Adi Shakti Puja, The Shakti of Satya Yuga (Hindi with English live translation)

New Delhi (भारत)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

Shakti Puja 5th December 1995 Date : Place Delhi Type Puja 

आज हम सत्य युग में शक्ति की पूजा करेंगे  क्योंकि सत्य युग की शुरुवात हो गई है।  और इसी वातावरण के कारण शक्ति का रूप भी प्रखर हो गया है। शक्ति का  पहला स्वरुप है कि वो प्रकाशमान है, तेजस्वी है, तेजपुंज है  ये शक्ति जब प्रकट होगी,  पूर्णतया इस सत्य युग में,  वो हर  एक गलत किसम के लोग सामने उपस्थित हो जायेंगे।  उनकी सारी कारवाहियां सामने आ जाएँगी।   उनकी जो कार्यप्रणाली आज तक चोरी छुपे चल रही थी और उसमे वो मगन थे,  वो सब खुल जायेगा। हर तरह की बुराइयां, वो चाहे नैतिक हो चाहे मानसिक हों, आतंकवादी हो या किसी तरह की भी, सत्य को पसंद न हों।  ऐसी कोई सी भी संस्था, ऐसी कोई सी भी व्यवस्था बच नहीं सकेगी क्योंकि उस पर सत्य का प्रकाश पड़ेगा।  इस सत्य के प्रकाश में शक्ति की विशेष प्रकृति देखियेगा, उसकी एक विशेष आकृति देखियेगा।  कारण, मैने आपसे पहले बताया था कि अब कृत-युग शुरू हो गया और इसके बाद सत्य-युग आयेगा और यह भी बता दिया था कि अब सत्ययुग का सूर्य क्षितिज पर आ गया है। इसकी प्रचीति आपको मिलेगी,  इसका प्रूफ (Proof) आपको मिलेगा कि सत्य के मार्ग में जो भी असत्य लायेगा वो पकड़ा जायेगा, फिर वो सहजयोगी ही क्यों न हो। वो अपने को सहजयोगी कहलाता है और गलत काम अगर करता है, तो वो बच नहीं सकेगा। उसको आज तक सत्य ने बचाया, सम्भाला, उसकी रक्षा करी। लेकिन अब इसके आगे उसमें शक्ति नहीं, सहज में वो शक्त नहीं है कि वो सत्य के आगे ऐसे लोगों को बचा सके जो सत्य का तमगा लेकर चलते हैं। 

सत्य में सबसे बड़ी शक्ति आपसे मैंने परसों ही बताया था कि प्रेम की है। प्रेम की शक्ति सबसे बड़ी है। प्रेम का मतलब अंहकार रहित, किसी अपेक्षा के बगैर किसी भी एक्सपेक्टेशन (expectation) के बगैर प्रेम का अव्याहत सामराज्य फैलाना।  ये शक्ति कार्य करेगी किन्तु ये जो शक्ति चैतन्य की है वो आपके ही माध्यम से कार्य कर सकती है। अगर चैतन्य स्वयं ही इस कार्य को कर सकता, तो आज आप लोग सहजयोगी नहीं बनते और सहजयोगियों की कोई ज़रूरत भी नहीं रहती।  लेकिन आज जो सहजयोगियों की ज़रूरत आप समझ रहे हैं कि कितनी है कि सामूहिकता में सहजयोगी तैयार हो रहे हैं। इसका कारण यह है कि चैतन्य का वहन उसका (channel) आप लोग हैं। अब इस वहन करने वाली जो धाराएँ हैं उनको समझ लेना चाहिये कि आपको किसी भी गलत काम की ओर नज़र तक  नहीं उठानी चाहिये कयोंकि आप स्वयं शक्ति से संचालित है। आपमें हर तरह की शक्ति है, वहन हो रही है। तो वो ही शक्ति आपको शक्तिवान, बलवान हर तरह से समृद्ध और स्वस्थ बना सकती है। आपको और किसी चीज़ का आलम्बन करने की ज़रूरत नहीं है। जैसे ही आप दूसरे किसी चीज़ का आलम्बन करंगें, आप गिर जायेंगे। जैसे मैने देखा है कि बड़े-बड़े लोग होते हैं जो अपने को बड़े कहलाते हैं वो खबर भेंजेंगे कि हमें माँ से मिलना है,  हम उनसे स्पेशली (Specially) मिलना चाहते हैं। कोई स्पेशल स्पेशल होते नहीं हैं  पर हमको मिलना है। अब अगर मना करो तो लोग कहते हैं कि माँ वो बहुत सतायेंगे, तो मिल ही लीजिये उनसे। अब सब गिड़गिड़ा कर कहते है तीन बार कहँगे कि वो आने वाले हैं, वो आने वाले हैं। ( अस्पष्ट)  उसके इश्तहार लग जायेंगे। और वो आयेंगे, पार हो जायेंगे और ठीक भी हो जायेंगे, उसके बाद वो पूछेंगे भी नहीं।  क्योंकि वो समझते नहीं है कि सत्य की शक्ति कितनी जबरदस्त है। 

