Mahashivaratri Puja

पुणे (भारत)

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[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

Translation 

अंग्रेजी प्रवचनअनुवादित

आज हम श्री शिव-सदाशिव की पूजा करेंगे। उनका गुण यह है कि वे क्षमा की मूर्ति हैं। उनकी क्षमाशीलता क्षमा के गुण के कारण ही हम आज जीवित हैं, अन्यथा ये विश्व नष्ट हो गया होता। बहुत से लोग खत्म हो गए होते क्योंकि मानव की स्थिति को तो आप जानते ही हैं। मनुष्य की समझ में ही नहीं आता कि उचित क्या है और अनुचित क्या है। इसके अतिरिक्त वे क्षमा भी नहीं कर पाते। गलतियों पर गलतियाँ करते चले जाते हैं। परन्तु वो अन्य लोगों को क्षमा नहीं कर सकते। इसलिए हम लोगों को यही गुण श्री शिव-सदाशिव से सीखना हैं।

Transcription  

हिन्दी प्रवचन 

आज हम लोग श्री सदाशिव की पूजा करने वाले हैं। इनका विशेष स्वभाव यह है कि इनकी क्षमाशीलता इतनी ज्यादा है कि उससे कोई इन्सान मुकाबला नहीं कर सकता। हर हमारी गलतियों को वो, माफ करेंगे। वो अगर न करते तो ये दुनिया खत्म हो सकती थी।  क्योंकि उनके अन्दर वो भी शक्ति है जिससे वो इस सृष्टि को नष्ट कर सकते हैं। इतने क्षमाशील होते हुए भी ये शक्ति उनके यहां जागृत है और बढ़ती ही रहती है। इसी शक्ति से जिससे वो क्षमा करते हैं। उसी परिपाक से या कहना चाहिए अतिशयता से फिर वो इस संसार को नष्ट भी कर सकते हैं। 

तो पहले तो हमें उनकी क्षमाशीलता सीखनी चाहिए। छोटी-छोटी चीजों को लेकर के हम झगड़ा करते हैं छोटी-छोटी बातों पर हम झगड़ा करते हैं। पर ये किस कदर क्षमाशील हैं और क्षमा करते-करते उस चरम सीमा पर पहुँच जाते हैं जहां से इनके अन्दर ये नष्ट करने वाली शक्ति जागृत होती है। इसी से वो अपने को नष्ट भी कर सकते हैं, इस सारे व्रह्मांड को नष्ट कर सकते हैं। जो भी कुछ सृष्टि बनाई गई वो सारी नष्ट हो सकती है। इसलिए हम लोगों को याद रखना चाहिए कि गर हम क्षमा करना नहीं सीखेंगे, गर हमारे अन्दर क्षमाशीलता नहीं आएगी तो हमारे अन्दर एक दिन बहुत ज्यादा नष्ट करने की शक्ति आ जाएगी।  हम ही लोग अपने ही लोगों को नष्ट करेंगे।  इसलिए हर समय दक्ष रहना चाहिए, पता लगाना चाहिए, नजर रखनी चाहिए कि हम बेकार में तो लोगों पे नाराज नहीं होते। बेकार में हम दूसरों के साथ दुष्टता तो नहीं करते।  किसी भी हालत में आपको अधिकार नहीं है कि आप किसी पर नाराज़ हों। जब शिव नहीं होते तो आप क्यों होते हैं?  लेकिन इन्सान बहुत ज्यादा नाराज़ होता है,  इतने तो कोई जानवर भी नहीं होते, कोई वज़ह न हो तो जानवर कुछ नहीं कहते। इसी प्रकार जब हम छोटी-छोटी बातों पर बिगड़ते हैं तो याद रखना चाहिए कि एक शक्ति है शिव की, वो भी हमारे अन्दर कार्यान्वित है। और वो यही है कि हम जब दूसरों पे बात-बात में बिगड़ते हैं, बात-बात में नाराज होते हैं, उनकी कोई चीज हम क्षमा नहीं कर सकते हैं। तो फिर ऐसे इन्सान कहाँ पहुँच सकते हैं।

