Easter Puja

कोलकाता (भारत)

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Easter Puja. Calcutta (India), 14 April 1996.

​आज हम लोग ईस्टर की पूजा कर रहे हैं। आज सहजयोगीं के लिए एक महत्वपूर्ण दिन हैं। क्यों की ईसा मसीह ने दिखा दिया की मानव का उत्थान हो सकता हैं। और इस उत्थान के लिए हमें प्रयत्नशील रहना चाहिए। जो उनको क्रूस पे चढ़ाया गया, उसमें भी एक बढ़ा अर्थ है के क्रूस पर टाँग कर उनकी हत्या की गई और क्रूस आज्ञा चक्र पे एक स्वस्तिक का ही स्वरूप है। उसी पर टाँग कर के ​और ईसा मसीह वही पे गत:प्राण। उस वक्त उन्होंने जो बातें कही उसमें से सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी की उन्होंने कहा की माँ का इंतज़ार करो। माँ की ओर नज़र करो। उसका अर्थ कोई कुछ भी लगाए पर दिखाई देता हैं की, उन्होंने यह बात कहीं थी के मैं तुम्हारे लिए एक ऐसी शक्ति भेजूंगा जिसके तीन अंग होंगे। वह त्रिगुणात्मिका होंगी। और उसका वर्णन बहोत सुंदरता से किया हैं की, एक शक्ति होंगी वो आपको आराम देंगी। आराम देनेवाली शक्ति हमारे अन्दर जो हैं वो हैं महाकाली की शक्ति, जिससे हमें आराम मिलता हैं। जिससे हमारी बीमारियां ठीक होती हैं। जिससे अनेक प्रश्न जो हमारे भूतकाल के हैं वह सही हो जाते हैं। दूसरी शक्ति उन्होंने दी थी, जो भेजी उन्होंने वो थी महासरस्वती। सो महासरस्वती को उन्होंने कौंसलर (Counsellor) कहा। माने जो आपको समझाएँगी, उपदेश करेंगी। जैसा वर्णन हैं, योग-निरूपण कराएगी। ये दूसरी शक्ति से जिससे हम ज्ञान, सूक्ष्म ज्ञान को प्राप्त होंगे। और तीसरी शक्ति महालक्ष्मी की, जिससे की हम अपने उत्थान को प्राप्त होंगे, Redemption। इस प्रकार तीन शक्तियों की उन्होंने बात की थी। और बुद्ध ने भी कहा था की मैं तुम्हें मात्रया भेजूंगा। माने तीन तरह की माँ। तीन तरह की माता या मातायें एकत्रित आयेंगी। मात्रया! लोगों को समझ में नहीं आया, मात्रया क्या होता हैं? उन्होंने मैत्रेया कर दिया। ये जों मात्रया थी ये एक साथ आदिशक्ति नहीं हो सकती। और आदिशक्ति को उन्होंने कहा तो जरूर होगा की Primordial Mother। लेकिन जिन्होंने बाइबल (Bible) को ठीक किया उन्होंने उसको Holy Ghost बना दिया। और उसके जगह कबूतर बना दिया। क्यों की जिन्होंने बाइबल को ठीक किया उनको स्त्री जातीं से बहोत नफ़रत थी और वो विश्वास भी नहीं कर सकते थे की कोई स्त्री भी ऐसा ऊँचा कार्य कर सकती थी। उस नफरत के कारण उन्होंने उसका रूप अजीब सा बना दिया, Holy Ghost। और दूसरी बात कही के वो एक कबूतर। कबूतर का मतलब हैं की वो एक शांती की दूत होगी। लेकिन स्त्री की बात ही नहीं की, वो कोई स्त्री होगी या नारी होगी। और अपने शास्त्रों में कहा गया हैं की सहस्रारे महामाया। तो वह महामाया स्वरूप होंगी। लोग उन्हे पहचान नहीं पाएंगे। पहचानने के लिए भी आपको आत्मसाक्षात्कार लेना पड़ेगा। गर अपने आत्मसाक्षात्कार नहीं लिया तो आप पहचान ही नहीं सकते।

