New Year Puja

(भारत)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

New Year Puja. Kalwe (India), 1 January 1991.

[Shri Mataji speaks in Hindi]

आज हम लोग बम्बई के पास ही में ये पूजा करने वाले हैं। बम्बई का नाम, मुम्बई ऐसा था। इसमें तीन शब्द आते हैं मु-अम्बा और ‘आई’। महाराष्ट्रियन भाषा में, मराठी भाषा में, माँ को ‘आई’ ही कहते हैं। वेदों में भी आदिशक्ति को ‘ई’ कहा गया है। सो जो आदिशक्ति का ही प्रतिबिम्ब है, reflection है, वो ही ‘आई’ है। इसलिए मां को आई, ऐसा कहते हैं और बहुत सी जगह माँ भी कहा जाता है। इसलिए पहला शब्द, उस माँ शब्द से आया है, मम। अम्बा जो है, वो आप जानते हैं कि वो साक्षात कुण्डलिनी हैं। सो ये त्रिगुणात्मिका- तीन शब्द हैं। और बम्बई में भी आप जान्ते हैं कि महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली ये तीनों का ही एक सुन्दर मन्दिर है। जहाँ पर पृथ्वी से ये तीन देवियाँ निकली हैं। हलाकि, यहाँ पर बहत गैर तरीके लोग उपयोग में लाते हैं पर तो भी ये तीनों देवियाँ यहाँ जागृत हैं।

सो बम्बई वालों के लिए एक विशेष रूप से समझना चाहिए कि ऐसी तीनों ही मूर्तियाँ कहीं भी पाई नहीं जाती। वैसे तो आप जानते हैं कि ही माहूरगढ़ में महासरस्वती हैं, और तुलजापुर में भवानी हैं महाकाली हैं, और कोल्हापुर में महालक्ष्मी। और वरणी में अर्धमात्रा जो है उसे हम आदिशक्ति कहते हैं, वो हैं। लेकिन यहाँ तीनों ही मूर्तियाँ जागृत हैं। लेकिन जहाँ सबसे ज्यादा मेहनत होती है, और जहाँ पर चैतन्य सबसे ज्यादा अपना कार्य करता है। उसकी वजह भी कभी- कभी यह होती है कि उन जगहों में कुछ न कुछ ऐसी त्रुटियाँ होती हैं, जिसका कुछ न कुछ कारण होता है। और उस कारण को किसी तरह से नष्ट करने के लिए ही ऐसी मूर्तियाँ वहाँ (unclear – प्रकट) होती हैं। कहा जाये कि जैसे अरेबिक देशों में जोरास्टर ने पाँच बार जन्म लिया। उसके बाद अनेक आदि गुरुओं ने वहाँ जन्म लिया। अब्राहम, मोज़ज़ और फिर अन्त में मोहम्मद साहिब ने भी वहाँ जन्म लिया। क्योंकि वहाँ बहुत जरूरत थी, इसलिए जन्म लिया गया। और वहाँ ये कार्य हुआ। लेकिन बम्बई शहर के बारे में ये कहा जाता है कि यहाँ लोग बहुत ही ज्यादा भौतिकवादी शुरू से रहे होंगे।

