Christmas Puja, You have to be loving, affectionate, kind and disciplined

Ganapatipule (भारत)

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Christmas Puja IS Date 25th December 1997: Ganapatipule Place: Type Puja Hindi & English

आज हम लोग यहाँ ईसा मसीह का जन्म दिन मनाने के लिए उपस्थित हुए हैं। ईसा मसीह की जिन्दगी बहुत छोटी थी और अधिक काल उन्होंने हिन्दुस्तान में ही बिताया, काश्मीर में। सिर्फ आखिरी तीन साल के लिए वापिस गए और लोगों ने उन्हें क्रॉस पर टॉँग दिया। ये सब कुछ विधि का लिखा हुआ था। आज्ञा चक्र को खोलने के लिए उनको ये बलिदान देना पड़ा और इस तरह से उन्होंने आज्ञा चक्र की व्यवस्था करी। आज्ञा चक्र बहुत संकीर्ण है, छोटा सा, और आसानी से खुलने वाला नहीं है। क्योंकि मनुष्य में जो स्वतंत्रता आ गई उससे वो अहंकारी बन गया। इस अहंकार ने उसका आज्ञा चक्र बंद कर दिया और उस बंद आज्ञा चक्र से निकालने के लिए अहंकार निकालना ज़रूरी है। और अहंकार निकालने के लिए आपको अपने मन पे ही काबू लेना पड़ता है। लेकिन आप मन से अहंकार नहीं निकाल सकते। जैसे ही आप मन से अहंकार निकालने का प्रयत्न करेंगे, वैसे ही मन बढ़ता जाएगा और अहंकार बढ़ता जाएगा। “अहं करोति सः अहंकार:”।  हम करेंगे, इसका मतलब कि अगर हम अपने अहंकार को कम करने की कोशिश करे, तो अहंकार बढ़ेगा क्योंकि हम अहंकार से ही वो ही कोशिश कर रहे हैं। जो लोग ये सोचते हैं कि हम अपने अहंकार को दबा लेंगे, खाना कम खाएंगे, दुनिया भर के उपद्रव।  एक पैर पे खड़े हैं, तो कोई सिर के बल खड़ा है!  हर तरह के प्रयोग लोग करते हैं अपने अहंकार को नष्ट करने के लिए। लेकिन इससे अहंकार नष्ट नहीं होता, इससे बढ़ता है। उपवास करना, जप-तप करना आदि सब चीज़ों से अहंकार बढ़ता है। हवन से भी अहंकार बढ़ता है क्योंकि अग्नि जो है वो राइट साइडेड (right sided) है। 

जो कुछ भी हम कर्मकाण्ड करते हैं, रिच्युअल्स (rituals) करते हैं, उससे अहंकार बढ़ता है और मनुष्य सोचता है कि हम सब ठीक हैं। हजारों वर्ष से वही-वही कर्म काण्ड करते रहता  है। और उल्टा-सीधा सब मामला जो भी सिखाया गया, वही वो कर रहा है। इसीलिए सहजयोग कर्मकाण्ड के विरोध में है। कोई भी कर्मकाण्ड करने की जरूरत नहीं और वो अतिशयता पे पहुँचना तो और गलत बात है। जैसे हमने कहा कि अपने अहंकार को निकालने के लिए आप उसको, मराठी में ‘जोडेप़ट्टी’ कहते हैं, जूते मारिए।  