Public Program Galat Guru evam paise ka chakkar

(भारत)

1993-12-12 Public Program Hindi Dehradun India DP-RAW, 71'
Download video - mkv format (standard quality): Download video - mpg format (full quality): Watch on Youtube: Watch and download video - mp4 format on Vimeo: Listen on Soundcloud: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

Type: Public Program, Place: Dehradun, Date:12/12/19

गलत गुरु एवं पैसे का चक्कर

सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार! संसार में हम सुख खोजते हैं, आनन्द खोजते हैं और ये नहीं जानते कि आनन्द का स्रोत कहाँ है। सत्य तो ये है कि हम ये शरीर बुद्धि, अहंकार, भावनायें और संस्कार ये उपाधियाँ नहीं हैं। हम शुद्ध स्वरूप आत्मा हैं।  ये एक सत्य हुआ, और दूसरा सत्य ये है जैसे कि आप ये सारे यहाँ इतने सुन्दर फूलों की सजावट देख रहे हैं, न जाने कितने सारे आपने लगा दिये हैं। ये फूल भी तो एक चमत्कार हैं कि एक बीज़ को आप लगा देते हैं, इस पृथ्वी में और इस तरह के सुन्दर अलग-अलग तरह के फूल खिल उठते हैं। हम इसे चमत्कार समझते नहीं हैं। ये डॉक्टरों से पूछिये कि हमारा हृदय कौन चलाता है तो वो उसका नाम कहते हैं,(Autonomous Nervous System), स्वयंचालित। लेकिन ये स्वयं है कौन? इसका वो निदान नहीं बना सकते। 

साइन्स में आप एक हद तक जा सकते हैं और वो भी ये जड़ चीज़ों के बारे में बता सकते हैं।  जो कुछ खोजते हैं, जो पहले ही बना हुआ है उसको वो समझा सकते हैं।  लेकिन साइन्स की अपनी अनेक सीमायें हैं और सबसे बड़ी उसकी ये सीमा है कि केवल सत्य को उन्होंने प्राप्त नहीं किया है। और इस वजह से साइन्स एक हद तक जाता है और फिर उसके खोज में दूसरी खोज आ जाएगी। फिर तीसरी खोज आ जाएगी, और पहली खोज को मना कर देते हैं, फिर दूसरी खोज को मना कर देते हैं। इसके अलावा सबसे बड़ी चीज़ है कि साइन्स में कोई नीति का प्रबंध नहीं है। नीति के बारे में कोई विचार नहीं रहता है, Immoral है। तो सिर्फ साइन्स के बूते पर जो लोग चलेंगे, जब तक वो अपने आत्मा को जानेंगे नहीं, उनकी जो इतनी बड़ी प्रगति हो गई है और जो इतना विशाल उनका स्वरूप एक पेड़ के भाँति खड़ा हुआ है। जब तक उसकी जड़ें वो खोजेंगे नहीं, हो सकता है ये सब नाशमान है और सब नष्ट हो जायेगा और इस तरह की आशंका बहत लोगों को हो रही है। इसकी जड़ें आपके इस भारत वर्ष में हैं। 

इस भारतवर्ष में, अनेक हजारों वर्षों से लोगों ने आत्मा में चिंतन किया है। और उसकी अनेक विचारधारायें निकली अन्त में जाकर वो समझ गये कि आत्मा को प्राप्त करना ही हमारे मनुष्य के जीवन का लक्ष्य है। और जब तक वो हम प्राप्त नहीं करते, हमें किसी तरह की भी तृप्ति नहीं हो सकती है, कोई आनन्द नहीं आ सकता है। तो ये चारों तरफ फैली हुई परमात्मा की जो चैतन्य सृष्टि है जो ये सारे कार्य को करती है और जिसे हम यूँ ही मान लेते हैं। इस आनन्द की सृष्टि जो है ये परमात्मा का प्यार है। साइन्स के जमाने में परमात्मा की बात करना भी दुश्वार है। लेकिन आप माने न माने परमात्मा हैं। और वो ही इस सृष्टि की रक्षा करते हैं उन्होंने ही रचना की है और वही, जो सुन्दर-सुन्दर जीवित कार्य हैं वो सब परमात्मा ही करते हैं। उनकी ये  शक्ति जिसे हम परमात्मा की चैतन्य, ब्रह्म-चैतन्य के नाम से जानते हैं। आज तक आपने इसका एहसास नहीं किया, आपने इसे जाना नहीं है। आज ये समय आ गया है कि आप इसे जान सकते हैं। इसमें हमारी कोई विशेषता नहीं है। समय-समय की बात है, जिस समय जो कार्य करना था, अवतरणों ने किया और उसी प्रकार अनेक साधुओं ने, द्रष्टाओं ने, सन्तों ने किया है। लेकिन आज ये समय आ गया है कि इस समय आप सबको ये सहजयोग प्राप्त हो। ‘स’ माने अपने साथ, ‘ज’ माने पैदा हुआ, ये योग माने इस परमात्मा की ब्रह्म शक्ति से इस चैतन्य से एकाकारिता प्राप्त करना और ये अधिकार आप सबका है, ये हक है आपका। जो आप आसानी से प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि आप इन्सान हैं। और इन्सान के नाते, आप सारे सृष्टि में बनाये हर चीज़ से ऊँचे हैं। जानवर, पशु-पक्षी कोई भी लीजिए, सबसे ही आप ऊँचे हैं और इस महानता को आपने प्राप्त किया है। अब आपको बहुत थोड़ी सी यात्रा करनी है और उसके बाद इसे आप प्राप्त कर सकते हैं।  लेकिन हिन्दुस्तान जो कि इतनी बड़ी योगभूमि है, जिसे कि हम सोचते हैं इससे बढ़कर कोई और योग का स्थान हो ही नहीं सकता। 