अपनी जीवनी में उन्होंने जितना खुलकर कह सकते, कहा। न जाने उसमें से कितनी बातें उन्होंने बताई, कितनी नहीं बताई और छुपा ली। तो भी कुछ कुछ सब उसमें प्रगटित हुई। उसको वो नहीं बदल सके। सहजयोग के लिए ईसा मसीह का आना बहोत जरुरी था। वह स्वयं एक चिरबालक हैं। और यह तो अब सिद्ध हो गया के वो गणेश का अवतरण हैं। गणेश का अवतरण संसार में एक ही बार हुआ और वह ईसा मसीह के रूप में। इन तीनों का कार्य जिसे हम कह सकते है बुद्ध, महावीर और ईसा मसीह, जिस स्तर पे हुआ वह स्तर तपस्या का। और इसलिए भुला बिखरा हुआ विराट के रूप में उन्होंने कार्य किया। और तीनों कार्य में तपस्या का वर्णन किया की मनुष्य को तपस्या करनी चाहिए। और तपस्या करके ही वो आज्ञा चक्र को भेद सकता हैं और बाहर जा सकता हैं। आज्ञा चक्र का भेद होना अत्यावश्यक था नहीं तो उसके बगैर आपकी कुंडलिनी उपर उठ ही नहीं सकती थी। आज्ञा चक्र का भेद ईसा मसीह के उत्थान से Resurrection से हुआ। पहले उनकी मृत्यू हुई और उसके बाद उनका उत्थान हुआ। सो हम लोंगो के लिए एक बड़ा भारी सन्देश ईस्टर में हैं की ईसा मसीह के उत्थान के कारण ही हम लोगों ने इस उत्थान को प्राप्त किया। सबसे मुश्किल चक्र हैं इंसान में, मनुष्य में आज्ञा चक्र। क्यों की मनुष्य हर समय सोचते रहता हैं। सोच सोच के उसके सर में एक मन की बुलबुले की स्थिति बन जाती है। और उससे वो परे नहीं जा सकता, विचारों से वो परे नहीं जा सकता। जब आज्ञा का भेद होता हैं तभी आप विचारों से परे जाते हैं। इसलिए ये कहना चाहिए की गर ईसा मसीह ने अपने प्राण दे करके और आज्ञा से उत्थान न किया होता तब सहजयोग मुश्किल हो जाता।

कार्य तो सभी अवतरणों ने किया अपने अपने स्थान पे, अपनी अपनी जगह, अपने अपने समयपर। लेकिन जो कार्य ईसा मसीह के उत्थान से हुआ ये बहुत ही कमाल की चीज थी। इसीलिए आज्ञा का खोलना कोई मुश्किल चीज नहीं। आज्ञा से ऊपर उठाना कोई मुश्किल चीज नहीं। जितने भी गुरु हो गए, बड़े बड़े महान गुरु, उन्होंने बहोत कार्य करें। उन्होंने बहोत कुछ ऐसी बातें करी की जिसके कारण लोगों में जागृति हुई। धर्म की ओर रुचि हुई। और आत्मसाक्षात्कार के ओर ध्यान आकर्षित हुआ। ​वो अपने देश में आए थे। और आए क्यों की वहां पे जहाँ रहते थे, वहां के लोगों की दॄष्टि थी उनमें सूक्ष्मता नहीं थी, अध्यात्म नहीं था। इस लिए वह हिंदुस्थान में आए और कश्मीर में वो शालिवाहन राजा से मिले। शालिवाहन ने उनसे पूछा की तुम्हारा क्या नाम हैं। सो, उन्होंने कहा के मेरा नाम ईसा मसिह। मसिह माने जो कोई सन्देश लेकर आते हैं। और मैं उस देश से आ रहा हु जहां सब म्लेच्छ रहते हैं। म्लेच्छ माने जिनको मल की इच्छा होती हैं। अब आप देखते हैं की विदेश में जितना भी कार्यक्रम होता है, वह मल की इच्छा करते हैं। लोगों को पता नहीं कैसे मल ही अच्छा लगता हैं। एकदम पागलपन ही अच्छा लगता हैं। आप उनकी फिल्में देखिए तो समझ में आता हैं की ये पागल हैं की क्या हैं। सो, हमारे देश में पहले इन लोगों को ​वो म्लेच्छ कहते थे। माने मल की इच्छा करनेवाले म्लेच्छ। और इनको मल की इच्छा हैं की माँ मै कहाँ जाऊ। मेरा तो देश यही हैं क्यों की मैं अध्यात्म में उतरा हूँ। तो शालिवाहन ने कहा “आप इतने पहुंचे हुए पुरुष है, तो आप वापस जाओ। और अपने ही देश में, एक शब्द उन्होंने कहा की ‘निर्मल तत्त्वं’ Principle of Purity वो लोगों को सिखाओ। बहोत जरुरी हैं अगर आपने निर्मलतत्व वहां पे बना दिया तो लोग जो हैं म्लेच्छपना से छुटकारा पाएंगे। वो गए वापस। सिर्फ किसी तरह से साढ़े तीन साल रहे और फिर उनको पकड़ के क्रॉस पे चढ़ाया गया। वो उनको विदित था। वो जानते थे की ये करना जरुरी हैं। लेकिन जिस शान से उन्होंने अपने प्राण त्यागे, एक अद्भुत व्यक्तित्व था यह जाहिर होता हैं। और इतने थोड़े से साल में, साढ़े तीन साल में उन्होंने अपने जीवनी में जो कार्य किए हैं वह बहोत महान हैं। यह जरूर हैं की वह किसी को आत्मसाक्षात्कार दे नहीं पाए, क्योंकि उस वक्त ऐसे सत्य को खोजनेवाले नहीं थे जैसे आप लोग हैं।