ऐसा किस्सा है कि एक बार पुण्डरिकाक्ष, पुण्डरीक अपने माँ बाप को ले करके बम्बई शहर में आ गया। वो अपने माँ बाप को एक कावड़ में बिठा करके तीर्थ यात्रा के लिए जा रहा था। दोनों बूढे थे। और जब वो तीर्थ यात्रा में जा रहा था। तो उसने सोचा कि चलो अच्छी नगरी है मुम्बई, तो यहाँ दो मिनट आराम किया जाये। तो वहां जब वे रुक गए तो उसकी जितनी भी चैतन्य की लहरियाँ थी इतनी खराब हो चुकी थी, उस जगह की, भौतिक वाद की वजह से। भौतिकता की वजह से। कि उसके मन में ये विचार आया कि मैं इन माँ बाप को लेकर कहाँ जा रहा हूँ? और क्या मुझे करने का है? और इससे मेरा क्या लाभ होगा? क्योंकि जो भौतिकवादी लोग होते हैं, वो सिर्फ यह सोचते हैं कि हमारा भौतिक क्या लाभ होगा? इससे मेरा क्या लाभ होगा? मेरी तो पीठ दुखने लग गई। इनको मैं कहाँ ले जाऊं? तो उसने अपने माँ-बाप से कहा कि आपको अब जैसा भी करना है, आप अपनी व्यवस्था करो। और यहाँ जाइये, मेरे बस का अब कुछ नहीं। मैं आगे नहीं जा सकता। तो माँ-बाप सोचने लगे क्या बात है। उन्होंने भी देखा कि यहाँ चैतन्य कुछ गड़बड़ है। तो कहा अच्छा ठीक है, हम लोग चले जाएंगे। तुम सिर्फ इस बम्बई के नगरी से कहीं मुझे बाहर तक ले चलो। हम लोगों को बाहर ले जाओ यहाँ से, और उसके बाद हम चलेंगे। पहले तो मुम्बई का हम दर्शन करते हैं, और फिर तुम हमें बाहर ले चलो। इस पर वो राजी हो गये। कि चलो इनको बाहर तक छोढ़ दें, फिर मेरे कोई सर दर्द नहीं रहेगा। और उनको वो फिर बाहर छोड़ने चले गए। और जब उन्हें वो बाहर छोड़ने गए तो उनको बड़ा कष्ट हो रहा था। और उनको विचार आ रहा था, कि ये क्या इन लोगों की झंझट मेरे पीछे में लग गयी। क्या मैं इनको वहां तक कैसे ले जाऊं? अब क्या होने वाला हैं? मेरी तो कमर और बदन सब सारा उनका टूटने लग गया। और जैसे ही वे बाहर पहुँचे, तो वैसे ही उनको ठीक लगने लगा। तो शायद वो कलवा ही आये होंगे, क्योंकि कलवा बम्बई से बाहर है, नसीब से। पर जब वो बाहर आये तो उस वक्त उनको समझ में ही नहीं आया कि इतनी ताकत कहाँ से आ गई, इतनी शक्ति कहाँ से आ गई । और एकदम उनका चित्त बदल गया। उन्होंने अपने माँ- बाप से माफी माँगी। उन्होंने कहा पता नहीं मेरे दिमाग में यह बात कहाँ से आयी, बस आप मुझे क्षमा कर दीजिए। और मैं आपको ये मेरा पुण्य कर्म करने का है। मैं आपको ले जाता हूँ आगे।

और यहाँ पर जो आप जानते हैं, कि यहाँ पर दो सरोवर हैं। एक का नाम तो है जो की पहले कहते थे पम्पा सरोवर है, वर्णित है। दूसरा जो है उसका भी वर्णन श्री रामचंद्र जी के इसमें किया गया है। तो इसका मतलब है कि श्री रामचंद्र जी दण्डकारण्य में जाने से पहले इस जगह आये। और सारे दण्डकारण्य में घूमें, और वहाँ उन्होंने बहुत सारे चैतन्य का प्रादुर्भाव किया। ये सब होते हुए भी महाराष्ट्र में और भी बहुत कार्य किया गया। अनेक संत यहाँ पैदा हुए। और संतों को बहुत सताया भी गया। तो भी बार-बार संत यहाँ आते गये। और संतों की वजह से एक बड़ा भारी कार्य हुआ कि लोगों में धर्म के प्रति अध्यात्म के प्रति रुचि हो गई। पर तो भी यहाँ कोई न कोई बढ़ी गड़बड़ बात रही होगी। क्योंकि यहाँ अष्टविनायक हैं, और साढ़े तीन पीठ हैं। उसके अलावा तीन देवियों का यहाँ प्रादुर्भाव, खासकर बम्बई में हुआ। इसका मतलब यह है कि यहाँ तो भी कोई न कोई बड़ा भारी दोष रहा होगा। इसीलिए यहाँ इतनी मेहनत करनी पड़ी। और मेरा भी जन्म महाराष्ट्र में ही हो गया। सो ये सोचना चाहिए कि क्या बात है? महाराष्ट्र में कौनसी बात की हममें त्रुटि रह गई। बहुत जरूरी है, यह सोचना बम्बई वालों के लिए।