हम लोगों ने पहले तो अंग्रेजों से इनसे कुछ भी नहीं सीखना था, काफी कुछ सीख लिया है। आज जो उनकी दशा उनके देशों में है मैं रहती हूँ तो मुझे आश्चर्य होता है कि ये लोग अपने को हमारे देश में इतने शान से, जबरदस्ती से रहते थे। कितने गये-गुजरे लोग हैं वो इंग्लैंड जैसे देश में आपको आश्चर्य होगा कि एक हफ्ते में, लंडन शहर में सिर्फ दो बच्चे माँ-बाप मार डालते हैं। वहाँ की गन्दगी अभी आप तक पहुँची नहीं है, नसीब समझ लीजिए। लेकिन वहाँ तो न कोई माँ-बहन है, न ही कोई नीति है और सर्वनाश की ओर तेज़ी से चले जा रहे हैं। कहते हैं अमेरिका में दस साल में 65 फीसदी लोग गंदी बीमारियों से बीमार पड़ जाएंगे। सब लोग त्रस्त अन्दर से खोखले हो रहे हैं। और अगर हिन्दुस्तानियों को बचाया है तो उनके अन्दर की आस्था, परमात्मा के प्रति नम्रता और अन्दर में जो धर्म की जो कल्पना है कि ये चीज़ गलत है और ये चीज़ सही है। उनको ये चीज़ पता ही नहीं है कि सही क्या और गलत क्या है। बावजूद इसके भी इन लोगों को देखकर मैं हैरान हूँ कि जिस गन्दगी में फँसे हुए थे वहाँ से पता नहीं कैसे अचानक उठकर खड़े हो गये और आज एक कमल के जैसे सुन्दर सुरभित हैं। बड़े आश्चर्य की बात है पर हिन्दुस्तानी अटकता बहुत है, ये तो साफ मुझे आपको बताना होगा। 

अभी मैं गयी थी कुरुक्षेत्र में, पहली मर्तबा गयी थी। मैंने सोचा कि कुरूक्षेत्र में श्रीकृष्ण की जगह है, पाण्डवों की जगह है जहाँ धर्म का बड़ा भारी संग्राम हुआ था तो और बड़ी वहां स्वछता होगी। किन्तु सारे प्रोग्राम में से कोई पचास आदमी बाहर निकल आये और कह रहे थे कि ‘माताजी, हम क्या बतायें, हम गलत-गलत गुरुओं के पास गयें और उससे हमको पकड़ आ गयी है और उसी से हम परेशान हो गयें है। अब हमारे को कैसे वाइब्रेशन्स आएंगे?’ मैंने कहा कि, ‘कोशिश करना चाहिए । 

एक यंग आदमी, उसके पूरे मँह पर चेहरे पर झूर्रियाँ, ऐसा जैसे कि कोई शराब पी-पी के त्रस्त हो गया हो। आके बैठा था, कहने लगा कि, ‘माँ, चौदह वर्ष से मैं ये राधा-स्वामी के वहां जाता हूँ, और ये मेरी हालत हो गयी है कि अब मेरे हाथ थर्र-थर्र-थर्र काँप रहे हैं। ‘अरे भाई, क्यों जाते थे तुम?’ ‘उन्होंने मुझे नाम दिया था।’ पाँच उनको नाम दिए थे और थर्र-थर्र-थर्र वो काँप रहे थे। आपके अगर गुरु आपको तंदरुस्ती भी नहीं दे सकते तो ऐसे गुरुओं के पास जाने की भी जरूरत क्या है? ‘मैंने उसको बहुत पैसे दिये, मैं लुट गया।’ मैंने कहा कि, ‘पैसे कैसे दिये?’ तो कहने लगे कि, ‘वहाँ तो बड़ी-बड़ी वो लगी रहती हैं सेवा की पेटियाँ, उसमें डाल दिया। और गुरु साहब तो बोलते ही नहीं है। लेकिन इस मामले में सारी अंग्रेजियत भूल करके, पढ़े-लिखे लोग, पोलिटिशियन्स, लीडर्स, बड़े-बड़े, आश्चर्य की बात है कि सरकारी नौकर भी वहाँ जाते हैं और फिर मार खाकर मेरे पास आते हैं। चौदह-पन्द्रह वर्ष जब तक वो मार नहीं खाते, तब तक ये छूटता नहीं। फिर कोई और आये, फिर कोई आयें, ये टी.एम. वाले हैं बिचारे, उनका बड़ा बूरा हाल था। देख के मैं आश्चर्य में हो गयी। क्या करते थे तुम? तो कहने लगे, ‘हमने सिद्धी योग किया। ‘वो क्या होता है? वो हमें मालूम है। बिचारे कहने लगे कि, ‘उन्होंने कहा कि आप तीन फुट पे उठ जायेंगे (lavitate) होंगे और तीन फुट पे आप चल सकते हैं। मैंने कहा क्या जरूरत है ऐसे ही मोटरें काफी हो गयी हैं अब ये तीन फूट पे घूमने की जरुरत क्या है?’ 

अभी अमेरिका में एक महाशय हैं, मैं नाम बताऊँगी उनका, प्रविण चोपड़ा, वो साहब बता रहे थे कि ‘देखिये, मन की शक्ति ऐसी बड़ी होती है कि ये जो आदमी यहाँ खड़े हैं, इनको मैं जानता नहीं हूँ, इनको मैंने हाथ में पेन्ड्यूलम दिया है। मैं मन की शक्ति से इनका ये पेंड्यूलम हिलाऊँगा।’ मैंने कहा, ‘आप यहाँ क्या पेन्ड्यूलम हिलाने इस दुनिया में आये हैं? यही आपकी कर्तव्यता है कि बस्, आप पेन्ड्यूलम हिलाते फिरे? अरे, हजारों लोग उनके पीछे हैं, और हिन्दुस्तानी भी।’ अमेरिकन्स तो बेवकूफ हैं पर मेरी समझ में ये नहीं आता है कि हिन्दुस्तानी पेन्ड्यूलम क्यों घुमाना चाहते हैं। ये तो हम लोगों को सबको मालूम है कि काली विद्या वगैरे लोग करके दूसरों को आकर्षित करके, मेस्मराईज करते हैं। ये सबको मालूम है। ये सब मालूम होते हुए भी हिन्दुस्तानी क्यों इस चक्कर में आते हैं गुरुओं के? मेरे तो आज तक ये समझ में नहीं आया है और सब साधुओं ने बता दिया है। और नानक साहब ने तो पूरा एक चैपटर दिया हुआ है कि गुरु को कैसे पहचानना चाहिए? 