एक बार अगर आप सहज में आ गये तो बेहतर है कि आप सहज में उतर जाएँ, नहीं तो बचत नहीं है। हर बार इन्सान यही सोचता है कि मेरा क्या फायदा, सहज में आने से?   मेरा लड़का बीमार है, तो मेरी लड़की बीमार है, तो मेरा फलाना है तो ढिकाना है। तो मेरे पैसे गायब हो गये, तो इनकम टैक्स (Income Tax) आ गया, फलाना हो गया और ढिकाना हो गया। लेकिन ये सब आफते जो हैं ये एक साथ आपकी टल जायेंगी। सबसे पहले तो मनुष्य में अगर समाधान भी नहीं आया तो सहज बेकार है, उसके लिये। अब समाधान जब आ जाता है, बस बहुत हो गया अब नहीं चाहिये मुझे।  कोई गलत काम करने की जरूरत नहीं। कोई सा भी ऐसा काम करने की ज़रूरत नहीं कि जो हानिकारक हो समाज को,  दूसरों को, ( …अस्पष्ट) , किसी को भी हानिकारक कार्य करना सहज के बाद फलित नहीं हो सकता,  उसका नुकसान उठाना पड़ेगा।  हमने देखा, बहुत शुरू में बहुत से सहज में ऐसे लोग आये,  रुपया बनाया,  पैसा बनाया,  झगड़े किये, लड़ाई करी, ये करा, वो करा, इसके सिवा कुछ किया नहीं सहजयोग में। फिर खत्म हो गये क्योंकि सहज की शक्ति ऐसी है कि ऐसे लोगों को पार ढकेल देती है। फिर वो ठीक होकर के वापस आ जायें,  तो दूसरी बात है। जैसे समुद्र में दो शक्तियाँ होती हैं, एक शक्ति से तो बाढ़ आती हैं और एक से जो है समुद्र पीछे जाता है।  इसी प्रकार इस सत्य की शक्ति है जो स्पन्दित, स्पन्द का मतलब होता है जो एक बार संकुचित होता है और एक बार पूरी तरह से खुल जाता है उस हृदय में ही स्पन्द होता है। आदि शंकराचार्य ने वाइब्रेशनस (Vibrations) को स्पन्द कहा है। स्पन्द का मतलब है जो एक बार आपको उठायेगा वो दूसरी बार आपको गिरा भी सकता है।  ये  मैं आपको डरा नहीं रही हूँ, पर सूचना दे रही हूँ कि अब अपना वर्तन हमें ऐसा करना चाहिए कि जिससे हम सहज में अग्रसर हो सके।  

मैनें परसों कहा था कि नार्थ इंडिया (North India) में सहजयोग बहुत जोरों में फैल रहा है,  बहुत जोरों से। हर जगह जैसे आग लग गई हो, लोग सहज में आ रहे हैं।  क्योंकि सहज से लाभ बहुत है।  किसी को धन लाभ हो जाता है, पुत्र-लाभ हो जाता है, किसी का कहुत ज्यादा,  किसी का कुछ कम।  किन्तु सबसे बड़ा लाभ सहजयोग का यह है कि समाधान, कि इससे आगे अब कुछ नहीं चाहिये। मुझे और कुछ नहीं चाहिये, मैं सब पा चुका हूँ। ये जब स्थिति आपकी आ जायेगी तब समझना कि आप सहज में उतर गये। और फिर अनायास आप कुछ चाहें या न चाहें सहज आपकी देखभाल करेगा, आपको सर्वदा, पूर्णतया सन्तुष्ट कर देगा। आपका समाधान जो है वो सातवी श्रेणी में पहुँच जायेगा लोग कहेंगे इनको क्या हो गया?  ये क्यों इस तरह से निरीच्छ हो गये?  इनको क्या किसी तरह का सन्यास मिल गया?  इनको कोई परवाह ही नहीं।

एक बार हम अमरीका में गये थे वहाँ एक दुकानदार स्त्री थी।  उसको हमने जागृती दी।  तो कहने लगी कि माँ कमाल है। जागृती के बाद मुझे कुछ याद ही नहीं रहता। पहले मुझे हरेक दुकान की हरेक चीज़, कौन सा चीज़ आई कौन सी चीज़ गई;  क्या मिला, क्या नहीं मिला,  हरेक बात की मुझे पूरी परवाह रहती थी।  और हरेक चीज़ मैं लिख लेती थी और तो भी मुझे कभी नफा नहीं हुआ, और हमेशा देखती हूँ तो नुकसान ही होता था।  जो चीज़़ आये वो बिके ना, कुछ हो ये हो।  सहज के बाद ये हालत मेरी हो गई कि अब ना तो मैं गिनना जानती हूँ ना ही मुझे कोई चीज़ याद है, और देखिये कमाल ये है कि मुझे नफा ही नफा हो रहा है।  पता नहीं कैसे नफा हो रहा है, कौन मेरा सामान बेच रहा है।  कौन खरीद रहा है, कौन पैसा दे रहा है, मुझे किसी भी चीज़ की खबर नहीं।  और इस बेखवरी में ही सब कुछ बना जा रहा है।  माने, सहज ने अपने गोद में ले लिया उसे, और सारी जो कुछ परेशानियां थी,  नाप-तोलने की, बेचने की नफा रखने की, वो सब खत्म हो कर के, वो बस मस्ती में आ गई।   कहने लगी, अब क्या मेरी तो दुकान कोई चला हो रहा है, पक्की बात है।  मैं नहीं अपनी दुकान चला रही।  और सब चीज़ इस प्रकार हो जाने से मनुष्य समझ जाता है कि  अब मैं समाधन की सातवीं मन्जिल पे पहुँच गया, उसको सोचना भी नहीं पड़ता।  विचारों से परे ये दशा है, इसका कारण ये है कि सहज से पहले हम विचारों पर रहते हैं। हर चीज़ आप गिनते रहते हैं, हर चीज आप नापते रहते हैं, घड़ी हर बार आप देखते रहते हैं। और हर समय आप देखते हैं कि कुछ न कुछ चूक ही जाता है।  बहुत हिसाब-किताब रखने पर भी आप देखते हैं कि सरदर्द हो गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि सहज में आपने यह कार्य अपने ऊपर कैसे ले लिया क्योंकि ये तो सहज कार्य है,  स्पोंनटेईएस (Spontaneous)।  सहज में सब चीज़ एकदम सहज हो जाती है। ये आपको धीरें-धीरे तो अनुभव आते ही रहेगा। लेकिन सहज पे निर्भर हो जाना, ये शक्ति आज सत्य-युग में कार्य कर रही है। जिस दिन आप पूरी तरह से सहज में निर्भर हो जायेंगे तो सारा ही आपका कार्य,  सारा ही आपका जीवन ही सुचारु रूप से पूरी तरह से प्लावित हो जायेगा। और आपको किसी भी प्रकार की दखल देने की ज़रूरत नहीं। 

