Public Program, Satya Ki Pahchan Chaitanya Se He

(भारत)

1995-12-14 Public Program, Hindi, Lucknow, India, DP-RAW, 118'
Download video - mkv format (standard quality): Download video - mpg format (full quality): Watch on Youtube: Watch and download video - mp4 format on Vimeo: View on Youku: Listen on Soundcloud: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

Satya Ki Pahchan Chaitanya Se Hai 14th December 1995 Date : Lucknow Place : Public Program Type

सब से पहले ये जान लेना चाहिये, कि सत्य है वो अपनी जगह। उसको हम बदल नहीं सकते, उसका हम वर्णन नहीं कर सकते। वो अपनी जगह स्थिर है। हमें ये भी करना है कि हम उस सत्य सृष्टि को प्राप्त करें। परमात्मा ने हमारे अन्दर ही सारी व्यवस्था की हुई है। इस सत्य को जानना अत्यावश्यक है। आज मनुष्य हम देख रहे है कि भ्रमित हैं। इस कलियुग में बहता चला जा रहा है। उसकी समझ में नहीं आता कि पुराने मूल्य क्या हो गये और हम कहाँ से कहाँ पहुँच गये और आगे का हमारा भविष्य क्या होगा। जब वो सोचने लगता है कि हमारे भविष्य का क्या है? क्या इसका इंतजाम है? हमारे बच्चों के लिये कौनसी व्यवस्था है? तब वो जान लेता है, कि जो आज की व्यवस्था है, मनुष्य आज तक जिस स्थिति में पहुँचा है वो स्थिति संपूर्ण स्थिति नहीं क्योंकि वो एकमेव सत्य को नहीं जानती। केवल सत्य को नहीं जानती। हर एक अपनी मस्तिष्क जो सत्य आता है, उसे समझ लेता है। दो प्रकार के विचार हैं। एक तो विचार ये है कि हम अपने मस्तिष्क से जो मान ले, जिस चीज़ को हम ठीक समझ ले, उसी को हम मान लेते हैं। लेकिन बुद्धि से सोची हुई, बुद्धि पुरस्सर चीज़ सीमित है। कोई | सोचता है, कि ये अच्छा है, तो कोई सोचता है कि वो अच्छा है। और ये ले कर के सब लोग आपस में झगड़ा कर रहे हैं। दूसरों की बात सुनने से पहले अपनी ही बात कहते हैं और इसी प्रकार पूरी समय कश्मकश चल रही है। अब रही बात उन लोगों की जो कोई न कोई बात को अंधतापूर्वक मान रही हैं, सोच के कि ‘अब कोई इलाज ही नहीं है। चलो यही कर लेते हैं। वो भी अंधता पूर्वक मानी हुई बातें भी किसी काम की नहीं ये ज्ञात हो जाता है। फिर वो भी मुडता है इस ओर कि, ‘सत्य क्या है भाई! हमने तो इतनी देर तक ये तो कोई सत्य नाम की चीज़ है या नहीं ?’ यही साधक, यही काम किये, हमें तो कुछ लाभ नहीं हुआ। असली साधक है। जो समझ गया है, कि इस बुद्धि पुरस्सर जो हमने न्याय दिये, जो हमने अपने अन्दर विचार कायम किये थे, वो गलत हैं। गलत साबित हये। उससे हमें कोई फायदा नहीं होने वाला और दूसरा है कि जो सोचता है कि इतने सालों तक हमने आँखें बाँध कर के जो हमने काम किये वो काम ही कोई लाभदायक हैं। अब सत्य क्या है? हालांकि मैं जो आपको बताऊँ उसे आपने फिर से अंधों जैसे मान नहीं लेना चाहिये। क्योंकि वही बात हो जायेगी जो और लोग कुछ कहते हैं और आप मान लेते हैं। किन्तु अगर इसकी प्रचीति आ जाये, उसका अनुभव आ जाये और अगर आप नहीं मानें तो इसका मतलब ये है कि आपने अपने साथ इमानदारी नहीं रखी। क्योंकि इसी में आपका लाभ है। इसी से आप अपने घर-गृहस्थी का, अपने समाज का, अपने देश का और सारे संसार का हित साध्य कर सकते हैं। एक व्यक्ति में ये चीज़ ন

