Mahashivaratri Puja

New Delhi (भारत)

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Mahashivaratri Puja Date 14th February 1999: Place Delhi: Type Puja Hindi & English Speech Language

[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

पहले मैं हिन्दी भाषा में बोलूँगी फिर सोपान मार्ग बना हुआ है. जिसे हम सुषुम्ना नाड़ी अंग्रेजी में आज हम श्री महादेव, शिवशंकर की पूजा करने के लिए एकत्र हुए हैं। शंकर जी के नाम से अनेक व्यवस्थाएं दुनिया में हो गईं। आदिशंकराचार्य के प्रसार के कारण शिवजी की शिव की, और जो रास्ता है वो विष्णु का पूजा बहुत जोरों में मनाने लग गए और दक्षिण में तो दो तरह के पंथ तैयार हो गए एक जिसको शैव कहते हैं और दूसरे जो वैष्णव कहलाते हैं । अब शैव माने शिव को मानने वाले और वैष्णव अपनी जगह बैठे हैं, जिसको आना है आए, नहीं जो विष्णु को मानने वाले। अपने देश में, विभाजन करने में हम लोग बहुत होशियार हैं। भगवान के भी विभाजन कर डालते हैं और फिर जब चाहिए और उसके लिए जो उसको एकत्रित करना चाहते हैं तो और उसका विद्रुप रूप निकल कहते हैं, जो मध्य मार्ग है, वो विष्यु का मार्ग है और उस मार्ग से ही हम शिव तत्व पे पहुँचते हैं तो जो मंजिल है वो है शिव तत्व की, बनाया हुआ है इस रास्ते को बनाने में विष्णु ने और आदिशक्ति ने मेहनत की है, इसमें शिवजी का कोई हाथ नहीं, बो तो आराम से |कॉ आना है नहीं आए। सो इस शिव तत्व को प्राप्त करने के लिए हमें इसी विष्णु मार्ग से जाना अनेक चक्र हैं । उनको पहले ठीक करना चाहिए। जब ये चक्र ठीक हो जाते हैं तब हमारा विष्णु मार्ग खुल जाता है और उसी के साथ फिर हम धीरे-धीरे आता है। जैसे कि एक अयप्पा’ नाम का नया निकल आया है मामला। बहुत गलत चीज़ है और उसमें यह दिखाया कि विष्णुजी ने जब मोहिनी रूप धारण किया तो उनसे एक बच्चा पैदा हुआ शिवजी से, ऐसा कहीं हो सकता है क्या? ऐसी गलत-सलत बातें हमारे देश में बहुत निकल आती हैं और फिर उसी के अलग-अलग संघ बन जाते हैं। कोई न कोई बहाना झगड़ा करने के लिए मिल जाए तो हिन्दुस्तानी वहुत खुश होते हैं। गर उनके पास झगड़ा करने के लिए कोई चीज नहीं हो तो वो कोई न कोई कल्पना से ही चीजें निकालते रहते हैं। सो ये दोनों ही चीज़ एक-दूसरे से इस तरह से जुड़ी हुई हैं कि जैसे सूर्य से सूर्य की किरण शब्द से अर्थ, चाँद से चाँदनी। माने ये कि जो ऊपर उठने लग जाते हैं। अब इन चक्रों के बारे में मैंने तो बहुत बताया था पर हृदय में भी एक चक्र है जिसको हम कहते हैं (left heart)। ये हृदय का चक्र नहीं है ये सिर्फ एक तरह से हृदय जो है वो प्रतिबिम्ब है. Refiection है महादेव का। शिवजी का स्थान तो सबसे ऊपर है, बुद्धि से ऊपर विचारों से ऊपर। ऐसे तत्वव को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले हमें इधर ध्यान देना चाहिए कि हमारा हृदय कितना साफ है । हृदय के अन्दर हम अनेक तरह की गंदगी को पालते हैं जैसे कि हम किसी से ईर्ष्या करते हैं। ईर्ष्ा करना जैसे कि किसी ने आपके साथ दुष्टता भी

हालाँकि अब धीरे-धीरे मामले साफ हो रहे हैं पर तो भी, आपको हैरानी होगी कि, अब भी इसकी बड़ी चर्चा होती है, कौन लीडर है। कौन क्या है? दूसरी बात हमारे लिए. हिन्दुस्तानियों के लिए एक वरदान कहो कि ईर्ष्या जो है वो पैसों के मामले में हो जाती है। सहजयोग में भी पैसों के मामले में बड़ी ईष्ष्या है। किसी के पास ज्यादा पैसा हैं किसी के पास कम पैसा है। सहजयोग के कार्य करते वक्त भी लोग देखते हैं कि कितना पैसा किसको मिलता है और कौन कितना पैसा देता है जिसका हृदय पैसे में करना अत्यंत आवश्यक है। उससे पहले भी उलझ गया वो सहजयोग के काम के आवमी और बाद में भी अनेक साधु सन्तों ने यही बात नहीं क्योंकि उनके हृदय पे जड़वाद की हो, आपको सताया भी हो, परेशान किया हो, लेकिन उससे ईर्ष्या करने से कोई फायदा नहीं है। आपका हृदय ग़र स्वच्छ है तो आपका जो आईना है, जिसमें परमात्मा का प्रतिबिम्ब पड़ने वाला है, वो साफ रहेगा। लेकिन आपके अन्दर गर ईर्या हो तो वो साफ नहीं रह सकता और उसका प्रतिबिम्ब ठीक नहीं हो सकता। किसी से भी दुश्मनी मोल लेना, किसी के प्रति भी कुछ किसी तरह का हृदय में किल्मिश रखना या बुरी भावना रखना ये गलत बात है। इसीलिए ईसा मसीह ने कहा है कि, सबको माफ करो। माफ कही कि सबको माफ कर दो। जैसे ही आप माफ कर देते हैं वैसे ही महादेव ऐसी चीज़ों को अपने हाथ में ले लेते हैं। सबसे जो सूक्ष्म शक्ति है वो महादेव की शक्ति है। और वो उसको फिर पूरी तरह से दण्डित करते हैं, उसको पूरी तरह से punish करते हैं। ये महादेव जी का कार्य है आपका नहीं और इसलिए आपका ईष्ष्या (Materialism) छाया हुआ है। किसी भी तरह के, किसी भी तरह के जड़वाद से ग़र आप ग्रसित हैं तो आपका उद्धार होना बड़ा कठिन है । ये अपने देश की विशेषता है परदेस में इतना नहीं देखा मैंने, पर यहाँ इसकी विशेषता है। सबसे हम सोचेंगे कि Russia में और Eastern Block में पैसा कम है। पर उनको किसी से करना बहुत बुरी बात है। पर सहजयोग बिल्कुल परवाह नहीं है। वो पैसे की बात ही में भी मैं देखती हूँ कि ईष्ष्या बहुत है। सहजयोगियों नहीं सोचते। उनका हृदय इतना स्वच्छ है, इतना को एक-दूसरे से ईष्ष्या हो जाएगी। अब किसी स्वच्छ हृदय है और बड़े स्वच्छ हृदय से ही को trusty बना दिया दूसरे को नहीं बनाया तो भक्ति हो सकती है। हम लोग तो जब प्रार्थना करते हैं तब भी हाथ-पैर धोते हैं, नहाते हैं पर कुछ खास नहीं है। ये तो आप लोग जानते हैं, हृदय का स्नान कर के ग़र हम प्रभु से ये कहें कि हमारे अन्दर की ये जो गन्दगियाँ हैं इसको तुम हटाओ और हमें स्वच्छ करो तो ज्यादा इसको ईष्ष्या हो जाएगी उसमें trusty आदि में सब झूठी बातें हैं। माँ ने यूँ ही ढकोसला बनाया हुआ है, एक मायाजाल फैलाया हुआ है। पर उसमें भी लोगों का दिमाग खराब हो जाता है अच्छा होगा। और दिमा किसी का खराब होता है और दिल तीसरी बात जो हमारे यहाँ अन्दर है. किसी का खराब होता है। अब मैं क्या करूँ, षड्रिपु जिसे कहते हैं क्रोध पर कृष्ण ने बहुत जोर दिया है। क्रोध सबसे खराब चीज़ है, क्रोध से ही सब चीज़ आती है। एक बार आदमी क्रोध करता है फिर उसको सम्मोह हो जाता है मेरी खुद समझ में नहीं आता है कि इतना बड़ा कार्य इतने देशों में चल रहा है तो कोई न कोई एक आदमी से ही तो संबंधित हो सकता है।