एक बार हमारे यहाँ चोरी हो गई।  हमारी सब साड़ियां चोरी हो गईं, मुश्किल से एक साड़ी सिल्क की बची। वही पहन करके मैं सारी पार्टियों में जाती थी और सब जगह जाती थी।  हमारे पति भी सोचने लग गए कि इनको क्या हो गया, ये एक ही साड़ी पहनती हैं।  मैने कहा मेरे पास अभी सिर्फ एक ही है। अब आप लोग इतनी साड़ियां मुझे देते हैं कि मैं मना भी करती हूँ तो साड़ी पे साड़ी, साड़ी पे साड़ी।  तो मैने कहा, अब अगर आप द्रोपदी वस्त्र हरण का आप अगर इन्ज़ाम करें तो कुछ ठीक हो जाये क्योंकि ये रक्खूँ कहाँ?   मैं  तो पहनती भी नहीं यह सब साड़ियां।  लेकिन समाघान मिलना यही सबसे बड़ा बख्शीश है। अब समझ लीजिये हमे कोई चीज़ पसन्द आई और उसके लिये हम दौड रहे हैं कि हमें ये चीज़ चाहिये वो चीज़ चाहिये, जरूरी चाहिये। उसके लिये मरेंगे वही चीज़ लेनी है कि वो देखिये हमें पसन्द वही है। मर-मराकर ली भी, कर्जा लेकर ली, चाहे जैसे भी ली। और उसके बाद उसकी ओर देखते नहीं, फिर दूसरी चीज़ की ओर देखने लगे। जो चीज़ पाई उसी का सुख नहीं,  उसी को देखना नहीं। आजकल इतने सुन्दर फूल खिले हुए हैं दिल्ली शहर में,  मैं वही रास्ते भर देखती आ रही थी।  इतने सुन्दर फूल खिल रहे हैं पेड़ों पर। आपमें से न जाने कितनों ने देखे हैं कि नहीं देखे हैं। 

अब घ्यान कहाँ है, घ्यान आपका अगर अपने आत्मा पर है तो आत्मा वही चीज़ दिखाये जो सुखदायी है, जो आनन्ददायी है। और उसमें फिर स्वार्थ असल में पाया जाता है, क्योंकि जिसमें आप स्व का अर्थ जान जाते हैं।   कैसे शब्द लगाये हैं देखिये, अपने जो बड़े पुरखे हो गये पूर्वज, उन्होंने ढूंढ-ढूंढ कर शब्द लगाये कि तुम स्वार्थ ढूंढो।  स्वार्थ माने स्वः का अर्थ। पहले लोग सोचते थे स्वार्थ का मतलब पैसा कमाओ ये करो वो करो, वो करो पर उसमें सुख नहीं मिला। जब खोजते-खोजते आप पगले हो जायेंगे तब फिर आप स्व की ओर दौडेंगे। इसलिए उन्होंने कहा कि पहले तू स्वार्थ खोज, इसमें तेरा क्या स्वार्थ है वो देख,  इसमें तेरा कौन सा फायदा है वो देख।  सहजधारा में जब आप बहते हैं तब ये सत्य-युग में आपको जान लेना चाहिये कि आप को जो सम्भालने वाला है जो देखने वाला है, उसके करोड़ों हाथ हैं, और उसके आँचल में आप चले गये।  अब क्यों गलत काम करो?   क्यों ऐसी वैसी बात करो जिससे कि आप पकड़ में आ जाये और बेकार में परंशान हो जाये। और अगर आप किसी चीज़ में पकड़ में आ भी गये तो भी ऐसे छूट जायेंगे।  उदाहरण के लिये हम बतायें कि हमने पाँच मूर्तियां खरीदी मिट्टी की कैनेडा में,  बहुत सुन्दर थी,  सोचा ऐसी मूर्तिया हमारे यहां बनें। अब सिर्फ मिट्टी की मूर्तियां पाँच खरीदीं, तो हमारे कस्टम (Custom)  वालों ने उसके दाम ।8.000 लगा दिये। मुझे बड़ी हंसी आई कि मिट्टी की मूर्तियों का दाम पांच का अट्ठारह हज़ार हो सकता है क्या?   अट्ठारह रुपये भी नहीं होगा, मैं हंसती रही तो वो पुलिस वालों के पास खबर गई,  तो वो भी हंसने लग गये।  मैने कहा, देखिये क्या तमाशा है कि इसके दाम अट्ठारह हज़ार हो सकते हैं?   और वाकाई में वो सब छूट गया। क्योंकि गलत चीज़ में पकड़ा उन्होंने।  तो सहज उसे अपने आप ही सब चीज़ को ठीक कर देता है। जिसकी जरूरत हे जो जरूरी होना है  जिसकी आवश्यकता है वो कार्य सहज ही कर देता है।  तो सहज पे चीज़ छोड़ना आना चाहिये।  सबसे बड़ी बात है ये चीज़ सहज पे छोड़ दो।  बहुत सी बातों में हम देखते हैं के लेग बेकार में परेशान रहते हैं,  बेकार में परेशान रहते हैं, और इस परेशानी का मतलब यह है कि अभी वो सहज नहीं है। 

तो एक तो इस सत्य-युग में शक्ति का जो स्वरूप है वो प्रकाश और दूसरा सत्य, तीसरा प्रेम और चौथा मनस शान्ति।  आप मन की शान्ति को प्राप्त कर लेते हैं, जो भी होता है उसे आप देखते रहते हैं। अगर कोई आदमी विचलित होता है तो वह सहजी नहीं है। आपने कितनों के नाम सुने होंगे। सॉक्रेटीस (Socrates) को नाम सुना होगा, ये हज़रत निज़ामुद्दीन साहब का सुना होगा, कि इनको तो यह हुआ था कि अगर तुम कल आकर हमारे सामने सर न झुकाओ तो हम तुम्हारी गरदन काट देंगे।  तो उस शहन्शाह की ही गरदन कट गई रात को।  वो किसने काटी?   उन्होंने थोड़ी काटी,  उनके शिष्यों ने थोड़ी काटी,  किसने काटी?   किसी ने तो काटी होगी।   इस प्रकार हर चीज़ सहज में हर प्रकार मैने कहा, दो तरफा चलती हैं। जैसे समुद्र में बाढ़ भी आती है और संकुतचित भी हो जाती है। उसी प्रकार सहज में भी आप दो शक्तियों के द्वारा देखे जाते हैं। पहली शक्ति से बढ़ावा और दूसरी शक्ति से आपको निकाल दिया जाता है।  एक बार सहज से आप निकल गये तो फिर हमारा आपका कोई सरोकार नही।  हमारे ऊपर आपका कोई अधिकार नहीं।  कोई भी आपको अगर हमारे ऊपर अधिकार जाताना है तो पहले सहज में घुलमिल लेना चाहिये।  जैसे स्वर्ण है तप कर के जब वो कुन्दन हो जाता है तो उस कुन्दन में ये शक्ति आ जाती है कि वो हीरे को पकड़ लेता है कुन्दन में जब आप हीरा बिठाते हैं तो उसके लिये कोई भी ऊपर से टांका लगाने की ज़रूरत नहीं। कोई चीज़ से पकड़कर लगाने की भी ज़रूरत नहीं। वो कुन्दन, इतनी मुलायम चीज़ कुन्दन, पकड़ लेता है हीरे को।  हीरे से बड़के और कोई कठिन चीज़ संसार में नहीं।  इसी प्रकार आपका भी कुन्दन हो सकता है। और वो कुन्दन में आप देखेंगे कि आपके अन्दर समाधान की शक्ति आ जायेगी। समाधान में विचार नहीं होते, विचार से परे।  सहजयोग से आप बुद्धि से परे, भावनाओं से परे, गुणातीत, एक ऐसी दशा में हैं कि जहाँ कोई विचार नहीं आता।  कोई विचार नहीं आता। आप किसी के तरफ देखकर के उस पर काई विचार नहीं करते, सिर्फ देखते रहते हैं। ये विचार करने की, जिसको रिफ्लेक्शन (Reflection) करते हैं, जो कुछ बात हुई,  फौरन शुरू।  किसी चीज़ को देखा तो विचार शुरू, लोग पगला जाते हैं विचार कर कर के। 