मेरे नसीब अच्छे हैं। और इसलिए यह कार्य जो हुआ वो आत्मसाक्षात्कार के पहले का कार्य हुआ। माने ये की लोगों ने जाना की इस मनुष्य जीवन से परे भी कोई और जीवन है। उन्होंने उसमें समय कहा की तुम्हे फिर से जन्म लेना होगा। फिर भी उनका उत्थान फिर से जन्म लेने के लिए हुआ। और अपने यहाँ पे भी कहते हैं, की दूसरा जन्म जैसे एक अंडे से पक्षी निकलता हैं उसी प्रकार जब होता है उसे द्विज कहना चाहिए, जिसका दूसरे बार। और उसका परिवर्तन हो जाता है पूरी तरह से और उसमे पूर्णतया शक्ति आ जाती हैं, वो संसार में कही भी उड़के चला जाता हैं। उसके पास सारी संचार शक्ति आ जाती हैं। आपको तो मालूम हैं की सैबेरीआ से पक्षी उड़ करके किस तरह से हिंदुस्थान आते है। जाड़े में यहाँ आते हैं और गर्मियों में वहा जाते हैं। ना उनके पास कोई रडार हैं, ना एअरोप्लेन हैं, कुछ नहीं। कैसे आते हैं बराबर वो और उसी जगह आते हैं। जिस तालाब पे पहले आते थे, उसी जगह आते हैं। उनके बच्चे भी वही आते हैं। एक बार इन्होंने प्रयोग किया, experiment किया की कुछ बच्चों को छिपा दिया। तो उन्होंने खोज निकाला अपने बच्चों को। लेकिन कुछ बच्चों को खोजा भी नहीं था, वह उड़के बराबर चले आए, सीधे हिंदुस्थान। उनका कोई अगवा नहीं था, उनको कोई बतानेवाला नहीं था। वो आ गए ठीक से। इसे कहते हैं की परमात्मा ने सारी व्यवस्था, सारे संसार में इतनी सुन्दर कर दी, वह किसलिए की हम अपने Resurrection को प्राप्त करें। मैं तो इसको Blossom Time कहती हूँ।

जितने लोग आज यहाँ पे बैठे है, ऐसे ईसा मसिह के सामने कहाँ थे। और ऐसे हजारों गुने और जगह लोग है। ले-करके बड़ा आश्चर्य होता हैं की ईसा मसिह के सामने ये सब लोग नहीं थे। और न ही कोई जानता की आत्मसाक्षात्कार क्या है? और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना क्यों जरुरी हैं। आज भी अपने देश में भी ऐसे हैं अन्धे लोग, जो नहीं समझते इस बात को। पर हमारे यहाँ जो महान गुरु हो गए उनके वजह से एक बड़ी भारी समस्या दूर हो गई हैं, की लोगों को इसके बारे में मालूम हैं। ​सब जानते हैं की हमें दूसरा जन्म लेना हैं, अपने को पहचानना हैं। सारे ही इतने सूफी लोग हैं यही बात कहनी हैं। इतना ही नहीं पर जो कुछ भी शास्त्र लिखे गए, कोई से भी धर्म में उसमें भी यही बात कही। आज का दिन इसलिए हमें मुबारक हैं की आज तो बंगाल का नया साल है। और इसीलिए इस के पुनरुत्थान की भी बात हो सकती हैं।