देहरादून में भी बीमारी है क्योंकि आते ही साथ में ये समझ गयी कि यहाँ बाप रे! निगेटिविटी इतनी अगर आ जाएगी कल आपके आपके बच्चे कहाँ जाएंगे? आप कहाँ जाएंगे? आपका क्या हाल होगा, आपका बिज़नेस कैसे चलेंगें? आप लोग कुछ भी नहीं सोचते। बस तांत्रिकों के पीछे लग गये, एक माँ के नाते में मेरा जी घबरा जाता है। इतने बढ़िया लोग आप, पूर्व जन्म के अनेक पूण्यों की वजह से इस देश में आपका का जन्म हुआ है। और अब आप जो खोजने जाते हैं तो ऐसे दुष्टों के पास कि जिनके बारे में कुछ मालूमात ही नहीं है! 

तीसरे मैंने रजनिश जैसे गन्दे आदमी को पनपते देखा है उस कुरूक्षेत्र में। इतना गन्दा आदमी है वो, उसमें तो कोई नीति नहीं है, जैसे कोई मरा है मैं जानती हूँ। खुद एडस् से हो के मरा, ऐसे गन्दे आदमी के पिछे में लोग भागते हैं। ये एक समझने की बात है। हो गये जो गुरु, गुरुनानक साहब हो गये। उन्होंने इतना बताया, वो तो सुनना नहीं। और कितने ही ऐसे अच्छे गुरु हो गये, कबीर हो गये यहाँ, महाराष्ट्र में भी इतने अच्छे गुरु हो गये, इतने बढ़िया गुरु हो गये हैं, इतने महान गुरु हो गये हैं, उनकी तो किसी की  बात सुननी नहीं और ये फालतू लोगों  के पीछे में घूमना, जो आपसे पैसा लेते हैं! क्या आप भगवान को खरीद सकते हैं? इसी बात से मुझे घबराहट होती है कभी-कभी कि ये भारत वर्ष का बेड़ा गर्क है। जब बड़े-बड़े लोग ऐसे मशहूर आदमी के पीछे में भागते हैं, जो मशहूर है, तो इस कुछ देश का क्या होगा? और यहाँ की गरिबी जाएगी कैसे? जहाँ ये काली विद्या आई, वहाँ गरीबी आनी ही चाहिए। अब तो शराब भी बहुत पीने लग गये हैं, चलो वो भी इससे बेहतर है। उससे तो आसानी से छूट जाएंगे। 

सहजयोग में जब आत्मा का आपको दर्शन होगा आप समझियेगा कि आप कितने महान हैं, कितने गौरवशाली हैं, कितने ऊँचे व्यक्ति हैं। इसको अभी आप जानते ही नहीं कि आप चीज़ क्या हैं। समझ लीजिए कि किसी जंगल में एक आप टेलिविज़न लेके जायें और उनसे कहें कि ये डब्बे के अन्दर, डिब्बे में आपको बड़ा चमत्कार दिखाई देगा और इसमें फिल्में दिखाई देगी तो वो कहेंगे कि भई, ये क्या डिब्बा लायें हो और ये डिब्बे में कैसे हो सकता है? पर जैसे ही उसका कनेक्शन मेन से लग जाता है तो आप देखते हैं उसमें क्या-क्या चमत्कार होता है। इसी प्रकार आपका जब कनेक्शन उस परम चैतन्य से लग जाता है तब आप देखते हैं कि आप क्या कमाल के आदमी हैं, आपमें कितनी शक्तियाँ हैं। और ये सहज में प्राप्त होती है। लेकिन आप के चक्कर ही ऐसे हैं कि आप ऐसी ही जगह जाना चाहते हैं जहाँ आप ऊब लूट जाएं, जहाँ आपकी तंदुरुस्ती चौपटा जायें। 