जहां-जहां बड़े युद्ध हुए हैं, जहां-जहां बड़ी आफतें आई, वहां पर यही कारण रहा है कि मानव जाति को दमन किया गया है, नष्ट किया गया है। ये शक्ति पहले ही से आ जाती है, बजाय कोई कारण के मनुष्य-मनुष्य को ही नष्ट करता है।  हर जगह, उसकी यह प्रक्रिया क्यों होती है और कैसे होती है, ये बात हम लोगों को सोचना नहीं है। यही सोचना है कि हम तो ऐसे क्षुद्र और निम्न स्तर के कार्य में उलझते तो नहीं हैं। अपने जीवन में हम जितने शान्त रहें, शान्तिपूर्वक हर एक चीज का हल निकालें, उतने ही हमारे भी जीवन में शान्ति फैल सकती है, हमारा भी जीवन शान्तिमय हो सकता है। किन्तु प्रश्न यह है कि मनुष्य अपने ऊपर ही कोई दावा नहीं रख सकता, अपने को कन्ट्रोल नहीं कर सकता। उसका स्वभाव ही ऐसा होता है कि उसमें वो बहकता जाता है। उसमें वो सन्तोष करता है कि मैंने बड़ी अच्छी सबको सजा दी, सबपे मैं बिगड़ा, सबसे मैं नाराज हो गया।  यहां तक कि अनेक देशों में ये प्रश्न है, एक देश दूसरे देश से हम चिढ़ गया।  या एक ही आदमी चिढ़ता है तो सारे उस देश के लोग लग गये। उद्धार के लिए कोई नहीं मिलेगा, उद्धार के लिए कोई देश के लोग नहीं मिलेंगे।  सिर्फ मारने पीटने के लिए और बिगड़ने के लिए फौरन लोग खड़े हो जाएंगे, ये सबसे बड़ी कमाल है। गर किसी से कहो कि हमें यहां उद्धार करना है तो कहेंगे अच्छा आप करिए हम देखते रहेंगें। और वहीं गर कोई आदमी हाथ में कोई आयुध लेके  दौड़े तो कहेंगे कि हमें भी दो हम भी मारेंगे। ये मनुष्य की तबीयत कुछ समझ में नहीं आती कि किसी को मारने पीटने में और किसी को तंग करने में, किसी पे गुस्सा करने में मनुष्य को इस कदर क्या सुख मिलता है?

पर अब देख लीजिए रास्ते पे जाते-जाते देखा कि एकदम भीड़ लग गई-क्या हुआ?   कुछ झगड़ा हो गया।  तो आप वहां क्या कर रहे हैं?  कोई तो कहेंगे-हम भी उसमें शामिल हैं, और कोई तो कहेंगे कि हम देख रहे हैं।  ये हमारे अन्दर जो प्रकृति में एक अजीब सी चीज़ आई हुई है,  यह हमारे अन्दर से निकालने वाला एक ही है, वो हैं शिव शंकर।  इनकी आराधना से इनको पूजने से और इनको मानने से, हृदय से, मनुष्य का क्रोध गुस्सा नष्ट हो जाता है। आश्चर्य कि बात है कि कृष्ण ने भी सबसे बड़ा दोष मनुष्य का क्रोध, क्रोधापि जायते – क्रोध के साथ में यह सब चीजें जागृत होती हैं।  अपने यहां तो लोग बड़े गर्व से कहेंगें, मुझे बड़ा गुस्सा आया उस पर।  मैं बहुत नाराज़ हो गया उस पर,  इसमें कोई मनुष्यता मुझे तो दिखाई नहीं देती।  पर ये बड़ी साधारण सी बात है कि गुस्सा हो जाना, छोटी-छोटी बात पर कोई न कोई बहाने ढूंढ लेना और गुस्सा हो जाना।  फिर जब ये सामूहिक हो जाता है गुस्सा,  उस सामूहिक गुस्से से बड़ी बहुत सारी बातें हो जाती हैं।  युद्ध हो जाते हैं, बहुत सारे घर मिट जाते हैं, बहुत सारी कुटुम्ब व्यवस्था खत्म हो जाती है।  दिन-पे-दिन में देखती हूँ कि बजाय इसके कि मनुष्य का गुस्सा कम हो जाये वो बढ़ता ही जा रहा है।  और बड़े गर्व से कहेंगे कि हमें तो बड़ा गुस्सा आया, हम तो बड़े गुस्से वाले हैं!