और फिर वो ये सोचता है मैंने क्यों कहा, मुझे नहीं कहना चाहिए था ये नहीं वो नहीं। पर बो आपे में नहीं रहता जब उसे क्रोध आता है क्रोध में वो आपे में नहीं रहता है और आपे से बाहर हो जाता है और जो मुंह में आए सी बकता है। उसका कोई अर्थ नहीं या इतने दिनों की जो मैल अपने हृदय में समाई हुई है वो उसके मुख से निकलती है। इस क्रोध को बचाना चाहिए। ये किसलिए क्रोध आता है। इधर गर चित्त दिया जाए कि हम क्यों क्रोध करते हैं। फिर कुछ लोग हैं बो व्यक्ति मात्र से करते हैं, कोई एक सेना तैयार करना या फिर कोई मारने-पीटने वाली चीज तैयार करना; ये बड़ी भयामक है। हालांकि रार अपने संरक्षण के लिए कोई आदमी ऐसी चीज़ रखता है तो उसमें इतना हर्ज नहीं है, पर तो भी ग़र बो परमात्मा का भक्त है तो उसको कोई जरूरत नहीं। ऐसा आदमी हमेशा संरक्षित है। जिसके अन्दर श्री महादेव का वास है उनको कौन हाथ लगा सकता है? उनको कौन नष्ट कर सकता है? कुछ भी करो, कितना भी उनको सताओ; तो भी वो इन्सान नष्ट नहीं हो सकता। लेकिन जो उनको सताएंगे वो ही नष्ट समाज मात्र से करता है। इस तरह से अनेक हो जाएंगे। जब इस बात का पूर्ण विश्वास तरह से लोग क्रोध करते हैं । ये क्रोध हमें अन्दर क्यों आता है? किसलिए हम क्रोधित होते हैं? ये हैं वो ही नष्ट हो जाएंगे अपना दिल अपना सोचना चाहिए। बहुत से लोगों ने मुझसे कहा कि माँ ग़र आपके खिलाफ कोई कहता है तो हमें ही ये कार्य हो सकता है क्योंकि शिव का स्थान बड़ा क्रोध आता कोई मेरे विरोध में कहता है तो सच कहती हूँ स्वच्छ होता है उसी में उसका प्रतिबिम्ब पड़ता हँसी आती है? क्योंकि इसमें कोई अर्थ ही है। शिवजी का क्रोध एक ही बार होने बाला है, आपके अंदर हो जाए कि जो आपको सता रहे हृदये आप एकदम स्वच्छ रखें। स्वच्छ हृदय में हमारे अन्दर प्रतिबिम्ब रूप है और जो आईना हैं। मुझे तो हँसी आती है। गर मुझे नहीं, मेरे विरोध में कहने की ऐसी कौन सी बात है। मैं तो प्यार करने जा रही हूँ। मेरे विरोध में बोल रहे हैं तो करें क्या! पर किसी-किसी की और होता है एक बार, ऐसा लोग कहते हैं। पर मैंने अनेक बार उनको क्रोधित होते देखा। क्योंकि उनका अधिकार है। उनका अधिकार है क्रोध करने का ग़र कोई आदिशक्ति के विरोध में कार्य करता है तो शिवजी का हाथ बड़ा लम्बा है। कुछ भी करो वो मानते ही नहीं उन्हें ठिकाने लगा ही देते हैं क्योंकि वो जानते हैं आदिशक्ति जो है वो तो कुछ नहीं करेंगी। वो तो किसी को दण्डित नहीं करेगी. बो तो सबको माफ कर देंगी। तब उनका हाथ इतना लम्बा है कि जिसकी कोई हद नहीं और जब वो बुद्धि टेढ़ी होती है तो उस पर दया करनी चाहिए। उसको सोचना चाहिए कि इतना महामूर्ख है ये, जो आदमी क्रोध में उतर जाता है, उसकी तरफ दृष्टि जो है वो अत्यंत शालीन होनी चाहिए। इससे उसका भी क्रोध ठण्डा हो सकता है। अपने देश में क्रोध करने वाले अनेक तरह के लोग हैं. उसकी संस्थाएं हैं जो सिर्फ क्रोध से इसको मार, उसको मार, इसको पीट, उसको पीट और फिर सामाजिक तौर पर भी ये चीज बनती जा रही है। ये बड़ी भयानक चीज है लोगों को मारना-पीटना और फिर उसके दम पर एक कोई हाथ चलता है तो फिर कोई नहीं रोक सकता। उनसे आखिर कौन बोले, उनके आगे भी मर्यादाएं हैं जिसको आप उठा नहीं सकते, बढ़ा नहीं सकते।

इस तरह से आपको समझना चाहिए कि समझते क्या हैं कि आप उसको कहते हैं ये मुझे अपने वैयक्तिक जीवन में सहज योग में आपको पसंद है ये मुझे पसंद नहीं। कोई भी चीज़ को शिवजी का ही अनुसरण करना है, क्योंकि नहीं पसंद करने न पसंद करने का आपको कोई करोगे तो पहली चीज़ है दिल (Heart) की अधिकार नहीं। किसी बिचारे ने बढ़िया तरीके बीमारी हो जाएगी। यह पहली चीज़़ है दिल से, समझ लीजिए, आपके लिए फूल दिया तो (Heart) की बीमारी हो जाएगी।। like it, I don’t like it. इसमें दो तरह से खेल होता है। एक तो उसके पीछे छिपी हुई उसकी भावना को आप आप कहेंगे साहब मुझे ये फूल पसन्द नहीं। र अति क्रोध से Heart पकड़ जाता है और दूसरा इसलिए नहीं समझ पाते कि आपके अन्दर शिव तत्व नहीं। एक छोटी सी भी चीज़ हो, गर किसी एन्जाइना की बीमारी हो जाती है। इस प्रकार ने गरीब ने आपको दी है तो उसको आप दोनों ही चीजें बेकार हैं। पर कहने से क्रोध नहीं उसकी भावना को पीछे समझ नहीं पाते। किस जाता। ये तो एक शराब जैसी चीज़ है। आदत हो प्रेम से वो चीज़ लाया? इसके लिए हमारे यहाँ जाती है क्रोध करने की, उसी में मज़ा आता है। सुदामा का उदाहरण दिखाया गया है कि वो बस मुँह फूलने लग जाएगा और गुस्सा आने लग कुरमुरे लेकर पहुँचे थे और उनका कितना मान जाएगा। आप उसको कंट्रोल नहीं कर पाएंगे तो श्रीकृष्ण ने किया। कोई चीज जो प्रेम भाव से देते हैं वो ऐसा ही है जैसे कि एक शीशे को है कि क्रोध के बाद पश्चाताप हो तो आपके मैंने ये सोचा कि गर शीशे के सामने बैठकर आप क्रोध करें, अपने ऊपर, अपको को दो चार आप पारस पीछे से लगा दीजिए, चमक जाता सुनाएं और शीशे के सामने बैठकर ये कहें कि है। ऐसी ही चीज़ है, गर आपके अन्दर भावना मेरे जैसा महामूर्ख कोई नहीं, तब ये क्रोध शायद बहुत सुन्दर हो अच्छी हो, पर पैसा नहीं हो तो ठण्डा हो जाए। ये भी मैं शायद ही कह रही हूँ आप कोई छोटी सी चीज़ भी उनको लेकर दे दें क्योंकि कभी-कभी ये समस्याएं इतनी उलझी तो दूसरे को सोचना चाहिए. आहा! क्या बढ़िया चीज़ है! किन्तु इस भावना से मनुष्य के अन्दर आगे चलकर देखा गया है कि जितना हम किसी एक सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त होती है जिसको कहना चाहिए कलात्मक, जिसमें कला का प्रादुर्भाव हम जिसको कहते हैं. प्रतिक्रिया (react) करते होता है। जिसमें कला दिखाई देती है? तो आप समझते हैं कितनी कलात्मक चीज़ है, ये कला होती हैं कि उसको सुलझाना बहुत मुश्कल है। चीज़ को ध्यान देते हैं और उस चीज़ के ऊपर, हैं। किसी ने कुछ कहा, फ़ौरन reaction हो गया। ये प्रथा ज्यादा विदेश में है। जैसे कि अब है प्रेम की कला। ये प्रेम की कला है। इस कला ये (Carpet) कालीन बिछा हुआ है, फ़ौरन से आप देख सकते हैं कि इस मनुष्य में कितना don’t like it, I like it? ये कौन प्यार है! कितना मोहब्बती है! कितना प्रेम करने वाला है कितना सज्जन है! कितना अच्छा है! जब आप ये चीज देखना शुरु करेंगे, तब आपकी चिकित्सक है जो कहेगा कि मुझे पसन्द है मुझे नज़र अपने ऊपर जाएगी और आप ये सोचेंगे में क्या हूँ? मुझमें इतना घ्यार है? मुझमें इतनी सज्जनता है? मुझमें ये अच्छाइयाँ हैं कि मैं कह देंगे कि । होते हैं आप कहने वाले। हरेक चीज़ को आजकल की फ़ैशन है. हरेक आदमी जैसे कोई बड़ा भारी पसंद नहीं। ये कहना ही नहीं चाहिए. ये कहना ही आपके आज्ञा का लक्षण है। आप अपने को