ये राधा-स्वामी के कितने लोगों का हार्ट मैंने ठीक किया है, हार्ट अटैक से तो वो भी मरा और उनके लोग भी मरते हैं, मैं साफ कहना चाहती हूँ। आप पता लगाईये कि इनके कितने लोग हार्ट से मरे हैं, कोई पता तो लगायें। अंधश्रद्धा में वहाँ पहुँच जाते हैं क्योंकि कहने लगे बड़ा भारी ऑर्गनाइजेशन है। तो मैंने कहा आप उस ऑर्गनाइजेशन में क्या हैं? आपको कितना पैसा मिलता है वहां से उस ऑर्गनाइजेशन से? आप किस सिलसिले में उस के लिए लड़ रहे हैं? आपको क्या मिला? तो पहली चीज़ आपको ये सोचना चाहिए कि जो आदमी गुरु की बात करता है, तो नानकसाहब ने साफ-साफ कह दिया है कि ‘गुरु वही जो साहिब मिलहि’ साहिब मिलहि,माने जो परमात्मा से आपको मिलाता है, वही गुरु है। और किसी को गुरु नहीं मानना है ये साफ-साफ कह दिया है। लेकिन आश्चर्य की बात है, कि ये लोग पैसा कमाते हैं और पैसे कमाने के बूते पर लोगों को पता नहीं कैसे खरीद लेते हैं। जैसे न्यूज-पेपर वाले, उनको खरीद लिया और न्यूज-पेपर वालों में भी कोई ये अंदर से विचार नहीं, कोई रहम नहीं कि ये इतने लोगों का नुकसान कर रहे हैं कोई तो सच्ची बात लिखें।  अगर हमारे पास आएंगे तो लिखेंगे कि ‘वहाँ कारपेट बिछी थी, वहाँ ये था, वो था।’ अरे भाई, ये कोई मेरी कारपेट है। और अगर मेरे पास है कारपेट तो मैं बिछा लूं। इसमें मैंने आपका क्या ले-लिया? और जो पैसा देगा, उसकी तारीफ होगी, जो पैसे पे   झुक गये हैं, लोग। ये पैसा जैसे और देशों को उन्होंने बड़े ऐसे गर्त में डाल दिया है, (Recession) कि अब उठ नहीं सकते हैं। ये पैसे का चक्कर कभी सुख दे सकता है? कभी नहीं दे सकता है। कभी आनंद दे सकता है, नहीं? पैसे के इस पर, लड़ाई-झगड़े, ये, वो। ये बड़ी गलतफहमी है कि पैसे जुट जाने से हम बड़े सुखी हो जाएंगे, मैंने तो किसी को नहीं देखा है। पर जिसमें सभी कुछ मिलता है, उस आत्मा को क्यों न प्राप्त कर लें? सभी तरह के आशीर्वाद हर तरह के। उनकी गिनती ही नहीं की जा सकती है। ये जब सबको मिलता है तो क्यों न इसे मान लें और इसे प्राप्त कर लें। पर सब से जो बात मैं देखती हूँ कि सम्वेदनशीलता, जो परमात्मा की तरफ होनी चाहिए, अध्यात्म की तरफ होनी चाहिए वो बहुत ही घट गई है। मनुष्य में सम्वेदन नहीं है। वो महसूस नहीं कर सकता है कि कौन आदमी चोर है और कौन आदमी चोर नहीं है, वो समझ नहीं सकता है, ये भी एक बड़ी  कमाल की बात है। सब अपने यहाँ  इतना धर्म, भगवान ये है। वो रशिया को देखिये, यहाँ भी आये हुए हैं, जहाँ पर कभी किसी ने भगवान का नाम भी नहीं लिया है। सच कहती हूँ, जहाँ कोई धर्म नहीं है, किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं, उनकी कमाल ये, मेरे तो समझ में नहीं आया कि उन्होंने सारे गुरुओं को मार भगाया, कोई वहाँ टिका नहीं। और मेरे लिये तो ऐसा इन्तजाम है कि एक-एक गांव में, कहीं- कहीं बीस-बाईस हजार सहजयोगी हैं। ये कैसे हो गया है? क्योंकि इनके यहाँ पैसे का चक्कर नहीं था। Materialism नहीं था, इसके बारे में सोचने को उनको समय नहीं था, उलटी बात अमेरिका की है। अब पैसा मिल गया, अब क्या करें उसको, कहाँ इनवेस्ट करें? क्या करें? अच्छा।

अब एक साहब, हम अमेरिका गये थे, आप से बता दें क्योंकि आप लोग तो जाएंगे नहीं, न जायें कभी, बेकार की जगह है, तो वो बड़े रईस आदमी थे। मुझसे कहने लगे कि, ‘माँ, मेरे घर आओ।’ बहुत जिद की,तो मैंने कहा कि चलो, वहां गए। तो कहने लगे कि देखिये, मेरे पास बहुत पैसा है। मैंने ये बनवाया, वो बनवाया।’ ऐसा-वैसा, सब दिखाया। तो कहने लगे कि, ‘जब बाथरूम में आप जा रहे हैं तो सम्भल के जाईये।’ तो मैंने कहा, ‘क्यों?’ उसमें एक ऐसा बटन है कि उसे आप दबा दीजिएगा तो आप एकदम से स्विमिंग पूल में चले जाएंगे।’ ये कमाल है। मैंने कहा मुझे ऐसी बाथरूम में नहीं जाना है भाई, मुझे तो सीधा- साधा हो। मैं देहाती इन्सान हूँ, मुझको ये नहीं चाहिए। दूसरा उन्होंने पैसा लगाया, कहने लगे कि, ‘ये पलंग है, इससे आप चाहें तो आपके पैर ऊपर हो जाएंगे । सर ऊपर हो जाएगा।’ मैंने कहा ‘क्यों, आपका शरीर हिलता नहीं है क्या? ये काहे के लिए सर-पैर ऊपर करने वाला चाहिए।’ फिर मैंने कहा कि, मैं तो जमीन पर नीचे सो जाती हूँ भई, मुझे नहीं चाहिए। इस तरह से ये लोग पैसे लगाते हैं, बेवकूफ। इतने महा बेवकूफ लोग हैं, क्या बतायें इन लोगों की बेवकूफियां हैं, बहुत एडवान्स्ड बेवकूफी में। 

आपने सुना होगा एलिजाबेथ टेलर की बात, कि आंठ शादियाँ करी देवी जी ने। ऐसी औरत की तो हमारे यहाँ शकल भी नहीं देखेंगें। वहाँ चार-पाँच हजार लोग जाके पहुँचे, और इसलिए कि वो हनिमून पर जा रही है तो उसे देखें। एक किसी उसने अपने बिचारे लेबरर से शादी कर ली, अपने से बीस साल छोटे से, तो बड़ा भारी क्या कमाल किया, वाह ! वाह! वाह! तो सब पहुँच गये। तीन-चार हजार लोग, और देखने के लिए और ऊपर से हैलिकॉप्टर दस, वहाँ घूम रहे थे और उसमें से लोग कैमरा लेकर पैराशूट से नीचे उतर रहे थे और कोई पेड़ पर गिर गये, कोई लोगों पर गिर गये। ऐसी बेवकूफी के अपने यहाँ चार आदमी भी नहीं मिलेंगे। इतनी अकल है, अकल बहुत है। लेकिन अपनी अकल रखें, दूसरों से सीखने की कोई जरूरत नहीं है।  वहाँ तो गुरुओं ने ऐसे रूपये बनाये हैं कि बस पूछो नहीं। जिससे पूछो उसके पास में दस करोड़ हैं, तो उसके पास पचास करोड़ है, तो उसके पास में इतना रूपये है। और मरे कैसे पूछियेगा, तो तड़प-तड़प के मर गये। और अब उनकी सबकी पोल–पट्टियाँ निकल रही हैं। जिन लोगों ने उनको रुपया दिया, वो रास्ते पर पड़े हैं। उनके बच्चे बिचारे स्कूलों से निकाले गये हैं, खाने को नहीं, पीने को नहीं है।  हिन्दुस्तानी लोगों की बात कर रही हूँ गए जो, इतनी ऐसी अकल है कि किसको किस तरह कैसे बेवकूफ बनाना चाहिए। और इस देश में ही अपने यहाँ कितने महान लोग हो गये हैं, एक से एक, किसका नाम लें और क्या कहें?