एक साहब ने मुझसे स्विट्ज़रलैंड (Switzerland) में कहा कि माँ चाहे आप मेरी गरदन काट दो पर मुझे विचार के तुफान से मुझे बचाओं, खुद डाक्टर थे वो। तो ये जो विचार हमारे अन्दर अंहकार की वजह से या संस्कारों की वजह से,  हमारे अन्दर बंधे हैं और उसको बांधने वाले और भी बहुत लोग हैं।  किताबें पढ़ो, कही किसी गुरू के पास जाओ, किसी से मिलो-जुलो बातचीत करो, वाद-विवाद करों।  रामदास स्वामी ने कहा है,  “मिटे वाद-सम्वाद ऐसा कराओ”। जिससे तुम्हारा वाद-विवाद का स्वभाव ही बदल जाये ऐसी बातचीत करो,  माने वाद-विवाद मत करो।  ये बात बिल्कुल सही है कि हम लोग सहज में आते हैं तो भी हर एक चीज़़ का हम विचार करते हैं। लेकिन सहज का चमत्कार हम जानते नहीं कि जब हमने अपने को सहज के हवाले कर दिया।   पूरी तरह से हम सहज के हवाले हो गये तो विचार भी सहज ही करेगा और सहज ही उसका हल भी करेगा।  जो हम नहीं जानते, पर प्रश्न हमारे चारों तरफ है। अब आज मैने कहा था समझ लीजिये कि तीन बजे पूजा होगी। मैं जानती थी कि सब घर गृहस्थी के लोग हैं, तीन बजे कैसे पहुँच पायेंगे। देर ही होने वाली है उसमें काई हर्ज नहीं, आराम से आयेंगे। आराम से चलो। बहुत बार आदमी सोचता है कि मेरा रास्ता भूल गया और वो परेशान रहेगा कहाँ से रास्ता ढूंढूं, किससे पूछ, क्या करू, मेरा रास्ता रह गया। ये रह गया।  अगर आपका रास्ता खो गया है तो सहज के कारण। या तो आपको किसी से मिलना है या आपको किसी चीज़ से गुज़रना है।  या वहाँ किसी चीज़ का आपको अनुभव लेना है इसलिये आपका रास्ता खो गया, उसकी चिन्ता करने की कौन सी बात है?  आखिर आप करने क्या वाले हैं?  कोई लड़ाई है,  युद्ध है, वहाँ जा रहे हैं।  और युद्ध में भी अगर सहजयोगी जायें तो वो युद्ध तो जीत लेंगे, लड़ेंगे-वड़ेंगे कुछ नहीं। 

सत्य में विचार की शून्यता आने से मनुष्य जान लेता है कि विचार जो हैं वो शक्तिहीन हैं।  और जहाँ-जहाँ जिन देशो में बहुत लोगों ने विचार पे निर्भरता रखी, जैसे अमेरिका का देश है।  तो फ्रायड जैसे गधे आदमी पर,  गधे से भी ज्यादा कहना चाहिये, मुझे इतनी गालियाँ नहीं आती।  ऐसे महामूर्ख, दुष्ट, आदमी को उन्होंने भगवान मान लिया। और हर समय वो ये सोचते हैं कि हमको आनन्द उठाना चाहिये।  और हर आनन्द ऐसा बनाया हुआ है कि उससे वो नष्ट हो जायें।  हर एक चीज़ जो उनकी, कोई चीज़ ऐसी है ही नहीं कि जिसमें नष्टता की भावना न हो। और जब तक वो नष्ट नहीं होते तब तक वो सोचते नहीं कि उनके आनन्द की परिसीमा हो गई।   जैसे उनके खेल देख लीजिये, पहाड़ों पे जायेगे। वहाँ स्कीइनग करेंगं वहाँ टंगड़ियाँ टूटेंगी, किसी की (Kidney) गुर्दा गायब, किसी का कुछ।  अब सामने दिखाई दे रहा है पर वहीं जायेंगे। 

हमारे नसीब भी जहाँ रहते थे, वहां एक चर्च होता था और चर्च के पास एक पब भी होता था, दोनों साथ साथ।  अब जो लोग पब में जाते थे, वो देख रहे हैं कि अन्दर से लड़खड़ाते हुए लोग आके जमीन पर गिर रहे हैं। और ये क्यू लगाकर अन्दर जाते थे कि हमें भी ऐसा ही बनाओ  कि हम भी लड़खड़ाते आयें। यानि विचार से अक्ल मारी जाती है, ये सीख रहे हैं।   अक्कल से जो-जो काम किये मनुष्य ने अंहकार में वो सब गलत हो गये। इसी से उनका भोग हम लोग उठा रहे हैं। लेकिन अगर आत्मा के प्रकाश में वो कोई कार्य करते हैं तो प्रकाश में कोई-सा भी कार्य सुचारू रूप से ही होता है,  ठीक ढंग से होता है,  समझदारी से होता है।  लेकिन न सूझ-बुझ, न समझदारी,  इस विचार में है क्योंकि इसमें वो चेतना ही नहीं।  तो आज जब सत्य-युग का समय आ गया और जब हम सत्य के मार्ग में चल पड़े तो पीछे मुड़कर देखने की कोई भी जरूरत नहीं है।  क्योंकि आपके साथ सबसे बड़ी शक्ति प्रकाश की है, आप प्रकाश में चल रहे हैं।   प्रकाश भी एसा कि जिसमें आप की छाया नहीं पड़ती।   आगे भी प्रकाश, दोनों तरफ प्रकाश और पीछे भी प्रकाश, लेकिन ये प्रकाश की ज्योत  आपको पूरी तरह से प्रज्जवलित करनी पड़ती है।  उसके लिये छोटा सा मार्ग में बताती हूँ कि आप सब लोग ध्यान करें, वो भी नहीं होता। 