पहले तो लोग भौतिकवादी बहुत हैं। यहाँ अंग्रेज आये, अंग्रेज़ों ने अंग्रेजियत सिखाई, अँग्रेज़ीपना सिखाया। और उससे आदमी materialistic हो गया। और उन्होंने जो-जो बातें सिखाई, उससे उसका सारा चित्त जो है बाह्य में आ गया। यहाँ अंग्रेज़ बहुत साल तक रहे, और उनको बम्बई अच्छी भी लगती थी। और समुद्र से फिर पोर्तगीज़ आए और भी लोग आये। और उन सब का असर यहाँ पर रहा। और उन सब के असर से यहाँ पर जो है, भौतिकवादिता बहुत आ गयी। तो यहाँ के लोग शुरू से ही बहुत भौतिकवादी थे। और वो और भी भौतिकवादी हो गये। तो अब भी हमारे यहाँ बम्बई के लोगो में भौतिकवादिता बहुत जयादा है। और इसकी वजह से सहजयोग में आने पर भी कभी-कभी वो चिपका ही रहता है, भौतिकवाद। और वो भौतिकवाद चिपका रहने से उनकी उड़ान उतनी नहीं हो पाती, जो और जगह के लोगो की होती है। बड़े आश्चर्य की बात है।

यहाँ तक कि महाराष्ट्र में इतनी मेहनत करने पर भी, हम सोचते हैं कि जितना काम हमने नार्थ इंडिया में किया है उतना यहाँ हम नहीं कर पाए। जितने लोग वहाँ बढ़ गए उतने लोग यहाँ नहीं बढ़ पाये। उसका कारण यही है कि हम लोगों में अब भी एक तरह की बड़ी जड़ता है। धर्म के मामले में भी बड़ी जड़ता है। अब भी यहाँ इतने गुरु-घंटाल हैं उतने मेरे ख्याल से उत्तर हिंदुस्तान में नहीं हैं। क्योंकि वहाँ वे चल ही नहीं पायेंगे। और यहाँ पे जो भी भौतिक लोग हैं उनको ऐसे ही गुरु घंटाल अच्छे लगते हैं कि जो तांत्रिक हों। और जो उनको ऐसी चीज़ों में मदद करें, जिनसे दूसरों का नुकसान हो जाए। तीसरे यहाँ झूठे गुरु भी बहुत हैं। और वो भी सब भौतिक लोगों को पकडे हुए हैं। और उनको समझा देते हैं कि कोई नहीं, आपको सीधे परमात्मा का नाम याद करना चाहिए। और ऐसा रहना चाहिए, वैसा रहना चाहिए या ध्यान करना चाहिए। पर उनके प्रति कोई भी जिसको कहते हैं कि एक बहुत जबरदस्त एक इच्छा कि इन लोगों का कुछ ठीक होना चाहिए। इन लोगों को कुछ न कुछ मिलना चाहिए। इस तरह की कोई आन्तरिक इच्छा उनके हृदय में नहीं है। वे चाहे कुगुरु भी नहीं होंगे पर तो भी इनके मन में यह इच्छा नहीं होगी कि मैंने इनको क्या दिया? इन्होने मेरी इतनी सेवा करी, इन्होने मुझे इतना देखा, मैंने इनको क्या दिया? इस प्रकार यहाँ की जो व्यवस्था है उसमें ये लोग सब इसी तरह से बैठ जाते हैं।