Translation 

अंग्रेजी प्रवचनअनुवादित

मैं जानती हूँ कि आप चाहते हैं कि मैं केवल अंग्रेजी भाषा में बोलू परन्तु अंग्रेजी समझने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है। मैं ये कहना चाह रही हूँ कि हमें समझना आवश्यक है श्री शिव शंकर की पूजा करते हुए  कि वे क्षमा की मूर्ती हैं। वे हर अपराध को इतने प्रेम पूर्वक क्षमा करते हैं। जैसे व्यक्ति अपने बच्चों को क्षमा करते है। वे क्षमा करते हैं क्रुद्ध नहीं होते। वे इतनी आसानी से भड़कते नहीं हैं। और हमारे यहाँ  बहुत पक्षपात (Prejudices) भी हैं उदाहरण के रूप में भारत में महिला का कुछ बोलना लोगों को अच्छा नहीं लगता। उनके अनुसार महिला को नहीं बोलना चाहिए।  पुरुष बोल सकता है महिला नहीं। और महिला को पुरुष को पीटने का भी अधिकार नहीं है, पुरुष चाहे तो महिला की हत्या कर दे। भारत में अच्छी पत्नी और अच्छी महिला आंकने के लिए यही मापदण्ड है। आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि किस प्रकार पुरुष विनाश की ओर जा रहा है। इस प्रकार के दिए गए अधिकार अति भयानक हैं और पूरे समाज के लिए विध्वंसकारी हैं। 

विदेशों में भी मैंने ऐसा ही देखा है, वहां भी लोग अपनी पत्नियों को पीटते हैं उनकी हत्या कर देते हैं। न जाने क्या-क्या करते हैं ! क्योंकि उन्होंने किसी महिला से विवाह किया है इसलिए सोचते हैं कि उन्हें सभी अधिकार हैं अपनी पत्नियों से सभी प्रकार की अच्छाई की आशा का अधिकार है, चाहे उनमें कोई भी अच्छाई  न हो। वे अपनी पत्नियों को सताते ही चले जाते हैं। इतना ही नहीं स्कूलों में अध्यापक विद्यार्थयों के साथ बहुत ही बुरा व्यवहार करते हैं  बच्चे भी उनसे यह व्यवहार सीख लेते हैं।  और इस प्रकार से दूसरों को सताने और कष्ट देने की परम्परा चलती रहती है। जब भी आप कहें कि मुझे बहुत क्रोध आता है, तो स्वयं को बताए कि मैं गलत मार्ग पर जा रहा हूँ। मैनें बहुत बार आप लोगों को बताया है कि अपने क्रोध की डींग हाकना बुरी बात है। यह तो अपने पापों की शेखी बघारना है ये कार्य पाप हैं। 

शराबी. पागल और विक्षिप्त अगर सन्तुलन खो बैठना ऐसे लोग यदि एसा करें तो मुझे समझ में आता है। परन्तु लोग वास्तव में बहुत ही संवेदनशील व्यक्ति होता है अन्यथा बहुत ही खतरनाक

और क्रूर हो सकता है।  यह कहना मुश्किल है कि ये दुर्गुण आपमें कहाँ से आते हैं क्योंकि बहुत बड़ी त्रासदी है। किसी भी दिव्य व्यक्तित्व में यह दुर्गुण नहीं देखा गया। बिना किसी कारण से ऐसे लोग क्रोधित नहीं होते।  यदि क्रुद्ध हुए भी तो बहुत बड़े कारण से जो विध्वंसकारी है। पर मैं उनको समझ सकती हूँ क्योकि उनको ये संसार चलाना है और मानव की देखभाल करना है। पर कई बार मैंने देखा है कि मनुष्य पशुओं से भी बदतर होते हैं। बिना किसी वजह से भड़क जाते हैं। क्या कारण है आप क्यों क्रोधित हैं?  वे आपको ऐसे कारण देंगे जो बिल्कुल अनुचित हैं।

इस संसार मैं आप शांति का आनंद लेने आये हैं और बिना शांति के आप आनंद का मज़ा नहीं ले सकते। अगर आप दूसरों को शांति नहीं प्रदान कर सकते तो आप कैसे आनंद में कैसे रह सकते हैं? ?  जिस अपमानजनक तरीके से लोग दूसरों से व्यवहार करते हैं लोगों को पर हैरानी होती है। वो अपने को क्या समझते हैं?  और लोगों को इतना घटिया क्यों समझते हैं? छोटी-छोटी चीजों में सन्तुलन खो बैठना समझ में नहीं आता। परन्तु ये लोग वास्तव में कायर होते हैं। जीवन में यदि उन्हें किसी समस्या का सामना करने का अवसर आ जाए तो वे पीछे हट जाते हैं। फिर वो आगे नहीं बढ़ पाते। ये बहुत बड़ी त्रासदी है।