ये पुनरुत्थान आज बंगाल में हम लोगोंने जो मनाया हैं इसका जरूर फायदा बंगाल में होगा। यहाँ की संस्कृति और यहाँ की कला, बंगाल देश के महान देशप्रेमी, त्यागी लोग जिन्होंने सारे देश में सबको एक बड़े ऊंचे स्तर पे पहुँचाया था, आज वही कहाँ से कहाँ फेंके चले जा रहे हैं। विदेशी व्यवस्था ख़त्म हो गई, चले गए। लेकिन अब कई अधिक हम लोगोंने विदेशी संस्कृति को लेना स्विकार्य किया हुआ हैं। और उसको लेकर के हम यह भी नहीं सोचते की वह लोग कहाँ पहुंचे हुए हैं। हम लोग ये जानते नहीं की इन लोगों की क्या दशा हैं। ये कहाँ पहुंचे हुए हैं। इन्होंने क्या पाया हुआ हैं। बहोत से इसाई लोग तो ऐसा सोचते है की ईसा मसिह इंग्लैंड में पैदा हुए थे। और उनके लिए धोती पहनना माने हिंदू बनना हैं। इस प्रकार की विचित्र कल्पनाए हमारे सर में बैठ गई हैं। और हम सोचते है की अंग्रेजियत लेने से हम लोग ईसा मसिह को बहोत नजदीक से देख सकते हैं। जिनको उन्होंने म्लेच्छ कहा उन्ही को हम आदर से देखते हैं। वो लोग अब समझ गए हैं की हमारी संस्कृति, हमारी विचारधाराएँ, हमारे धर्म की ओर दॄष्टि अत्यंत सूक्ष्म और शुद्ध हैं। और यहाँ के लोग बहोत जल्द ही सहजयोग को प्राप्त कर सकते हैं, ये तो आपने देख लिया। लेकिन सहजयोगियों को चाहिए की आपस में पूर्णतया मेल-मिलाप आदि रखें। और यह जो उत्थान का संदेश हैं वो हर जगह पहुँचाए। क्यों की आज आपका देश जिस दशा में हैं उसकी दशा परिवर्तन के सिवाय ठीक हो ही नहीं सकती। अध्यात्म के सिवाय ठीक हो नहीं सकती हैं। आप कुछ भी करिए। आकाश में तेवन लगाने से हो नहीं सकता। इसी प्रकार कोशिश यह करनी चाहिए की एक-एक आदमी को सोचना चाहिए की हम लोग कितने लोगों को सहजयोग के बारें में बताते हैं। और हम लोग कितने लोगों को सहजयोग।

ईसा मसिह बिलकुल अकेले थे। उनके साथ कोई भी नहीं था और सिर्फ बारा उनके शिष्य थे। उसमें भी कुछ आधे-अधूरे, कोई ऐसे-वैसे। उस पर भी उन्होंने बड़ी मेहनत करी। और एक बड़ा भारी संदेश अपने उत्थान से, पुनरुज्जीवन से दे दिया। पर वो जो संदेश हमें बाह्यता में दिखाई देता हैं, वो वास्तविकता हमारे आज्ञापर काम करता हैं। और आज्ञापर काम करके ही, हम लोगोंने वो स्थिति को प्राप्त किया हैं, जहाँ हम ब्रह्मरंध्र तक छेद पाए हैं। उन्होंने हमेशा क्षमा की बात की। बुद्ध ने हमेंशा करुणा की बात की। उन्होंने हमेशा क्षमा की बात की, की आप सबको क्षमा करें। वह खुद क्रूस पे चढ़के कहते थे, “प्रभो इन सबको माफ़ करों। ये जानते नहीं, ये लोग क्या कर रहे हैं? इसलिए इनको माफ़ करो, अन्धे हैं। ऐसी दशा में जबकी लोगोंने उनको किले से ठोका था और सर में काटोंका मुकूट चढ़ाया था, उस वक्त भी उन्होंने कितने प्यार से यह बात कही की, “प्रभु, इन सबको माफ़ करो। क्यों की ये जानते नहीं की ये क्या कर रहे है? ये आज्ञा चक्र की कमाल हैं। इसीलिए आज्ञा चक्र पे मैं हमेशा कहती हूँ की आप लोग सबको माफ़ कर दो, एकदम माफ़ कर दो। आधे विचार तो हमारे अंदर यही चलते हैं की इसने हमें सताया, उसने हमें सताया। इसने हमें परेशान किया, उसनें हमें परेशान किया। उसको मैं कैसे ठीक करू। ये सब गर हम परमचैतन्य को समर्पित कर दे तो वो इस का इलाज कर देतें हैं।