और उसमें अब चौथी चीज़ जो मैं देखती हूँ। विशेषकर कि ये ब्राह्मण लोगों में आश्चर्य की बात है कि जो एक ज़माने में इसलिए लड़ते थे कि जाती पाती नहीं होनी चाहिए। बहुत ब्राह्मणों ने इसमें बहुत मेहनत करीं है। स्त्री विवाह हो जाने चाहिए, विधवा विवाह हो जाने चाहिए। इतना काम आगरकर साहब वगैरा आदि ने कितना कार्य किया है। और यहाँ के जो मराठी के इतने कहना चाहिए, बड़े-बड़े लेखक हो गए या कवी हो गए, इतने ही नहीं, संत हो गए। जो ब्राह्मण थे उन्होंने बहुत ही मेहनत करी है। राम दास स्वामी, हम कह सकते हैं, ऋषियन सरस्वती हम कह सकते हैं। और भी लोग वो जो जितने भी ब्राह्मण लोग थे उन्होंने इतनी मेहनत करके और सामने अध्यात्म को बिठाया। जैसे कि हम कह सकते हैं कि तासगणों, उन्होंने कहा कि ‘आम्हासी महाणती ब्राह्मण आम्ही जाणिले नाहीं ब्रह्म आम्ही कसले ब्राह्मण’। इस तरह से उन्होंने हमारे अन्दर यह जागृति की कि जब तक तुम ब्रह्म को नहीं जानते तब तक तुम लोग ब्राह्मण नहीं हो। और हर तरह से कोशिश यह की कि यह ब्राह्मण वाह्मण चीज़ हट जाए और जाति पाति हट जाए। और कोई चीज़ नहीं हो।

पर अब modern times में मैं देखती हूँ, कि वो ब्रा ह्मण लोग जो हैं, सबसे जयादा modern हो गये हैं। जैसे कि किसी औरत के बाल कटे दिखाई दे, और उसके चश्मा लगाया हो, और वह सिगरेट पी रही हो तो पूछिए कौन, तो ब्राह्मण है। आश्चर्य की बात है। तो ये कैसे परिवर्तन आ गया. ये मेरी समझ में नहीं आता है। पर ये अधिकतर देखा जाता है कि इन लोगो में इस तरह का बदल आ गया। दूसरी बात यहाँ की दूसरी community, जिसे मराठा कहते हैं। वो तलवार वल्वार तो अब रह नहीं गयी, तो अब वे आपस में ही गर्दन काट रहे हैं। क्योंकि अब तलवार का करें क्या? तो ये सोचते हैं कि तलवार से पहले लड़ते थे, शिवाजी महाराज के लिए। अब आपस में, भाऊ -बन्दकी जिसे कहते हैं, अब आपस में गर्दनें काट रहे हैं। तीसरी यहाँ वैश्य जाति तो है ही नहीं महाराष्ट्र में। क्योंकि इनको business करना नहीं आता। मुंह फट होने की वजह से ये लोग business भी नहीं कर सकते|

तो अब रही बात आध्यात्म की तो किसके साहारे बांधा जाये। ये समझ में नहीं आता मुझे कि किसको कहा जाये, कि तुम आध्यात्म को पकड़ो। इस तरह से जाति-पाति हटाना या इस तरह की गलत धारणाये जो थी उसको हटाना। वो तो दूर रहा, उसमें और घुसे चले जा रहे हैं। और आजकल इतना ज्यादा इसका प्रकोप हो गया है, कि कोई समझ भी नहीं सकता है कि जाति-पाति सब व्यर्थ की चीज़़ है। और इससे सिर्फ अनर्थ होने वाला है। और ये झूढी बात है। इस तरह से हमारे महाराष्ट्र में जो अनेक सी चीज़ें चल पड़ी है उनकी तरफ हमें ध्यान देना चाहिए। हालांकि यहाँ के लोग सीधे हैं, कहना चाहिए कि भोले भी हैं। और पैसे का इनको जो है विचार, वह बहुत ही छोटे तरीके का है। बड़े तरीके का नहीं है। पर इनकी नितान्त श्रद्धा गणेश जी पर है। ये बहुत बड़ी बात है कि ये मनुषय की जो चारित्रिक बात हैं या जिसे कहिये morality है, उसकी ओर संभाले हुए हैं। और ये बहुत बड़े हमारे लिए एक सम्पदा है कि इनको moral sense बहुत है। और जिनमें moral sense होता है वहीं कार्य हो सकता है। और मेरे विचार से जहाँ moral sense नहीं है वहाँ कार्य धीरे होता है। पर अब मेरी कुछ ऐसी अनुभूति है कि moral sense हो चाहे नहीं हो, जब तक मनुषय में गहनता नहीं होगी तब तक वह सहजयोग में आगे नहीं बढ़ सकता। तो यहाँ लोग पार तो बहुत हो जाते हैं। हर एक गाऊँ में देहात में हम जाते हैं हज़ारों लोग पर हो जाते हैं, परन्तु जमते नहीं हैं। और जमना इसीलिए नहीं होता है की उन्होंने अपनी गहनता को छुआ नहीं।