विशेषकर स्त्रियों के लिये कहा जाता है कि ये लोग ध्यान व्यान नहीं करते।  सारा चित्त-खाना बनाना,  बच्चों में,  इसमें उसमें लिपटाव।  आश्चर्य की बात है कि औरतों को तो सबसे पहले ध्यान करना चाहिये।  क्योंकि वो समाज की शक्ति है पहली बात। स्त्री का सबसे बड़ा कार्य यह है कि वो समाज को बनाती हैं। यह नहीं कि वो कोई कहने लगे कि रसिया  (Russia) में औरतें मोटरे चलाती हैं और ट्रेने चलाती हैं और वो एयरोप्लेन चलाती हैं।  तो उन्होंने कौन से बड़ी भारी कमाल कर दी।  अपने आदमियों को तो नौकरी नहीं  है,  तो आप लोग क्यों चाहते हैं कि माटरें चलायें और टैक्सी चलाये।  आप का कार्य समाज को सुव्यवस्थित करना है, समाज को आपको बनाना है।  और उसके लिए एक समाधानी वृत्ति, एक सूझ-बूझ होनी चाहिए।  और इस सूझ-बूझ के साथ एक स्त्री के लिए विनम्रता होनी चाहिये।  नम्रता रुत्री में नहीं हो तो वो मर्द हो गई।  वो अगर हावी हो जाये और हर चीज़ में वो सोचे कि मुझे आदमी से मुकाबला करना है, तो गलत बात है।  ये भी कोई मुकाबला करने की चीज़ है?   आप स्वयं शक्तिशाली हैं आपको क्या जरूरत है किसी का मुकाबला करे?   मैं बार-बार इसलिये कह रही हूँ कि जिस-जिस देश में औरतों ने सामाजिक स्थिति का भार अपने सिर पे नहीं लिया वो देश आज डूब रहे हैं, और खत्म हो जायेंगे।  अपने बच्चों को सम्भालना,  घर में व्यवस्थित रहना, यह बड़ा भारी कार्य है। हाँ अगर जरूरत पड़े नौकरी कर लीजिये पर जैसे कि आदमियों के लिये मैं कहती हूँ कि अच्छा ठीक है आप लोग अगर खाना बनाना चाहते हैं तो बनाईये, कोई हर्ज नहीं, सीखना चाहिये पर वो उनका मुख्य कार्य नहीं है। इसी प्रकार स्त्री के लिये जरूरी है कि वो अपनी शक्ति को प्रज्जवलित करे। 

और इस देश की औरतों ने ही यहाँ का समाज रोका हुआ है, ये मान लीजिये आप।  लेकिन जबरदस्ती से नहीं प्रेम से,  प्रेम से और वो भी प्रेम निंवाज्य।  इस देश में ऐसी ऐसी औरतें हो गई हैं पन्नादाई, जिसने अपने बच्चें को युवराज को बचाने के लिये कटवा दिया।   ऐसी-ऐसी इस देश में औरतें हुई हैं, लेकिन ये इतिहास मात्र हो गया।  मैं कभी फॉरेन  (foreign) में बताती हूँ कि पद्मिनी ने 3000 औरतों के साथ जौहार  किया तो वो विश्वास ही नहीं करते, कि ऐसे कैसे हो सकत्ता है?   मैने कहा थी हमारे देश में ऐसी औरतें थीं।  आज उन्हीं के बलबूत पर हम आज तक टिके हैं क्योंकि जिस तरह का अन्धकार इस देश में चला हुआ है,  ये कब का खत्म हो गया होता।  उन्हीं की पुन्यायी पर आज हम लोग चल रहे हैं।  वो ही पुन्यायी आज इस सत्य-युग में एक विशेप रूप घारण करके सामने खड़ी है।  उसका चमत्कार अब देखिये रूमानिया के लड़के कल कैसे गाना गा रहे थे।  इन्होंने कभी अपने सरगम तक सुने नहीं कुछ इनको शिक्षा नहीं मिली नहीं। कल वो बता रहे थे इतन बड़े वादक कि साहब,  इसके लिये तो सालों तपस्या करने पर भी ऐसा हल नहीं आता।   ये कहाँ से ऐसा  कैसे हो गये, चमत्कार ही है ना आपके निजी जीवन में, सहज के बाद अनेक चमत्कार आये।  पर तो भी आप अपने विचारों पे ही निर्भर रहें। तो उस पर भी राम दास जी ने कहा है ”आल्पधारिष्ट पाये” परमात्मा कहता है, “अच्छा तेरा थोड़ा सा जो धीर चला है कर”, तेरे को जो करना है कर।

