Birthday Puja

New Delhi (भारत)

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Birthday Puja 21st March 2000 Date: Place Delhi: Type Puja

[Original transcript Hindi talk, scanned from Chaitanya Lahari]

पहले अंग्रेजी में बातचीत की क्योंकि यहाँ हृदय दूसरों के सामने खाल सकें और उन्हें परदस से बहुत से लोग आए हैं और आप को अपने हृदय में बसा सकें। और मन काई एतराज नहीं कि हम थोड़ी देर अंगरेजी में से हमको यह सोचना चाहिए कि जिस मन में प्यार नहीं है वो संसार में किसी भी चीज़ का अधिकारी नहीं बातचीत करें। हालांकि यह तो दिल्ली वालों का कमाल है और उसी के साथ उत्तर प्रदेश के होता क्योंकि जो भी चौज़ उसे मिलती है. वो भी जुट गए और राजस्थान के लोग भी किसो भी तरह से तृष्त नहीं हो सकता। उसमे लाग, वो जूट गए और हरियाणा के लोगों ने भी मदद की। तृप्ति नहीं आ सकती। लेकिन जब आपके मन इन सब नं मिल करके इतने प्यार से बड़ा ही में ही एक तृप्ति का सागर है तो ऐसी कीन सी सुन्दर मन्दिर जैसे बनाया है। मैं तो खुद ही चीज़ है जिससे आप तृप्त न हों। ये चीज़ें जब दखकर हैरान हो गई। क्या यहाँ पर ऐसे कारीगर आपक अंदर हो जाती हैं और समाधान आपक लोग हैं? मैं तो नहीं जानती थी! सारी कारीगरी अंदर समा जाता है तो समाधान की परिश्रि को कहाँ से आई और कहाँ से उन्होंने सब कुछ बना कोई समझ नहीं सकता। उस समाधान के व्यापा को काई समझ नहीं सकता और इतना मधुर, कर यहाँ सजाया। यह समझ में नहीं आता। इस कदर इस देश में हुनर बाले लोग है ये भी मुझे इतना सुन्दर वा सब कुछ होता है कि उसे दंखते नहीं मालूम था, और वा भी म्यार का हुनर! प्यार ही बनता है। समझ में ही नहीं आता कि ये में की शक्ति। प्यार की कला। सबसे प्यार करने क्या कर रहा हूँ और दूसरे क्या कर रहे हैं। मैं की कला। ये जिसमें आएगी वहीं ऐसी कलात्मक क्या कह रहा हूँ और दूसरे क्या कह रहे हैं और कृति कर सकता है। इसकी कला सीखनी चाहिए ये किस तरह से अपने प्यार का परिधान मेरे कि हम किस तरह से अपने वाचा से, मन से, ऊपर डाल रहे हैं। किस प्रकार से हम उनके ऊपर अपने प्यार की वर्षा कर रहे हैं। बस रात बुद्धि से कलाकार बने। प्रेम के कलाकार बनें। और कैसी बात करने से हम दूसरों का सुख दे दिन यही चिन्ता लगी रहती है कि आज उनसे सकते हैं और आनंद दे मिलना है तो उनसे कौन सी प्यारी बात करी सकते हैं। कौन सी प्यारी बात एसी होती है जो हम कर सकते हैं । जाए। उनसे कौन से हित की बात करी जाए क्योंकि बेकार की बातें करने की जो व्यवस्था है एक तो वाचा, से हुआ फिर बुद्धि से हम क्या ऐसे सोच सकते हैं कि कौन सी बात से लीगों उससे सिर्फ नुकसान हुआ और फायदा कोई से प्यार जताया जाए। किस तरह से हम अपना हुआ नही। क्रोध, जो मनुष्य में होता है उससे