मिलेगी, एक इन्सान में ये चीज़ मिलेगी और वो व्यष्टि माने समष्टि अर्थात् सामूहिकता में फैल जायेगी । के हमें ये सुन बहुत खुशी हुई कि यू.पी. में हर एक गाँव से एक, एक इन्सान आया और वो सहजयोग की ज्योत वहाँ ले गया। मैं यहाँ की बहू हूँ। मैं यहाँ शादी हो के दूल्हन बन के आयी थी। मैं सोच भी नहीं सकती, कि इस यू.पी. में सहज में इतने लोग आ जायेंगे। मुझे तो बहुत ही आश्चर्य हो रहा था कि ये कैसे हो सकता है! यहाँ तो लोग इतने अंधश्रद्धा से पीड़ित है और कुछ लोग इतने मगूर है, इसके बीच के ये जो चीज़़ है सहज इसे कैसे प्राप्त करेंगे? पर आज सब को देख के बड़ा आनन्द हुआ। न जाने कैसे आप लोग इस स्थिति में आये, कि आप सहज को प्राप्त हये। मैं सोचती हूँ कि पूर्वजन्म के आपके बड़े पुण्यकर्म है और पुण्यकर्म से ही ये चीज़ प्राप्त होती हैं। एक बड़ी पुरानी किताब है, भृगु मुनि ने लिखी हुई, नाड़ी ग्रंथ, उस में उन्होंने लिखा, कि जो लोग आज गिरिकंदरों में परमेश्वर को खोज रहे हैं, उसे प्राप्त करेंगे कलियुग में और जब वो कलियुग में उसे प्राप्त करेंगे तब वो गृहस्थी में बैठे हुये है। वही बात आज सिद्ध हो रही है। ये आपके पूर्वजन्म के सारे जो कुछ भी महान पूर्य थे वही फलित हुये हैं। नहीं तो मेरे बस की बात नहीं थी। जिस तरह से आज आप लोग एकत्रित हये हैं वो देख कर के बहुत आश्चर्यचकित हो रही हूँ। अब रही बात कि सत्य क्या है, ये मैं आपको बताऊँ। सत्य ये हैं कि आपके शरीर, बुद्धि, मन, आपके संस्कार, कुसंस्कार और आपका अहंकार आदि कोई भी उपाधियाँ हैं आपके अन्दर, ये सारी उपाधियाँ सब व्यर्थ हैं, झूठी हैं। हृदय से जो यहाँ सजावट की है, बहुत ही सुन्दर! ये सब पूर्व जहाँ से आये हैं उस धरती माता को सोचो। यहाँ पर तो खेती बहत होती है और ये खेतीप्रधान उत्तर प्रदेश है। ये खेती जो करातीहैं, ये हमारी जमीन, हमारी माँ, ये पृथ्वी माता हमें ये सब चीजें सहज में ही दे देती है। एक बीज को हम बो दे तो इसमें सहज में ही फूल आ जाते हैं। ये ऋतूओं को बदलने वाली कौनसी शक्ति है। तो ये सारे सृष्टि में चारों तरफ फैली हुई ये जो शक्ति है, यही शक्ति जिसे की हम ऋतंभरा प्रज्ञा कहते हैं या फिर इसे हम रूह कहते हैं। इसे ही हम परम चैतन्य कहते हैं। ये शक्ति चैतन्यमय है। ये सोचती है, समझती है, सृजन करती है, सारे कार्यों को करती है, हमारे हृदय की धड़कन भी यही चलाती है। पर सब से अधिक इस शक्ति की जो विशेषता है, वो ये है कि वो प्रेमभरी है। इसमें सिर्फ प्रेम है। ये सारा कार्य प्रेम से करती है। अब मैं कहूँगी सत्य और प्रेम में कोई अन्तर नहीं। अगर समझ लीजिये कि आप किसी से प्रेम करते हैं, तो आप उस व्यक्ति के बारे में पूरा पूरा जान लेते हैं। पूरा सत्य आप जान लेते हैं। इसी प्रकार प्रेम और सत्य दोनों एक ही चीज़ है। और जब आप सत्य को प्राप्त करते हैं, तभी आप मन में शांति को स्थापित करते हैं। शांति भी इस सत्य से दर्शन से ही होती है। तो ये सत्य जाज्ज्वल्य नहीं है। इसमें भड़क नहीं है। इस में कोई ऐसी तड़पाने की चीज़ नहीं है। बस ये शांत रस, शांतमय, आनन्ददायी है और ये सब प्राप्त करने की आपकी क्षमता है। आपकी लियाकत है कि आप इसे प्राप्त करें । कारण पूर्वजन्म के अनेक कर्मों के पुण्य लाभ से ही आज आप यहाँ पहुँचे हैं और ये आपका हक बनता है कि इस योग को आप प्राप्त करें।

जब आप इस योग को आप प्राप्त करेंगे, पहले तो आपको पहली मर्तबा एहसास होगा, ये आप जानेंगे, आपको प्रचीति होगी, अनुभव होगा आपकी उँगलियों के ऊपर ये ठण्डी ठण्डी हवा सी चलती है। ये बड़ी सुखद ऐसी ठण्डी हवा है। आदि शंकराचार्य ने इसे ‘सलिलं, सलिलं’ कहा है। इसामसीहा ने इसे ‘कूल ब्रीज ऑफ द होली घोस्ट’ कहा है। महम्मद साहब ने इसे ‘रूह’ कहा है। नानक साहब ने इसे ‘अलख निरंजन कहा है। आदि अनेक अनेक विशेषणों से अलंकृत किया गया है । इसको सजाया गया है | पर उनकी बात सब तक पहुँचने के लिये जरूरी था कि सब लोग भी किसी हद तक पहुँच जायें, इसे महसूस करें। हमें अगर कोई लखनौ के बारे में बतायें, कि लखनौ ऐसा है, लखनौ वैसा है, तो भाई , हमें लखनौ ले जाये तभी तो हम समझे कि लखनौ क्या है? इसी प्रकार कोई भी बात आप इस महान शक्ति की तरह वो सारी ही बात बात है। और बात करते करते आदमी ऊब जाता है