मैं खुद आपसे बताते हुए बहोत डरती हूँ। कोई गर कोई गड़बड़ काम करते है, सहजयोग में, तो मुझे घबराहट हो जाती हैं की अपने को इन (inaudible)। क्यों की इधर ईसा मसिह बैठे हैं, उधर गणेशजी बैठे हैं और हनुमान और भैरवनाथ। इन चार के चक्कर से छूट नहीं पाएंगे। कोई ज़रासी गड़बड़ करता हैं, पैसे में गड़बड़ करें, काम में गड़बड़ करें तो मैं बस संवारती रहती हुं उसको। बाबा इसपे कुछ आफत ना आ जाए। क्यों की जब आप पवित्र चीज़ में आ जातें हैं की यहां एक सफ़ेद चादर। ये सफ़ेद चादर में कोई भी दाग़ पड़ जाए तो फ़ौरन दिखाई देता है। इसी प्रकार आपको एकदम निर्मल कर देते हैं। और आपके अंदर गर कोई दाग दिखाई दे तो वो फ़ौरन पकड़ लेंगे और आप को ठीक कर देंगे। न जानें आपको क्या सज़ा दे? ये बड़ी मुश्किल हैं। हालांकि अपने समय तो उन्होंने अपने प्राण दे दिए। लेकिन हमारें बारें में उन्होंने ये कहाँ हैं की हमारे लिए चाहे आप जो भी करें लेकिन आदिशक्ति कें बारें में गर कुछ करिएगा, तो मुझसे बुरा नहीं होग़ा। और मैं देख रही हूँ, करते वक्त गड़बड़ हैं। वो नहीं सहन कर सकतें।

गर आपने मुझे माँ माना हैं, तो मैं उसका मान रखती हूँ। और जब लोग सताते भी ही हैं, तो मैं कहती हूँ की एक बार उन्होंने मुझे माँ कहाँ, कोई हर्ज नहीं। लेकिन ये लोग नहीं उसको समझतें। इसलिए आज ये याद रखना चाहिए की हमारा जो उत्थान हुआ हैं अर्थात ये आपकी पूर्व जनम की बहोत बड़ी साधना, पूर्व जनम की बहोत बड़ी मेहनत, श्रद्धा, उसीके तो फलस्वरुपही हैं। तो भी इस जनम में भी आपको ये विशेष आशीर्वाद मिला हुआ हैं। बहोत ही अप्रतिम, जो की लोग सोंचते हैं की कभी हो ही नहीं सकता। ये जो अपने प्राप्त किया हैं, इसमें आपको एक खयाल रखना चाहिए की आप कोई गलत काम ना करें। कोईसा भी गलत काम ना करें। क्योंकी वो गलत काम करने से आपकी जो निर्मलता हैं वो एकदम पकड़ में आ जाती हैं। मैं आपको दबा नहीं रही हूँ, पर वास्तविकता बता रही हूँ। की जो भी करो वो अत्यंत प्रेमसे, उसका आनंद उठाते हुए। हो सकता हैं की आपको कोई परेशान करें। कोई बात नहीं कितनी देर परेशान करेगा। जिसने परेशान किया उसका ठिकाना हो जाता हैं। इसलिए आप किसी भी, किसी भी स्तर पे भूलना नहीं। किसी प्रांगण, एरिया में भूलना नहीं की आप एक सहजयोगी हैं।

पहले ज़माने में कितने सहजयोगी थे। बताईए। एक एक सुफी, वहां वहां निज़ामुद्दीन। तो उनकी गर्दन काटने को शाह निकल आया। उन्होंने कहाँ की तुम मेरे सामने सर झुकाओगे नहीं, मैं तुम्हारी गर्दन काट लूंगा। दूसरे दिन उसकी ही गर्दन कट गई। सो, गर कोई ऐसा हो भी तो डरने की कोई बात नहीं। गर डरना हैं तो यही बात करना की ये प्रभु इसको बचाओ। इसका पता नहीं क्या होगा। क्योंकी आप लोग अब परमात्मा के साम्राज्य में हैं। औरों जैसा हाल नहीं हैं। इसको याद रखते हुए, इसको मददे नजर रखते हुए समझना चाहिए की अब आप अकेले नहीं हैं। आप पूर्णतया सुरक्षित हैं। और इस सुरक्षितता में आप क्यों परेशान होते हैं? ईसा मसिह क्रूस पे भी जब परेशान नहीं हुए, तो ऐसा कौन आप पे बवाल आया हुआ हैं। बहोत से लोग आते हैं, “माँ हमें एक प्रॉब्लेम हैं, हमें ये प्रॉब्लेम हैं।” इसका मतलब आप सहजयोगी नहीं हैं। सीधा समीकरण यह बैठता हैं की आप सहजयोगी नहीं हैं। जो सहजयोगी होगा उसको कोई प्रॉब्लेम होगा ही नहीं। क्यों की आप बैठे हैं एक बड़ी ऊँची जग़ह। और प्रॉब्लेम यहाँ निचे खींचते रहते हैं। उसे देखना मात्र हैं। पर अगर आप हर समय प्रॉब्लेम, प्रॉब्लेम करते रहे तो सोच लेना चाहिए की कुछ कमी हैं आपमें। तो फिर ध्यान करें, धारणा करें। और अपने अन्दर धारणा करनी चाहिए की हम सहजयोगी एक हैं, उससे हमारे अन्दर एक शांति का भाव और एक आत्मविश्वास पूर्णतया प्रतित होता है, तो लोग भी समझते हैं।