और भी ज्यादा हानि हुई। ता आपको कुछ मनुष्य में अनेक तरह के दोष हैं। अनेक दीषों से सिखाने की जरूरत नहीं कि हिंसा मत करो । परिपूर्ण ऐसे मनुष्य को आप बहुत सुन्दरता से किसी के साथ दुष्ट व्यवहार मत करो। किसी एक अच्छे अपरिचित स्वयं का ज्ञान करा सकते को नष्ट नहीं करो। किसी का पैसा मत खाओ। हैं। अपने अंदर जो स्व है, अपने अंदर जो ये सिखाने की जरूरत नहीं। अपने आप ही इतने आत्मा है उससे जब आप परिचित हो जाते हैं तो जान जाते हैं कि औरों को भी ऐसे करना चाहिए अपने आप ही, मेने कहा कमल सुन्दर हो गए। और भी अपने को गए क्योंकि आप सिर्फ अपना सुगंध और कुछ नहीं जानते। और उस के जानें। ये खाए हुए हैं इनको पुष्प हो मालूम नहीं कि ये कितना परम धन अपने अंदर समेटे हुए हैं। तो इनको ये देना ही चाहिए और अजीब सा ही अनुभव है। एक बड़ी अभिनव इनकी यह पाना ही चाहिए। इस तरह की बातें जब होनी शुरू हो जाएंगी तो आप लोग अपने ऊपर जिम्मेदारी ले लेंगे कि हमें भी और लोगों दना जानते मजा है उसका आनंद उठाना एक देने का जो प्रकृति के ही लोग इसे कर सकते हैं। आप लोग इस चीज के अब मालिक हो गए और ये आपके पास धरोहर रखा हुआ जो था उसका पूरा को उनका यह परम धन देना ही चाहिए। उनकी उपयोग आपने कर लिया। वो चीज सब खुल कुंजी आपके पास में है और उसे आप किसी गई, उद्धृत हो गई। अब उसका मजा उठाने की बात है। दुनिया में अनेक लोग अनेक तरह के वो किस कदर आपको मानेंगे और किस कदर होते हैं लेकिन आपको छू नहीं सकते । आप लोगों को परेशान नहीं कर सकते। गर कुछ हो लोगों के सामने यही है कि जितनों को हो सके ही सकता है तो वो भी आप लोगों में समाएँ, सहजावस्था में ले आएँ। उनको यह धन दे दें आपके साथ हो जाएँ। आपकी जिन्दगी देख और जब ये चोज घटित हो जाएगी तो आप खुद करके वो खुद भी कुछ बदलने की नहीं तो कम तरह से भी यह महान दान दे दीजिए तो देखिए आपके प्रति कृतज्ञ होंगे। सबसे बड़ा कार्य आप इस कदर उसमें मग्न हो जाएँगे. खुश हो जाएंगे और से कम प्रवृत्ति रखें कि हम भी बदल जाए। इस एक तरह का आनंद जिसको वर्णित नहीं सारे संसार को बदलने का ठेका तो मैं नहीं किया जा सकता, आप प्राप्त करेंगे। इस चीज कहती मैंन लिया है लेकिन आप लोग इसका को करना है। आज हमारा जन्मदिन आप लोगों ठेका ले सकते हैं। इस संसार को अगर आपने ने मनाया, बहुत इसका धन्यवाद कहना चाहिए और आपने इतनी खुशी से सब किया है। किन्तु मेरे लिए तो ये है कि हर साल, हर साल सहज योग इतना बढ़ता रहा और इसकी जो मर्यादाएँ हैं मैं भी नहीं समझ पा रही हूँ। पर आप लोगों को भी निश्चय कर लेना चाहिए कि आज माँ के बदल दिया, इसमें ऐसे सात्विक प्रवृत्ति वाले लोग आपने अगर निर्माण कर दिए तों फिर आगे इससे और कुछ करने की बात ही नहीं रहती। सिर्फ इतना ही जरूरी है कि आप इसमें संलग्न हो जाएं। इसमें कार्यरत हों कि हम कितने लोगों को परिवर्तित कर सकते हैं । माना कि साधारण जन्मदिन के दिन लोग सब कोशिश करेंगे कि.

आनंद में आ जाएं। श्रीराम का ज तरीका था दूसरों का परिवर्तन करें और अपना तो हो ही गया लेकिन दूसरों का भी करना चाहिए। इससे उससे मनुष्य बहुत ही ज्यादा गंभीर हो गया था। उसका जीवन बहुत ही गंभीर हो गया था। तो उन्होंने ये तरीका निकाला कि मनुष्य खुल जाए। पूर्णतया आपको इसकी पूर्णता मिलेगी। अभी जो आनंद है वो सीमित हैं परन्तु जब आप दूसरों में बांटेंगे और दूसरों में इसकी प्रतिध्वनि खुल करके खेले वो बात अब सिर्फ सहजयोगी आएगी, उसके बारे में आप जब परिचित होंगे। कायदे से कर सकते हैं और आपस में प्यार से उसको जब समझेंगे तो एक बहुत ही अभिनव होली खेल सकते हैं उसमें किसी को तकलीफ इस तरह का आनंद आपके अंदर जागृत होगा। दुःख देने के लिए नहीं किन्तु अपना आनंद मैं देख रही थी कि आपके जवान लडके, छोटे वर्णन करने के लिए और दूसरों को भी आनंदित तक बच्चे सब नाच रहे थे। मारे खुशी के सब कूद करने के लिए। सबको अनन्त आशो्वाद रहे थे। कृष्ण ने होली इसलिए मनवाई कि सब