१९४२ में हमने भी बहुत काम किया था और जब तक स्वतंत्रता नहीं हुई, तब तक लड़ते रहे। और हमारे खानदान के सभी लोग देखा, उस वक्त के सभी लोग ऐसे थे। और आज वो यहाँ नहीं हैं, देखने के लिए कि हमने अपनी स्वतंत्रता में का क्या कर दिया है।  इसका सम्बन्ध हर एक चीज़ से है। अपनी जो सामाजिक व्यवस्था है, सोशल लाइफ है, उससे है, अपनी जो पोलिटिकल लाइफ है उससे है। सब चीज़ों से इसके सम्बन्ध हैं। क्योंकि संसार के जितने भी प्रश्न हैं, जितनी भी तकलिफें और विपदायें हैं वो अधिकतर मनुष्य के कारण हैं। अगर मनुष्य ठीक हो तो कोई प्रश्न ही न खड़ा हो और अगर उसको एकमेव सत्य पता चल जाये तो झगड़ा किस बात का है? वाद–विवाद, आर्ग्यूमेंट किसका? जब सभी लोग एक ही चीज़ देख रहे हैं, अब हम आपके सामने बैठे हैं और सब देख रहे हैं, अब इसमें कोई झगड़ा करेगा कि नहीं ‘माँ है ही नहीं यहाँ। जब सभी एक ही आँख से एक ही चीज़ को देख रहे हैं तो कौन झगड़ा करेगा। लेकिन अगर आपकी आँखों से आप एक चीज़ उधर देख रहे हैं, एक चीज़ उधर देख रहे हैं, एक उधर देख रहे हैं, तो फिर लगे लड़ने। तो जब तक ये घटित नहीं होता, तब तक हमारा लड़ाई झगड़ा करना छूटेगा नहीं। युद्ध छूटेंगे नहीं, बाते करेंगे शांति की। मैं बहुत से लोगों को जानती हूँ जिनको शांति का अवॉर्ड मिला है, इतने गर्म मिज़ाज और ऐसे लोग हैं कि उनसे आप दूर से ही बात करियेगा, न जाने कब झपटा मार कर पकड़ ले आपको। ये कहने की बात है कि इनको शान्ति का अवॉर्ड मिला है। जिसके हृदय में शान्ति नहीं है, प्रेम नहीं है, वो इन्सान क्या शान्ति का अवॉर्ड लेगा। लेकिन जो बहुत जरूरी बात समझने की है, वो ये है कि हम अभी समर्थ ही नहीं हैं। बहुत से लोग जानते हैं (अष्पष्ट) कि ये गलत बात है और इसे नहीं करें पर वो उससे निकल नहीं सकते। क्योंकि उनके अन्दर वो शक्ति ही नहीं है कि जिसके बूते पर खड़े हों। 

अब यहाँ जो ये लोग बैठे हैं यहाँ पर, परदेसी लोग, अच्छा है कि अपनी भाषा नहीं समझते। इसमें से कम से कम आधे लोग ऐसे थे कि जो बहुत बुरी तरह से शराबी और ड्रग्ज लेते थे। रईस लोग हैं, जितने रईसों के लक्षण थे, इनमें थे। लेकिन एक रात, एक रात, पार होने के बाद इनकी दुनिया बदल गयी। तो उसपे उदाहरण ऐसा देते हैं कि हम एक जिद्दी इन्सान हैं। और हमारे हाथ में साँप है और अंधेरा है और हम सोचते हैं कि ये डोर है और अगर आप कहते हैं कि, ‘ये डोर नहीं, और ये साँप है।’ हम तो नहीं छोड़ने वाले हैं, जब तक ये काटेगा नहीं तब तक। लेकिन जरा सा भी प्रकाश हमारे अन्दर आ जाये फौरन हम उसे छोड़ देते हैं। इसी प्रकार सब चीज़ छूट जाती है, परेशानियाँ भी छूट जाती हैं। सारे संसार के जितने दु:ख हैं मैंने अभी बताये आपसे, वो मनुष्य के कारण हैं और मनुष्य के जितनी भी प्रशन हैं, या तकलीफें हैं वो उनके चक्रों के कारण हैं। आपसे चक्रों के बारे में सारा बताया गया है। सारे अन्तर का ज्ञान आपको प्राप्त हो सकता है। आत्मसाक्षात्कार, आशा है आज सबको हो जायेगा, लेकिन इसका ज्ञान पूरी तरह से आपको मिलना चाहिए और आपका अगर कोई कनेक्शन लूज हो तो वो भी ठीक होना चाहिए। इसलिए आपको सामूहिक आना पड़ेगा अब आप कहेंगे कि, ‘मैं अपने घर में रहता हूँ। वहाँ मैं कैसे जाऊं? वो छोटा सा सेंटर है।’, हो गया बस् । जैसे कि एक नाखून कट जाये तो वो तो नहीं न बड़ा हो सकता? इसी प्रकार आप अगर अपने ही घर में बैठकर सहजयोग कर रहे हैं तो आपकी कोई भी प्रगति नहीं हो सकती। कोई ग्रोथ नहीं हो सकती। इसलिए चाहिए कि आप नम्रतापूर्वक हमारे जो सेंटर्स हैं उसमें जाइये। लेकिन वहाँ भी आपको कोई पैसा-वैसा नहीं देना है। वो सारा ज्ञान आपका अपना ही आपको प्राप्त होगा। 