और सोचता है, कि ये क्या बात हो रही है। इसका तो कोई अन्त ही नहीं। इससे कोई मिलता जुलता तो नहीं और पूरी समय एक मनोरंजन सा हो जाता है। काम खत्म ! इसके लिये जो शक्ति हमारे अन्दर परमात्मा ने स्थापित की है उसे कुण्डलिनी कहते हैं। जितना इस पर कार्य हमारे | इस महान भारतवर्ष में हुआ है और कहीं नहीं हुआ। हाँ, बाहर बहुत से द्रष्टा हो गये जिन्होंने इसके बारे में लिखा है, ये बात सच है। लेकिन जितना हमारे देश में इसको प्लावित किया गया उतना कहीं भी हुआ नहीं । क्योंकि हमारे देश के लोग शुरू से ही आध्यात्मिक है। और हमेशा जानना चाहा उन्होंने कि हम हैं क्या? हमारी हैसियत क्या है? शख्सियत क्या है? हमारा व्यक्तित्व क्या है? ये हमेशा जानने की हिन्दुस्तानिओं ने जानने की चेष्टा की है। अनादि काल से भारतीय लोग इसकी खोज में पड़े हैं। और जंगलों में, गिरिकंदरों में जा कर के खोजते रहे हैं, कि ‘मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ?’ और ये जो खोज थी आज फलीभूत हो रही है कि हज़ारों की तादाद में हज़ारों लोग इसको प्राप्त कर रहे हैं और आप भी इसे प्राप्त करेंगे। सबसे तो पहले कुण्डलिनी का जागरण होता है तो बिल्कुल सहज तरीके से होता है और बीच का जो मध्य पथ है सषुम्ना, उससे गुजरते हुये ब्रह्मरन्ध्र को छेदती है। आपको इस मामले में बताया गया है। अपने अन्दर जो तीन नाड़ियाँ विशेष हैं, उसमें से जो मध्य नाड़ी है, उसी नाड़ी के मार्ग से कुण्डलिनी का जागरण होता है। विशेषत: सब चीज़ जो दुनिया की है वो जमीन की तरफ़ दौड़ती है, सिर्फ आग ऐसी चीज़ है जो ऊपर की तरफ़ उठती है। पर ये एकदम शांत आग है। एकदम शांत। इस आग में शांति बनी हुई है। क्योंकि ये बड़ा भारी परमात्मा का चमत्कार है। और जब ये ऊपर चढ़ती है तो अपने आप चक्र खुलते हैं। और आपको इसमें कुछ करने का नहीं। सहज आप जब बीज को लगाते हैं तो क्या आप इस पृथ्वी माता को पैसा देते हैं? उसको कोई नमस्कार करते हैं? वो तो उनका धर्म है, कि कोई भी चीज़ जो उनके उदर में आयें उसका पनपा दें और ये धर्म बीज में भी है, कि वो पनप जाता है। वो भी अंकुरित हो जाता है, अपने आप। इसी प्रकार अपने अन्दर भी, सबके अन्दर भी। किसी भी जाति, किसी भी धर्म, किसी भी देश के लोगों में ये नहीं कह सकते की कुण्डलिनी नहीं है। अब ६५ देशों में हम कार्य कर रहे हैं। और बड़ा आश्चर्य है कि रशिया में जैसे आप लोग बैठे हैं ऐसे ही लोग वहाँ एक-एक गाँव में, पता नहीं इन लोगों ने कभी भगवान का नाम नहीं सुना। इनको तो किसी

भगवान का तो क्या, ऐसे आदमी का भी नाम लेना मना था जो भगवान की बात करता था। लेकिन मेरे ख्याल से एकदम साफ़ उनके व्यक्तित्त्व की पाटी थी जिस पर सहजयोग बहुत जल्दी चढ़ गया। और इतनी जल्दी चढ़ गया और हजारों की तादाद में। और आप लोगों को देख कर इसलिये आश्चर्य होता है, कि पहले मैं यहाँ देखती थी कि उनको मजा किस चीज़ में आता है। बड़े हैरानी की बात है कि जिसमें उनको मज़ा आता था वो सब छोडछाड़ अब सहजयोग में सब उतर आयें। और वो जो मज़ा आने की चीजें थी वो सब स्वयं को नष्ट करने वाली थी। आज अमेरिका में यही हाल है। वो लोग कहते हैं कि हम तो चाहते हैं कि, क्षण-क्षण हम आनन्द में रहे।’ और क्षण-क्षण में आप अपने को मिटाने की व्यवस्था कर रहे हैं। तो कौनसा आनन्द आयेगा? आप तो मृत्यु की ओर जा रहे हैं। सर्वनाश की ओर जा रहे हैं, तो आपको आनन्द कैसे आ सकता है! लेकिन उनकी खोपड़ी में ये बात जाती नहीं आपको बताऊँ। हम लोग हालंकि बहुत सीधे-साधे हैं, गरीब हैं लेकिन मेरे ख्याल से हमारे अन्दर सुबुद्धि उन लोगों से बहुत ज़्यादा है। वो तो मूढ़ लोग हैं। उनकी समझ में नहीं आता है। मुझे कहते थे कि ‘जब तक आप हमसे पैसे नहीं लेंगे हम आप पे विश्वास ही नहीं कर सकते।’ ऐसे बेवकूफ़ लोगों से कौन बात करें? पर अब थोड़ा थोड़ा मामला बैठ रहा है। इन लोगों से कुछ सीखने का है नहीं। हमारा जो अपना, स्वयं का जो अपना कल्चर है, जो संस्कृति हैं वो इतनी ऊँची हैं कि सहज में आने के बाद आप धीरे-धीरे समझ लेंगे कि ऐसी संस्कृति है ये कि जिसमें सिवाय मनुष्य परमात्मा की ओर उठे और इस योग में बढ़े और कुछ हो ही नहीं सकता। ये नहीं कि आप चीज़ छोड़िये और जंगल में जा कर बैठिये। संन्यास लीजिये या भूखे मरिये, इस तरह की बेकार की चीज़ें सहजयोग में कोई जरूरत नहीं। क्योंकि ये बाह्य में सब होता है । बहत से लोग भूखे मरते रहते हैं यहाँ पर। एक बार नारद मुनि ने पूछा भगवान से कि, ‘हिन्दुस्तान के लोग इतने भूखे क्यों रहते हैं?’ तो उन्होंने कहा कि, ‘भूखे रहने की उनको आदत हो गयी है। वो इतनी बार भूखे रहते हैं, उनको भूखा ही रहने दो ।’ तो ये जो है, उपवास आदि तपस्या करने का जो गुण है वो हो गया, वो समय बीत गया। उसकी अब जरूरत नहीं। अब जैसे कि आप एक सीढ़ी से चढ़ के दालान में पहुँचे हैं, तो आईये, तशरीफ़ लाईये। अन्दर बैठिये। बजाय इसके कि आप सीढ़ी पे लटक के बैठे हये हैं, आप ऊपर चढ़ना ही नहीं चाहते। इसी प्रकार एक तरह से ये भी समझ लेना चाहिये कि ये समय आ गया है, ये विशेष समय है। इसको तो मैं कहती हूँ कि बसंत ऋतू आ गया, ब्लॉसम टाइम आ गया। और इस समय में हजारों लोग पार होने वाले हैं। हजारों क्या कहिए करोड़ों लोग पार होने वाले हैं। और जिनको जो मिलना है, वो मिलना ही है । कोई इसे रोक नहीं सकता। इस बात को अगर मैं आपसे कह रही हूँ, वो इसलिये नहीं कि मैं सोचती हूँ कि ऐसे की कोई बड़ी भारी योजना है, ये बिल्कुल सत्य है, कि ये चीज़ आज इतनी घटित हो रही है, इतने देशों में, एकदम फलीभूत हो रही है, इसके पीछे में कोई न कोई समय की विशेषता है। और ये समय घोर कलियुग में ऐसा आया हुआ है, जहाँ मनुष्य चाहता है कि सत्य को प्राप्त करे ।

अब सत्य के प्रकाश में क्या क्या हो सकता है? पहले तो सत्य के प्रकाश में जो असत्य है उसे आदमी एकदम सहज में छोड़ देता है। एकदम सहज में। जैसे कि एक साँप हैं आपके हाथ में। रात अंधेरी और आपको दिखायी नहीं दे रहा है। और कोई कहें कि, ‘भाई, तुम्हारे हाथ में साँप है इसे छोड़ दों।’ तो आप कहेंगे कि, ‘नहीं, नहीं, ये साँप नहीं । ये तो रस्सी है । इसे मैं नहीं छोड़ सकता हूँ ।’ और आप पकड़े ही रहेंगे उसको। और जरा सा भी प्रकाश आ जाये तो आप फौरन छोड़ देंगे। तो ये समर्थता आपके अन्दर हैं, सिर्फ एक तरह का अन्धापन है। बहुत से लोगों ने, हजारों लोगों ने मुझे देखा कि परदेस में ऐसी ऐसी चीजें जिसे हम विषैली, जहरीली कहते हैं, खाना वरगैरे छोड़ दें। हर तरह की जो चीजें हमको नष्ट कर रही है वो सब छोड़ देते हैं। से लोग चाहते भी हैं नष्ट करें, खत्म करें। लेकिन नहीं खत्म कर पाते। वजह ये है कि उनके बहुत अन्दर वो समर्थता नहीं है। समर्थ का मतलब है, कि आप जो है वो आपका अर्थ बनाया जाए। याने ये कि सी अगर आत्मा बन जाए तो अपने आप ये चीजें छोड़ के भाग जाएंगी। अब आपके बच्चों को देखिये । बहुत शिकयतें मेरे पास आयी थीं कि बच्चे बिगड़ रहे हैं, वो रहे हैं। एक बार सहज में ले आईये। एक साहब है, उनका लड़का पढ़ता-लिखता नहीं था । मेरे पास आये। मैंने कहा, कि जागृति करूं । बस देखूं तो फिर। और वो फर्स्ट आया सब के बीच में। ये होता है। ये साक्षात् है। उसकी वजह ये क्या होती है, अपने मस्तिष्क के कितने हिस्से में काम कर सकती है, बहत थोड़े से और कुण्डलिनी के जागरण से जो प्रकाश हमारे मस्तिष्क में फैलता है उससे हम असाधारण बुद्धिमान बन जाते हैं। उससे हमारा चित्त जो है अत्यन्त शुद्ध हो जाता है और ऐसे की चित्त जो बार बार इधर-उधर दौड़ते रहता था, वो एकदम शांत हो के