Transcription 

हिन्दी प्रवचन 

 हमारे देश में भी लोग गुस्सेवाले आदमी को पहचानते हैं। बस्ती में उसका नाम हो गया गुस्सेवाला।  “ये गुस्सेला है, ये गुस्साड़ा है ऐसे-ऐसे नाम उसके होते हैं और ऐसे आदमी से दूर ही रहना चाहते हैं। ठीक है, किसी ने गलती कर दी उसको माफ कर दीजिये। किसी ने कुछ ऐसा भी काम किया है जो नहीं करना चाहिए, उसे भी माफ कर दीजिए। क्योंकि कल ऐसा अगर आप काम करें, आप करें तो आप किसकी सजा लेंगें? कौन आपको सजा देगा? इसलिए ये ही समझ लीजिये कि हम सहजयोगियों को बिल्कुल अधिकार नहीं है कि हम किसी को सजा दें, और उनको शिक्षा दें।  बहुत से लोग तो मैंने देखा बड़े खोपड़ी पर जमा हो जाते हैं।

शिवजी को जिसने मान लिया वो ही असली पार है।  शिवजी का स्वभाव जिसके अन्दर आ गया वही असली है और उसके प्रोटेक्शन के लिए भी शिवजी हैं। जो आदमी सीधा, सरल स्वभाव से ही है तो उसको घबराने की कोई बात ही नहीं है। उसको सम्भालने वाले शिव शंकर हैं, उसको देखने वाले शिव शंकर हैं तो इस वजह से आपको उसमें इतना प्रश्न क्या है?  क्यों आप किसी से नाराज होते हैं? अजीब- अजीब बाते हैं। कोई साहब कहने लगे कि साहब मैं तो बहुत नाराज़ हूँ इस आदमी से। मैंने कहा, क्या हुआ भई, कहने लगे इन्होंने हमारे बाप का सब पैसा ले लिया और हमको कुछ नहीं मिला। ये तो आपके बाप को देखना था, तो पैसा ले लिया तो ले लिया, आप क्यों बिगड़ रहे हो?  कहना चाहिए था कि इसको कि हमारा पैसा आप दे दीजिए, आप दे देते?  आप ऐसा काम करते क्या?    फिर “आप” फिर आप क्यों चाहते हैं कि वो दूसरा आदमी जो है वो कह दे कि इसको इतना कम पैसा दे दीजिए।   सारी अच्छाई आप दूसरों से उम्मीद रखते हैं, सारी बुराई जो है उसको आप माफ ही नहीं कर सकते। और जो कोई करता है तो उसके लिए आप सोचते कि इसका तो सर्वनाश होना चाहिए। जब तक मनुष्य पार नहीं होता तब तक वो ये भी नहीं देख सकता की वो क्या है अंदर।  इन्सान है कि जानवर है यह भी नहीं समझ सकता। मैं कहूँगी कि जानवर भी बेकार में कभी नाराज़ नहीं होता, जब तक

(unless)  उसको छेड़े नहीं वो बेकार में उबलते नहीं रहते। उसमें शिवजी का अंग काफी है पर मनुष्य में कोई-कोई मनुष्य में तो यह पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। वो तो सोचते हैं कि हजारों लोगों को नष्ट करने का हमको अधिकार है। 