आप ही की अपनी शक्ति है, जो जागृत होती है। उसमें क्या, आप की ही अपनी शक्ति है, वो आपके अंदर जागृत हो गई, इसमें हमारा लेना–देना क्या बनेगा?  कुछ भी नहीं। एक अगर दीप जल जाये तो अनेक दीप जला सकता है। उसमें उस दीप का कौन सा बड़ा भारी उपकार हो गया। आप लोग अब तैयार हैं और आप साधक हैं, आपका हक है कि आप इसे प्राप्त करें और आपके लिए घटित होना बहत जरुरी है। और जैसे कि कुरुकक्षेत्र के भी कुछ लोग हो सकते हैं, उन्होंने अगर प्राप्त नहीं किया आज रात को, तो वो सेंटर पे जायें और मैं कहती हूँ कि ऐसा कोई नहीं है जो बच सकता है। सब लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो सकता है।  समां आ गया है उसको मैं कहती हूँ कि फुलवारी है, इस वक्त बहार आईं हुई है, ब्लॉसम टाइमस है। कभी मैंने उम्मीद नहीं की थी कि हजारों में हजारों में ये कार्य होगा और ये अनादि काल से होता आया है। ये कोई ‘मैं ही करती हूँ’ ऐसी बात नहीं है। लेकिन पहले एक गुरु एक ही शिष्य को देते थे। आज सहजयोग में हजारों लोग एक साथ सामूहिक से पार हो जाते हैं। पर उनमें से कितने लोग जमते हैं वो  देखना चाहिए। जैसे ईसामसीह ने बताया है कि कुछ बीज हैं उसमें अंकुर निकल आयें लेकिन वो रेत में पड गये। और कुछ बीज़ हैं वो पहाड़ों पर सूख कर खत्म हो गये हैं, लेकिन कुछ बीज हैं अच्छे जमीन पर पड़ गये हैं और उसके वृक्ष तैयार हो गये। यहाँ तो आपकी बहुत बड़ी फोरेस्टरी वरगैरह है और बहुत ही बढ़िया-बढ़िया पेड़ हैं सब कुछ हैं, तो मैं आप से ये विनती करुँगी कि आप भी सहजयोग के एक बड़े भारी वृक्ष बन जाएँ और अनेक लोगों का कल्याण करें। अनेक लोगों की इच्छा है, साधना है, सही रास्ते पर लगाकर उनमें असलियत जो है, वास्तविकता जो है वो भर दें। इस देश की बड़ी उम्मीद है मुझे कि अगर सहजयोग फैल जायें तो यहाँ के सारे ही प्रश्न एक साथ छूट जाएंगे। सभी, यहाँ तक कि पैसे के प्रश्न भी छूटते हैं, आश्चर्य की बात है। 

लण्डन में इतना Unemployment है कि कुछ पूछिए नहीं, पर कोई भी जो सहजयोगी है ऐसा नहीं जिसके पास नौकरी नहीं है। जो सहजयोग में आते हैं उसको नौकरी मिल जाती है। क्योंकि परम चैतन्य जो है, इसकी सरकार बड़ी जबरदस्त है। आप अगर भगवान के दरबार में आ गये तो आपकी एक-एक चीज़ को इतनी सुन्दरता से देखेंगे, छोटी-छोटी चीज़ भी इतनी बढ़िया बना देंगे कि आप कहें, ‘ये कैसे बन गया!’ ये कैसे हो गया!’ देहरादून के प्रति लोगों का ये कहना है कि यहाँ के लोग बड़े अंग्रेज हैं और इसलिए ये सहजयोग में नहीं आ सकते। पर जब इग्लैण्ड में आ गये तो यहाँ के अंग्रेज क्यों नहीं इसमें आएंगे? ‘साहब लोग हैं यहाँ सब लोग!’ ऐसा कहते हैं। (अष्पष्ट) बहुत सारे साहब आ गये हैं, ऐसे इसमें कितने सारे साहब पर बैठे हैं यहाँ, तो आप लोग क्यों नहीं आयेंगें? अन्दर तो आप हृदय में तो आप हिन्दुस्तानी हैं। ये बड़ी भारी गौरव की बात है, ये समय आया हुआ है और इस समय में ये कार्य होना है। अब दिमागी जमा-खर्च इसमें नहीं है। दिमाग से परे, बुद्धि से परे आप को जाना है। अगर आप कहें ये कैसे? वो कैसे? तो इसका कोई जवाब नहीं है। अब आप बताईये ‘ये फूल कैसे बन गए, बताईये?’ जीवन्त क्रिया है। उसको आप कैसे बता सकते हैं। बहुत से डाक्टरों को भी हम बता सकते हैं कि सहजयोग से अनेक रोग ठीक हो गए हैं, अनेक। आपके यहाँ के लीडर हीं हैं। आप जानते हैं, उनको ब्लड कैन्सर था। वो ठीक हो गये, मैंने नहीं किया। इसी प्रकार आपकी मानसिक स्थिति ठीक हो जाती है। बौद्धिक स्थिति ठीक हो जाती है, सामाजिक, राजकिय, सब से अधिक तो आध्यात्मिक है जिससे आनन्द का स्रोत और प्रेम, अनुकम्पा, अनुराग, कम्पैशन, सबके लिए ऐसा बहता है, ऐसा मजा आता है। फिर इतने सन्तोष में मनुष्य आ जाता है बहुत ही सुन्दर हो जाता है क्योंकि अन्दर वो देवदूत ही है ये समझ लीजिए। आप सब इसी काबिल हैं और इसको आज आप प्राप्त करें। क्षमा कीजिए, इस बार एक ही दिन के लिए मैं आयी हूँ पर अगले समय और भी दिन के लिए यहाँ जरूर आऊँगी। क्योंकि पिछले मर्तबा में तीन दिन के लिए थी और तीन दिन तक बिमार ही लोग आते रहे, कोई कायदे के आये ही नहीं। मैंने कहा कि, ‘यहाँ कोई बीमारी के सिवाय इन्सान रहते हैं कि नहीं रहते?’ तीन दिन तक उन्होंने सिर्फ वो बीमारी के लिए कि ये बीमारी ठीक करो, वो बीमारी ठीक करो और फिर वो आते ही नहीं सहज में। अब ऐसा है कि कॉमनसेन्स भी होना चाहिए न कि जो दियें जलने ही नहीं वाले हैं उनको ठीक करने से क्या फायदा भाई। जो दियें जलेंगे, उन्हीं को ठीक करिये। आशा है आज तो बहुत यहाँ हेल्दी लोग मुझे दिखाई दे रहे हैं, इसलिए मैं बड़ी खुश हूँ कि आप लोग इसे प्राप्त करें और फिर ‘क्या करना पूछा?’ तो मैंने कहा कि, अब ‘बस्, मौज करो बस।’ लेकिन ध्यान थोड़ी देर करना चाहिए जिससे आपकी प्रगति होगी और ‘ध्यान में क्या करना है’ यहाँ लोग बतायेंगे। ऐसे तो मैंने न जाने हजारो लेक्चर हिन्दी भाषा में ही दिये हैं और भी भाषा में भी दिये हैं। उसकी आपको टैप्स वगैरा सब मिल जाएंगे, पर पहले आपको जमना पड़ेगा। तो पहली स्थिति जो आती है जिसे कहते हैं कि ‘थॉटलैस अवेअरनैस’, (thoughtless awareness) जिसमें कि निर्विचारिता आ जाती है। आप प्रेजेंट में आ जाते हैं। और दूसरी स्टेज़ को कहते हैं कि निर्विकल्प, जिसमें आपमें कोई विकल्प ही नहीं रह जाता। आप जान जाते हैं कि आप आत्मसाक्षात्कार के अधिकारी हैं, आपने प्राप्त कर ली है। ये दोनों स्थितियाँ किसी-किसी को एक साथ ही आ जाती हैं, ये तो उनके गहरेपन पे, पूर्व जन्म के पुण्य पर निर्भर होता है, पर कोशिश करने से सभी लोगों को निर्विकल्पता आ जाती है और उसके बाद देखिये कि क्या होता है। क्या-क्या बताऊं आपको क्या-क्या हो सकता है और क्या-क्या हुआ है। 

