जो viberations करके और घोषणा करके कहा था, “‘इन्हीं चैतन्य लहरियों का आना ही परमात्मा का पाना है और संसार के सारे ही प्रश्न सहजयोग से ही सकते हैं। ये कहने पर भी लोग बहुत नाराज हो छूट हरेक अणु, रेणुओं में प्लावित है, उसको गुर आप जान लें वो आपके हाथ में से बहने लग जाएं, उसी से मनुष्य उस परमात्मा के हाथ का साधन उसपे गुर आप mastery कर लें, तब आपके लिए बनकर के संसार का कार्य उस तरह से करते रहता है जैसे कोई एक साक्षी हो Witness हो। पुजारी है, वो चाहता है कि हाँ गर मेरे अन्दर लेकिन शंकराचार्य को कौन पढ़ते हैं? क्या असम्भव कोई बात है? मनुष्य शक्ति का शक्ति आ रही है तो मैं सहजयोग करुंगा, उसे कुछ बदला चाहिए। असल में आपके अन्दर तो शक्ति है ही, लेकिन वो कृण्ठित है। उसको स्वतन्त्रता Modern आदमी की बड़ी विचित्र दशा है! जब तक धर्म में अधर्म न लिखा जाए मनुष्य धर्म

दे देना, सहजयोग करता है। यही ॥beration है, यही मुक्ति है, जिसके बारे में हजारों किताबें मनुष्य ने लिख दीं। ये बहुत अज्ञानी किताबें है, बहुत सारी अज्ञानियों की किताबें हैं। ज्ञान की किताबें तो वो हैं जोकि रोजमर्रा, हर जगह हमें जरूर देखने को मिलें से Centres पकड़े हैं जो हमारे अन्दर हैं, जिन्हें हम दिखा सकते हैं आपको, पर आप हमारे ध्यान में कभी आएं। इतना समय गर आपको मिल जाए, बडे उसको iberate करना, यही कार्य ० आप busy लोग है तो आप जान सकते हैं कि इन्हीं उगलियों के ऊपर आप दूसरों को परख सकते हैं और जान सकते हैं कि कौन सन्त है, कौन असन्त है, कौन दुष्ट है कौन महादुष्ट है, कौन राक्षस है। यही knowledge कोई साहबे आए बड़े अच्छे कपड़े पहनकर के आ गए, साधु महात्मा बनकर आ गए, आपसे मीठी बातें करी, ‘भई मैं तो तुमसे प्रेम करता हूँ।’ बाद में आपने पता देखा कि कितनी गटी कट गई ये तो समझ में आया नहीं, वैसे तो बड़े अच्छे लग रहे थे, बड़े साधु लग रहे थे, मुँह से बड़े भोले भाले लग रहे थे लेकिन हमारी तो गर्दन काट गए। मनुष्य के बारे में अपने ही मनुष्य और मनुष्य के बीच में कोई आपस में ज्ञान नहीं है। हालांकि अधिकतर मानव बहुत सुन्दर, और उसका proof मिले। अज्ञान ही संसार में भरा दिखाई देता है। जब मनुष्य को ज्ञान होता है, सिर्फ एक ही ज्ञान कि ‘मैं कौन हूँ’ में किस शक्ति से बना हुआ हूँ और किस शक्ति में मैं स्थित हूँ तो एकदम से उसका अन्तर्मन बदल जाएगा। उसकी स्थिति बदल जाती है, उसका तरीका बदल जाता है। और जिसे वो दुख समझता है, जिससे वो घबराकर भाग रहा है, वो असलियत में वास्तविकता उसके लिए बड़ी सुन्दर हो जाती है! सिर्फ ये viberetions हमारे अन्दर से बह निकलें उसके बाद इन्हीं viberations अत्यन्त गौरवशाली, जैसे कि बाग में कलियाँ हों और अभी खिली नहीं हों और कोई समझता ही से आप जान सकते हैं, knowledge आ सकता कि दूसरा आदमी क्या है। इसी से शुरु करें। दूसरा आदमी क्या है? आप कोई realized आदमी आता है, छोटे बच्चे आते हैं दो-दो साल के बच्चे जो पार हो जाते हैं, जिन्हें हम कहते हैं जिनके अन्दर से पड़ते हैं, और जब आप दूसरों पर हाथ रखकर है। नहीं कि इस बाग में कितनी बहार जब ये viberations आपके अन्दर से छूट viberations बहना शुरु हो जाते हैं। वो किसी भी देखते