सो आज की जो भी है हम लोग पूजा जो कर रहे हैं। इसमें हमें यह सोचना चाहिए कि महाराष्ट्र की ये जो त्रुटियाँ हैं उसको ध्यान में रखते हुए और कार्य हमें करना है, सहजयोग का। इसमें यह समझ लेना चाहिए की हर जगह त्रुटियाँ हैं, कोई आदमी आज तक परिपूर्ण नहीं हुआ। हर एक में त्रुटियाँ हैं। और कहीं तो इसलिए भी त्रुटियाँ आईं की बहार के लोगों का यहाँ राज्य रहा। जो भी हो, पर त्रुटियों को देखते हुए अगर आप समझ कर काम करें, तो यहाँ सहजयोग बहुत जोरों में फैल सकता है। क्योंकि कुछ भी हो, यहाँ पर संतों ने बहत कार्य किया है। और इन संतो के कार्य से ही हम लोगों का कार्य आज खड़ा हो सकता है।

तो इस मुम्बई के आशीर्वाद में आज आप बैठे हुए हैं। और इस आशीर्वाद में और भी तीन जो शक्तियाँ है, उनका भी आशीर्वाद आपको आज मिल रहा है। और उस आशीर्वाद के सहारे सहजयोग यहाँ पर बहुत जल्दी बढ़ना चाहिए। पर जो देखा जाता है, कि जो लोग हैं भी सहजयोग में, वो पूरी तरह से सहयोग में सहयोग नहीं देते। और एक तरह से अपनी जान बचाते रहते हैं। अगर आप अपनी जान बचायेंगे, तो भगवान भी अपनी जान बचायेगा। जितना आप सहजयोग के लिए कार्यान्वित रहेंगे, उतना ही आपको आशीर्वाद मिलता है। क्योंकि आपसे मैंने पहले भी बताया है कि अब कृत-युग शुरू हो गया है। पहले जो था, उसमे हम कह सकते हैं कलियुग था। कलियुग में किसी भी तरह से आप कुछ भी कर लीजिये, चल जाता था। लेकिन अब कृतयुग शुरू हो गया है। कृत-युग में फौरन कोई भी चीज़ आप गलत काम करेंगे, तो उसका नतीजा फौरन आपको मिल जाएगा। और कुछ अगर आप शुभ काम पुण्य काम आप करेंगे तो आपको फौरन उसका भी लाभ मिल जाएगा। इस प्रकार आजकल की परिस्थिति, हम कहेंगे कि वातावरण में है। तो जो आदमी गलत काम करेगा उसको बहुत सोच समझकर रहना चाहिए। क्योंकि फौरन उसका असर उस पे आ जाएगा। और जो आदमी पुण्य का काम करेगा, उसको फौरन उसका असर मिल जायेगा। यह आज की स्थिति है।

तब हम लोगों को सोचना चाहिए कि हम तो बम्बई में अगर रह रहे हैं तो हम बहुत कुछ कार्य कर सकते हैं। और इसीलिए मैंने बम्बई में बहुत मेहनत करी। और उसी मेहनत के फलस्वरूप आज आप इतने लोग यहाँ पर आये हैं। लेकिन अब आप लोगों को सबको यही सोच लेना चाहिए कि अब हमें सहजयोग के लिए क्या कार्य करना है? अगर रोज रात को आप लोग बैठके सोचें कि हमने क्या किया सहजयोग के लिए? हम तो सब अपने लिये ही कर रहे हैं। सहजयोग के लिए हमने क्या कार्य किया? तो जो जान बचायेंगे, उनके लिए फिर वो आकर, हमें कहेंगे कि ‘माँ देखो हमें ये रोग हो गया, हमें यह तकलीफ हो गई, हमें यह परेशानी हो गई। होनी ही है। क्योंकि अगर आप अपनी जान बचाइयेगा, तो उधर ध्यान परमात्मा का नहीं रहेगा।

