Shri Krishna Puja

पुणे (भारत)

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Hindi Transcript of Shri Krishna Puja. Pune (India), 9 August 2003.

हम लोगों को अब यह सोचना है कि सहजयोग तो बहुत फैल गया और किनारे किनारे पर भी लोग सहजयोग को बहुत मानते हैं। लेकिन जब तक अपने अन्दर सहजयोग वायवास्तीह रूप से प्रकटित नहीं होगा तब तक जैसा लोग सहजयोग को मानते हैं वो मानेगें नहीं। इसलिए ज़रूरत है कि हम कोशिश करें कि अपने अन्दर झांकें। यही कृष्ण का चरित्र है कि हम अपने अन्दर झांके और देखें जाने की कौन सी ऐसी चीजे हैं जो हमें दुविधा में डाल देती हैं। इसका पता लगाना चाहिए। हमें अपने तरफ देखना चाहिए, अपने अन्दर देखना चाहिए और वो कोई कठिन बात नहीं है जब हम अपनी शक्ल देखना चाहते हैं तो हम शीशे में देखते हैं। उसी प्रकार जब हमें अपनी आत्मा के दर्शन करने होते हैं तो हमें देखना चाहिए हमारे अन्दर ,वो कैसे देखा जाता है । बहुत से सहजयोगियों ने कहा माँ यह कैसे देखा कर जायेगा कि हमारे अन्दर क्या है, और हम कैसे हैं? उसके लिए ज़रूरी है कि मनुष्य पहले स्वयं की और नम्र हो जाए क्योंकि अगर आपमें नम्रता नहीं होगी तो आप अपने ही विचार लेकर बैठे रहेंगे। कृष्ण के जीवन में पहले दिखाया गया कि एक छोटे लड़के के जैसे वो थे बिलकुल जैसा शिशु होता है बिलकुल ही अज्ञानी वो इसी तरह थे , वो अपने को कुछ समझते नहीं थे | उनकी माँ थी एक और वो अपनी माँ के सहारे वो बढ़ना चाहते थे। इसी प्रकार आप लोगों को भी अपने अन्दर देखते वक्त यह सोचना चाहिए कि हम एक शिशु बालक है। कृष्ण ने बार बार कहा, लेकिन जीसस क्राइसट ने भी कहा हम एक छोटे बालक बनें। बालक की जो सुबोध स्वभाव की छाया है वो हमको दिखनी चाहिए | कि हम क्या बालक जैसी बाते करते हैं? हमारे अन्दर कौन सा ऐसा गुण है की हम बालक बन जाते हैं । अब बालक मैंने अबोधिता ,भोलापन और उस भोलेपन से हमें अपने अन्दर देखना चाहिए और उसी से अपने को ढकना है। अब वो भोलापन बड़ा प्यारा होता है। आप अगर बच्चों को देखें उनसे जो प्यार छलकता है इसलिए कि वो भोले हैं । वो चालाकी नहीं जानते, अपना महत्व नहीं जानते, कुछ भी नहीं क्या जानते हैं वो? वो जानते यह हैं कि सब लोग हमारे प्रिये हैं। ये हमारे भाई बहन और हैं ये सब कुछ हैं। लेकिन ये किस तरह से उन्होंने जाना, यह प्रश्न है बच्चों ने जिस तरह से जाना उसी तरह से हमने भी भुला दिया कि हम भी एक भोले बालक हैं और एक भोलापन हमारे अन्दर है ।
बहुत से सहजयोगी हैं जो आते हैं वो बहुत कपट चालाकी दिखाने आते है,और सोचते हैं कि हम बहुत होशियार हैं कोई आते हैं और सोचते है कि हम माँ को सिद्ध कर देंगे , मुझे सिद्ध करने से क्या फायदा। मुझे तो मालुम ही है सब कुछ। तो आपको यह करना है कि मनुष्य पहले स्वयं अपनी ओर नज़र करें। और अपने भोलेपन को पहचानें। वो कहाँ है, कैसा है, और बड़ा मजेदार है ऐसा सोचना चाहिए अब क ष्ण की जो बात है वो यही है कि बचपन में तो बो एकदम भोले थे ,और बड़े होने पर उन्होंने गीता समझाई जो बहुत गहन है । ये कैसे हुआ कि मनुष्य उसमें बढ़ गया। इसी प्रकार हम भी सहज में बढ़ सकते हैं हमने पाया है लेकिन हम उसमे बढ़े नहीं। और बढ़ने के लिए चाहिए कि अपने बारे में जो ख्यालात हैं उसको छोड़ दें। पहले तो बच्चे जैसा स्वभाव होना चाहिए। अब ऐसा किसी को कहें की बालक बने स्वभाव है ऐसा तो नहीं जो भी आप हैं वो छूट कर आप बच्चे बन जाओ । ऐसा तो नहीं कर सकते, लेकिन बच्चे जैसा स्वभाव बनाओ तो बहुत कठिन है हमको देखना चाहिए कि हम क्या बालक जैसी बाते करते हैं?