अमजद अली का नाम आपने सुना होगा। ये पहले बिल्कुल बजाना ठीक से नहीं बजा पाते थे, अब उनका नाम कितना है। उनके  साथ में भी  (अष्पष्ट) उस्ताद हसैन अली खान साहब हैं, उनका भी यही हाल है, बहुत सारे हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, सब लोगों ने इसे प्राप्त किया है। सूफियों ने इसे प्राप्त किया है और इस तरह से सब समझ गये हैं कि हम लोग जो अपने को अलग-अलग समझते हैं, हम एक ही परमात्मा के अंग और प्रत्यंग हैं। इसलिए आपके अन्दर जो नई धारणा आती है, नया डाइमेन्शन आता है, वो है सामूहिक चेतना। माने आप दूसरों को भी जान सकते हैं कि उनके कौन से चक्र खराब हैं। आपके भी चक्र आप ऊंगलियों पे जान सकते हैं, दूसरों के भी जान सकते हैं। अगर आप जान जायें कि किस तरह से अपने चक्र ठीक करने हैं और दूसरों के करने हैं तो आप सबकी मदद कर सकते हैं। और उसके लिए बहुत समय नहीं लगता है। थोड़े ही समय में आप अपने ही गुरू हो जाते हैं। आप जान जाते हैं कि कौन सी चीज़ अच्छी है और कौन सी बुरी है, मुझे बताने की जरुरत ही नहीं है। मैं किसी से भी कुछ डोंट (don’t) बात ही नहीं करती हूँ। क्योकि डोंट कह दिया तो आधे लोग उठ कर के चल देंगे, आजकल के जमाने में, कौन सुनने चला। इसलिए सिर्फ ये है कि आप कुण्डलिनी के जागरण को प्राप्त करो और उसके बाद देखो कि आप क्या हैं। फिर अपने प्रति इतनी श्रद्धा, इतना गौरव और इतना मान आ जाता है कि आदमी गलत रस्ते जाता ही नहीं है। एक बात इसमें और है कि इसकी जबरदस्ती नहीं हो सकती, जबरदस्ती नहीं हो सकती है, क्योंकि परमात्मा ने आपको स्वतंत्रता दी है। आप चाहे नरक में जायें चाहे स्वर्ग जायें ये आपकी स्वतंत्रता है, वो मैं ले नहीं सकती। इसलिए इसमें किसी प्रकार की जबरदस्ती नहीं हो सकती। 

जिन महोदय को या देवियों को नहीं चाहिए आत्मसाक्षत्कार, वो कृपया चले जाएं। वो यहाँ से कृपया चले जाये और दुसरो को बैठ कर के देखने की कोई जरूरत नहीं है, आप चले जाएं। और ये सबसे बड़ी हमारे ऊपर कृपा होगी। अब इनका फॉलो ऑन प्रोग्राम होगा वो बता देंगे कहाँ होगा। आशा है पार होने के बाद बहुत अच्छा लगेगा आपको। उसके बाद आप जरूर वहां तशरीफ़ ले जाएँ। और आपको बहुत अच्छी तरह से समझाया जायेगा यहाँ सब जानकार लोग हैं, उसको आत्मसात करें।  

आप लोगो के साथ ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती आपको आश्चर्य होगा। सिर्फ इतना है जरा बैठ जाएँ सब लोग, कृपया सब लोग बैठ जाएँ। जहां भी बैठे हैं वहां से ही आप प्राप्त कर लेंगे, लेकिन बैठ जाएँ। बैठना चाहिए क्योंकि मैंने कहाँ ना कि ये योग भूमि है कृपया सब लोग बैठ जाएँ।