इसलिए इस परम-चैतन्य का ध्यान आपकी और रहे। आप हर समय ये सोचे कि आज हमने कौन सा पूण्य कर्म किया ? आज हमने सहयोग के लिए कौन सा काम किया? पूरे मन से हमने सहजयोग के लिए कौनसी-कौनसी बात करी? और यह सब करने से ही आपको पूरी तरह का आशीर्वाद मिल सकता है। और आप पूरी तरह से सहजयोग में जान सकते हैं कि आप आशीर्वादित लोग हैं। और आप परमात्मा के साम्राज्य में बैठे हैं। और जैसे किसी साम्राज्य में आप गलत काम करने पर आपके कोई न कोई शिक्षा मिलती है। कोई न कोई, आपको दंडित दिया जाता है। उसी प्रकार इस साम्राज्य में भी होता है। लेकिन इसमें थोड़ा समय दे दिया जाता है। अच्छा देखते हैं, ठीक हो जाए तो ठीक हो जाए। पर फौरन आपको इशारा आ जायेगा कि आपने गलत काम किया तो। क्योंकि आपकी वाइब्रेशन्स ही छूट जाएंगी।

इसलिए बहुत सम्भल कर पैर चलाना है। आगे को बढ़ना है धीरे-धीरे। और आपको बहुत ऊँचे इस पर जाना है। क्योंकि आप जानते हैं कि सारे देश के लिए तो जरूरी है ही। पर सारे दुनिया के लिए जरूरी है, कि हमारे महाराष्ट्र में सहजयोग बहुत पनप जाए। और इसकी सम्पदा हम सारी दुनियाँ को दे दें। और इसलिए बार-बार कहना है कि आज सब लोग अपने मन में प्रतिज्ञा करें, क्योंकि नया साल आया हुआ है। कि आज से हम सहजयोग में अपने को पूरी तरह से ढाल देंगे। उसके लिए पूरी धारणा करेंगे, और अपने को उन्नत करेंगे। और उसको हम सम्भालेंगे। यह सभी के लिए है, इतना ही नहीं कि सिर्फ महाराष्र के लिए। पर सारी दुनियाँ के लोगों के लिए मैं बात कह रही हूँ।

[Hindi translation from English]

मुझे खेद है कि मुझे हिंदी में बात करनी पड़ी क्योंकि इनमें से अधिकांश हिंदी जानने वाले लोग हैं और मैंने अभी उन्हें बताया है कि बॉम्बे का महत्व क्या है और इतने अवतार यहाँ क्यों आए, और क्यों श्री राम को गांवों में और महाराष्ट्र की पहाड़ियों और ढलानों में घूमना पड़ा, उसकी क्या जरूरत थी, और जरूरत यह थी कि वे सभी अपने अंदर सहज योग का विकास करें।

इसके अलावा, यह भारत में आप सभी के लिए अंतिम पूजा होगी। मुझे आशा है कि आप सभी इन विभिन्न पूजाओं और विभिन्न स्थानों में बहुत कुछ हासिल कर चुके हैं।

एक बात यह है कि आपको याद रखना चाहिए कि कृतयुग शुरू हो गया है। अब कलियुग समाप्त हो गया है, कृतयुग शुरू हो गया है, और इस युग में – परमचैतन्य बिल्कुल प्रभावी और बहुत ही कुशल है। अब अगर आप कुछ भी गलत करते हैं तो यह आपको दंडित करेंगे। यह तुरंत दंडित नहीं करेंगे लेकिन यह आपको एक सूचना देंगे, यह आपको एक उचित संकेत देंगे कि आपके साथ कुछ गलत चल रहा है। लेकिन अगर आप अपने कदमों को नियंत्रित करने की कोशिश नहीं करते हैं तो आप बहुत तेजी से नीचे जा सकते हैं। इसलिए आपको इसके बारे में बहुत सावधान रहना होगा।

दरअसल, मैंने आपको कई बार कहा है कि दो बल काम कर रहे हैं, एक जो आपको अंदर खींचता है और एक जो आपको बाहर फेंकता है। इसलिए, हम सभी के लिए यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यह कृतयुग है, और इस में यह परमचैतन्य अतिसक्रिय है।