तो सहज में घुलने  के बाद एक बड़ी मस्ती है।  बहुत बड़ी मस्ती है, जब मस्त हुए फिर क्या बोले, उस मस्ती में आ जाना चाहिये।  फिर इसका मतलब ये नहीं कि आप पागल जैसे घूमिये। इस मस्ती में आप कर्त्तव्य-परायण हो जाते हैं, और उसके लिये आपको शक्ति मिलती है।  अगर आप शक्ति चाहते हैं तो उसके लिए, पहले, सबसे पहले सहज में आप पूरी तरह से उतरिये।  सब दुनियाभर की चीज़ छोड़िये। अब किसी को पैसा चाहिये किसी को सत्ता चाहिये, किसी को ये चाहिये किसी को वो चाहिये।  जिस ने कहा दिया “मुझे कुछ नहीं चाहिये, अब हो गया”।  चाहत सब खत्म हो गई तब फिर परम चैतन्य सोचता है अच्छा तेरी चाहत मैं पूरी करता हूँ।  फिर उसकी चाहत आपकी चाहत हो जाती है।  वो ऐसे-एसे चमत्कार करेगा कि आप हैरान हो जायेंगे। हमने तो सोचा भी नहीं ये कैसे हो गया, ये कैसे बन गया।  दुनिया भर की आफते और दुनिया भर की परेशानियाँ दूर हो जाती हैं।  फिर आपको माँगने का कुछ नहीं रह जाता, माँगने का कुछ नहीं रह जाता।  फिर आप देने वाले हो जाते हैं सिर्फ देने वाले।  मांगने का क्या?   मांगने का तो वही करेंगे जिनके पास कमी रह गई और जो समाधान के सागर में डूब गये वो क्या माँगेंगे?  चारों तरफ देखके कि ये क्या करें, इसकी क्या जरूरत है।  पर इसका मतलब ये नहीं कि आप सन्यस्थ हो जायें और जंगल में घूमिये।  इसमें हमारे यहाँ राजा जनक का बड़ा सुन्दर वर्णन है, उनको विदेही कहते थे।  वो राज्य करते थे, उनके सामने नृत्य होता था, संगीत होता था।  और उनके बड़े भारी प्रोसेशन  (Procession – जुलूस) निकलते थे, सब कुछ होता था पर उनको लोग विदेही ही कहते थे।  तो एक शिष्य ने  नचिकता ने, अपने गुरु से कहा कि जब वो आते हैं तो आप क्यों खड़े हो जाते हैं?   कहने लगे कि वो हम से बहुत ऊँचे हैं आपको पता नहीं।  उन्होंने कहा, “कैसे?”   हमने तो सब संसार छोड़कर,  सन्यस्थ भाव लेकर फिर कुछ अनुभव लिया;  ये तो बगैर छोड़े ही उसमें बसे हुए हैं।  तो छोड़ने का है क्या, अगर आपने पकड़ा है तो आप कहेंगे कि मैने इसे छोड़ा, उसे छोड़ा, उसे छोड़ा।   पर जब पकड़ा ही नहीं तो छोड़ेंगे क्या?  वो पकड़ हमारे अन्दर जो विचारों से चाहे संस्कारों के कारण और अंहकार के कारण अगर जाती नहीं है तो इसका मतलब अभी आप सहज में उतरे नहीं।  किसी भी चीज़ की पकड़ तभी होती है जब हम उस चीज़ को इतना महत्वपूर्ण समझते हैं।  आत्मा की कोई पकड़ नहीं है,  वो तो देने वाला है, वो तो प्रकाश चारों तरफ फैलाने वाला है। वो शक्ति देने वाला है  उसी शक्ति कि उस शक्ति से लोग अभिभूत हो जायें, पूर्णतया उसमें एकाकारिता प्राप्त करें।   कितना  प्रेम कि सब संघर्ष खत्म हुआ।  

एक साहब मुसलमान अलजीरिया के थे तो उनके माँ-बाप ने कहा कि हम हज करने जायेगे।   तो कहने लगे कि लन्डन जाओ। पूछने लगे, “लन्डन कैसे?”   कि हज तो लन्डन में आ गया है, अच्छा हाँ वहीं जाकर तो मैंने पाया। वो लन्दन आये दोनों मियाँ-बीवी।  कहने लगे,  हमारे लड़के ने बताया कि हज लन्डन आ गया है तो हम तो यहाँ चले आये।  अब ये समझ और सूझबूझ की बात उस एक लड़के में आई और उसके माँ-बाप ने कहा कि “हम तो आ गये यहाँ”। तो मैने कहा कि तुमने उसकी बात क्यों मान ली। कहने लगे कि वो बहुत ही समझदार लड़का है, उसमें इतना परिवर्तन हो गया कि हमें विश्वास ही नहीं होता कि ये कैसे-ऐसे हो गया लड़का ?   इतने लोग हज पर जाते हैं और कुछ नहीं होता उनमें, जैसे के वैसे ही।  शराब पीते हैं तो शराब पीते हैं, बीवी को मारते हैं तो बीबी को मारते हैं, जो करते थे वो ही करते रहते हैं पर ये एक लड़का हमने देखा कि इसमें बड़ा परिवर्तन आ गया।  तो हमने कहा ठीक हो सकता है कि हज का भी परिवर्तन अब लन्डन में हो गया होगा, और इसीलिये हम लन्डन आ गये। अब ये माँ-बाप के ऊपर असर आया।   ये दूसरी शक्ति है सत्य की,  कि सत्य इतना प्रकाशवान, बलवान और इतना प्रेममय होता है कि उसका असर बहुत लोगों पर पड़ जाता है और लोग उसे देखकर के कहते हैं कि भई ये आदमी कौन है?   ये एसे कैसे हो गया?   