तो रोज सवेरे सहजयोगी जूते लेके चले लाइन में। अरे अगर आप के अंदर अहंकार हो तब। हर एक आदमी हाथ में जूता लिए चला जा रहा है रास्ते में। ये सब कर्मकाण्ड सहजयोग में भी बहुत घुस गए हैं। यहाँ तक कि फ्रांस से अभी एक साहब लेकर आए थे, कि वहाँ वो वाशी के हॉस्पिटल से कर्मकाण्ड ले कर आए। अरे बाबा, ये तो बीमारों के लिए है। आपको अगर ये बीमारी हो तो आप ये कर्मकाण्ड करो। जो कैन्सर की बीमारी के कर्मकाण्ड हैं, वो भी उसमें लिख रखे थे। मैंने कहा कि मनुष्य का स्वभाव है कि कर्मकाण्ड करे। क्योंकि वो सोचता है मैं कर सकता हूँ। मेरे कर्मकाण्ड से कार्य होगा और इस कर्मकाण्ड में सिर्फ आप ही लोग नहीं हैं, परदेस में भी, बहत से लोग कर्मकाण्ड करते रहते हैं, तरह- तरह के। जैसे साल भर में एक बार चर्च को जाएंगे, माने आज के दिन। उसके बाद भगवान का नाम भी नहीं लेंगे। दुनिया भर के गंदे काम कर के और कैथोलिक धर्म में जाकर के वो कन्फेशन कर लेंगे। ये सब मूर्खता अगर आप देख सके तब आप सहजयोगी हो गए। अगर आप समझ सके कि ये सब गलत काम जो हमने किया है ये गलत है। और अब से आगे ये काम नहीं करने का, ये अगर आपकी समझ में जाए तो  बात आपके दिमाग में आ जाएगी। अब कर्मकाण्डी लोगों में और भी  विशेषताएं होती हैं। एक तो वो एक नम्बर के कंजूस होते हैं। अगर उनसे आप दस रुपए की बात  करो तो वो आकाश में कूदने लग जाते हैं। उसको मराठी में ‘कौड़ी चुम्बक’ कहते हैं। एक बात है। मराठी में ऐसे-ऐसे शब्द हैं कि उससे आपका अहंकार एसे ही उतर जाए। जैसे कि कोई अपनी बड़ी- बड़ी बातें बताने लगे कि मैंने ये किया, मैंने वो किया, तो उसको धीमे से कहने का  कि तुम तो चने के पेड़ पर चढ़ रहे हो। चने का पेड़ तो होता नहीं। (मराठी) तो वो ठंडा हो जाएगा। मैंने ये किया, मैंने वो किया। ‘मैं’, जब तक ये ‘मैं’ नहीं छूटता, तब तक हमारा ईसा मसीह को मानना गलत है। पर आश्चर्य की बात है कि जिसको क्रिस्चन नेशनस कहते हैं, जहाँ ईसाई धर्म है उनसे ज्यादा अहंकारी मैंने तो कोई देखे नहीं। विशेषकर अंग्रेज़, अमेरिकन सब लोगों में इस कदर अहंकार है कि समझ में नहीं आता कि ईसा-मसीह के ये कैसे शिष्य हैं! 

अब इस अहंकार का इलाज क्या है? वो सोचना चाहिए। इसका इलाज ईसा-मसीह थे और उन्होंने सिखाया है कि आप सबसे प्रेम करें। अपने दुश्मनों से भी प्यार करें। इसका इलाज उन्होंने प्यार बताया है और प्यार के सिवाय कोई इलाज नहीं है लेकिन ये प्यार परम चैतन्य का प्यार है। उन्होंने साफ- साफ कहा कि आप अपने को खोजो, दरवाज़े खटखटाओ, तो दरवाजा खुल जाएगा। इस का अर्थ ये नहीं कि तुम जाकर के दरवाजे खटखटाओ। इस का मतलब ये है कि अपने दिल के जो दरवाजे हैं उसे खोलिए। जिस आदमी का दिल छोटा होता है, जो कंजूस होता है वो आदमी कभी भी सहजयोगी नहीं बन सकता। और दूसरी चीज़ जो बहुत ज़रूरी है कि आपको अगर गुस्सा आता है तो इसका मतलब आपके अन्दर बहुत ही अहंकार है। एकदम मैंने देखे हैं गुस्से वालों की स्थित, विस्फोटक होते हैं और उसमें उन्हें शान आती है बताते हैं, मैं बड़ा गुस्से वाला हूँ। ऐसे लोग सहजयोग में नहीं रह आ सकते। जो लोग प्रेम करना जानते हैं और वो भी विशुद्ध प्रेम, वो भी प्रेम ऐसा कि जिसमें कोई आकांशा न हो, कोई इच्छा नहीं, पूर्णतया निरिच्छ जो लोग प्यार करना जानते हैं वो ही सहजयोग में रह  सकते हैं।