बच्चों के प्रति एक आस्था रखकर, उनकी बातों को देखकर आप बहुत फर्क कर हैं और बदल सकते हैं सारी चीजें अपने हमारे अन्दर की तो सबसे पहले तो जानना चाहिए कि हमारे अन्दर जैसे जैसे हम बड़े होने लगे बोहत से दोष समा गए हैं। उन दोषों को कैसे निकालना है चाहिए ? कैसे-कैसे दोष हमारे अन्दर आए हैं । इसको अगर हम सोचे नहीं और उधर ध्यान दें तो हम उसको ठीक कर सकते हैं। ध्यान ऐसे देना कि जैसे हम किसी से जोर, घ ष्टता से बात करें या हम किसी की ताड़ना करना चाहते हैं या सोचते रहते हैं कि दूसरे आदमी को हम कैसे ठीक करें।जब हमारा चित्त दूसरों पर जाता है तभी हम अपने से अलग हट जाते हैं। क्योंकि हमें खुद ठीक होना है इसलिए दूसरों के बारे में सोचने से क्या फायदा? तो सबसे पहले हमें अपने बारे में ही द ष्टिपात करना चाहिए, देखना चाहिए। पर वो सब हो रहा है और वो बताया हमने। वो तो सहजयोगियों में घटित भी हो रहा है। क्योंकि अन्दर यह कुण्डलिनी कार्य जागृत होती है और वो सब रास्तों में दिखा देती है।अब रही बात यह कि जो मलिनता है उसको ठीक करे। पहली तो बात यह है कि दूसरों के दोष देखने की जो हमारी द ष्टि है यह उसको बदल दें, क्योंकि वही दोष हमारे अन्दर भी हैं। तो दूसरों के दोष देखने से पहले हमारे अन्दर क्या दोष हैं यह देखना चाहिए। अगर यह देखना अपने हमें आ जाए तो बहुत कुछ अपने आप ठीक हो जायेगा । कोई साधु सन्तों का क्या है की वो अपने अन्दर के ही दोष देखते हैं और अपने ही को सोचते हैं कि ऐसे क्यों हो गए हम? ऐसी कड़वी बात हम क्यों कहते हैं । ऐसी झूठी बात क्यों कहते हैं? तो ये अपने को देखने का एक प्रवाह आ जाता है, बहुत ज्यादातर हम उसको मानते नहीं हैं और उस प्रवाह से अपने को समझते है ,बहते नहीं है। हम अपने को उससे अलग समझते हैं पर ऐसी बात नहीं है। अगर हम समझ लें की हमारे अन्दर जो यह प्रवाह है, जो हमें ऐसे रास्ते पर ले जाता है तो फिर आदमी अन्दर की तरफ मुड़ सकता दोष समा गए हैं। अब कहने से कि तुम अन्दर की तरफ जाओ, ध्यान करो, अपने अन्दर की बहुत सी बातें निकालो, सब कहने को तो कह देंगे पर उससे नहीं होगा। इसीलिए ध्यान करना प्रयतनशील रहना चाहिए और हमारे पास ऐसे साधन हैं जैसे क ष्ण का ध्यान करना। क ष्ण के ध्यान से हमारे अन्दर की सफाई हो जाती है । पर हम उल्टे हैं और कृष्ण के ध्यान में हम यह सोचते हैं कि हम दूसरों के दोष देखते हैं , हम अपने से अलग हट जाते हैं। जो लोग कृष्ण का के दोष तो देख लेंगे उन्हें दुसरो के दोष दिखाई देंगे पर हमे अपने दोष नहीं दिखाई देंगे | ये हमारे साथ ज्यत्ति है की हम अपने दोष तो देख नहीं सकते पर कृष्णा के दोष देख लेंगे बहुत से लोग हैं, मैंने देखा है कि किताबें लिखी हैं उन्होंने कि क ष्ण में क्या क्या दोष थे क्या गलत कार्य किए ? उनको कैसे रहना चाहिए था? अपने बारे में वो नहीं जानते लेकिन जब अपने बारे में भी सोचते और जब देखा जाता है, तो कभी भी यह द.