एकाग्र हो जाता है । इसलिये कौन सा भी कार्य हम बहुत अच्छे से कर सकते हैं । किसी भी कार्य में हम प्रवीण हो सकते हैं। इस देश में तो खेती बहुत है। हमने खेती पर प्रयोग कर के देखें कि ये जो हाथ में की चैतन्य लहरियाँ हैं इससे अगर पानी को आप चेतित कर दें तो उस पानी से दस गुना फसल अच्छी आती है। हाइब्रीड सीड से जितनी आती हैं उससे कहीं अधिक नॉनहाइब्रीड सीड से आती है। नॉनहाइब्रीड सीड अगर आप लीजिये और वो लगाईये कोई खाद डालने की जरूरत नहीं, कुछ नहीं। आप देखियेगा कि, हमने सूरज का फूल इतना बड़ा, एक- दो फूट डाइमीटर का निकाला। बहुत ने देखे। इसको उठाना मुश्किल। एक आदमी इसको उठा नहीं सकता। बहुतों ने कहा, कि यहाँ ट्यूलिप्स हो ही नहीं सकते। हमने देखा नहीं। हमारे जो खेत हैं वहाँ हर तरह की चीज़ हो रही है और हमने ऐसा देखा नहीं कि ये चीज़ हो नहीं सकती, वो चीज़ हो नहीं सकती। लेकिन बड़े पैमाने पर, और बहुत अच्छी, बहुत ही अच्छी जिसकी क्वालिटी है, ऐसी चीजें होती है। और ये हमारा देश पूरा ही कृषिप्रधान है। इसके लिये ये बहुत ही फायदे की चीज़़ है। अब बहुत जगह खबर करी, बहुत जगह बताया और एक कलेक्टर साहब ने हमारा सन्मान भी किया। पर उसी दिन उनकी बदली करा दी। अब ये सब चीज़ें बदलेंगी। लेकिन जो लोग सहजयोग में आ गये हैं उनकी खेती-बाड़ी, उनके घर के जानवर, उनके घर के सारे प्रश्न, उनके समाज के सारे प्रश्न एकदम से हल हो जाएंगे। आज हम उस कतार पर खड़े हैं कि आप मूड़ कर देखेंगे नहीं तो खाई में आप लोग गिर जाएंगे हे हमें मालूम है। अब जब ये अपने

को मालूम है, तब थोड़ा सा मूड़ कर के इसे स्वीकार करना चाहिये। इसे आपको कोई पैसा नहीं देने का । आप इस जमीन को कितना पैसा देते हैं, जो आपको फल-फूल दे रही है। इसी प्रकार इसके लिये आपको कोई पैसा नहीं देने का। आपको कोई खर्चा नहीं करने का कहीं कोई आडंबर नहीं, कोई भूखा नहीं, कुछ नहीं। बस इसके थोड़े से ज्ञान को प्राप्त कर लेना चाहिये, कि हमारे चक्र क्या है? इस चक्रों में कौनसी हामी है और कौनसी खराबी है? जब आपको ये चीज़ प्राप्त हो गयी तो आप देखेंगे कि आपके हाथ से ठण्डी ठण्डी हवा सी आने लगेंगी। और ये उंगलियों के आखरी हिस्से में, सब कहते हैं कि सिम्परथैटिक नव्व्हस सिस्टीम है, यहाँ आपको महसूस होगा, इस पर आपको महसूस होगा कि आपके कौनसे चक्र पकड़े हैं। ५, ६ और ७ ये चक्र जो है हमारे राइट साइड के हैं और इसी प्रकार लेफ्ट पे हैं। और जो हमारी राइट साइड है वो हमारे कार्यप्रणाली से बनती है या बनाती है । माने ये कि बुद्धि और शरीर से हम जो कार्य करते हैं वो कार्य करती है और जो लेफ्ट साइड है उसमें हमारी जो भावनायें, हमारी इच्छायें, ये सब कुछ, इनको चलाने की, जिसको कहना चाहिये कि भावना का उद्भव करने वाली ये शक्ति लेफ्ट साइड में है। इस प्रकार हमारे अन्दर दो शक्तियाँ हैं और बीच में जो शक्ति है वो आपके उत्थान की है। आप बिल्कुल थोड़ा सा और चलने की बात करें। साढ़े तीन फूट कहते हैं और अगर आप चलें ये कुण्डलिनी चल पड़ी तो आपका ब्रह्मरन्ध्र खुल जायेगा। और चारों तरफ आप पाईयेगा कि एकदम से फैली हुई एक प्रचंड परमात्मा की शांतमय शक्ति आपके अन्दर उतरने लगेंगी। अब शांति भी आपके अन्दर प्रस्थापित होती है। क्यों कि हम रहते है मस्तिष्क में, हमेशा हमारे विचार एक के बाद एक उठते गिरते रहते है और इस उठते गिरते विचारों के उपर हम लोग कूदते रहते हैं। कभी तो हम आगे का सोचते हैं, कभी पीछे का सोचते हैं। कभी हम भविष्य का सोचते हैं, कभी भूत का सोचते हैं। पर आज वर्तमान, आज जहाँ हम खड़े हैं, यहाँ हम नहीं रूक सकते। क्योंकि एकदम से चित्त हमारा चला जायेगा आगे को या पीछे को। पर जब कुण्डलिनी जागृत हो जाती है, तो ये जो बीच में दोनों की जगह है वहाँ आपका