कुछ बोलने की जरुरत नहीं, कुछ झगड़े की जरुरत नहीं, चुप्पी लगा लो। आपने चुप्पी लगा ली तो सारा परमचैतन्य जो हैं वो संभाल लेगा/देगा। और एक से एक धुरंधर बैठे हुए हैं। लेकिन गर आपही में दोष हैं, सो कहेंगे की इसकी डुबकियाँ लगा लो, दो चार। इस प्रकार आज अगर ईसा मसिह की एक छोटी से जीवनी थी तेहतीस साल की उमर में (inaudible), वो उमर ही क्या थी, विचार करो। भटकते रहे। भटकते हुए हिंदुस्थान भी आये। और कितना जीवन में उन्होंने कार्य किया। उनका नाम लेकर के न जाने लोगों ने क्या क्या बनाया, कितनी तरह-तरह की संस्था बनाई। ये करना, वो करना। झूठ हैं सब, गड़बड़ हैं। पर कितना उन्होंने कार्य किया उनके मुँह में भी गलत गलत चीजें रख दी। और इस तरह से लोगोंने एक झूठी संस्था भी बना ली। पर इस बाह्य धर्म में कुछ रखा हुआ नहीं, अब आप इसे देख सकते है। जिस हिरे को इन्होने ढक दिया, वो हिरा आपके अन्दर से चमक रहा हैं। और वो आपके आज्ञा में कार्यान्वित हैं। आपकी क्षमाशक्ति इतनी बढ़ जाएगी, उतने ही आप देखिएगा सहस्त्रार में चले जायेंगे।

अब ईसाई लोगोंका मुश्किल ये हैं, की वो पैदा हुए ईसाई। तो अब उनको ईसा ही सूझता हैं। या ईसा की माँ ही सूझती हैं। उसके आगे नहीं चल सकते। वो पार भी हो जाते हैं, तो भी नहीं। हिंदूओ का भी ऐसा हैं। हिंदुओ बस कृष्ण मालूम हैं, शिव मालूम हैं। उसी में घुले रहते हैं। अरे भाई, आप उससे परे हो गए हैं, उठ गए हैं। अब आप स्वयंही पार हो गए, सूफी हो गए। तो इन सब चीज़ों में जो सार हैं उसको याद कीजिए। और हर एक चीज़ में सत्य को खोजिए। बहोत सी चीज़ें असत्य हैं। इन सब धर्मों में बहोत सी चीज़ें असत्य हैं। जैसे ईसाई धर्म में आपको बता सकती हूँ। यही बात ज्यूज में भी है, मुसलमानों में। की जब आप मर जायेंगे तो आप अपने को गाड़ दिजिए। अपना शरीर गाड़ दे, जलाईए। और जब आपका Resurrection माने पुनरुत्थान होगा तो यही जो आपका शरीर हैं वह बाहर निकलके आएगा और आपका पुनरुत्थान हो जाएगा, गर आप परमात्मा के नाम पर मरे हैं और उनका, फिर अपना जिवन उसके लिए त्याग दिया हैं। अब सोचो पॉँचसौ साल बाद क्या चीज़ बाहर आएगी। जब आपको गाड़ दिया जाए, इनसे पूछना चाहिए, तो पॉँचसौ साल बाद क्या कुछ हड्डियाँ-वड्डियाँ बाहर आएंगी। तो उसका पुनरुत्थान कैसे होगा। और ये विश्वास बहोत लोग करते हैं। इसका विश्वास इतना गहरा हैं की, हमारे पास कुछ लोग आए थे बोसनिया (Bosnia) से, तो मैंने कहा, “क्यों मरे जा रहे हो, छोड़ो तुमको तो। तुम तो मुसलमान हो। तुम्हें निराकार में तुम्हारा विश्वास हैं। तुम किसलिए इसके लिए लड़ रहे हो, ज़मीन के लिए? क्या मतलब हैं?” तो उन्होंने मुझे कहा की, “हमारे तो शास्त्र में लिखा हैं। गर तुम भगवान के नाम के लिए मरे तो ऐसा-ऐसा होगा।” पहले मैंने कहा, “इस में भगवान का नाम कहां हैं बताओ। फिर दूसरी बात ये बताओ की तुम गर मर गए और पॉँचसौ साल बाद गर वहां Resurrection, तो अन्दर से क्या निकलेगा? उलटे कबरोंमें जा-जा करके सारी जमीन तुम लेते हो और उसमें भुत बनके रहते हो। उस मामले मैं कहती हूँ, की अपने शास्त्र ठीक हैं की मरने के बाद आत्मा जो हैं वो निकल जाता हैं। और जो जिवात्मा हैं वो फिरसे जन्म लेता हैं। वो तो ठीक बात है। क्यों की जिवात्मा मरता नहीं। लेकिन शरीर, पॉँचसौ साल बाद जिसका पुनरुत्थान हो गया ऐसी बातका विश्वास करना महामूर्खता हैं।