[Hindi translation from English talk, scanned from Chaitanya Lahari]

वे संदैव आपका प्रेम देखकर मेरा रोम-रोम पुलकित हो उठा है और इस सुन्दर स्थान का सृजन करने वाले सभी सहजयोगियों के प्रति कृतज्ञता से मेरा मानव परस्पर प्रम नहीं कर सकते। दूसरों पर हावी हाने, उनसे घृणा करने या उनकी चीजें हथियाने का ही प्रयत्न करते रहते है हमारे हृदय भर गया है। इतने सुन्दर, इतने शान्त स्थल अन्दर यही गलत विचार भरे हाए श्रे. यही कारण की सृष्टि करने के लिए उन्हें कितना कठोर है कि इन धारणाओं को रोकने के लिए जो भी परिश्रम करना पड़ा होगा। इसकी तो में कल्पना संस्थाएं बनाई गई वी भी दृषित हा गई। स्वयं को ही नहीं कर पा रही हूँ| सहजयोग में किस प्रकार समझने का एकमात्र उपाय ‘स्वयं को पहचानना परस्पर गहन सम्मान एवं प्रेम से लोग कार्य करते हैं। जब आप स्वयं को पहचान लेते हैं तो आप हैं तथा ऐसी चीजों की सृष्टि करते हैं कि हैरान हो जाते हैं कि प्रेम करना और पाना हो महानतम कार्य है। अपनी अथम प्रवृत्तियां पर विश्वास ही नहीं होता! जिस स्थान पर आपने जीवन एवं प्रकाश की स्थापना की है यह इससे पूर्ण नियंत्रण करने के पश्चात् आप सामूहिक पूर्व बंजर था। आप लोग मेरा जन्मोत्सव मनाना चाहते हैं। मैं नहीं जानती कि जन्मदिन मनाने का प्रेम का आनन्द लेते हैं। सहजयोग में वह सब बहुत सहज है और अत्यन्त ही सहज रूप से कार्य करता है। यह बहुत सहज है परन्तु इसकी इतना क्या महत्व है। परन्तु जिस प्रकार से आप लोगों ने सम्मान एवं सूझ बुझ दर्शाई है उसे मैं मन्त्रमुग्ध हो गई हूँ। मैं समझ नहीं से दिल्ली से और पूर्ण भारत से आप सबको पाती कि मैने आप लोगों के लिए ऐसा क्यां गहनता में उतरना बहुत महत्वपूर्ण है। पूरे विश्व दखकर परस्पर प्रेम एवं सूझ-बूझ का आनन्द लेते हुए देखकर में बहुत प्रसन्न हूँ। मैने कभी आशा नहीं होली का शुभ दिवस है आज के दिन हम लोग की थी कि अपने जीवनकाल में ही मैं प्रेम होली खेलते हैं तथा एक दूसरे के प्रति प्रेम एवं विश्वास और शान्ति का यह सुन्दर संसार देख किया है कि आप सहजयोग का कार्य करें। आज एकता का प्रदर्शन करते हैं। यह ऐसा समय पाऊंगी। आज, मैं कहना चाहूंगी, यह सब दर्शांता दूसरों के लिए प्रेम एवं सम्मान के मूल्य को है कि हममें क्या करने की योग्यता है। हम. समझते हैं। अभी तक तो हमारे सभी सिद्धान्त तथाकथित, मानव अत्यन्त स्वार्थी, अपने तक है जब हम वास्तव में एवं धारणाएं इस नियम पर आधारित थीं कि सीमित और अपने लिए ही चिन्तित हैं। यही