चित्त रुक जाता है, आप वर्तमान में आ जाते हैं और एकदम निर्विचार समाधि लग जाती है। निर्विचार होने का मतलब यही है, कि जैसे कोई चीज़ देखिये तो उसके ऊपर आप कोई भी अपना प्रतिबिंब नहीं डालते। जैसे आपने देखा कि इतने सुन्दर फूल बने हैं। कहाँ मिले होंगे, कहाँ से लाये होंगे? किस तरह से, क्या होगा ? कोई बात आप सोच नहीं सकते। आप बस इसका मजा उठाते हैं। तो ये जो शक्ति आपके अन्दर आ जाती है, इससे शांति प्रस्थापित होती है। फिर ऐसा आदमी भी इस शांति में उतर जायें वो जहाँ भी खड़ा होगा वहाँ शांति उस में से बहेगी। वो सारे अपने इलाके को शांत कर सकता है। विशेष इन्सान बन सकता है। आप सभी एक विशेष इन्सान बन सकते हैं और इस तरह का कार्य कर सकते हैं। चित्त आपका ऐसा हो जायेगा कि आप जहाँ चित्त डालें वो चित्त ही कार्य करता है। यहाँ बैठे बैठे आप चित्त डाल लें किसी के ऊपर कि इसकी तबियत ठीक नहीं है, तो उसकी तबियत वहाँ ठीक हो सकती है। पर आपकी वो स्थिती आनी पड़ेगी। इसलिये दसरी स्थिति में जाना चाहिये । जिसे हम निर्विकल्प

समाधि कहते हैं। जहाँ दिमाग में कोई भी संशय आदि नहीं रह सकता। निर्विकल्प समाधि। पता है, यहाँ बहुत से लोग निर्विकल्प में ही उतर गये। खटाखट् निर्विकल्प में चले गये, बड़े बड़े लोग हैं। मैं बड़ी हैरान हो गयी, कि वो लाँघ गये अपनी पहली दशा को और दूसरी दशा में आये। कोई आपको शंका नहीं रह जाती अपने ऊपर और सहज पर आपको कोई शंका नहीं आती। पूरी तरह से आप एक गुरुत्व को ले लेते हैं, मास्टरी ले लेते हैं। आप खुद अपने गुरु हो जाते हैं। आपको कोई गुरु ढूंढने की जरूरत नहीं। आप अपने स्वयं ही गुरु हो जाते हैं । इस गुरु को वो पा लें। आप अपने को तो ठीक कर ही सकते हैं क्योंकि आप अपने चक्रों को जानते हैं अपने उंगलियों पर, लेकिन आप दूसरों को भी ठीक कर सकते हैं। दूसरों की भी मदद कर सकते हैं। कुण्डलिनी जागरण से आपकी तंदुरुस्ती ठीक हो जाती है। ये बात सही है कि इसके जागरण से कैन्सर के भी रोग ठीक हो गये। यहाँ के कोई डॉक्टर साहब मिलना चाहते हैं। मैं उनसे बात करूंगी। क्योंकि इसमें आपको पैसा खर्च करना नहीं है। आप ही की शक्ति जो है वो जागृत हो जाती है और आप अपनी शक्ति से अपने को ठीक कर लेते हैं और आप दूसरों को भी ठीक कर सकते हैं। हालांकि डॉक्टर लोग कभी कभी घबराते हैं कि इससे फिर हमारी प्रॅक्टिस क्या होगी? उसके लिये बहत से अमीर लोग बैठे हैं। अभी सहजयोग में आये ही कितने लोग हैं! तो इस प्रकार आप देख लेंगे कि आप स्वयं ही धन्वंतरी माने एक एक वैद्यजी हो जाते हैं। खुद ही बगैर किसी दवा के, किसी चीज़ के आप ठीक हो सकते हैं। इसमें आपको एक तरह से बड़ी ताज़गी लगेगी । के अब हमारी उमर तो आप जानते हैं कि बहुत हम बूढे हैं। बहुत ज़्यादा। शायद यहाँ हमारे उमर बहुत ही कम लोग होंगे। लेकिन रोज हमारा सफर चलते रहता है। रोज ये होता है। अब बोल बोल के कभी थोड़ा सा गला बिगड़ जाता है। लेकिन हम देखते हैं कि काफ़ी अच्छे तरीके से हमारी जिन्दगी बीत रही है। इसी प्रकार आप सब की भी बितेगी । और ये जो बेकार की बीमारियाँ हैं इससे आपको छुट्टी मिल जायेगी। शरीर ठीक हो गया, मन का स्वास्थ्य मिल गया और बहुत से लोग ठीक हो गये। आपकी भावनायें भी ठीक हो गयी। और आप केवल सत्य को उंगलियों पर जानियेगा। आप जानियेगा कि आपके कौनसे चक्र पकड़े हैं, किसी के कौन से चक्र पकड़े है। कौन क्या है? दूसरी बात, कि आप अपने को माफ कर दीजिये, उसी प्रकार भी नहीं । आप सब को माफ कर दीजिये। बहरहाल आप माफ करें या नहीं करें आप करते क्या है? कुछ सिर्फ दिमागी जमा-खर्च है। हर समय ऐसे आदमी के बारे में सोचना जिसने आपको तकलीफ दीं, इससे आप अपने को तकलीफ दे रहे हैं। वो तो बहरहाल आराम से बैठे हैं। इसलिये आप चाहते हैं कि अपने को तकलीफ दें। मन ही मन ये सोच के की ‘उसने मुझे ये सताया, वो सताया’ सताया होगा खत्म कर दीजिये । उसको याद करने से न तो आप उसको ठीक कर सकते हैं किंतु आप जरूर गलत हाथों में खेल रहे हैं। इसलिये सबको एकसाथ आप माफ कर दीजिये । जब ये चक्र पकड़ता है तो कुण्डलिनी का चढ़ना मुश्किल हो जाता है और जब ये चक्र पकड़ता है तो असम्भव है। ये चक्र जो है ये माफ़ न करने से होता है। आप | ০