और कभी-कभी मैं सोचती हूँ की इतनी महामूर्खता को लेकर के ये लोग आपस में लड़ रहे हैं। आज इस्त्रायल में मारामारी हो गई तो कल और जगह हो गई। हर जगह एक आफ़त मची हुई है, धर्म को लेकर के। जहाँ-जहाँ वहाँ धर्म से झगड़ा ही हो रहा हैं। मैंने कल भी बताया था की कोईसा भी धर्म अलग-अलग नहीं। सब एक-एक से जुटे हुए हैं। और ये तो खुदही दिखाई देता हैं की सभी लोगोंने इससे पहले भी देवलोगों का वर्णन किया हुआ है। फिर ये झगड़ा क्यों? ये लड़ाई क्यों? इस लिए की कुछ लोग हैं वो अपने को कहते है की हमारी मक्तेदारी हैं, हम धर्म-मार्तण्ड हैं। और जो कह गए उसके उल्टा करते है। अब आप सोचिए की ईसा मसिहने एक बहोत बड़ी बात कही के, मैं तो ये कहूंगा की तुम्हारी आँखोंमें निष्पापता बसें। जैसे की अंग्रेजी में उल्टी बात हमेशा कहते हैं।

तो Thou shall not have adulterous eyes। कितनी सूक्ष्म बात कही है Thou shall not have adulterous eyes। ये नहीं के adultery, adulterous eyes भी नहीं होनी चाहिए। चित्त में भी adultery नहीं होनी चाहिए। बड़ी सूक्ष्म बात कही है। और हम तो जो गए है परदेस में तो देखते हैं की, हर एक की ऑंख इधर से उधर, इधर से उधर, इधर से उधर। कभी देखा ही नहीं मैंने जिसकी ऑंख stable हो। हां, सहजयोगिकी। सहजयोग से पहले इधर आँख घूम रही, उधर आँख घूम रही। कोई आदमी को देख रहा है। कोई औरत को देख रहा है। बस यही चल रहा हैं। कोई चीजों को देख रहा हैं। तो इस तरह की जो उनकी विशेष वाणी थी, उसको किसने माना? उसको कौन कर रहा हैं? कोई नहीं। कारण उसका एक ही हैं की उनको आत्मबोध नहीं हैं। गर उनको आत्मबोध हो जाता तो वाकई में मैंने देखा हैं इन लोगों को, परदेस में भी जब आत्मबोध हो जाता हैं तो इनकी आँखें भी बिलकुल स्थिर होती हैं। और स्थिर होकर के बहोत प्यार झरता हैं, शान्ति और आनंद। ये कहां से हो गया? ये कैसे हुआ? क्यों की जो आप में विकृति आई थी वही निकल गई। तो आँख शुद्ध हो गई, निर्मल हो गई। जो ईसा मसिह ने बताया ऐसी आँख हो जाती हैं। और उन्होंने जो कहा था वो कहने से थोड़ी हो सकता था। और परदेस में तो यह बीमारी जरुरत से ज्यादा हैं। तब हम लोंगो को क्या समझ में आता हैं? की जो कुछ उन्होंने कहा वो हम कर नहीं पाते। हर एक धर्म में ऐसे हैं।