हमारा सहजयोग इतना फैला नहीं था महाराष्ट्र में तो एक साहब सहज में आये, बड़े जबरदस्त, अब नहीं रहे वो।  तो वो कलेक्टर के, कोई , काम होगा, कलेक्टर के  ऑफिस (office) में गये।  वहाँ आरम से वैठे रहे। कोई कहे हमे जाना है पहले, उन्होंने कहा जाओ, जिसको जाना है जाओ,  वो आराम से बैठे रहे। उसके बाद उनको अन्दर बुलाया। पूछा कि भई तुम इतने आराम से कैसे बैठे रहे। उन्होंने कहा, “करना क्या है, सबको जल्दी थी, मुझे कोई जल्दी नहीं थी, मैं बैठा था आराम से यहाँ ध्यान लगाकर।” महाराष्ट्र में तो गुरू की बड़ी महत्ता है कहने लगे आपके गुरु कौन।   कहने लगे वो मैं  नहीं बताऊंगा, नहीं बताना ही पड़ेगा।  फिर जब वो घर गए तो उनके पीछे-पीछे चार पांच लोग गए। उनसे कहा बताइये आपके गुरु कौन हैं नहीं तो हम आपको छोड़ेंगे नहीं।  तब फिर उन्होंने मेरा नाम उनको बताया फिर सहजयोग में आये। जब मैं वहाँ गयी राहुरी में तो  देखा कि आग लगी हुई थी।   बाप रे, मैंने कहा इतने लोग सहजयोग में कैसे आ गए।  एक आदमी की वजह से, एक आदमी के चरित्र की वजह से, उसके बर्ताव की वजह से, कोई देखने में कोई खूबसूरत नहीं थे वो। ऐसा कुछ नहीं था, पर उनकी जो तेजस्विता थी उस तेजस्विता से उन्होंने चमका दिया वहां।   तो ये भी कहना आज की हम क्या कर सकते हैं, ऊपर से सब सड़ गया देश, सत्यानाश हो गया  (..अष्पष्ट) एक आदमी अगर अच्छा आ जाये।   मैंने आज सवेरे ही कहा था कि दुनियाँ झुकती है झुकाने वाला चाहिए।   फिर आप इतने लोग अगर लोग झुकाने वाले हो जाये तो और क्या चाहिए।  लेकिन पहले इसका अहसास होना चाहिए कि आप सत्य युग में बैठे हुए हैं।  और सत्य की शक्ति आप के पास चल रही है, कोई किसी चीज़ की गरज  ही नहीं आपको।  सब चीज़ अपने आप घटित हो जायेंगी, किसी को समझ ही नहीं आता कैसे हो जाता है।  कल मैंने दस मिनट पहले बताया कि भई मैं खाना यही खा लूंगी, घर तो अब जा नहीं सकते।  क्योकि कव्वाल लोग बैठे हैं।   और दस मिनट में देखती क्या हूँ चूला भी लगा है चीज़ें भी बन रही हैं।   वो लोग खुद हैरान हो गए,  माँ पांच मिनट पहले लोग यहाँ आये और ये सब हो कैसे गया कुछ समझ में ही नहीं आया।  स्पॉनटेनिअस (Spontaneous)  उनका नाम है, मैंने कहा वही हो गया स्पॉनटेनिअस।  कैसी कौन चीज हो जाती है, कैसे चीज बन जाती है वो आप बता नहीं सकते। 

इस परम चैतन्य की शक्ति इसका कोई वर्णन नहीं।   किसी ने मुझसे पूछा कि क्या गणेश जी ने दूध पिया?  क्या ये शिवजी ने दूध पिया?   मैंने कहा कि पिया होगा।   मैं तो ये परम चैतऱ्य को देख-देखकर खुदी हैरान हूं कि मेरे साथ ही इतनी कमाल कर रहे हैं और मुझे भी पूरी तरह से एक्सपोज़ (expose) कर रहे हैं।  तो ये कुछ भी कर सकते हैं, इनका क्या ठिकाना।  पर मुझे नहीं पता कि गणेश जी इतना दूध पीते हैं?   बहरहाल अब चीज पे आश्चर्य करने के सिवाय और कुछ रह गया क्या?   जैसी-जैसी बातें हो रही हैं आप देख रहे हैं उस पर भी आप अपने ही ऊपर निर्भर हैं तो ठीक है चलने दीजिए। 

आप मान लीजिए कि आप सत्य-युग में उतर आये हैं और ये शक्ति हजार तरह से आपको प्रकाशित करेगी, हजार तरह से।   न जाने कितने आपके अन्दर के गुण खिल सकते हैं और आप सिर्फ एक शब्द जो शिरडी साई नाथ ने कहा था कि सबूरी की जरूरत है।  पर ये सबूरी भी सोच समझ कर नहीं, ‘अच्छा सबूरी करो सबूरी करो’ ऐसा कहने की जरूरत नहीं है।  ये सबूरी जो है ये एक स्थिति है, उसमें सब कुछ आ गया।  एक स्थिति है, उस स्थिति में अगर आप उतर गये तो किसी को कहने की जरूरत नहीं, किसी को बताने की जरूरत नहीं, वो अपने आप ही सब कुछ घटित हो जायेगा।  ऐसी-ऐसी बातें कि जो सोच भी नहीं सकते ऐसे ही घटित हो जायेंगी।   इसके अलावा एक बात और भी है बिशेष कि आप इस भारतवर्ष में पैदा हुए हैं।  बहुत बड़ी बात है ये, पूर्व जन्म के अनेक-अनेक पुण्यों के कारण ही इस योग-भूमि में आप पैदा हुए हैं।  और इसी में सत्य-युग पहले आयेगा और दुनिया देखेगी कि सत्य-युग क्या चीज है,  इसका चमत्कार क्या है। लेकिन आप ही मशालें हैं, आप ही ज्योत हैं आप ही को ये प्रकाश देना है। इसको अहसास करना चाहिये, इसको समझना चाहिए, इसको अपनाना चाहिए।  क्योंकि कितनी बडी जिम्मेदारी आप पर आज है, ये समझ लीजिए।   मैं भी कहीं जन्म लेती तो अच्छा होता,  ऐसे बहुत लोग कहते हैं कि माँ अगर आप अमरीका में जन्म लेते तो अभी तक पता नहीं कहाँ तक लोग आपको पहुंचा देते।  मैंने कहा, नहीं, जहां मैंने जन्म लिया वो सबसे ऊँचा प्रदेश है।  ये तो बड़े भाग्य से होता है।  और 