सबको एकसाथ माफ़ करिये। ये नहीं कहने का कि ‘ इस आदमी को मैं नहीं माफ करूंगा। नाम भी लेना बेकार है इसका।’ जब आपका ये चक्र पकड़ता है, तब जान लेना चाहिये कि ये चक्र ऐसा है। बिल्कुल पक्का ऐसा। जब आप माफ कर देते हों तो यूं खुल जाता है। अभी आप देखियेगा कि अगर मन में आप कहें कि, ‘मैंने सबको एकसाथ माफ कर दिया। तो देखिये कितना हल्का होता है। नहीं तो फिर इस क्षण, जब कि आप अपने आत्मसाक्षात्कार की ओर सब से महत्वपूर्ण क्षण के लिये आये हैं, तो कैसे प्राप्त करियेगा। इतनी बड़ी चीज़ को आप इतनी छोटी सी एक गलती के लिये क्या छोड़ दीजियेगा। इसलिये कृपया आप सबको…सबको… सबको माफ कर दीजियेगा, अपने मन से और खुश हो जाईये। प्रसन्नचित्त होना चाहिये । प्रसन्नचित्त आदमी परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। हमें तो परमात्मा के दरबार में जाना है, तो क्या रोनी सूरत ले के जायेंगे। तो वहाँ पर तो हमें खुश खुश रहना चाहिये। तो इसी खुशी में हम इसे प्राप्त कर सकते है । क्योंकि इससे जो आनन्द हमें प्राप्त होगा उसके जैसे कोई स्वागत की तैयारियाँ हमारे मन में होनी चाहिये। और आपसे मैं बताना चाहती हूँ, कि आप सब में ये शक्तियाँ हैं, सब में पार होने की क्षमता है, सब में ही ये चीज़ पाने का पूर्ण अधिकार है, जन्मसिद्ध। अब एक और बात है कि जबरदस्ती किसी पर नहीं हो सकती। किसी को पार नहीं होना है वो कृपया बाहर चले जायें या हट जायें। रही बात ये कि बहुत से लोगों ने लिखा है, कि कुण्डलिनी के जागरण से ये होता है, वो होता है, हमने तो कहीं देखा नहीं। कोई भी ऐसी बात नहीं होती कुण्डलिनी की जागरण से। हाँ, अगर कोई आपको बाधा वगैरा हो तो कभी-कभी मैंने देखा कि नाचने, कुदने लगते हैं, कभी-कभी, बहुत कम । इस लेक्चर में जितना भी कहना था, कह दिया। पर इससे सबकुछ तो नहीं हुआ ना! अभी बहुत कुछ है और इसके लिये हमारी टेप्स वगैरा हैं और इसका जो फॉलोऑन होगा वहाँ आप लोग आईये। ये नहीं कि सहजयोग आज कर दिया और खत्म! ऐसे नहीं। आज तो सिर्फ आपका अंकुरित होना है। उसके बाद आपको वृक्ष बनना है। हजारो वृक्ष खड़े करने हैं। इसलिये आपको इसमें मन से आगे बढ़ना चाहिये। उसमें किसी को पैसा नहीं देना है, कुछ नहीं। एक बार रोज रात सोने से पहले पाँच मिनीट ध्यान करना होता है और शायद एक बार हप्ते में आपको एकत्रित होना होता है। इससे बहुत बहुत ज्यादा आपको समाधान और इसके ऊपर प्रभुत्व, मास्टरी आ जायेगी । इतना सा टाइम आपको अपने लिये और अपने आत्मसाक्षात्कार के लिये देना होगा। क्योंकि अपने आत्मसाक्षात्कार का पालन करना, इसे महत्त्व देना, उसकी इज्जत करना उसका गौरव समझने के लिये, क्योंकि उसी में आपका भी गौरव छिपा हुआ है। आपका जो गौरव है उसी से ज्ञात होगा। जैसे एक दीप की बाती आप बार-बार ठीक करते रहते हैं और उसे प्रज्वलित करते रहते हैं, इसी तरह से इस कुण्डलिनी की बाती को भी आपको बारबार उठा कर के और ठीक करना होगा। पर जब आप उस दशा में हो जायेंगे जहाँ आपके विकल्प में आप स्वयं ही उस कार्य को कर सकेंगे। लेकिन आप बहकेंगे नहीं। ये नहीं की दसरों को भला बूरा कहेंगे और कहेंगे कि मैं तुमसे अच्छा हूँ। वो चीज़ खत्म हो जाती है। वो अहंकार खत्म हो जाता है। इसके बाद मुझे पूर्ण आशा है कि आप लोग कहाँ कहाँ से, कौनसे कौनसे गाँव से .