कोई सा भी ऐसा धर्म नहीं हैं जिसमें लोग कहते कुछ हैं और करते कुछ है। कारण वो समर्थ नहीं हैं। माने जो हैं उसका अर्थ भी नहीं है, सम-अर्थ। कोई कहेगा मैं सिख हूँ, लेकिन शराब पियेगा। कोई कहेगा मैं ईसाई हूँ, उसकी आँखों में गन्दगी भरी रहेगी। कोई कहेगा की मैं जैन हूँ और वो कपडे की दूकान बनाएगा। कोई कुछ, कोई कुछ। जो नहीं करना वही करेंगे। इसका कारण ये हैं की हमारे अन्दर अभी वो धर्म उतरा नहीं और जागृत नहीं हुआ। पर सहजयोग से ये जागृत होता हैं। ये होने के बाद, आप पार होने के बाद, आत्मसाक्षात्कार मिलने के बाद गर आप इसका मान नहीं रखेंगे और उसमें आप अपनी प्रगति नहीं करेंगे, तो आपको न जानें क्या-क्या तकलीफें हो सकती हैं। और इससे पहले जो तकलीफें होंती वो आपको महसूस नहीं होंगी, आप बहोत होंगे। क्यों की अब आप संवेदनशील हो गए, sensitive हो गए। इसलिए समझ लेना चाहिए की हमने जो इतनी बड़ी चीज़ पाई हैं, उससे हम अलंकृत हो गए। उससे हम सज गए। अब हमें अपने वैभव में, अपने गौरव में उठना चाहिए। जैसे ईसा मसिह जब कब्र से उठे थे तब और भी खिल गया था उनका चेहरा। ​​

उनकी बातें और भी सुंदर हो गई। और भी खुलके वो बातें करते। इसी प्रकार हमारे लिए वो एक बहोत बड़े सहजयोगी हैं कहना चाहिए। लेकिन उन्होंने प्राप्त ही किया होता। प्राप्त करके आए थे। और आपके लिए उन्होंने अपने प्राण त्यागे की आपका आज्ञा खुल जाए। सो अहंकार आदि जो व्याधियां हैं, उससे दूर रहना चाहिए। अहंकार जब आपके अन्दर चढ़ जाएगा तो आप कुछ भी हो सकते हैं, आप हिटलर भी हो सकते हैं। अपनी ओर नज़र करने से आप समझ जाएंगे की आप न जानें क्यों, अपने को पता नहीं क्या समझ रहे हो। और कुछ तो भी समझ करके दुनियाभर में आप छा रहे हो। इस आज्ञाको जिसने तोडा हैं और जिसने हमें इससे ऊपर उठाया हैं, उस ईसा मसिह की चरित्र की ओर देखिए तो बिलकुल निर्मल हैं। उसी प्रकार हमारा भी जीवन निर्मल होना चाहिए।

सहजयोग में वैवाहिक जीवन और सबकी पूरी तरह से व्यवस्था हैं। हालांकि ईसा मसिह ने शादी नहीं की थी, उनको कोई जरुरत नहीं थी। लेकिन पूरी तरह से आपके लिए हर एक चीज़ की व्यवस्था हैं। और इस व्यवस्था से आप बिलकुल सर्वसामान्य लोगों जैसे रह सकतें हैं। पर अन्दर से आप असामान्य है। और अपने विशेषता को समझते हुए, जैसे ईसा मसिह अपनी विशेषता समझते थे। जैसे सूफ़ी लोग अपनी विशेषता को समझते थे। अकेले अकेले उन्होंने दुनिया से लड़ाई ली और दुनिया में इतना कार्य किया। तो आपको तो इतने भाई-बहन सारी दुनियाँ में छाए हुए हैं। सो, कितना आपके अंदर आत्मविश्वास होना चाहिए। आप अकेले नहीं है। सब लोग, सब लोग एक ही बात कहते हैं, सबको एक ही चीज़ प्राप्त हो जाए। और जब आप उस चीज़ को पाते हैं तो इसका माहात्म्य समझना चाहिए। इससे अनमोल और कुछ नहीं। हालांकि, मैं बहोत खुश हूँ कलकत्ते में इतना कार्य हो गया। इतने सहजयोगी हो गए। और इतना आपसी प्रेम हैं, कोई झगड़ा-कोई फ़ूट नहीं, ये बहोत बड़ी बात हैं।​और मैं इस मामले में, ये सोचती हूँ की कुछ तो भी देवी की यहाँ कृपा हैं की लोग इस तरह से सहज को प्राप्त करके उसमे उतर रहे हैं। जैसे आदमी कार्य कर रहे हैं, ऐसे औरतों को भी करना चाहिए। और जब सब तरफ से सहजयोग फ़ैल जाएगा तब आप देखना की बंगाल में निश्चित कितने सुन्दर स्वरूप में उतरेंगे।

आप सबको मेरा अनंत आशिर्वाद!