ऊपरी जुबानी जमा खर्च करता हूँ और लोगों को भुलावे में डालता हूँ। वास्तविकता में हम अपने ही को भुलावे में डालते हैं। जब हम गलत काम कर रहे हैं, गलत तरीके से रह रहे हैं, जब हमारे जीवन में पूरी तरह की गलत-गलत धारणाएं बनी हुई हैं, तो हम किसी को भी सुख नहीं दे सकते और अपने को तो बिल्कुल ही नहीं दे सकते। इसलिए स्वार्थ की दृष्टि से भी स्वार्थ होती है. कोई परेशानी होती है तो वो सब जगह व्याप्त है। हर जगह वो आकाश तत्व जो तत्व में कह रही हूँ, व्याप्त है। फौरन आपका असर वहाँ पहुँच जाता है जहाँ ज़रूरत होती है। बड़े कमाल की बात है, पर होता है और हुआ है और इसी को लोग चमत्कार कहें पर ऐसी बात नहीं हैं| सहजयोग में ग़र आप शिव तत्व में जागृत हो जाएं तो आपके अंदर के जितने सूक्ष्म-सूक्ष्म, सूक्ष्मतर कहना चाहिए, जो भाव है और स्थिति शब्द बड़ा सुन्दर है। ‘स्व’ का अर्थ जानना चाहिए। स्व माने आत्मा, उसका आप अर्थ है वो जागृत हो जाती है। जानिए। अर्थ जानने के लिए शिवजी की पूजा लोग करते हैं। पर मैंने देखा कि शिवजी की दिल को साफ करें। अब दिल के साफ करने में पूजा करने वाले लोग बड़े गुस्से वाले, बड़े मैंने आपसे तीन रिपुओं की बात कही। अब क्रोधी, बड़े कंजूस और न जाने क्या-क्या होते चौथा रिपु जो हमारे अन्दर है। वो है मद। मद हैं। शिवजी जैसे दाता कोई नहीं शिवजी जैसे प्रेम माने घमण्ड। जब औरतों में घमण्ड आ जाता हैं करने वाले जो ये प्यार का स्रोत हैं, जो आज बह रहा औरतों जैसे नहीं चल सकती घमण्ड में । हम इसलिए चाहिए कि हम लोग पहले अपने तो वो आदमियों की चाल चलती है। फिर वो है, ये शिवजी के चरणों की लीला है । उन्हीं की वजह से ये कार्य हो रहा है कि मनुष्य प्यार में डूबा जा रहा है। सहजयोग के बाद जब आपकी स्थिति वो हो जाती है तो, आप जीवात्मा कहना चाहिए या आपके Attention जो हैं, चित्त जो हैं, वो शिवजी के चरणों में लीन हो जाता है और शिवजी के चरणों में लीन होते ही क्या होता है कि आपके अन्दर जो पंचतत्व के गुण हैं वो भी बिल्कुल सूक्ष्म हो जाते हैं। मैंने आप लोगों से पहले चार तत्वों के माने बहुत हम कोई विशेष, हमारी कुछ तो भी ज्यादा या तो पैसे वालों की लड़की है. या सुन्दर है. या सुशिक्षित है या चाहे जिसकी भी बात है। किसी भी बात से अगर घमण्ड आ जाए तो औरत जो है वो आदमी जैसे चलने लगती है। और जब आदमी को घमण्ड आता है तो औरतों जैसे चलने लगता है, माने बनता ठनता है बहुत शीशे के सामने घण्टों बैठता है, बाल बनाता है. ये करता है वो करता है। सब औरतों के धंधे करता है। बनना ठनना औरतों का काम है। बारे में बताया था पर पाँचवा तत्व जिसे कि Eather कहते हैं अंग्रेजी में, उसके बारे में नहीं चलते वक्त भी सीधे नहीं चलता, एक विशेष शर पीछे देखो तो लगेगा कोई रूप से चलता है। औरत चली जा रही है मर्दाना कपड़े पहन के। सो जब आदमी के अन्दर ये चढ़ जाता है मद तो कहते हैं न मदमस्त हुए, ता मदमस्त हुए तो डोलने लग जाते हैं हाथी की जैसे उनका सारा ही ढंग अलग अलग हो जाता है। वो बात करेंगे बताया। अपने यहाँ आकाश कहते हैं। आकाश तत्व का ये है कि जब मनुष्य सूक्ष्म स्थिति में जाता है तो उस सूक्ष्म आकाश को भी प्राप्त करता है। बो आकाश जो कि eather को चलाता है। उस आकाश को चलायमान भी करने की जरूरत नहीं। ग़र किसी को कोई तकलीफ

तो, बात नहीं करेंगे तो, बैठेंगे लो, हर चीज में ये उसके दिखाई देता है कि इनके कोई न कोई घमण्ड होगा तो ऐसे ऐसे चन्दन लगाएगा। अगर विष्णु हैं। गअलग चिन्ह हैं। ग़र शिव भक्त भक्त होगा वो ऐसे लगाएगा। अरे भई इसका क्या अर्थ है? ऐसे लगाने का अर्थ है हम | अब समझ में नहीं आता कि किस चीज़ का घमण्ड इनको चढ़ा हुआ है। कौन सी चीज़़ से अपने को विशेष समझ रहे हैं। ये सारी ही चीज़ें उध्ध्वांगामी हैं। ठीक है आप ऊपर चढ़ रहे हैं तुच्छ हैं। इसका कोई अर्थ ही नहीं है। सहज में उध्ध्वगामी और पहुँचकर के आप शांत। दोनों ही इसका कोई अर्थ नहीं है। इसलिए ऐसी चीज़ों में विश्वास कर लेना कि हम कोई विशेष हैं तो आप शेष ही रह जाते हैं विशेष नहीं रह जाते शेष ही रह जाते हैं । मतलब ये है कि अपने बारे जिस रास्ते से आप गुजर रहे हैं इसमें से में कोई सी भी ऐसी कल्पना कर लेना कि हम बड़े रईस हैं या हम बड़े ये हैं। अब तो गरीबों को भला-बुरा कहने से पहले अपने को को भी घमण्ड हो गया है, दलितों को भी घमण्ड हो गया है, कुछ समझ नहीं आता! वो हूँ। अपने को कहिए, जब आप अपने को कहना जो भी हो वो हम हैं। इस तरह से लोग बातें शुरु करेंगे तो. आप देखिए, सारे भूत भाग करते हैं। आप स्वयं साक्षात क्या हैं? एक ईश्वर जाएंगे। क्योंकि ये सारे भूत हमने इकट्ठे किए भक्त, परमात्मा को मानने वाले सहजयोगी है। हैं, खुद ही सोच-सोच के. अपनी आज्ञा से। आपको इस तरह से अपने बारे में सोच लेना, अपनी आज्ञा से भूत इकट्ठे होते गए. दिमागी लगाना चाहिए और नहीं तो लगाओ ही मत। इसका कोई अर्थ होना चाहिए कि जिस चीज़ को प्राप्त करने जा रहे हैं, उसका ये सोपान मार्ग है। एक-एक गन्दी चीज़ों को छोड़ते जाते हैं दूसरों भला-बुरा कहना सीखिए। मैं ऐसी हूँ। मैं वैसी जमा खर्च हो गया और आदमी बहुत क्लेशदायी आनन्द से परे होन है. क्योंकि शिव -शक्ति जो है आनन्द विभोर दुखदायी हो जाता है और वो दुखदायी उसको मनुष्य को करती है। मनुष्य आनन्द में मस्त होने भी दुविधा ही करता है। आप किसी को दुख के लिए शिव की भक्ति करता है। पर मैं देखती देकर सुख नहीं पा सकते। उसका जरूर असर हूँ अधिकतर शिव भक्त जो होते हैं, बड़े सड़ियल लोग होते हैं। उनसे कोई बात भी नहीं कर सकता, फायदा क्या है? शिव की भक्त करते आदमी बड़ा दुखी हो जाता है। ये तो एक माँ हो, जो नटराज साक्षात सारे कला का प्रादुर्भाव की बात है कि वो आपके सुख की बात करती करने वाले जो अत्यंत आनन्दी और आनन्द के है। आना है। चाहे आप पत्थर हों, पर उसका असर आता है। और उसका असर ये-ही आता है कि आपको जिससे सुख मिले, जिससे आपको स्वरूप है, उनके आगे ये शिवभक्त इनको संतोष मिले, जिससे आपको शांति मिले, जिससे शिवभक्त कैसे कहा जाए? गले में इतना बड़ा आपको प्यार मिले और दुनिया में एक आप बड़ा लिंग लटकाते हैं जिससे दिल का दौरा सज्जन इन्सान हो जाएं। ये एक तो माँ का ल तरीका है। (heart attack) आता है। उसकी क्या जरूरत है। आप स्वयं साक्षात लिंग स्वरूप बोही हैं। वो न होते हुए वो जो कार्य करते हैं कि हम शिवभक्त हैं। लगे लड़ने शिव भक्ति करके और मैं घबराती रहती हैं कि अब ये आदमी किधर पर शिव को ये तरीका नहीं। शिव एक हृद तक चलते हैं नहीं तो ऐसा तड़ाकते हैं कि