आये हैं और बहुत दूर दूर से आये हैं इसके लिये मैं बहुत आशीर्वाद देती हूँ आपको। विशेष रूप से उन लोगों के लिये जो रात को यहाँ आ कर सो गये थे मैंने सुना। इतना प्यार, इतनी समझ जो मिली है, मुझे तो समझ ही नहीं आता कि किसको धन्यवाद दें! हिन्दुस्तानिओं को पार कराना बहुत आसान है। क्योंकि आप पूर्व जन्म के बहुत बड़े कोई लोग रहेंगे कभी, जो इस पुण्यभूमि में आपका जन्म हुआ है। इसमें कोई शक नहीं। आपको तो बिल्कुल मुश्किल नहीं है । क्योंकि वाकई में मैंने देखा है, कि जितना आसान हिन्दुस्तानिओं को पार कराना है, कहीं नहीं है। अब आपको इतना ही करना है, जैसा मैं बताती हूँ कि आप लोग जो कुर्सी पर बैठे हैं अपने जूते उतार लें। और दोनों पैर अलग रखे। अब आपका राइट हैण्ड मेरी ओर करें। मैं इसलिये राइट और लेफ्ट कहती हैँ कि अपने देश में इसको अलग अलग नाम है इसलिये मैं राइट और लेफ्ट कहती हूैँ। चश्मा भी उतार लें। राइट हैण्ड मेरी ओर करें और लेफ्ट हैण्ड जो है वो अपने तालू के ऊपर, तालू, जब हम बच्चे थे तो यहाँ (सिर के ऊपर का भाग) की स्निग्ध हड्डी, उसे फॉन्टनेल बोन एरिया कहते हैं, उस तालू के ऊपर अधांतरी, आप लेफ्ट हैण्ड रखिये, राइट हैण्ड मेरी तरफ। और सर को झुका दीजिये। अब देखिये की उसमें से, आप ही के अन्दर से, ये ब्रह्मरन्ध्र इसे कहते हैं। माने ब्रह्म का रन्र, याने ब्रह्म का छेद जो है उसके अन्दर से ठण्डी या गरम हवा, आप ही के सर के अन्दर से आ रही है क्या। देखिये, सर झुका के देखिये। आपने अपने को माफ नहीं किया, अभी तक आपने दूसरों को भी माफ नहीं किया, तो गरम गरम हवा आयेगी। अब फिर से लेफ्ट हैण्ड मेरी ओर करें और राइट हैण्ड से देखिये। सर झुका के देखिये ठण्डी या गरम हवा आ रही है क्या सर में से। आपको चाहिये की आपका हाथ ऊपर साइड में घूमा कर के देखें क्योंकि कभी किसी को जोर से बाहर की ओर आती है। लेकिन सर को छुना नहीं । सर के ऊपर , अधांतरी, हमारी मराठी भाषा में कहते हैं। अब फिर से राइट हैण्ड हमारी ओर करिये, सर झूका के और देखिये की ठण्डी या गरम हवा तो नहीं आ रही। बाहर से नहीं आ रही। अन्दर से, आपके ही अन्दर से आ रही है। अगर आप माफ कर दें, अपने को और दूसरों को, तो ठण्डी आने लग जायेंगी। बहुत ठण्डी नहीं आती है। जिसको आदि शंकराचार्य ने सौंदर्य लहरी के पूछिये कि, ‘माँ, ये क्या परम चैतन्य है?’ तीन बार पूछिये। ‘क्या माँ, यही वो परम चैतन्य है?’ मुसलमान हो तो पूछिये, ‘रूह है?’ ईसाई होंगे तो पूछिये, ‘यही होली घोस्ट, कूल ब्रीज है ? ‘ तीन बार पूछिये। ये परमात्मा की प्रेम की शक्ति है। अब हाथ नीचे लीजिये। हाथ नीचे ले कर दोनों हाथ मेरी ओर करिये । और निर्विचार हो के मुझे स्पन्द कहा है। स्पन्द। अब दोनों हाथ आकाश की ओर उठा के और सर पिछे झुका देखें। बिल्कुल निर्विचार हो के मेरी ओर देखें। किसी किसी को नीचे से अगर आ रही हो तो उसको ऊपर उठा सकते है, इस तरह। अब जिन जिन लोगों के उंगलियों में या तलवे में, हाथ में या सर से ठण्डी हवा आयी हो, या गरम वो सब लोग दोनों हाथ ऊपर करें। ये तो सारा लखनौ ही पार हो गया। आपको मेरा अनन्त आशीर्वाद !