अहंकारी लोग बहुत गलत-सलत काम करते हैं, और मैं उनसे तंग आ गई हूँ। अपने ही मन से कुछ शुरू कर देंगे और मुझे बताएंगे भी नहीं। और ऐसा करने से आज हज़ारों प्रश्न खड़े हो गए हैं। आज बताने की बात है कि दिल्ली में इन्होंने मुझसे एक बार एक पूजा के दिन हड़बड़ी में आकर बताया कि हमें ज़मीन मिल रही है, बस। उससे कितना पैसा लिया, वो कैसा होने वाला है, ज़मीन कैसी है, कुछ नहीं बताया। और किसी भी सहजयोगी ने नहीं बताया। क्योंकि कल कोई कहे कि ये माताजी ने कहा है, तो उस आदमी को आप बिल्कुल छोड़ दीजिए। मुझे कुछ कहना है तो मैं स्वयं कहूँगी। उसके बाद इतनी मीटिंग्ज़ हो गईं, ये मैंने कभी कुछ नहीं कहा। अब जिन्होंने उन्हें पैसा दिया, वो सिर पकड़कर के बैठे हैं कि बिलकुल  ये ठगाया गया है। अब ये पैसा कैसे मिलेगा? मुझसे बगैर पूछे सारे काम हो गए, बिल्कुल बगैर पूछे। अब वो इतनी खराब ज़मीन है कि उसके बारे में अब नोटिस आयी है कि आप उस पर कुछ भी नहीं बना सकते, उलटे आपको हम पकड़ेंगे। हर एक सहजयोगियों को अधिकार है कि वो मुझे आकर बताये और मझसे पूछे। उन्होंने कोई सोसायटी अपनी बना ली और हो गए पागल कि ज़मीन मिल रही है न। इतनी खराब ज़मीन है कि वहाँ बताते हैं कि मुर्गी भी नहीं पाल सकते। तो सहजयोगी क्या मुर्गियों से भी गए बीते हैं? अब जो भी हुई, सो मूर्खता है और उसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूँ। लेकिन आप लोग अपने पैसे वापिस माँग लीजिए। मेरी उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। ईसा-मसीह ने तो यहाँ तक कहा था कि जो लोग घर बांधते हैं, घर में रहते हैं, उनको पक्षियों की ओर देखना चाहिए। वो अपना घरौंदा कितने प्यार से छोटा सा अपने लिए बनाते हैं और जब वो अपना घर बनाते हैं, तो उस घर को बनाने में उनको बड़ा मज़ा आता है। हर तरह से उन्होंने ये समझाया कि आप ममत्व को छोड़ दीजिए। ये मेरा घर है, ये मेरी ज़मीन है, ये मेरे बच्चे हैं। यहाँ तक कि ये मेरा देश है। ये जो ममत्व है, ये छूटना चाहिए, तभी आप जो हैं महान हो सकते हैं। सारे विश्व में आप भाई-बहिन हैं। इसका मतलब  नहीं कि आप अपनी देशभक्ति को छोड़ दो, बिलकुल नहीं।  अगर आप देश भक्त नहीं हैं तो आप कुछ भी नहीं कर सकते। 