जा रहा है। अब इसका होगा क्या? ये कहाँ ये ही हैं। रुद्र के जो भावना है वो भी शिवजी पहुँचेंगे? ये क्या कर रहे हैं? उनको ये नहीं, के ही स्वरूप हैं। इसीलिए बहुत संभल के उनके अन्दर ये नहीं है कि चलो भई इनको, ये आपको रहना चाहिए। इसके बारे में आप को बहुत खराब हैं बुरे हैं तो माफ कर दें। हाँ माफ इसलिए warming चेतावनी देनी है कि सहजयोग करने योग्य हो तो माफ करते हैं। जो उनकी में भी लोग आते हैं, कोई पैसा कमाता है, कोई बहुत तपस्या करता है उनको भी वो वरदान देते हैं। पर जो आदमी मूलतः ‘basically’ जो ठीक नहीं होना चाहता उसको वो ठीक कर देते हैं ये निकल जाते हैं। पर निकलते ही साथ शिवजी बात सही है इसलिए उनसे डरना भी चाहिए। की कक्षा में आ जाते हैं फिर मुझे खबर आती उनको भयंकर भी इसीलिए कहते हैं कि जब कि वो दिवालिए हो गए, वो ऐसा हो गया, वैसा बिगड़ते हैं तो बो किसी को भी नहीं छोड़ते। पर हो गया। मैंने कहा भई अब मुझे मत बताओ। उनका सबसे ज्यादा जो बिगड़ना है वो तब होता है जब अन्त का, कहते हैं न कि रात्रि ऐसी तो उसे कौन बचा सकता है? इसलिए आपको आएगी कि सब नष्ट हो जाएगा उस समय वे चाहिए कि आप अपना संरक्षण शिव में खोजें, अपने क्रोध से सब चीज़ नष्ट करते हैं। ये समय बुराई करता है, कोई खराबी करता है, कोई अन्याय करता है, ऐसे लोग तो झटक जाते हैं, जब वो खुद ही छोड़ के भागे अपने संरक्षण से माँ में तो है ही संरक्षण, लेकिन शिव में खोजना तब आता है क्योंकि मैंने आपसे कहा था कि ये चाहिए। उसके लिए ये जो मैंने अभी आपको आखिरी निर्णय है. last judgment है। इसमें आप कौन से रास्ते पे जाते हैं, कहाँ जाते हैं, क्या करते हैं, ये सब पूर्णतया आपके अन्दर लिखा बताया ये पांच चीजें हैं इन पांच तत्वों में जो सूक्ष्म चीज़ है उसको प्राप्त करना है। उसको प्राप्त करने के लिए आपको ध्यान करना जरूरी है। जो लोग ध्यान करते हैं वो अलग जाता है। आपका जैसे कच्चा चिट्ठा बन जाता है और उसी के अनुसार आप चाहे स्वर्ग में जाएं ही दिखाई देते हैं और जो लोग ध्यान नहीं और चाहे आप नरक में जाएं। नर्क में भेजने करते वो अलग दिखाई देते हैं। इसमें कोई वाले तो शिवजी हैं, मैं नहीं। मुझे कोई मतलब नहीं नर्क से। लेकिन शिवजी को है वो खींच के आपकी टांग आपको नर्क में डाल देंगे। फिर आप ये न कहें मैं तो माँ का बड़ा भक्त हूँ और नहीं और उसके प्रति एक आलस्य हो तो मैं माँ को मानता हूँ, तो मुझे क्यों ये ऐसा हो गया? इसका कारण मैं नहीं हूँ। जिसने एक बार मुझे माँ कह दिया उसके लिए मैं कभी कुछ अंग-अंग आपको जो है वो खुश हो जाए। बुरा नहीं सोचती। पर, शिवजी की मर्यादाएं ग़र जिससे आनन्व की वर्षा हो। मैं हूँ तो मेरी मर्यादाएं भी वो हैं। पर इस मामले में सबका दोनों का स्वभाव बिल्कुल विपरीत हिसाब किताब है वो ये है कि वो आपको होने के कारण आपको बहुत समझ करके रहना है। ईसा मसीह में भी जो ग्यारह रूद्र हैं, वो भी नाम स्मरण से ही मनुष्य को आनन्द मिलना शक नहीं। अब जो लोग ध्यान करते हैं पर ध्यान में मन नहीं, ध्यान में प्रवृत्ति नहीं, ध्यान की समझ नहीं, ध्यान में सूझ-बूझ भी वो ध्यान फलीभूत नहीं होता, उससे कोई फायदा नहीं होता। ऐसा ध्यान हो, जिससे शिवजी का पहला और महत्वपूर्ण जो आनन्दित करते हैं, पुलकित करते हैं । उनके ০

चाहिए। पर उससे उल्टा होता है। उसके विरोध नहीं। शीशे के सामने बहुत बैठना भी एक में ही लोग रहते हैं। जो होना चाहिए वो नहीं बीमारी मानी जाती है। पर ये है कि आप अपनी होता है। ये मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि जिनको हम शिव के भक्त समझते हैं वो इस देखें कि मेरे अन्दर कौन सी खराबी हैं? मैं कौन कदर करके सूखे कैसे हो सकते हैं? हो ही नहीं से कौन से गलत काम करती हूँ? अपनी भारतीय सकते। इसमें एक कारण और भी है कि जो संस्कृति में जो कुछ बताया गया है, सीधा रास्ता बहुत ज्यादा कार्य में रत रहते हैं, बहुत ज्यादा, वो (right sided) आक्रामक हो जाते हैं। जब वो तो लोग सोचते हैं जैसे भी रहो ठीक है, ऐसी आक्रामक बहुत हो जाते हैं तो शिव से वंचित हो बात नहीं हिन्दुस्तान में रहते हुए आपको भारतीय जाते हैं, शिव से हट जाते हैं । और शिव फिर संस्कृति के अनुसार पूर्णतया रहना होगा। आपका अपना असर दिखाते हैं। अब आपको पता है कि शिवजी की बहन सरस्वती हैं। जो सरस्वती की रहे क्योंकि भारतीय संस्कृति में शिव तत्व का पूजा करते हैं । माने जो पढ़ते हैं, लिखते हैं, ये तरफ नज़र करें और अपनी तरफ नज़र करके उसे लेना है। आजकल नया जमाना आ गया है सारा जीवन क्रम भी भारतीय संस्कृति से जुड़ा बड़ा महत्व है। सबसे ज्यादा जो है शिव तत्व का है और शिव तत्व ने ही हमारी मर्यादाएं सब ज्ञान व्यान इकट्ठा करते हैं और इसके अलावा कला में बहुत रुचि रखते हैं, ऐसे जो बनाई हैं कि इस मर्यादा को आपने लाँघा कि लोग हैं कला की ओर जिनकी रुचि है ऐसे लोग जो हैं जो सरस्वती की पूजा करते हैं उनकी वन्दना करते हैं, उनको सबसे पहले ये जानना गई हैं आज तक ये ऐसे नहीं करते वैसे नहीं चाहिए कि ये शिवजी की बहन है। और आप जानते हैं बहन का रिश्ता बड़ा जबरदस्त होता है। शिव ने बनाई हैं। वो इसका इतना जबरदस्त ग़र आप इनकी बहन की कहीं प्रवंचना करें या उससे कोई बुरे गुण ले लें या बुरी बातें करें. लांघ जाते हैं आप पर उसका असर आता है जैसे कि बहुत से लोग हैं गन्दी गन्दी किताबें लिख देते हैं, बहुत से लोग हैं जिनके पास ज्ञानलोगों ने बना दी है। जैसे बहुत से सोचते हैं कि है उसको उल्टा सीधा कर देते हैं, ऐसे लोगों पे भंग पीने से आप शिव तत्व के हो जाते हैं । शिवजी का हाथ बड़े जोर से पड़ता है। क्योंकि बहुत से लोग जो शराब पीते हैं वो सोचते हैं कि उनकी बहन जो है वो बड़ी महत्वपूर्ण है। उसकी प्रवंचना करना माने बहुत ही वड़ा गुनाह है, उनकी दृष्टि में बहुत बड़ा गुनाह है। और ली हैं कि शिवजी के लिए ये चीज़ है। वो आदिशक्ति के लिए भी उनका बहुत कड़क शिवजी ने गर पिया तो शिवजी ने तो विष भी नियम है, इसमें कोई शक नहीं। अब जो सहजयोगी हैं उनको सबसे पहले पिया था कि संसार का सारा विष जो है वो खा अपनी ओर ध्यान देना है। मेरा मतलब नहीं कि लें इसलिए वो धतूरे को खाते थे कि धतूरा जो शीशे के सामने घण्टों बैठे रहिए। विल्कुल भी है इसमें जहर होता है, तो वो खाते थे। इसी आप गए। जो मर्यादाएं हमारी संस्कृति में हैं, वो शिव की कृपा से हैं। वो सारी बातें जो हमें बताई करते, छोटी से लेकर बड़ी तक, ये मर्यादाएं ख्याल रखते है कि जैसे ही आप इस मरयादा को । अब शिव तत्व में इतनी-इतनी गलत धारणा शराब पीने से आप शिव तत्व में डूब जाते हैं। बहुत सारी ऐसी गलत-गलत चीजें लोगों ने बना पिया था, आप विष पिएंगे? उन्होंने इसलिए.