एक तो कोई हिटलर साहब हो गए उन्होंने न जाने कितने लोगों को मार डाला। वो एक छोटा सा बच्चा तो नहीं पैदा कर सके, और इतने लोगों को उन्होंने मार डाला। क्या सोचकर के, अपने को वो क्या सोचते थे?  और उन जिन लोगों को मारा है उनकी फैमिलीज़ नष्ट हो गई, उनको सारे देश खराब हो गए तो वो अपने को क्या समझते थे, लाट साहब?  इस प्रकार के दो चार तो निकलते ही हैं, पर आप को तो इनका उदाहरण नहीं लेना चाहिए। आपके लिए ठीक है, आप सहजयोगी हैं इसलिए आपको क्षमा करना चाहिए। बड़े तबीयत के जो लोग होते हैं वो क्षमा कर देते हैं, क्योंकि क्षमाशीलता बहुत जबरदस्त होती है। और यही बात है हमारे शिव शंकर की,  इसलिए उनको सबसे उंचा भगवान मानते हैं। स्वयं के लिए उनको कुछ नहीं चाहिए। कुछ भी कपड़े पहन लेंगे नहीं तो बदन में राख लगा लेंगे, कैसी भी स्थिति हो रह लेंगे। उनको कोई चीज की जरूरत नहीं है। पर अगर कोई आदमी किसी के साथ बहुत ज्यादती करता है तो अन्त में वो ही उसका नाश करते हैं। जितनी क्षमा की शक्ति उनमें है उतनी ही उनमें नष्ट करने की शक्ति है। इसका कारण क्या है?  कारण ये है कि मनुष्य उनको देखकर ये समझ ले कि अगर आप किसी के साथ बहुत ज्यादती करेंगे तो आपका ठिकाना हो जायेगा। अब ये सब लोग गए कहाँ?  बड़े-बड़े आए थे रथी-महारथी, इन्होंने इतने धन्धे करे और ये गए कहाँ? इनका बड़ा नाम था। बहुतों को मारा, बहुतों को खत्म किया. बहुत से देश के देश खत्म कर दिए। आज वो हैं कहां? उनका कोई फोटो भी नहीं लगाता, उनका पुतला तो खड़ा करना छोड़ दीजिए उनकी शक्ल नहीं देखना चाहते लोग। इस तरह का चरित्र आपको अपना नहीं बनाना चाहिए। थोड़ी देर यह समझ लीजिए कि आपके नाराज़ स्वभाव से हो सकता है कि लोग आप से डरें और डर के मारे बहुत से काम करें। पर जो काम डर के साथ के होता है उसमें क्या मज़ा है? उसमें क्या मज़ा है?  उसमें क्या विशेषता है? 

एक सोचने की बात है कि आपने कितने लोग दुनिया में जोड़े हैं अब तक और कितने लोगों को, नष्ट कर दिया, कितने लोगों से झगड़ा हो गया?  कोई-कोई लोग होते हैं उनका तो धर्म है झगड़ा करना, उठे-बैठे झगड़ा करना।  कोई तो भी उनके तो अन्दर एक लालसा होती है, सवेरे इस से झगड़ा हुआ, दिन में उससे झगड़ा हुआ, शाम को उससे झगड़ा हुआ। ऐसा स्वभाव जिस आदमी का हो जाए उससे तो लोग भागते हैं. वो अगर सामने से गर आते दिखाई देंगे तो लोग मुड़ जायेंगे दूसरे रास्ते से। इससे प्रेम नहीं बढ़ सकता, सहजयोग तो पूरा प्रेम का कार्य है।  इसमें देखिए बड़े-बड़े उदाहरण हैं – इसामसीह ने सूली पे चढ़ कर कहा था कि हे प्रभु, “इनको क्षमा कर दो, क्योंकि जानते नहीं कि ये क्या कर रहे हैं।” इसी प्रकार हमारे अन्दर गर क्षमाशीलता आ जाएगी तो हम भी शिवजी का, क्या कहना चाहिए कि. शिवजी के सामरथ्य को प्राप्त करेंगे, उनके गुणों को प्राप्त करेंगे। 

गुस्सा करना नाराज़ होना, ये तो कोई खास चीज़ नहीं है। और इसलिए आज के दिन सबको हमको विचार करना चाहिए कि हम लोग किस कदर दूसरों पे हावी रहते हैं और दूसरों को नष्ट करना चाहते हैं?  खासकर हमारे देश में तो मर्दों ने बहुत जुल्म ढाया औरतों पर! और अब भी कर रहे हैं। और उसमें सहजयोगियों को नहीं फंसना चाहिए ये बेकार की चीज है, इसका कोई अर्थ नहीं लगता। शिवजी के आज पूजन में आप लोग सब अपने मन में संकल्प करें कि हम गुस्सा नहीं करेंगे, चाहे कुछ हो जाए हम गुस्सा नहीं करेंगे। गुस्सा का कोई उपयोग ही नहीं तो क्यों गुस्सा करते हो? अपनी ही तबीयत खराब होती है। इसलिए आज सब लोग शिवजी को याद करें और उनके गुणों को प्राप्त होने की कोशिश करें। अनन्त आशीर्वाद।