हैं तो मजा आता है आपको। आपको मजा आता है, आप देखते हैं, आ हा हा हा, आ हा हा हा। कितना! लोग बताते हैं ये तो ऐसा आदमी है अजीब सा आदमी है! नहीं नहीं, इसके अन्दर देखो, कितना सुन्दर है! आपस में सुगंध, एक संगीत, देखने योग्य होता है, से कम पचास फीसदी आदमी दे सकते हैं। बिल्कुल मजा आता है इन्सान से। हालांकि हम इन्सान से सही बात है। आप उंगलियों से उन्हें जान सकते हैं, भागते रहते हैं सुबह से शाम तक, इन्सान-इन्सान से भागता रहता है से शाम तक। क्या अजीब इन्सान की ओर जब हाथ करते हैं तो बताएंगे कि हमारे इस उंगली में जलन है। अब गुर उस आदमी से पूछिए हैं कि आपको Heart Trouble है, कहने किसी से बात ही नहीं करता, लगा हाँ भई हमें Heart Trouble है। यह हृदय चक्र की निशानी है, इसकी गवाही यहाँ बैठे हुए हैं कम छोटे बच्चे तक जान सकते हैं, कोई गर आदमी आ सुबह जाए, आप फौरन बता सकते हैं कि ये आदमी किस में है, इसके कौन से चक्र पकड़े हुए हैं, कौन हालत है। जो आदमी जानकार है, उसको तो है कि अजीब कभी-कभी ऐसा भी लग सकता दशा

पागलखाने में आए हैं! सब एक अज्ञान ही से सारा तो परमात्मा को कोई धन्धा नहीं था जो इस तरह के अज्ञानी लोग को पैदा कर दिए? क्या उनको अक्ल नहीं थी जो इस तरह के महामूर्खो को पैदा कर दिया जो अपने ही वो थे? और जब ये ज्ञान हो जाता मनुष्य इतना अन्जान है उस आनन्द से जिसे परमात्मा ने बनाया है। एक सहजयोग ऐसी चीज़ है, ऐसा एक तरीका है जो परमात्मा का अपना तरीका है, जिसके है, एक बात पता हो जाती है, एक बात जो बड़ी सच्ची बात है, परम सत्य की एक बात समझ में आ जाती है कि अरे जो हमारे अन्दर स्पन्दित है कारण आपके हाथ में से ये viberations बहने लग जाते हैं, पाँव में से बहने लग जाते हैं। सारे शरीर में से बहने लग जाते हैं, जैसे सूर्य का प्रकाश हो और दूसरों के अन्दर जाके, उसके प्रेम को भी जगा करके उसमें भी वो गति दे सकते हैं कि उसके भी वही दूसरे के अन्दर स्पन्दित है, और जो हमारे अन्दर से viberations बह रहे हैं वही दूसरों के अन्दर अकुला रहे हें फूटने के लिए और बहने के लिए और ये जाना जाता है आपके हाथ पर, अंगुलियों पर और आपकी रीढ़ की हड्डी पर। फिर आप अन्दर से वो बहने लग जाएं और एक तरह की chain reaction सी बना दें। लेकिन हजारों दीप जलाने के लिए पहले दीप तो सच्चे हों। आप सिर्फ दीप मात्र हैं, आप ये खुलते हैं, आपके सर पे। जान लीजिए, और आप कुछ भी नहीं है, जिससे कि संसार में उजियारा हो और आपके अन्दर वो को एक नए आयाम में उतरना है मनुष्य और उसकी व्यवस्था भी हो गई, लेकिन महज इसलिए कि मैं आपके सामने बम्बई में बोल रही हूँ और कोई मैं बहुत बड़ी भारी लीडराने वतन नहीं हूँ, या फिर मेरे दो सींग नहीं लगे हुए हैं जिससे मेरी बात न सुनी जाए। सारे ही संसार का प्रश्न हठात से एक पल बात भी है जिससे कि दीप जलना है। लेकिन गर आप मुँह मोड़ कर बैठे हुए हैं तो उसे कौन क्या कह सकता है? हमारा कितना भी द्वेष, इस देश की तो विशेषता है, इस देश की तो विशेषता ही विद्वेष है। किसी का कुछ अच्छा भी अच्छा नहीं लगता, में ही पार हो सकता है गुर सारा संसार सहजयोग को मानने लगे, लेकिन वो तो बड़ी कठिन बात नजर आ रही है अभी फिलहाल। लेकिन कम से