दशा में नहीं जाएंगे तो बेकार है। आपके लिए ये प्रकार आपने सुना होगा कि साईनाथ जो थे वो बहुत तम्बाकू पीते नहीं थे पर वो चिलम में भर सारे उपत्व्याप्त करने से कोई फायदा नहीं। बहुत कर खींचते थे वजह ये है कि महाराष्ट्र में लोग बड़ा ही तम्बाकू खाते हैं. हर आदमी मंत्री भी तरीके से, पर हमको ग़र सही तरीके पे रहना है तम्बाकू खाएगा और उसका चपरासी भी खाएगा और सही मार्ग से चलना है तो सर्वप्रथम अपने और मंत्री चपरासी से कहेगा कि भई तेरे पास तम्बाकू हो तो दे। इस कदर वहाँ पर बिल्कुल तम्बाकू का जोर है हालांकि इतनी तम्बाकू तो सारी हमारे हृदय पे असर करती हैं। इसलिए वहाँ होती नहीं है पर पता नहीं उन लोगों को पहले जमाने में ऐसा होता था कि जो भी विद्यार्थी तम्बाकू की बीमारी है? इतनी तम्बाकू खाते हैं आते थे उनको जंगलों में सोने को कहते थे। वो महाराष्ट्र में लोग। उस तम्बाकू के लिए ही जंगलों में रहे जहाँ साँप बिच्छू, मकिड़्याँ, साईंनाथ ने ये सोंचा कि मैं ही क्यों न इनकी बकड़ियाँ सब लगे. वहीं रहो। तुम्हारे ऊपर सारी तम्बाकू खा जाऊँ। इसलिए वो तम्बाकू ऐशोआराम न चढ़ें। ज्यादा से ज्यादा झोंपड़ी में, खोंचते थे तो लोगों ने कहा लो साईनाथ चिलम पीते थे तो हम भी पीएंगे। जहाँ वो वहाँ सुलाते थे और बहुत सादगी का जीवन, कपड़े ऐसे लोग हो गए जो तम्बाकू इसलिए लेते थे कि भी बहुत कम पहनने जिसमें कि बच्चों को इन लोगों की तम्बाकू की जो लत है वो खत्म कपड़ों के प्रति लालच न हो। हमें ये कपड़ा हो जाए । अब वो चाहे उसको कुछ भी कहिए पहनना है, हमें ये जूता खरीदना है, हमें ये खाना है तो वो तम्बाकू और तम्बाकू का शिवजी से वैसा सम्बन्ध नहीं है, पर ये जरूर है कि सब सारी चीज़ें हैं जिसका समर्थन हो सकता है गलत हृदय को हम स्वच्छ करें। ये जो हमें आदतें लगी हैं ये आदतें भी भी जिसको कि गोबर से लीपा हुआ है. उसमें खाना है. ये सहजयोगियों को कहना नहीं चाहिए। आपको मालूम है आपकी माँ कहीं भी रह वो सारी दुनिया भर की तम्बाकू को खत्म करना सकती है, कहीं भी सो सकती है, कुछ भी खा चाहते थे। अब समझ लीजिए कि अगर आप देवी हैं, सो देवी का काम है कि सारी दुनिया के हमारे यहाँ जो इन्सान देखो, हिन्दुस्तान का, दुष्टों को भूतों को खा ले। अब आप भी खाएंगे उसको खाने पीने का बड़ा शौक है। सहजयोगी क्या भूत? देवी का कार्य है कि वो जितने भी भी एक-दूसरे को बुलाएंगे खाने पर आइए, काहे आपके पीछे में लगी हुई बीमारियाँ हैं उनको को? औरतों को खासकर, कि जैसे कहीं जाओ आत्मसात कर ले। तो अब आप लोग करेंगे तो कहें माँ आप हमारे घर खाने पर आओ मैंने क्या? ये आपका कार्य नहीं। इसी प्रकार जो कुछ -सन्तों ने किया है वो सब करने के किसी होटल में नहीं खा सकती, मैं कहीं नहीं सकती है। तो ये जो चीज़ है अपने अन्दर स्वाद, कहा भई खाने का बड़ा गड़बड़ काम हैं। मैं तो भी साधु लिए तो अभी आपकी ये शक्ति नहीं और न ही खा सकती और घर में भी बौर नमक बौर आपका कार्य है। आपका कार्य जो है वो अपनी चीनी के रहती हूँ। मेरे अन्दर अस्वाद है, बचपन स्वच्छता करना, अपने को ठीक करना। पहले से अस्वाद है। मैं हर हालत में जो मिले सो आप उस दशा में पहुँच जाएं तब फिर सब खाती हूँ। पर हम लोगों की जो जुबान है, बड़ी मामला ठीक हो सकता है। पर ग़र आप उस चटोरी है। हिन्दुस्तानियों में चाहे वो यू.पी. वाले

हों, पंजाबी हो, चाहे दक्षिण के हों, खाने के साफ है। हमें आप हिन्दुस्तानी दे दो। तो मैंने मामले में अदल बदल दिया तो बड़े खुश हिन्दुस्तानी कि आदमियों को बुद्ध बनाते हैं खाना खिलाकर। हमारे पति को ये पसन्द है, हमारे पतिं को वो सहजयोगियों को ऐसी बातें करते हुए शर्म आनी पसन्द है, करे क्या? उसकी गुलामी करेंगी, पति चाहिए। आपके बाप दादा तो लोटा लेकर के को हिन्दुस्तानी बहुत कुशल हैं। और attached bath मिल गया। शर्म करनी चाहिए! श करेंगी। उनको ये करेंगी। रात-दिन जाते थे और आपको ये क्या शौक? आपको खुश खाने-पीने की बात ग़र करे तो वो सहजयोगी कोई बीमारी है या कोई तकलीफ है? मुझे एक नहीं। अब बाबा जब में वहाँ थी, मिलान में, वहाँ आफ़त में डाल दिया था। पर एक तरह से मेरे जब प्रोग्राम हुआ, गुरु पूजा में, मैंने खुद खाना दिमाग में बात आ गई कि चलो भई तुम ये लो बनाया क्या करें? चार साल तक में वहाँ खाना तुम ये लो। इस तरह से बहाने बाजी और ये बनाती रही क्योंकि दूसरे लोग अच्छा खाना नहीं करना ये हिन्दुस्तानियों का ही काम है। अब बनाते थे लोग कहते माँ ये तो प्लास्टिक के आपको और हैरानी होगी कि जो लोग कबैला जैसे बना है। पर हिन्दुस्तानी उसमें विशेष थे, आते हैं, सब लोग सबके साथ रहते हैं। वहुत जितने भी हिन्दुस्तानी वहाँ आएंगे सब मुझे रईस लोग हैं जिनके पास मोटरें हैं सब हैं| मिलना चाहेंगे, उनका विशेष अधिकार है मेरे लेकिन वो सब पंडाल में सोएंगे। पर हिन्दुस्त ानी ऊपर। और दूसरा खाने पीने में बड़ा बो, कि अपने लिए एक विशेष जगह होगी, होटल में यहाँ का खाना ठीक नहीं। अब एक और नई रहेंगे, मोटरों में घूमेंगे। कोई भी तरह की जरा सी चीज़ शुरू हो गई हिन्दुस्तानियों में कि साथ जुड़े भी उनमें त्याग नहीं। त्याग करना सीखा ही स्नानागार चाहिए। इनके गुसलखाने वरों में जाकर देखो तो, कैसे इनके माँ बाप रहते थे इनको साथ जुड़े स्नानागार चाहिए, वो भी अंग्रेजी ढंग नौकर नहीं तो ये attached Bath इसलिए नहीं का चाहिए। मैं इसलिए आज कह रही हूँ कि रखते एक ही रखते हैं कि बाबा सफाई करना इसने बड़ा परेशान कर दिया मुझे। गणपति पुले पड़ता है। आप लोगों के नौकर चाकर हैं तो में उनके लिए अलग से मैंने स्नानागार बना दिए, चलो दस दस Bathroom रख लिए। पर ये बाबा अंग्रेजी बना दिए। पर पहले मैंने हिन्दुस्तानी सब आदतें आपको अपने स्वयं की शक्ति बनाए, मैंने सोचा हिन्दुस्तानी को हिन्दुस्तानी से दूर ले जाएंगी। फालतू चीज़ों में आपका पसन्द आएगा और अंग्रेजों को अंग्रजी बना दिया। तो ये फ़रमाते हैं कि नहीं, हमको अंग्रेजी जाना, ये सब आपको एक बहुत ही ही चाहिए। बताओ, मैंने कहा लोटा लेके जंगल सर्वसाधारण मनुष्य बनाते हैं। में जाओ, ये ही तुम्हारा इलाज है। सालों भर ऐसे ही जाते रहे और अब बड़े साहब हो गए हैं Beauty Parlour में जाएंगी। शक्ल तो वही attached bathroom के लिए। तो बेचारे अंग्रेजों रहती है। वहाँ पैसा खर्च करेंगी, वहाँ ये करेंगी। ने जो परदेसी foreigner थे. बिचारों ने कहा, माँ हमारे पूना में ब्राह्मणों की औरतें Sleev less हमें तो हिन्दुस्तानी अच्छे लगते हैं, क्योंकि बड़ा पहनेंगी, काला चश्मा लगाएंगी और वो मोपेड नहीं । आज कल हम माडर्न क्या हो गए मेरी समझ में नहीं आता। अब इन लोगों को घरों में ध्यान जाएगा। फालतू बातों में आपका ध्यान औरतों के आजकल चला हुआ है कि গাঁ