आप लोग सब मेरी ओर इस तरह से हाथ कर लें। आशा है आपके पैरो में जूते नहीं होंगे, जूते हटा लीजिये। दोनों हाथ इस तरह से सीधे, क्योंकि ये ५ चक्र हैं ना, ६ और ७ ये सिम्पेथैटिक की एन्इंग्स हैं दोनों साइड में, और इसी में आपको प्राप्त होना है सब।  इस तरह से हाथ करें। अब आपको क्या महसूस होगा एक तो आपके तालु भाग से ठंडी या गरम हवा आएगी। कबीर दास जी ने कहा है शून्य सिखर पर अनहत बाजे रे। पहले यहाँ जा कर के ठोकती है न कुण्डलिनी, तो पल्सेसन वहां आता है। और उसके बाद खोलने  के बाद में इसमें से ठंडी-ठंडी हवा आती है, कभी-कभी गरम भी आती है अगर आप सबको माफ़ करदे पूर्ण हृदय से तो बिलकुल ठीक हो जायेगा। माफ़ करिये या न करिये आप करते कुछ नहीं हैं। लेकिन जब आप माफ़ नहीं करते हैं, तो आप गलत हाथो में खेलते हैं। आप अपने को सता रहें हैं जिसने आपको तकलीफ दी वो तो आराम से बैठे हैं। तो आप सबको एक साथ माफ़ कर दीजिये और दूसरी बात ये है कि अपने प्रति श्रद्धा रखे मैंने कहा प्रेम रखे और ये कोई नहीं सोचे कि मैं बड़ा भरी पापी हूँ, मैंने ये पाप किया। ये जो आपको बताते हैं आपको वो स्वयं पापी हैं। आप इंसान हैं, इंसान गलती करेगा ही कोई भगवान तो नहीं है। लेकिन ये परम चैतन्य जो है ये ज्ञान का सागर है, प्रेम का सागर है। लेकिन सबसे ज्यादा क्षमा का सागर है इसलिए आप कोई भी गलती करते हैं उसके लिए क्षमा कर देता है। इस सागर के आगे कुछ रुकेगा नहीं इसलिए अपने को किसी तरह से भी निचे न गिराएं। और सबको क्षमा कर दें, अब दोनों हाथ मेरी और ऐसे करें। अपने प्रति विश्वाश होना चाहिए, ये सबसे बड़ी बात है।  लोगों को अपने प्रति विश्वाश नहीं था  अपने प्रति विश्वाश।  अच्छा अब आप आँख बंद कर ले (please close your eyes, put your hands towards me like this, please close your eyes )अब सर झुका ले। 

अब कृपया आँख खोले (Please open your eyes) अब कृपया आँख खोले। अब राइट हैंड हमारे ओर करे (Please put your right hand towards me) और सर झुका करके और तालु के ऊपर (अष्पष्ट) अपना लेफ्ट हैंड रखें सर झुकाइये (Please put your right hand towards me left hand on top of the fontanelle bone area) और देखिये कि अंदर से आपके सर के अंदर से कोई ठंडी या गरम-गरम हवा आ रही है क्या? (Please see if there is a hot or cold breeze like energy coming out of your fontanelle bone area) सर झुकाइये, सर झुकाइये (please bend your heads, it is better to bend your heads)  अब लेफ्ट हैंड मेरी ओर करे। आप लोग गुरुओ के पास गए हैं तो भी कोई हर्ज नहीं आप भी ठीक हो जायेंगे कोई चिंता न करे। लेफ्ट हैंड मेरी ओर करे सर फिर झुकाए और राइट हैंड से देखें कि फोंटनेल बोन में से फिर से, जिसको कि आप तालु कहते हैं ठंडी हवा आ रही है कि नहीं। (please put the left hand towards me and please see that there is cool or hot breeze coming out of your head, please don’t put your hand on top of the head but away from it.)  अब फिर से राइट हैंड मेरी ओर करे और आखिरी बार सर को झुका के तालु में देखें कि कोई ठंडी-ठंडी या गरम हवा आप ही के सर में से आ रही है क्या? किसी-किसी के सर के बहुत नजदीक, किसी के बहुत दूर आती है जरा हाथ गुमा के हाथ ऊपर निचे करके देखिये। हाँ, अब दोनों हाथ आकाश की तरफ उठायें और सर पीछे मुड़ के मोड़ दें आकाश की तरफ, और सवाल  पूछे: माँ क्या यह बहम चैतन्य है। ( Please put both the hands towards the sky and your head also towards the sky, now ask the question, Mother is this the all pervading power of divine love/ ask this question, 3 times) तीन बार पूछिए। अब हाथ ऐसे करें Please put your hands like this!)

और मुझे देखिये और सोचिये मत। मुझे देखते हुए, सोचिये मत। (please don’t think) किसी- किसी को नीचे से आ रही है वो ऐसे नीचे से ऊपर कर लें। (those who are getting below you put it up, it will come up, like that) अब जिन-जिन के हाथ में या उंगलियों में या तालु से ठंडी या गरम हवा आई हो वो सभी लोग हाथ ऊपर करे। वाह-वाह! उधर कुर्सी पर बैठे लोगो को नहीं आई क्या? वाह-वाह! सारा देहरादून, सबको नमस्कार और अनंत आशीर्वाद। हमारी माँ के अब इसको बढाइये, बड़ा कर के और ओरो का भी कल्याण करिये।

आप बहुत बड़े लोग हैं, जो आज यहाँ आये हैं इसलिए कि आपकी बहुत जिम्मेदारियां हैं और आपको ये प्राप्त हुआ ये भी आपका अपना कमाया हुआ धन है। इसको बढ़ाना है और ओरो को भी देना है इसलिए सामूहिक में आये सबके साथ सामूहिक में इसका मज़ा उठाये।

आप सबको हमारा नमस्कार!