कम आप लोग जो यहाँ थोड़े जो भी लोग हैं, आप ही लोग बहुत ही अजीब सी बात लगती है। किसी के घर में गर फूल खिले हैं तो हमें अच्छा नहीं लगता है पर किसी के घर में आके कोई गोबर डाल दे तो हमें अच्छा लगता है! कैसा मनुष्य विचित्र है! आप पार हो लें। और कुछ करना नहीं है, सहज में, आपही के साथ पैदा हुए कुण्डलिनी योग के बारे में मैं कल बताने वाली हूँ। कुण्डलिनी क्या है, ये भी ही बताइए, किसी के घर में गुर फूल खिले हैं तो आपको भी तो सुगन्ध आएगी, आपकी भी तो हवा सुगन्धित हो जाएगी। विद्वेष के कारण ही हम इस ज्ञान से अधूरे रहे हैं । अज्ञान ही है जब तक उस स्पन्दन में देख के न समझे ये भी अज्ञान है। इस प्रेम की शक्ति को गुर अपनाना है, एक चीज़ जरूर होना चाहिए, जिसको अबोधिता कहते हैं, innocencel आदमी गर innocent नहीं हो हमारे अन्दर के जो तरंग हैं, वो हमें प्यार सिखाने के लिए आए हैं प्यार देने के लिए आए हैं और हमारा जो प्यार है उसे संसार में फैलाने के तो कुण्डलिनी माताजी उठती नहीं। आप ऊपर से बड़े शरीफ आदमी होगें, दुनिया में आपका बड़ा लिए आए हैं। प्यार का ही साम्राज्य लाने के लिए संसार में ये हृदय हम लोगों के धड़क रहे हैं, नहीं

ठण्डा आ रहा है, इनको गर्म आ रहा है। हमारे यहाँ हमारी एक नातिन है दो साल की है। कोई भी ऐसा वैसा आता है तो घण्टी बजाने लग जाती है फौरन, नाम होंगा, आपके बहुत फोटों छपे होएंगे, या आप बड़े भारी साधु महात्मा होएंगे, आपको लोग भगवान करके पूजते होंगे, लेकिन कुण्डलिनी माता जो हैं वो उठने वाली नहीं है। क्या करें हम? उसने तो द्वार एक घण्टी ले कर रखी हुई है। ये आ गई है। और हम जान जाते थे कि इनको गर्मी लगती है, तकलीफ होती है। इसके बारे में आपको इन्होंने गाना सुनाया पुर श्री गणेश को बिठाया हुआ है जो स्वयं Innocence ही हैं। या मैं इतना भी कहू कि ये जो viberations था, बहुत बड़ी चीज़ है वो, बहुत बड़ी चीज़ है। थोड़े innocence की जरूरत है। लोग मुझसे पूछते संसार में आए हो संसार का कल्याण करने के लिए, उनके बिचारों के जल-जल के हाथ अन्दर हैं, ये अगर प्यार है तो innocence हैं। आदमी को हैं कि माताजी क्या करना चाहिए? मैंने कहा कुछ नहीं, आपमें innocence कितना है उसको चले गए, पैर जल जलकर के अन्दर चले गए, ऐसे जरा नाप लीजिए। उसको ज़रा तोल लीजिए कि लोगों को तकलीफ कितनी है राक्षसों से, दुष्टों से। आपके बदन में innocence कितना है और जो innocent लोग हैं, क्राइस्ट जैसे आदमी को crucify कर दिया, मोहम्मद साहब जैसे आदमी को Murder कर दिया, किसको नहीं सताया इन दुष्टीं ने? आप उनके साथ हैं या अपने innocence के चालाकी कितनी है? इसका नाप-तोल थोड़ा सा हो जाए, और आप ही की भलाई के लिए आपका Bank Balance है। आप हमेशा अपना Bank Balance नाप लेते है कि कितना है, कितना नहीं है। और साथ हैं।’ उसी के अनुसार आप कार्य प्रवीण होते हैं और उसी के अनुसार आपमें अहंकार वरगैरा आदि आते सोचिए कि इनके लिए आप क्या देना चाहते हैं? हैं और सहजयोग में जितना innocence आपका आप अपने बच्चों के लिए कम से कम कौन सी दुनिया उनके लिए आप बना करके जा रहे हैं, उनके लिए कौन सा विधान आपने सोचा हुआ है? या तो इतिहास में यही जाएगा कि आप ही के समय में सहजयोग आया था और आप लोगों ने इसे अपनाया नहीं। जबकि आपको कुछ भी देना नहीं, जीता होगा, जन्म जन्मान्तर का, वो cash हो जाएगा। खट से ऐसे-ऐसे लोग जो देखते ही साध खट से पार हो जाते हैं और चार-चार साल से भी लोग रगड़ रहे हैं। कुछ न कुछ, ऐसी बात नहीं हैं कि आप कोई बुरे आदमी हैं, बुरा तो कोई भी मैने देखा नहीं खास। जो यहाँ आते हैं कोंई बुरे आदमी थोड़े ही न होंगे। लेकिन एक बात है, आप थोड़ी चालाकी खेल ये जान लीजिए कि आप हमें प्यार भी नहीं दे रहे हैं। चालाकी से परमात्मा नहीं जाना जाएगा, आप दें ही नहीं सकते हमें कुछ। आप लोग receiving end पर बैठे हैं, आप हमें क्या दीजिएगा? सकते। वजह ये है कि आपका अभी प्यार ही कम हैं। पहले प्यार को जगा लीजिए अपने अन्दर तब चालाकी मनुष्य की Policy है। अपने innocence को नाप लें। अब इसका कोई नाप नहीं, इसका कोई आप और हममें अन्तर ही क्या रहेगा जो लेना देना बना रहेगा? देना कुछ भी नहीं, सिर्फ लेने की तैयारी चाहिए, जैसे गंगा कितनी भी जोर से क्यों न बह रही हो, आपके दरवाजे से ही क्यों न बह रही हो, और आप गुर उसमें पत्थर डाल दें तो पत्थर मापदण्ड नहीं। आप ही अपना जान सकते हैं कोई तो और जान नहीं सकते इसीलिए छोटे बच्चे खट से पार हो जाते हैं और पार होने के बाद में खुद ही खड़े होकर कहते हैं, हाँ माँ आ रहा है। इनको

क्या उसमें से पानी लेगा? उसके लिए गागर तो आदि कहते हैं और अंग्रेजी में इसे psycology, चाहिए होगी न। और गागर भी बनेगी सिर्फ innocence subconscious. ., subconscious! लोग किस तरह से उपयोग करते हैं और किस तरह से लोगों को भरमाते हैं और इसकी कौनसी कौनसी पहचाने हैं, इसके बारे में मैं आपको बताऊंगी। इस तरह से तीन दिन यहाँ पर इन लोगों का विचार है। से ही, एक ही चीज़ थोड़ा सा ठग लीजिए अपने को, कोई हर्ज़ नहीं। आप ठग गए तो कुछ नहीं जाने वाला, संसार की कोई सी भी चीज आपके साथ नहीं जाने वाली, शिवाय आपके innocence के। अपने innocence को बनाए रखिए। जो लोग बड़े जितना हमने इस जन्म में खोलकर कहा है पहले अपने को होशियार समझते हैं, सबसे ज्यादा ठगे गए कभी भी नहीं कहा। उस समय तो समझदार ही नहीं थे कि किसी से कहा जाए। फिर भी गोप से गोपनीय बात भी हम खोलकर कह रहे हैं, इसलिए हैं क्योंकि जो मूल्यवान है उसे खोकर के ये पत्थर मिट्टी इकट्ठे करलें। कि मनुष्य बाद में ये न कहे कि हमें पता नहीं था आज भी थोड़ा सा प्रयोग करने का विचार था सबका ही। आप लोग भी आए हैं, कल सोच नहीं तो हम रुक जाते। मेरी पूरी बात को आप सिर्फ रहे हैं साढे आठ बजे भारतीय विद्या भवन में सुन रहे हैं, जानना तभी होगा जब आप पार होंगे। Meditation फिर से होगा, लेकिन थोडे लोग तो बैठे हैं, हम चाहते हैं कि बातचीत से कुछ होना नहीं है, पा लीजिए। गर कुछ बनना हो तो बन जाएगा। लेकिन पाने के बाद भी हम देखते हैं कि बहुत से कुछ प्रश्न हो तो पूछ लीजिए क्योंकि प्रश्न बहुत होते हैं, अजीब अजीब से और वो ध्यान के वक्त में सामने आते हैं। एक दो में आप ही को बता दूं जो हमेशा लोग पूछते हैं कि ऐसे जल्दी लोग पार हो जाएं? ऐसा प्रश्न बहुत लोगों ने किया। हर जगह होता है। ऐसे कैसे हो सकता है कैसे कि इतनी लोग अपने घर में बैठ गए, मेरे पास इतनी इतना चिट्ठियां लंदन में आती हैं कि माताजी आपने तो हमारा ‘कल्याण कर दिया, हमें तों बड़ा आनन्द आ एक क्षण में? क्यों नहीं हो सकता है, ऐसा आप लोग क्यों नहीं सोचते? जैसे चन्द्रमा पे ऐसे कैसे कि गया, हमारा तो ऐसा हो गया, बस। इससे आगे? मनुष्य वहाँ पहुँच गया? हमारी दादी से जाकर बताओ तो अब भी विश्वास नहीं करेंगी। कोई क्या दीप इसलिए जलाए जाते हैं कि वो टेबल के नीचे रख दीजिएं? पार होने के बाद आपको समझ लेना चाहिए कि आप चुने गए हैं। आप प्रतीक हैं उस प्रकाश के जो संसार को तो कोई पहुँच ही सकता है। कोई Discovery प्रकाशित करेगा। अपनी छोटी-छोटी मर्यादाएं छोड़कर ही सकती है संसार में । अगर कोई चीज़ का पता चन्द्रमा पर जब पहुँच सकता है तो चैतन्य पर भी तो हो के उसके आनन्द के क्षण जो आपको मिले हैं, ये छोड़कर के खुले में आइए और संसार के लिएचाहिए। आजमाने से पहले ही आप सवाल पूछने प्रकाश दीजिए। यही आप दे सकते हैं, सहजयोग का देना यही है और बाकी कुछ भी नहीं। परसों के मामले में आदमी प्रश्न नहीं पूछता है जब अधर्म चला है तो उसको कमसकम आज़मा तो लेना लग गए कि साहब ये कैसे हो सकता है। अधर्म के धर्म के नाम पर बिकता है क्योंकि उसकी स्वतन्त्रता दिन में उस विषय पर बात करने वाली हूँ जिसके बारे में बहुत सारी भ्रान्तियां संसार मे फैली हुई हैं लेकिन महान अज्ञान है जिसे कि हम परलोक विद्या ही छीन ली जाती है। इसके बारे में परसों बताउंगी, इस बात को मैं कह रही हूँ कि जब आदमी पूरी

हमें ठीक कीजिए)। लेकिन जड़ से ही मैं कहती हूँ, तरह से impulsement में आ जाता है तो वह सवाल ही पूछना भूल जाता है और सहजयोग सारी बीमारी छँट जाएगी। जड़ से ही सारा अज्ञान आपकी पूर्ण स्वतन्त्रता को स्वीकार ही नहीं उसका गौरव करती है, क्योंकि आपको स्वतन्त्रता देना ही सहजयोग का कर्तव्य है। गर आप परतंत्र पहले से उसको क्यों नहीं जलाते आप। अभी हम सब लोग ही हों तो आपको स्वतन्त्रता देने से फायदा? लेकिन थोड़ी देर जुरुर ध्यान में जाएंगे, कृपया एक आधे जिससे मिट जाए उसको क्यों नहीं अपनाते आप? जड़ से ही जो अन्धकार है वो कहीं खत्म हो जाए और स्वतन्त्रती स्वच्छन्दता में बहुत बड़ा अन्तर है, घण्टे के लिए आपके पास time हो तो आप बैठे इसको समझ लेना चाहिए। स्वतन्त्रता मनुष्य के रहिएगा, बीच में उठिएगा नहीं, जिनको जाना है wisdom, सुबुद्धि से आती है। बहकावे में न आएं अपना भला करना है न, अपना कल्याण करना है और जिसको जाना हो कृपया पहले चले जाएं न। बस हमको किसी से क्या मतलब, हमको किसी से क्या लेना-देना? किसी की बात से क्या करना, बड़े-बड़े काम करना है, किसी को बालरूम डान्स फलाने ने ऐसा लिखा था, ढिकाने ने ऐसा लिखा था, पहले ही चले जाएं। आधा घण्टा कम से कम लगेगा क्योंकि किसी को सिनेमा जाना है, किसी को में जाना है, सबलोग चले जाएं। ऐसे लोगों का सहजयोग नहीं है। जिन लोगों को परमात्मा को पाना ढिकाने ने ऐसा कहा था। उससे क्या मतलब? हमको अपना मतलब है। हमको ठीक होना है, हो वो लोग बैठे और इसको पाएं लेकिन कम से हमको ध्यान करना है। कम आधा घण्टा शान्तिपूर्वक आप अपना समय दें, ध्यान में बैठो तो लोग कहते है (माताजी बाकी आपके सारे कार्य होते ही रहेंगे ।