करो। पहले बैसगी हो जाओ, हिमालय पे जाओ एक टाँग पर खड़े रहो। फिर कपड़े बिल्कुल कम पहनो। नदी में जाके नहाने का और वैसे ही गीले कपड़ों से ध्यान करो। सारे कष्ट शरीर को पर बैठकर घूमेंगी। मेरे समझ नहीं आया। पूना में जो कि पुण्य पटनम है. ये क्या पुण्याई का इन्तजाम है? इस तरह से हम लोग विदेशी चीज़ को ले रहे हैं, बगैर सोचे कि इसमें शिव का तत्व कितना है? शिव को देखो नग-धड़ंग बैठते देते थे, और गुरु लोग अब भी मारते-पीटते हैं। हैं अपने ऐसे! वो अपने बारात में भी नन्दी पर बैठ कर गए। नन्दी क्यों? क्यों नन्दी उनका शिष्य है वो जो बोलेंगे उस पर गर्दन हिलाता है। कुछ भी बोलें तो इसलिए नन्दी उनका सबसे होना है वो जम जाता है। स्थिति है। और आप प्यारा शिष्य है। अब इस पे बैठ के वो वहाँ लोगों को ऐसे ही पार करा दिया, अब वो पहुँचे विवाह करने तो पार्वती जी को तो कुछ objection नहीं था पर उसके भाई साहब जो विष्णु थे वो जरा कुछ घबराए कि ये क्या चला आ रहा है मिया? मेरा ये मतलब नहीं कि ऐसे दूल्हे आप बनकर जाइए, ये मतलब नहीं। इसको छांटना है, खत्म करना है। इसके लिए पर तो भी उसमें ताम झाम दुनिया भर की चीजें करा कर के और वो खर्चे में डालने से फायदा नहीं। समझदारी, समझदारी आपका अलंकार नहीं। किसी भी तरह का द्रविड़ी प्राणायाम करने है हर चीज़ को मान्य कर लेना, हाँ ठीक है । जो की ज़रूरत नहीं। पर एक चीज ज़रूर है कि भी है ठीक है, खाना ठीक है। अब वो किसी के यहाँ खाना खाने जाएंगे और उसकी बुराई है। धीरे-धीरे कम करो। अस्वाद अन्दर आना करते रहेंगे। मुँह पर नहीं करेंगे घर पे आके चाहिए, बहुत जरूरी है। अस्वाद एक बड़ी करेंगे। अरे क्या खाना बनाया था। किसी के यहाँ भारी चीज़ है, लोग बहुत नाराज़ हो जाते हैं। ग़र बहुत सताते हैं। ऐसे थोड़े ही बैठे बिठाए पार करा दे। न न, काफी आफत कराते हैं और तब उसके बाद लोग पार होते हैं। पर उनका जो पार बाकी की पीछे की चीज़ें तो चल ही रही हैं सब। वो आफत तो चल ही रही है। अब उसको क्या करें? तो उसको ही छाँटना है। इन सब चीजों को जो हमने जोड़ लिया है दुल्हा उपद्रव करने की जरूरत नहीं, कोई वैराग्य लेने की ज़रूरत नहीं, घर बार छोड़ने की ज़रूरत अपना ये कम करना चाहिए, कम करते जाना अच्छा खाना बना हो तो बीबी से कहेंगे वैसे बनाओ। सारी जिसको ‘जिह्वा लोलुप्य’ संस्कृत में कहते हैं हिन्दुस्तान में बहुत ज्यादा है । हद से ज्यादा है। इसको कुछ कम करना चाहिए। ये लोग आपका खाना खाते हैं मैंने कभी नहीं सुना किसी ने शिकायत की है। हालांकि इन लोगों का अंग्रेजी खाना तो कोई खा नहीं सकता आप लोगों में से। लेकिन इस तरह से अपने ऊपर ये जो लेपन करा रखा है इससे आनन्द में विभोर नहीं हो सकते। शिवजी का जो आनन्द है उसको तो बताने के लिए लोगों ने कहा था कि आप वैराग्य खाना उनकी समझ में नही आया तो थाली तुम फेंकेंगे कहीं मारेंगे पीटैंगे नौकरों को, पता नहीं क्या। गर आपके अन्दर अस्वाद आ जाए तो बहुत हलवाइयों की दुकानें भी बन्द हो जाएंगी मेरे ख्याल से। बहरहाल मेरा कहने का मतलब ये है कि शरीर का माध्यम नहीं रखना। शरीर के लिए comfort है समझ लीजिए गर आप पलंग पर सोते हैं तो ज़मीन पे नहीं सो सकते तो दस दिन जमीन पे ही सोइये। कैसे नहीं सो सकते? अपने शरीर को अपना गुलाम बनाए बौर नहीं हो सकता। अपने comfort की जो बातें हैं वो

रुपये महंगा हो गया तो औरतें उनकी बड़ी फोटो आई, सब बड़ी सजी-धजी। मैंने कहा ये पन्द्रह रुपये का तो उनके पाउडर ही लगता होगा। ये लोग काहे की वो जा रहे हैं कि हम जा रहे हैं खत्म करना चाहिए। बहुत से लोग हैं बो बस से नहीं चल सकते, क्योंकि वो मोटर से ही जा सकते हैं। फिर इसकी मोटर माँग, उसकी मोटर मांग, इसमें बैठ, उसमें बैठ! पर कोई भी ये नहीं सोचेगा कि चलो आज बस से चलकर देखें क्या अब हड़ताल पे, काहे के लिए? क्योंकि पन्द्रह होता है? और पहले तो बस भी नहीं थी लोग रुपए बढ़ गए, और तनख्वाह आप की इतनी चलते ही थे। हम जब स्कूल में पढ़ते थे पाँच बढ़ गई वो किसी को नहीं दिखाई दिया। हम मील रोज सर्वेरे चल के जाते थे हमारे घर में अपने नौकर को पहले समझ लो कुल मोटरें थीं सब कुछ था। ये माँ-बाप थे हमारे। पर बीस-पच्चीस रुपए देते थे. आज ढाई हजार हमें खुद बहुत शौक़ था पैदल चलो और जूते रुपए मिले तो भी वो शिकायत करेगा उसको नहीं पहनते थे, चप्पल नहीं. हाथ में लेके चलते कपड़े भी मिलते हैं सब मिलता है। कितनी भी तनख्वाह बढ़ जाए तो क्या दाम नहीं बढ़ेंगे। जहाँ पे चलना। आप लोग भी थोड़ा सा जूतों तनख्वाह ज्यादा मिलती है बहाँ दाम बढ़ते हैं। वो के बगैर, चप्पल के बगैर चलना सीखिए। बहुत सोने की बताते हैं कि जब लंका में सोने की ज़रूरी है। इससे बड़ा फायदा होगा। ज़मीन को ईंट मिलती है। एक साहब गए सोने की ईट लेने तो देखा क्या है कि एक दिन उन्होंने काम किया लगेगा। हर तरह की चीजों में हम लोग बहुत तो उनको दो ईंटें मिलीं। उसके बाद वो नाई के पास गए उनकी शेव करने के लिए तो उसने नवाब लोग जैसे थे वैसे अब हम लोग हो गए केहा कितना दाम कहने लगा कि दो ईंटें। जैसे । मातत थे क्योंकि vibrations की वज़ह से अच्छा था जमीन भी vibrations मिलेंगे और आपको भी अच्छा ज्यादा आराम पसन्द हो गए हैं पहले दो चार हैं, और क्या मिला? उससे कुछ नहीं मिलने कमाई वैसा खर्चा एक समझदारी की बात है वाला। इस सब की गुलामी करते करते सारी तो लग गए उसी के पीछे में कि माँ ये महंगाई हो गई, ये हो गया। मेरे तक शंका आता है। मैंने कहा तनख्वाह कितनी बढ़ी तुम्हारी? बहुत-बहुत अन्दर धारण करना है। उसके लिए ज़रूरी है बढ़ गयी फिर तुम्हें महंगाई का रोना कैसा? जब कि कोई भी चीज़ महत्वपूर्ण नहीं, आज ये तनख्वाह बढ़ेगी तो महंगाई तो होनी है। आपकी जिन्दगी बीत जाएगी। इस गुलामी को कम करना है और सिर्फ परम शिव के तत्व को अपने कपड़ा पहनना है तो कल वो कपड़ा पहने तो उसके साथ वो मैचिंग करना है तो उसे साथ वो हो सकता है? सर्वसाधारण चीज़ है ग़र हमें आ चाहिए। जो कुछ मिलता है ले लो, जो कुछ आता है उसको पहन लो। कोई ह्जज़ नहीं है पा लें अब गाँधी जी जैसे थे बड़े ही जबरदस्त। उसमें आप पर कोई आफत नहीं आने वाली। उनके साथ मैं थी, आश्रम में रहते थे मुझे कुछ उल्टे आपको समाधान होगा कि मैं समाधानी हूँ। नहीं होता था पर सब लोग रोते थे। क्योंकि जो भी मुझे मिला वो मैं समाधान से स्वीकार्य उनका कहना था कि सबके बाथरूम साफ करो। करता हूँ। आजकल हमारे वहाँ, पता नहीं यहाँ सब मेहमानों के, सब के. वो जमादार नहीं रखते भी है कि नहीं, बो गैस का सिलेण्डर सोलह थे। अपने कपड़े खुद धोओ, अपनी थाली खुद तनख्वाह तो बढ़ जाए महंगाई न बढ़े ऐसा कैसे जाए तो सामाजिकता में भी हम शिव का तत्व ब ास