आप में देश भक्ति होनी ही चाहिए। लेकिन यही देश- भक्त विश्व- भक्त हो जाता है। अगर देश भक्ति ही नहीं है, जब बूंद ही नहीं है तो सागर कैसे बनेगा? तो प्रथम, आपके अंदर देशभक्ति है कि नहीं, उसको पहले देखना चाहिए। आप देश के विरोध में अगर कोई कार्य कर रहे हैं तो आप देशभक्त नहीं हैं। ईसा-मसीह को वापिस जाने की कोई ज़रूरत नहीं थी। उन्होंने कहा भी था कि वहाँ सब ऐसे लोग रहते हैं जिनको सिर्फ मल की इच्छा है, म्लेच्छ हैं। लेकिन शालिवाहन ने उनसे कहा, नहीं-नहीं, तुम जाओ और उन्हें ‘निर्मल तत्वम्’ सिखाओ। वो सिखाने गए ‘निर्मल तत्त्वम्’, उनको ही ख़तम कर दिया। पागलों का देश है, उनसे कुछ सीखने का था नहीं, पर सिखाने का था, इसलिए वो गए और उसीलिए उनका अन्त इस तरह से हुआ। समझदारी और क्षमा, क्षमा ही मन्त्र है जिससे आज्ञा चक्र छूट सकता है। अगर आपको किसी के भी प्रति कोई सी भी गलतफहमी है, किसी के प्रति आपको द्वेष है या किसी के भी प्रति हिंसा की वृत्ति है तो आप का आज्ञा ठीक नहीं हो सकता। जो भी आप को करना है वो प्रेम के द्वारा। आपको किसी को कहना भी है तो इसलिए कहना है, कि उस का जीवन निर्मल हो जाए। (अष्पष्ट) इस का अर्थ यह नहीं कि आप अपने बच्चों को खराब करें। बच्चों को पूरी तरह से आपको डिसिप्लिन (decipline) में लाना चाहिए। अगर आप डिसिप्लिन में बच्चों को  ला नहीं सकते, तो आपके बच्चे कभी अच्छे सहजयोगी नहीं हो सकते। और उसके लिए पहले आपमें खुद होना चाहिए, डिसिप्लिन। आपमें अगर डिसिप्लिन नहीं रहेगा तो आप अपने बच्चों को ठीक नहीं कर सकते। ईसा-मसीह का जीवन जो था उसके बारे में बहुत कम लिखा गया है। लेकिन उनके अन्दर इतना इस कदर डिसिप्लिन थी, इस कदर उन्होंने सहा और अपने जीवन से दिखा दिया। उनको विवाह की भी ज़रूरत नहीं थी। उन्होंने विवाह नहीं किया। इसका ये मतलब नहीं कि वो विवाह के विरोध में थे। ऐसी गलत फहमी लोग करके बैठे हुए हैं कि वो विवाह के विरोध में थे।और इसीलिए इन्होंने ये बनाई हुई हैं औरतें जिन्को ‘ननस’ कहते हैं। उनकी शादी ईसा-मसीह से करते हैं, वो साक्षात् गणेश हैं। उनसे कैसे शादी कर सकते हैं? उसके अलावा आदमियों को भी शादी नहीं करना। इस तरह की अनैसर्गिक बातें सिखा दी। उससे वो सबको अपने कब्जे में रख सकते हैं। कण्ट्रोल कर सकते हैं पर उससे ईसाई नहीं हो सकते। इस तरह के कृत्रिम बन्धन अपने ऊपर डाल लेने से आज ईसाई धर्म डूब रहा है। ईसा को उन्होंने भुला दिया और अपने ही मन से एक धर्म बना लिया है और उसको ये ईसाई धर्म कहते हैं।