यहां भी आप समझ लीजिये कि सहजयोग इतने जोरों से फैल रहा है, बहुत ज्यादा लेकिन इसका जो प्रसार हो रहा है।   इतना दूर-दूर जो फैल रहा है उसका मुख्य कारण क्या है? उसका कारण ये है कि आप इस योग-भूमि में पैदा हुए हैं चारों तरफ जिसमें चैतन्य भरा है।  पृथ्वी से भी इसी देश में सबसे ज्यादा चैतन्य बह रहा है।  लेकिन उससे आगे आपको ये देखना है कि आप ही इसके वाहन हैं।  आप ही इसको दूसरों तक पहुँचा सकते हैं। अब भी मैं देखती हूँ कहीं न कहीं कमी है, उसको ठीक करिये। उसके पीछे पड़के उसे ठीक करिये। किसी तरह से  ठीक करिये।  मुझे ये चीज़ ऐसी करनी है ये शरीर, ये मन, बुद्धि अंहकार वगैरा आदि जो व्याधियाँ हैं उनसे मुझे अपने को बिल्कुल खालिस कर देना है,  साफ कर देना है। और तभी ये देश का उद्धार होगा।  बहुत बड़ा भविष्य इस देश का लिखा है और जो ये कहते हैं कि यह देश बहुत खराब हो गया है,  इसमें ये खराबी है,  वो खराबीं है।   मैं कहती हूँ कि जो सबसे कठिन समुद्र होता है उसमें वही जहाज़ चल सकते हैं जो मज़बूत होते हैं।  इसलिये आपको और भी मज़बूती ज्यादा करनी चाहिये। एक तरफ आप देखते हैं घोर अन्धकार है, तो दूसरी तरफ ये होना चाहिये कि महान प्रकाशमय ऐसे आपके जीवन लोगों के सामने उतरने चाहिये।  इस बड़प्पन को पाने के लिये कुछ करना नहीं है।  भक्ति से, पूर्ण भक्ति के साथ आपको ध्यान करना है, ये जरूरी चीज़ है।  प्रेम से भक्ति से आप ध्यान करे और फिर इस भक्ति मे जो आप पायेंगे वो एक ऐसी असाधारण व्यक्तित्व की प्रतिमा होगी कि लोग कहेंगे कि साहब यह है कौन?   ये कहाँ से आये, ये स्वर्ग से उतर कर आये हैं या कि ये कौन हैं?   यही आज क्षमता आप रखते हैं।  यही आपका पोटेंशियल (Potential) है।   आप समझ लोजिये कि आपके अन्दर कितना गौरवशाली जीवन कुम्हला रहा है उसे जगाईये।  सब दुनियादारी को छोड़िये, उसके पास मोटर है तो मेरे पास मोटर नहीं है, उसके पास फलानी मोटर तो मरे पास नहीं (अस्पष्ट), क्या करने का है?   इसमें क्या रक्खा है?  आपको आश्चर्य होगा कि मुझे तो मेरी मोटर का नम्बर नहीं मालूम।  वो तो छोडिये, मुझे उसका कलर (रंग) भी नहीं मालूम, , मुझे उसका मेक भी नहीं मालूम।  मैं रुपये भी नहीं गिन सकती।   पर अगर आप मुझे दस रुपये दे दीजिये तो शायद गिन लू पर शायद सौ रुपये देंगे तो गिन नहीं सकती।   मैं बैन्क का चैक नहीं लिख सकती, कुछ नहीं कर सकती, बिल्कुल निष्क्रिय।   कोई भी कार्य नहीं कर सकती और सारा कार्य हो रहा है देखिये आप लोग आये हैं बैठे हैं।  इसकी सूझ-बुझ अगर आपके अन्दर जग जाये तो आप अपने को अन्दर से सफाई कर ले।  चक्र साफ कर डाले, ध्यान करें।  और इससे ही सारी दुनिया का उद्धार, जो में कह रही हूं बार-बार,  इसी भारत-वर्ष से होना है उसकी दारोमदार आप लोगों पर है।  

तो आज के इस शुभ अवसर पे आप मन में सत्य के रास्त पे खड़े हो जाइये।  सब लोग, देखिये कितना चमत्कार हो जायेगा।  अरे, अगर आप इस रास्ते पे ही नहीं है तो सत्य आपकी मदद कैसे करेगा?   अगर आप गली कुचों में घूम रहे हैं या आप इस ट्रैफिक में फंस रहे हैं तो सत्य आपकी कैसी मदद करेगा?   इसलिये आप आज निश्चय करें कि हम इस देश का भाग्य उज्जवल करेंगे,  अपने चरित्र से और अपने सहज-शक्ति से।  इतना अगर आप अपने अन्दर समा लें और सारी गलत बातें छोड़ दीजिये। 

अब हम जैसे बहुत सारा सामान लाये सबको प्रेजेंट (present)  देने के लिए, सब सहजयोगियों को प्रेजेंट देने के लिये।   अधिकतर तो कस्टम वालों को दिखा ही नहीं, उनको दिखाई ही दिया नहीं कुछ,  वो सोचते हैं कि इसमें कुछ है ही नहीं।  क्योंकि उस पे प्रेम का आवरण था, कैसे दिखाई देता?   कैसे पकड़ते?   दिखाई नहीं दिया, अदृश्य हो गया।  क्योंकि इतने प्रेम से परदेसी भाई आपके लिये कुछ सामान ले के आये थे तो इसमें कसटम क्या देना?   प्रेम का क्या कोई कसटम होता है?   कोई व्यापार करने तो आये नहीं यहाँ।  और देखिये कि कमाल है और वो बड़े विश्वास के साथ माँ हमें मालूम है वो कसटम बाले देखते ही नहीं, उनको दिखाई ही नहीं देता। क्या होता है पता नहीं। 

एक देवी जी ने यहाँ ऐसी एक चाँदी की थाली लीं, तब चाँदी एक्सपोर्ट (export) अलाऊड (allowed) नहीं था।  उसको नहीं मालूम,  बिचारी फॉरेनर्स को यहाँ के तो रोज ही लॉज़ (laws) बदलते रहते हैं।  तो उसने चाँदी की थाली अपने बक्से में रक्खी और ले जा रही थी क्योकि पूजा के लिये।  तो कस्टम वालों ने खोला, ऊपर ही मरा फोटो था,  तो उन्होंने नमस्कार करके बन्द कर दिया।  इसी आदान-प्रदान से हमारे सब प्रोब्लेम्स( problems) सॉल्व (solve) हो जायेंगे।   अब वो कहते हैं कि यहाँ वीजा नहीं देंगे तो ये कहगे कि हम भी नहीं देंगे।  तुम इतना रुपया लोगे तो हम भी इतना रुपया लेंगे।  ये सब खत्म हो जायेगा, एक दिन।  एक दिन ये सब खत्म होना है क्योंकि सब हम एक ही हैं।   ये सारा विश्व एक है,  लेकिन मनुष्य के दिमागी जमा खर्च से ये अलग-अलग इसमें बंट गया है।  यही बात धर्म की है यही बात हरेक चीज की है,  कि दिमागी जमाखर्च से इन्सान अलग-अलग इसमें बंट गया है।  सहजयोग सबका एकत्रीकरण ही नहीं है,  सिर्फ समन्वय ही नहीं है, पर समग्रता है।  सबके तत्व को एक साथ बाँधने वाली ये शक्ति आज चलायमान है,  उसका आप सब लोग उपयोग करें क्योंकि ये आप ही के अन्दर से प्रकटित होगी। आप समझ आप सबको अनन्त आशीर्वाद।