जो बिल्कुल मूलत: गलत चीज़ है तो अब क्या मिटने. वाला है? शिवजी को था क्या जाति धोओ, खाने में सब खाना उबला हुआ। उसके ऊपर सरसों का तेल आप ले सकते हैं। अब बताइए कितने लोग हिन्दुस्तानी खा सकते हैं वो पाति? वो तो एकाक्ष को, किसी की टांगें टूटी खाना? बस दो तीन दिन रहते थे और भाग जाते हुई है. किसी का हाथ टूटा हुआ है, ऐसे सब थे ये हालत थी। अब आप लोगों को भी लूले वूले लेकर के और अपनी बारात में ले गए थोड़ा अस्वाद सीखना चाहिए। अव अस्वाद के लिए ऐसा है, मेरे से पता नहीं कैसे छूटता है. ज्यादा ये कटाक्ष रखना कि हम तो भई बहुत पर आप गर खाना थोड़े दिन उबला ही खाएं तो विशेष हैं, कि खाना जो ऐसा होना चाहिए, फिर कैसे क्या रहेगा? कोई माँ अपने बच्चों को ये कायस्थों का अलग, ब्राह्यणों का अलग और नहीं कहेगी लेकिन मैं क्या करू। इसमें शिव थे वो ऐसे ही शिव तत्व में आपके लिए बहुत चा जातियों का अलग, राजपूतों का अलग, सब का अलग-अलग, अब वो ही खाना खाइए। मुझे कभी भी समझ में नहीं आता, आज तक समझ में नहीं आया, कि ऐसे-ऐसे अलग-अलग खाने में ज्यादा आनन्द आता है तो ये लोग क्यों ऐसा ही खाना मांगते हैं? क्या वजह है? बंगालियों को तत्व खराब हो रहा है। सब लोग गर खाने-पीने में लगे रहें तो आपका शिव तत्व गायब हो जाएगा और सारी मेहनत ही बेकार जाएगी। इसलिए खाने पीने में बहुत ज्यादा रत रहना कोई अच्छी बात नहीं। पहले जमाने में लोग एक आध दिन उपवास भी करते थे, कुछ न कुछ बंगाली, मद्रासियों को मद्रासी। तो मैंने एक बार अपना त्याग करते थे। पर आजकल बड़ा मुश्किल है ऐसा कहना। आप गर संतुष्ट हो जाएं, समाधानी स्टेण्डर्ड खाना क्यों नहीं है? कहने लगे माँ ये कहा कि हमारे हवाई जहाज़ों में कोई अच्छा है, बताइए कि हिन्दुस्तान का स्टेण्डर्ड खाना कौन हो जाए, तो आपको कोई जरूरत नहीं बिल्कुल जरूरत नहीं है कि आप हर समय खाने पीने की बातें करें और अपने यहाँ खाने पर बुलाएं| फिर हमारे यहाँ एक जाति-पाति बहुत है, का, ढिकाने का इसलिए सब तरह का खाना कि अगर कायस्थ है तो अलग है, या हिन्दू है ब्राह्यण है तो अलग है, फलाने अलग हैं। अब भी है। अब क्या होगा कि जो कायस्थ सहजयोगी मिठास, मधुरता होनी चाहिए। मुस्कुराहट में भी सा है? ये तो बात सही है। तुम ग़र कोई खाना बनाओ तो कहेंगा ये तो मद्रासी का है, मद्रासी कहेगा ये क्या बिहारी है, फलाने का, ढिकाने खाना आना चाहिए। क्योंकि यहाँ से सब चीज़ शुरू हो जाती है ये बेखरी, जुबान में भी एक मा कभी-कभी ऐसा लगता है कि रावण निकल रहे हैं वो सब एक हो गए, ब्राह्मण सहजयोगी एक हो गए। अरे भई अब तुम सहजयोगी हो गए हैं इनके मुँह में से। तो बोलने का क्या कहना, अब भी काहे को ये कर रहे हो ब्राह्मण और ये जब बोलते हैं तो लगता है पता नहीं ये कौन वो। फिर कायस्थ कायस्थों को खाने पर बुलाएंगे चण्डिका बोल रही है कि क्या बोल रही है। और ब्राह्यण ब्राह्मणों को खाने पर बुलाएंगे। अब ये इस तरह की मुर्खता आर करनी है तो सहजयोग में काहे को आए? सहजयोग में जाति इसमें शिव तत्व कहाँ है? शिव तो प्रेम का एक पाति औरतें बडी तमाशा हैं और आदमी भी बहुत तमाशा हैं। अजीब-अजीब चीजें ऐसी बन गई हैं महासागर है। वो तो राक्षसों को भी उन्होंने , ये कुछ नहीं। आपकी वो ही नहीं मिटी

गाँधी जी ने कहा खद्दर पहनो, तो लोग बिल्कुल खद्दर पहने। उन्होंने ऐसा बनाया था, खूब वरदान दिया, राक्षसों को भी जिसने वरदान दिए ऐसे शिव तत्व को हमारे अन्दर ग़र लाना है तो हम ऐसी छोटी छोटी बातों में ठिकाने लगाया था सबको। पर अब आपको कैसे उलझ सकते हैं? ये हम कैसे कर सकते अपने को ठिकाने लगाना है। क्योंकि आप स्वयं हैं? ये बताइए। जिस तरह से हम एक दूसरे की आत्मा के प्रकाश, आप स्वयं श्री शिव के शरण आलोचना करते हैं. किसी को कोई कहता है ये में आए हैं। आप खुद को खुद ही ठीक करें, ऊँचा है, कोई कहता है नीचा है, ये शिव की आपको दूसरों को ठीक करने का नहीं है, बस बात नहीं। शिव के अन्दर प्रेम की धाराएं बह रही हैं और इस प्रेम की धारा में बहते हुए आत्मसाक्षात्कारी है। कितने थे पहले? अरे दो आपको ऐसी उल्टी सीधी बातें करनी नहीं चार थे बिचारे उनको भी लोग मार डालते थे। चाहिए। और उससे कोई फ़ायदा नहीं होने वाला। आपसी प्रेम, आपसी समझ और आपस अपने को ठीक करें और धन्य समझे कि आप आज आप हजारों की तादाद में हैं तो इस चीज को शुरु करें। बातचीत में मिठास, ऊपरी तरह से का आनन्द उठाना चाहिए। अब ये बात ज़रूर है नहीं हृदय से, जो भी बात आप हृदय से करें कि सहजयोगी आपस में लड़ते नहीं, ये तो मैंने उसको कोई नहीं बुरा मानता। इसलिए हृदय से देखा है। आपस में मिलते हैं तो बड़े प्रेम से बात करें। अपने वच्चों से, बड़ों से, जो मर्यादाएं मिलते हैं, पर तो भी अभी भी ये छोटी-छोटी हैं उसको पालते हुए. आप अपने को सुखी बातें जो कि वैयक्तिक हैं, खाना पीना, उठना-बैठना, बनाने से दूसरों को भी सुखी बनाएंगे। लेकिन पहनना, ये ज़रा सा ठीक करना चाहिए। ये ग़र आपके अन्दर ग़र ये आशीर्वाद शिव का न हो कि जिससे आप समाधानी बनें, और कोई चीज़ से हो नहीं सकता। इसलिए अपनी ओर ये भी नजर रखें कि मैं समाधानी हूँ कि नहीं? मुझे समाधान है या नहीं? मैं छोटी-छोटी बात को ठीक कर लें तो बड़ा अच्छा होगा। आपका चित्त जो है वो हृदय की तरफ जाएगा और इन सब चीज़ों में नहीं रहेगा। इन सब चीज़ों में नहीं रहेगा परदेस में ये बीमारी ज्यादा है, इसलिए कि वहाँ एक से एक निकले हुए हैं, वो बनाते लेकर के और दूसरों पर भी बिगड़ता हूँ या हैं अलग-अलग तरह की चीजें और जिसने वो उसके नुक्स निकालता हूँ तो कुछ तो भई मेरे चीजें पहन लीं वो बड़ा भारी अपने को सोचता है, मैं बड़ा रईस हूँ। ख़ासकर इटली में ऐसा बहुत ज्यादा प्रकार है। लेकिन ये सब बातें आपको कोई चीज़ दिखाई नहीं देगी आप साफ आपको इसमें नहीं पड़ना चाहिए। आप अपने कैसे करेंगे? इस सफाई की बहुत जरूरत है सादगी से रहो। अपने देश में सादगी से रहने और इस सफ़ाई से ही आप उस परम पिता वाले जो होते हैं, उन्हीं का नाम हुआ हैं, औरों का नाम नहीं हो सकता। पहले जमाने में लोग और लोगों को भी इसके दर्शन हो सकते हैं। अन्दर बहुत बड़ी खराबी है। उस खराबी को देखने से ही आप स्वच्छ हो सकते हैं। जब तक परमेश्वर के दर्शन कर सकते हैं, अपने अंदर, अनन्त आशीर्वाद।

[Hindi translation from English talk, scanned from Chaitanya Lahari]