साथ ही, आपको पुरस्कृत किया जाता है। आप मुझे बहुत सी कहानियाँ सुना रहे हैं कि कैसे सहज में ही काम बन गया, कैसे सहज में ही कार्य हो गया, आप सभी मुझे बहुत अच्छी कहानियाँ सुना रहे हैं। लेकिन यह सहज योग में आपके नाटक का हिस्सा है और परमात्मा के साम्राज्य में आपका स्थान है। तो, आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं, उसका आनंद लेने का प्रयास करें, और आपको केवल एक ही चीज़ करनी है कि परमात्मा के साम्राज्य का आनंद लेना है। लेकिन अगर आप इस आनंद से अपने आप को अलग करने की कोशिश करते हैं, विचारों में पड़कर इस आनंद से संबंध तोड़ देते हैं, जो कि वास्तविकता नहीं है, तो आप स्वयं इसके लिए जिम्मेदार हैं। इसलिए, मुझे आपको यह बताना होगा कि संबंध जोड़े रखें। इतना ही नहीं, बल्कि उसे और मजबूत बनाने की कोशिश करें, और उस ईश्वरीय शक्ति के साथ स्थायी रूप से एक हो जाएं, जो आपके माध्यम से प्रवाहित होगी और न केवल आपको प्रबुद्ध करेगी, बल्कि आपको कई शक्तियां प्रदान करेगी, और आप इस नये साल में नया जीवन देखेंगे।

कल, जैसा कि मैंने आपसे निवेदन किया था, हमें इसे अभी कार्यान्वित करना है।व्यक्तिगत रूप से, हमें हर तरीके से यह देखना चाहिए कि हम सहज योग का प्रसार करें व इसके बारे में बताये। आज मैं आपको सहज योग का प्रसार आपके इच्छानुसार करने की पूरी स्वतंत्रता देती हुं। आपको मुझसे किसी भी अनुमति की आवश्यकता नहीं है, और आप वह सब कुछ आज़मा सकते हैं जो आप चाहते हैं। लेकिन कुछ सभ्य होना चाहिए, कुछ अशोभनीय नहीं होना चाहिए और ऐसा कुछ नहीं जो सहज योगी को शोभा न दे। यहां तक ​​कि अगर आपको पत्र या उत्तर या कुछ भी लिखना पड़े, भले ही आपको गुस्सा दिखाना पड़े, यह बहुत ही सभ्य और सुंदर तरीके से किया जाना चाहिए। और यह दिखना चाहिए कि यह एक योगी है जो बात कर रहा है।

दूसरी बात, आपकी जो भी समस्याएं हैं, वे अविलम्ब हल हो जाएंगी। लेकिन मुख्य समस्या आप स्वयं है, इसे आपके द्वारा ध्यान विधियों द्वारा हल किया जाना चाहिए। और इतना ध्यान हम अपनी सभी अतिरिक्त गतिविधियों पर दे रहे हैं लेकिन यह निश्चित रूप से विफल हो जाएगी, यदि आप सहज योग की बुनियाद पर नहीं जमें हैं तो यह आप पर पलटवार करेगी। हर समय अपनी आत्मा पर चित्त रखना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि आप जो भी कर रहे हैं, आप जो भी पेश कर रहे हैं, वो आधारभूत हो और आप भटक न जाएं। यह एक बहुत महत्वपूर्ण बात है, और मुझे यकीन है कि आप समझेंगे कि जड़ों से पोषण के बिना आप विकसित नहीं हो सकते। इसलिए इस पोषण को [जीवित या रोशन?] रखना चाहिए।

परमात्मा आपको आशीर्वादित करे!

आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

पहले गणेश पूजा होगी, जिसके लिए मुझे लगता है कि हम सभी को अथर्वशीर्ष कहना चाहिए और बहुत सारे बच्चे हैं जो मुझे नहीं लगता कि हम इतने सारे बच्चों के साथ प्रबंधन कर सकते हैं, लेकिन अगर बारह बच्चों या चौदह बच्चों के बारे में कहा जाए तो हम प्रबंधन कर सकते हैं। कहें तो छह साल से दस साल तक …