कहा जाता है । परन्तु. आश्चर्य की बात है, लोगों के प्रति पूर्णंत: अनुगृहीत हैँ कि आपने इस आत्मज्ञान को अपनाया और इसका आनन्द अन्य आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके, आत्मज्ञान पाकर, लोगों के साथ लिया। स्वयं का ज्ञान होना अत्यन्त स्वयं को जानकर आप समझ जाते हैं कि अन्दर से आप कितने वैभवशाली एवं महान हैं और असाधारण चीज़ है। केवल मानव ही इस कार्य को कर सकता है। हीरा बहुमूल्य हो सकता है आप के अन्दर कितनी योग्यता है। आपमें ये सूझ-बूझ आ जाती है और अत्यन्त सुन्दर ढंग से इसकी अभिव्यक्ति होती है। परन्तु यह स्वयं अपने मूल्य को नहीं जानता। काई कुत्ता या अन्य पशु विशेष हो सकता है परन्तु वह नहीं जानता कि वह क्या है। लगा और आप सब लोग धीरे-धीरे परिपक्व हो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने से पूर्व मानव की रहे हैं। परन्तु आज में कहूंगी कि अब यह इतनी भी यही स्थिति होती है। आत्म-साक्षात्कार प्राप्त उन्तत होने में सहजयोग को काफी समय ट] बुलन्दी पर पहुँच गया है कि इससे बाहर जाना हो जाने के पश्चात् वह अचानक जान जाते हैं। लोगों के लिए कठिन कार्य है। जब आप स्वयं कि वे क्या हैं। और तब एकदम वे अत्यन्त विनम्र हो जाते हैं, अत्यन्त प्रेममय हो जाते हैं । को पहचान लेते हैं, वास्तविकता तथा पूर्ण सत्य को मान लो किसी व्यक्ति को यदि पता चले कि जान लेते हैं तब उस ज्ञान में विलोन हो जाते हैं। नि:सन्देह आपको उतनी जानकारी नहीं है वह सम्राट है, महान संगीतकार है या प्रधानमन्त्री जितनी लोगों को है। आप तो सच्चे शब्दों में है तो वह अन्य लोगों से कट जाता है अपने ज्ञानी हैं क्योंकि आप महसूस करते हैं किं आप में ही फूला नहीं समाता। परन्तु जो ज्ञान आपके अन्दर प्रेम की महान शक्ति है। आपमें आपने प्राप्त किया है इसे पाने के पश्चात् आप अन्य सहजयोगियों से एकरूप हो जाते हैं। यह सूझ-बूझ की अथाह शक्ति है, एकरूपता और सामूहिकता की अथाह शक्ति है यह सामूहिकता चमत्कार करती है और आनन्द प्रदान करती है करती है कि आप एक दूसरे का इतना आनन्द बात अत्यन्त असाधारण है। यह इस प्रकार कार्य हम दुश्मन नहीं हैं और लेते हैं कि सामूहिक कार्यो को करने के लिए स्वयं को समर्पित कर देते हैं। कि हम सब एक हैं, हमें कोई समस्या नहीं है। आप सब एक हैं। जिस प्रेम की अभिव्यक्ति आपने की वह लहरों सत्ततर वर्षों का मेरा अनुभव वास्तव में भिन्न प्रकार की घटनाओं, भिन्न प्रकार के लोगों बरा सम है जो तट की ओर जाती हैं. तट को छूती से परिपूर्ण है। अपनी आंखों से ये दृश्य देखना हैं और सुन्दर आकार बनाती हुई वापिस आ जाती हैं और अब मैं यह घटित होते हुए देख कितना आनन्ददायी है कि सारे उतार चढ़ावों के रही हूँ कि ये सुन्दर आकार आपके अपने जीवन में, आपकी जीवन शैली में और आपके आचरण बावजूद भी इतने सारे सुन्दर कमल खिल उठे हैं। वे इतने सुरभित हैं, इतने सुन्दर हैं, इतने रंग में अभिव्यक्त हो रहे हैं। मेरे सम्मुख एक अत्यन्त बिरंगे और आकर्षक हैं। इस सारी उपलब्धि का प्रणाली है क्योंकि विशिष्ट मानव जाति बैठी हुई है। मैं आप सब कारण हमारी अन्तर्जात मूल्य

हमारे अन्दर प्रेम एवं करुणा की महान संवेदना उन्होंने इतना सुन्दर इन्तजाम किया. इतना सुन्दर अन्तर्जात है। वास्तव में इस करुणा को समझा पण्डाल बनाया और सहजयोगियों के रहने के जाना चाहिए और इसका आनन्द लिया जाना लिए इतना सुन्दर प्रबन्ध किया। यह वास्तव में चाहिए तथा करुणा के इस सागर में कूद पड़ना प्रशन्सनीय है। मैन इसके लिए कुछ नहीं किया, चाहिए। यह इतना सुन्दर है और यह देखकर कुछ भी नहीं। किस प्रकार इन लांगों ने मिलकर कार्य किया। न कोई लड़ाई हुई न झगड़ा और न कोई निन्दा चुगली। हैरानी की बात है कि हती आप हैरान होंगे कि स्वतः ही आप तैरने लगंगे और इसी समुद्र में आपकी भेंट अन्य लोगों से ही होगी। बिना किसी समस्या के, बिना किसी कष्ट उन्होंने इतने सुन्दर स्थल की रचना की! यह सहजयोग में उनकी परिपक्वता को दर्शाता है। के सभी प्रेम, करुणा और इस परमेश्वरी प्रेम का इतने कम समय में इस महान कार्य का संपन्न आनन्द लेंगे। दिल्ली के लोगों को मैं बधाई देती हूँ। करने के लिए मैं उन्हें बारम्बार बधाई दती हूँ।