५.. अपने अन्दर देखना होगा कि आपमें क्या त्रुटियाँ हिन्दी भाषा में मैंने बहुत लम्बा प्रवचन दिया है क्योंकि विदेशी सहजयोगी यहाँ पर बहुत हैं। मेरा चित्त कहाँ जा रहा है। मैं कहाँ जा रहा कम हैं। मैं उन्हें वता रही थी कि शिव तत्व हूँ। मैं क्या कर रहा हूँ। आपको चाहिए कि आपके हृदय में है और उसका प्रतिबिम्ब किसी अपने को देखें अन्य लोगों को नहीं। पश्चिम के एक चक्र पर नहीं है, सभी चक्रों पर है – दर्पण लोग समझते हैं कि दूसरों की आलोचना करना की तरह। जो भी कुछ आपका दिखाई देता है वह इस दर्पण में है, शीशे में आपका क्या प्रतिबिम्न है? क्या आपका प्रतिबिम्ब स्पष्ट और कहते हैं? किसी ने आपके लिए बहुत सुन्दर शुद्ध है? क्या आपने अपने हृदय को शुद्ध किया? प्रतिबिम्ब करने वाले शीशे को क्या आपने साफ किया? यही चीज़ शक्ति को देखनी है। हिन्दी में मैंने विस्तार पूर्वक बताया कि हमारे (यड् रिपु) छः दुश्मन हैं। एक के बाद नहीं है, ऐसा कहना सहजयोगियों के लिए मना एक ये हमें भ्रष्ट करने में लगे रहते हैं। इन छः में से पाँच के विषय में मैंने उन्हें बताया। भारत उनका अधिकार है। मुझे ये पसन्द है, यह मुझे पसन्द नहीं है। आप कौन हैं? आप ऐसा क्यों प्रबन्ध किया है, उसी के घर में बैठकर उसे कष्ट पहुँचाने के लिए आप कहते हैं कि मुझे ये पसन्द नहीं है। आखिरकार आप हैं कौन और अपने बारे में क्या सोचते हैं? निर्णय करने वाले आप कौन होते हैं? मुझे ये पसन्द है और ये है। ऐसा करना निषिद्ध है । भगवान शिव को देखें उन्हें सब कुछ पसन्द है, उन्हें सॉँप भी पसन्द हैं। वे कैसे वस्त्र पहनते हैं? सभी पशु, सभी चीज़ें जो हमें अच्छी नहीं लगतीं उन्हें वे सब पसन्द हैं। अपने विवाह के समय अपनी बारात में वे सभी लूले-लंगड़े लोगों को साथ ले गए। किसी की एक टाँग थी, किसी की एक आँख थी और किसी का कोई अंग टूटा हुआ था ऐसे सभी लोगों को वो अपनी बारात में ले गए उन्हें ये सब लोग बहुत प्रिय थे और इनकी वे देखभाल करते थे क्योंकि शिव ही आनन्द का सरोत हैं वे ही हमें आनन्द प्रदान करके आनन्दित करते हैं । वास्तविक आनन्द तभी सम्भव है जब उनका प्रतिबिम्ब आपके हृदय में हो परन्तु यदि आपका हृदय इंधर-उधर की चीजों से भरा हुआ है तो यह मलिन हो जाता है-अत्यन्त मलिन दर्पण। में छठे दुश्मन-कामुकता-का बहुत अधिक अस्तित्व नहीं हैं। यहाँ यह बहुत कम है। परन्तु विदेशों में, पश्चिमी देशों में इसका भयंकर प्रभाव है क्योंकि वो लोग सोचते हैं कि कामुकतामय जीवन ही जीने के योग्य है। इससे परे शिव हैं और इसी कारण हमें समझना चाहिए कि हमारे हृदय में शिव का पूर्ण प्रतिबिम्ब तभी सम्भव है जब हम अपने हृदय को शुद्ध कर लें । दूसरों के प्रति द्वेष, काम क्रोध, ईष्ष्या-ये सभी प्रतिक्रियाएं हमारे भावना, अन्दर कार्य करती हैं और हमारा हृदय पत्थर की तरह हो जाता है। यह प्रतिबिम्बित नहीं हो सकता। तो यदि आपने शिव का ये गुण प्रतिबिम्बित करना है – कलियुग में ऐसा होना बहुत आवश्यक है यद्यपि बहुत कम लोग शिव की छवि अपने चरित्र में प्रतिबिम्बित कर पा रहे हैं-तो आपको

अत्यन्त हैरानी की बात है कि भारतीयों ज्योतित् कर दिया जाए? उस प्रकाश में वे के मुकाबले पश्चिमी सहजयोंगी सुख-सुविधाओं अपनी त्रुटियों को देख सकेंगे और स्वयं को का विशेष ध्यान नहीं रखते। यद्यपि वे अत्यन्त भौतिकतावादी वातावरण से आते हैं फिर भी उन्हें सुख-सुविधाओं की बहुत चिन्ता नहीं होती। सकते हैं कि आप क्या कर रहे हैं, आपमें क्या वे कहीं भी रह सकते हैं। कहीं भी वे प्रसन्न रह सकते हैं। यह बहुत अच्छी स्थिति है जो उन्होंने भिन्न बना रही है और आपको कौन सी चीज प्राप्त कर ली है। भारतीय सहजयोगियों को भी व्यर्थ की चीजों पर चित्त देना छोड़कर यह सिर, विचारों, मस्तिष्क और भावनाओं से ऊपर स्थिति प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए है। यह सीमा अब आपको पार करनी होगी। फ़िजूल की चीजों पर अपनी शक्ति बर्बाद करने की कोई आवश्यकता नहीं। केवल तभी आपको प्रतिक्रिया नहीं करेंगे, कोई भी चीज़ जब आपके अपने लिए, अपनी आत्मा के लिए वास्तविक लिए महत्वपूर्ण न रह जाएगी तभी भगवान शिव भक्ति प्राप्त हो पाएगी। आज इसी चीज़ की कार्य करेंगे। तो कुछ चीजें अब भारतीयों ने आवश्यकता है कि आपकी आत्मा आपके चरित्र सीखनी है और कुछ विदेशी सहजयोगियों ने। आचरण और व्यक्तित्व से झलके। यदि ऐसा हो आपने बहुत से कार्य किए हैं, मैं आपको जाता है तो आपने वह उपलब्धि प्राप्त कर ली है जो सहजयोग आपके लिए करना चाहता था। आज यह बहुत महत्वपूर्ण हैं, बहुत महत्वपूर्ण। आप यदि समाचार पत्र पढ़ना चाहें तो नहीं पढ़ सकते क्योंकि परिवर्तित होना आपकी आवश्यकता ठीक कर लेंगे, वे स्वयं अपने गुरु बन जाएंगे। यह बात सफल हुई। अब आप लोग स्वयं देख त्रुटियाँ हैं, कौन सी चीज़ आपको अन्य लोगों से उन्नत करेगी. क्योंकि सदाशिव का स्थान आपके जब आप किसी भी चीज़ के प्रति धन्यवाद करती हूँ। लोग सोचा करते थे कि मैं कुछ नहीं कर सकती। आप लोगों ने मद्यपान और सभी प्रकार की बुरी आदतें छोड दी हैं। अब आप व्यभिचारी भी नहीं हैं। आपका चित्त अत्यन्त पवित्र है। आपने बहुत से प्रशंसनीय कार्य किए हैं। परन्तु अभी भी बहुत से दोष बने हुए हैं जिन्हें स्वच्छ करना और बिल्कुल समाप्त कर देना आवश्यक है। आपमें राजनीति अधिक नहीं है फिर भी कभी कभी राजनीति होती है। झुण्ड भी बनाए है। मानव का आत्मत्व, आत्मचेतना और आत्मा में परिवर्तन और अब समय आ गया है जब यह कार्य हो जाना चाहिए। विकास की यह प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी है। बहुत से लोग ये प्राप्त कर चुके हैं। पुराने सन्त और गुरु, सच्चे गुरु अपने जाते हैं। ये सब चीज़ें समाप्त हो जानी चाहिए शिष्यों को सिर के बल खड़ा करके और अन्य क्योंकि शिव का इनसे क्या लेना-देना। पूरा विधियों से वर्षों तक उनकी परीक्षा लिया करते ब्रह्माण्ड उनके चरणों में है। एक झुण्ड यहाँ, थे। कभी वे उन्हें जल में खड़ा कर देते थे और एक वहाँ। इसका शिव की दृष्टि में क्या महत्व कभी किसी अन्य तरीके से परखते थे। गुरु है? यह तो उनके मस्तिष्क में ही नहीं आ शिष्यों को बुरी तरह से पीटते थे तथा उनसे बहुत ही कठोर व्यवहार करते थे और तब किसी एक-आध को आत्मसाक्षात्कार मिला करता था। अब मैंने सोचा कि उन्हें शुद्ध करने में हीहै। आप सबको चाहिए कि शिव तत्व को उल्टे-सीधे वस्त्र पहनाने में, हिमालय पर या गोबी मरुस्थल भेजने में बहुत अधिक समय लगेगा। इसलिए मैंने कहा कि क्यों न उन्हें पहले सकता। महान व्यक्ति विशाल सागर की तरह बहुत से किनारों को छूकर भी महान सागर सम बना रहता है। शिव तत्व भी ऐसा विकसित करें और तब आनन्द को देखें-प्रेम के इस महान सागर के आनन्द को ! परमात्मा आपको धन्य करें।