ष्टि नहीं होती कि हमारे अन्दर यह दोष है और ये भी चला जाना चाहिए। तो दूसरों के दोष देखने से पहले हमारे अन्दर जाकर अटक जाते हैं। यही हमको करना है कि अपने अंदर क्या दोष हैं यह देखना चाहिए| कृष्ण से बढ़कर मैं कोई योगी मानती नहीं हूँ क्युकी उन्होंने यह रास्ता बताया कि तुम अपने अन्दर की गलतियाँ देखो। अपने अन्दर के दोष देखो। यह बहुत बड़ी बात है। उन्होंने सिर्फ कह दिया और करने वाले बहुत कम हैं। अगर दूसरों के दोष देख लीजिए तो हैं? तो सबको याद है। सबको मालूम है। अपने दोष बहुत ज्यादातर हम लोगों को समझ में आते हैं। इसलिए वो ठीक नहीं हो पाते। अपने दोषों से परिचित होना चाहिए और हंसना चाहिए अपने ऊपर कि देखो हम क्या दोष कर रहे , हमारे अन्दर क्या दोष है । ये हमे सोचना चाहिए। बजाय इसके कि हम और लोगों के दोषों को देखे तो होता क्या है कि चित्त हमारे ऊपर नहीं आपने आज की पूजा रखी, मैं बहुत खुश हो गई कि रहता। दूसरों के दोषों पर जाता है और उससे चित्त विचलित हो जाते हैं हम लोग और समझ नहीं पाते और लगता है अरे ये तो हमारे ही दोष थे। हम क्यों दूसरों के दोष देख रहे थे। उससे क्या हमारे दोष ठीक हो जाएंगे? बिलकुल नहीं हो सकते। धीरे धीरे जब यह बात समझ में आ जाएगी तो मनुष्य दूसरों के दोषों पर लक्षित नहीं होगा। अपने ही दोषों को देखकर हैरान होगा कि हमने कितने सारे ये राक्षस लोग पाल रखे है अपने अन्दर।
हमारे मन के अन्दर कितनी कितनी मन्दी बातें हम सोचते रहते हैं। जब यह सफाई शुरु होती है तो मनुष्य एक तरह से विशेष रूप धारण करता है। और वह रूप ये है कि उसके अपने अन्दर शव्तियों आ जाती है और उस शक्ति से वह अनेक कार्य कर सकता है। इसलिए नहीं कि उसका अहंकार बढ़े पर इसलिए कि उसकी सफाई हो गयी अगर उससे सफाई हो गयी तो अपनी सफाई का तो काम हो गया। तो दोष देखने से हम अपने अन्दर अपनी सफाई करते हैं और उन दोषों को छोड़ देते हैं। पर ये कैसे हो, क्योंकि दोष देखना तो तो मुश्किल नहीं है, पर उससे छूटना मुश्कल है । इसलिए उसका देखना जो है वो सूक्ष्म होना चाहिएऔर बारीक होना चाहिए और उस तरफ नजर जानी चाहिए। उससे बहुत कुछ सफाई हो जाएगी। ठीक होंगे? आज का जो पर्व है उसमें ये है कि आप अपने अन्दर झाँको और देखो। यह श्री कृष्ण ने कहा है। पर वो करना लोगो को मुश्किल लगता है। वो होता नहीं है। घटित नहीं होता नहीं करते।

उसकी क्या वजह है? क्यों हम अपने को नहीं देख पाते? बीच में पर्दा क्या है? पर्दा है हमारे अन्दर का अहंकार आदि जो दुर्गण है वो खड़े हो जाते हैं और उन दोषों को हम देख नहीं पाते, जिनको देखना चाहिए। यह बहुत ज़रूरी चीज़ है। तो होता क्या है कि चित्त हमारे ऊपर नहीं आपने आज की पूजा रखी, मैं बहुत खुश हो गई कि रहता। कृष्ण पूजा हो जाएगी तो अन्दर से बहुत से लोग साफ हो जाएंगे। क्योंकि यह कृष्ण का कार्य है | वो खुद ही इसे करेंगे। पर अगर आप उधर रुचि दिखाएं, उधर झुकाव दिखाएँ कि आप चाहते हैं कि आपकी पूरी तरह से सफाई हो जाए। आप जानते नहीं की कितनी आपके अन्दर शक्तियां आ जाती हैं | उस शक्ति से मनुष्य अनेक कार्य कर सकता है। इसलिए नहीं कि उसका अहंकार बढ़े पर इसलिए कि उसकी सफाई हो |