आजकल का ईसाई धर्म ईसा के नाम पे कलंक सा लगता है। क्योंकि मेरा जन्म ही इस धर्म में हुआ और मैंने इनकी सारी अन्दरूनी बातें देखीं। उसी प्रकार हिन्दू धर्म की बात है। हिन्दू धर्म में आप साम्प्रदायिक हो ही नहीं सकते। क्योंकि आप के अनेक गुरुओं, असली गुरुओं, जैसे दत्तात्रेय जी वगैरा और नाथपंथी आदि आपके अनेक अवतरण हैं, और आपके स्वयंभू अनेक हैं। आपकी एक किताब नहीं, अनेक किताब हैं। ईसाई लोगों में सिर्फ ईसा और बाइबल। तो वो फ़ण्डामेंटालिस्ट (fundamentalist) हो सकते हैं। मुसलमान हो सकते हैं और यहूदी लोग भी हो सकते हैं और तीनों का आपस में रिश्ता है, ऐसा किताबों में लिखा है। लेकिन हिन्दू नहीं हो सकता साम्प्रदायिक। क्योंकि किसी का कोई, किसी का कोई। कोई महालक्ष्मी को मानता है, तो कोई रेणुका देवी को मानता है, तो कोई कृष्ण को मानता है।  तो हर आदमी, हर परिवार, फैमिली (family) अलग-अलग इंकार्नेशन (incarnation) को मानते हैं, किताब को मानते हैं। अलग-अलग किताब  धर्मग्रन्थों को मानते हैं। कोई सी भी ऐसी किताब नहीं है जिसके कहना चाहिए कि हौली बाइबल जैसी है। इसलिए सब धर्मों को, एक हिन्दू को चाहिए कि मान करे। मैंने देखा है कि मान करने की शक्ति हिंदुओ में सबसे ज्यादा है। 

एक मर्तबा एक हम होटल में थे और वहाँ बाइबल थी वो सब दूर  बाइबल रख देतें हैं चाहे कोई पढ़े या न पढ़े। सो वो बाइबल नीचे गिर गया, सो हमारे साथ एक हिन्दू थे। उन्होंने उस बाईबल को उठाया सर पे रखा और फिर टेबल पे रख दिया। कभी बाइबल को पैर से नहीं छुएंगे, कभी नहीं।  एक बार ईसाई  गन्दा कर लेंगे, हिन्दू नहीं करेगा। सब की इज्जत करना ये हिन्दू का धर्म है। पर उससे आज कल जो लोग निकले हैं अजीब-अजीब, अजीबो गरीब, जो कि आज के हमारे पॉलिटिशियन लोग निकले  हैं। इस  तरह के लोग पैदा हुए हैं। बरसात में जैसे मशरूम निकलती है ऐसे कुछ लोग निकल आये हैं। पर ये लोग हिन्दू नहीं हैं। इनको अपने धर्म के बारे में कुछ मालूम नहीं। उत्तर हिंदुस्तान के लोगों को तो बिलकुल ही नहीं मालूम और जो दक्षिण हिंदुस्तान के लोग हैं, वो तो यही जानते हैं, कि ब्राह्मण को यहाँ पैसा देना है वहाँ पैसा देना है। ये करना है वो करना है। बस कर्मकाण्ड के सिवाय इस महाराष्ट्र में और कुछ नहीं है। इतने कर्मकाण्डी लोग हैं महाराष्ट्र में बड़ी मेहनत करी है मैंने, सब व्यर्थ गई।  क्योंकि बड़े कर्मकाण्डी हैं वो छूट नहीं सकता उनसे। यहाँ एक सिद्धि विनायक का मंदिर है। उसके जो गणेश जी हैं, उसको जागृत मैंने किया। अब देखती क्या हूँ कि वहाँ एक-एक मील की लम्बी कतारें, एक-एक मील की, मंगलवार को खड़ी हुई हैं। गणेश जी भी सो गए होंगे। इस कदर कर्मकाण्डी लोग महाराष्ट्र में हैं कि उस कर्मकाण्ड से उनका स्वभाव ज़रा तीखा हो गया है। और नार्थ इंडिया में भी मैंने देखा है कि कुछ लोग कर्मकाण्डी हैं। और जो कर्मकाण्डी लोग हैं, उनमें गुस्सा बहुत है। बहुत तेज़ गुस्सा है और जो लोग कर्मकाण्ड में नहीं हैं वो लोग बहुत शांत हैं। 

सो पहली चीज़ है कि कर्मकाण्ड बंद करो पर हर चीज़ का आदर करो। कर्मकाण्ड बंद करो  इसका मतलब यह नहीं कि सबको लात मारते फिरो। ये संतुलन जो है, यही ईसा-मसीह ने सिखाया है। ये संतुलन आए बगैर आपका आज्ञा चक्र नहीं खुल सकता। सबका सम्मान, सबका आदर और बेकार के कर्मकाण्ड जिसमें गलत लोग पनप रहे हैं। आजकल के बहुत जो से झूठे साधु बाबा हैं वो कर्मकाण्ड के ही वजह से ही ऐसे हो गए हैं। वो कहेंगे कि आप इतने रुपए दो, ये करो, वो करो, यज्ञ करो। एक सौ आठ मर्तबा रोज़ ये नाम लो, वो नाम लो। मंत्र देता हूँ, फलाना करता हूँ। ये सब कर्मकाण्डी हैं और कमकाण्ड आप लोगों को सिखाते हैं जिसके पूरी तरह से विरोध में ईसा मसीह थे। क्योंकि वो जानते थे कर्मकाण्ड करने से आदमी अहंकारी हो जाते हैं और इस अहंकार को तोड़ने के लिए उन्होंने कर्मकाण्ड को एकदम मना किया था। इसी तरह से परमात्मा के नाम पर कोई भी आदमी पैसा कमाए  इसके वो विरोध में थे। उसके उल्टा शुरु हो गया कि पैसा कमाओ और खाओ। कमाना तो नहीं छूटा पर पैसा कमा लो और खा जाओ खुद, जिससे कोई भी कार्य नहीं हो सकता। आज सहजयोग के कार्य में हमको याद रखना चाहिए कि हमने सहजयोग के कार्य में क्या पैसे दिए, कितना पैसा दिया। ईसा मसीह के पास तो १२ मछली मार थे। वो तक फैल गए सारी दुनिया में मेहनत करके। आज आप लोग मेरे इतने सारे शिष्य हैं और आप लोग चाहे तो कितने ही लोंगो को पार करा सकते हैं, कितने ही लोगों को सहजयोग में ला सकते हैं। पर लोग आधे-अधूरे नहीं रहने चाहिए गहरे उतरने चाहिए। जब तक गहरे नहीं बैठेंगे,  तब तक वो समझ नहीं पाएंगे और उसके लिए सबसे बड़ी चीज़ है कि हम उनको कितना प्यार देते हैं और वो कितना प्यार दूसरों को देते हैं। कोई भी आदमी अगर सहजयोग में लीडर होता है, तो उसको पहले याद रखना चाहिए कि ईसा-मसीह ने जो देन दी है कि आप सबसे प्यार करो, वो मैं कर रहा हूँ क्या? मैं सब पे रोब-दाब झाड़ता हूँ, मैं सबको ठिकाने लगाता हूँ, सब के ऊपर आँखें निकालता हूँ। ये अहंकार बहुत सहजयोग के विरोध में ही नहीं है पर उसका नाश करने वाला है। जिस आदमी में भी अहंकार हो, वो उसको कम करे और उस की जगह प्यार से भरे तो जीवन जो है सुखमय हो जाएगा, जीवन सुन्दर हो जाएगा। अगर आप को प्यार करना आता नहीं तो थोड़े दिन आप सहजयोग से बाहर रहिये। पहले अपने हृदय के दरवाजें. खोलिये। उसी की शक्ति से सहजयोग फैलेगा। बात ये है कि जो लोग सहजयोग फैलाते हैं उनमें प्यार की शक्ति कम और गुस्से की शक्ति ज्यादा है, कभी नहीं फैलेगा। प्यार से बढ़ेगा और गुस्से से घटेगा और नष्ट हो जाएगा। जो ईसा मसीह की सीख है वो बहुत ज़रूरी है कि हम लोग समझ लें।