अगर उससे सफाई हो गयी तो अपना सफाई का काम हो गया। तो दोष देखने से हम दोषों को छोड़ देते हैं। पर अब ये कैसे हो, क्योंकि दोष देखना तो मुश्किल नहीं है, पर उससे छूटना मुश्किल है । आपकी नजर बहुत बारीक होनी जाएगी। अपने आप इसलिए उसका देखना जो है वो सूक्ष्म होना चाहिए अपने को आप समझने लगेंगे असल में दोष हमारे और चारीक होना चाहिए और उस तरफ नजर ही अन्दर हैं। उससे बहुत कुछ सफाई हो जाएगी। ठीक होंगे? आज का जो पर्व है श्री कृष्ण का है वह यह है कि आप अपने अन्दर झाँको । और अपने अंदर देखो , पर वो करना लोगों को मुश्किल लगता है। वो होता नहीं है घटित नहीं होता ।उसकी क्या वजह है ,क्यों हम अपने को नहीं देख पाते बीच में पर्दा क्या है | उसकी क्या वजह है? क्यों हम अपने को नहीं देख पाते? बीच में पर्दा क्या है? पर्दा है हमारे अन्दर का अहंकार आदि जो दुर्गण है वो खड़े हो जाते हैं और उन दोषों को हम देख नहीं पाते, जिनको देखना चाहिए। यह बहुत ज़रूरी चीज़ है। तो होता क्या है कि चित्त हमारे ऊपर नहीं आपने आज की पूजा रखी, मैं बहुत खुश हो गई कि रहता। कृष्ण पूजा हो जाएगी तो अन्दर से बहुत से लोग साफ हो जाएंगे। क्योंकि यह कृष्ण का कार्य है | वो खुद ही इसे करेंगे। पर अगर आप उधर रुचि दिखाएं, उधर झुकाव दिखाएँ कि आप चाहते हैं कि आपकी पूरी तरह से सफाई हो जाए। आप जानते नहीं की कितनी आपके अन्दर शक्तियां आ जाती हैं | यह प्रश्न बोहत गहन हैं इस प्रश्न को ठीक करने के लिए बड़ी म्हणत करनी पड़ेगी ,लोग पहले कसरत करते थे, गुरु क आदेश सुनते थे बोहत कुछ करते थे बेचारे पैर गहनता नहीं आती थी पैर आप तो सहजयोगी हैं आप के लिए मुश्किल नहीं , तो में यही कहूँगी अपने अंदर झाकना सिखये बड़ा मज़्ज़ा आएगा , अभी तक तो ठीक थे पता नहीं अब क्यों आप अपनी तरफ करिये ये कैसे चलता ह मामला आप अपनी और नज़र करिए तो बड़ा मज़ा आये वह क्या कहने फिरएक तरह का भोलपन आपके अंदर जागेगा यही कृष्ण की बाल लीला है , जब ये भोलेपन से आप नाहा लगे तो आपकी नज़र जो है वो स्टेडी हो जाएगी अपने आप अपने को समझने लगेंगे असल में दोष हमारे अंदर ह दुसरो क दोष देखने से हमारे दोष कैसे ठीक होंगे एक साहब आते थे उन्होंने कहा अगर किसी को समझ में अगर बात न आई तो एक प्रश्न है की हमारी जो संदेश हैं अगर हमारी साड़ी पर कुछ गिरा है कि और हम इसे हटआते नहीं तो क्या वो अपने आप से हाट जायेगा, नहीं कभी नहीं | इतनी तो अकल है हमारे पास , तो आप इस्तेमाल करे , किसी को बात समझ ना आयी हो तो वो प्रश्न पूछ सकते हैं। मराठी में पूछ सकते हैं कुछ तो सवाल पूछना चाहिए न , चित्त अन्दर जाता है। अब देखिए अपना रहा है? । आज चित्त जा रहा है अन्दर, पर हम डरते ही रहते हैं। पर चित्त अपने आप अंदर जाना चाहिए , चित्त को आदत हो जाएगी की वो अपने आप अंदर जाये, मैं जानती हूँ कि आप लोगों के खूब प्रश्न है। और खूब उलझने हैं इसमें कोई शक नहीं। लेकिन वो बहुत क्षुद्र हैं उसका कोई अर्थ नहीं लगता उस से उपर उठने की बात होती है हमेशा, पर लोग कहते है कि माँ कैसे उठा जाए। ध्यान से। ध्यान में क्या आप अपने ही ऊपर ध्यान करते हैं । अपने ही को देखना है की आपका दिमाग कहाँ चल रहा है? अब कहाँ घूम रहा है। धीरे धीरे आपकी सफाई हो जाएगी , आज का दिन बोहत महहतवपूर्ण है की कृष्ण का अवतार हुआ इसने हमारी बोहत सफाई की है | और बड़ी मदद करदी है और उनके आने से फरक हो गया और कुण्डलिनी के जागरण में मैं देखती हैं हैं,क प्ण के आशीर्वाद से बहुत सुन्दर चल रहा है आप लोग जरा अपनी और ध्यान दें। एक तो अपने से नाराज नहीं होना और दूसरों से नाराज़ नहीं है बड़ा आनद आएगा यही कृष्ण की पूजा है|