Expression of Subtle Elements

New Delhi (भारत)

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Panch Tattwa – The Subtle Elements Date 16th December 1998: Place Delhi: Seminar & Meeting Type Hindi & English Speech

[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

इतने ठंड में और तकलीफ में आप सब इतना भयंकर दावानल जैसे चारों तरफ से लगा लोग आए। एक माँ के हृदय के लिए ये बहुत हुआ दिखाई देता है। उसके बीच आप सहजयोगी बड़ी चीज़ है। अब और कोई दिन मिल नहीं रहा था, इसी दिन आप लोगों का तकलीफ वर्णन शास्त्रों में है। पर उसमें ये कहा जाता है उठानी पड़ी। और आप लोग इतने प्रेम से, सब लोग, यहाँ आए! सबका कहना था कि हवाई दिन कलि लग गया। तो उन्होंने कहा कि अब अड्डे पर माँ हम तो बिल्कुल आपको देख भी मैं तेरा सर्वनाश करता हूँ क्योंकि तुमने मेरी पत्नी नहीं पाए, और मैं भी आपको नहीं देख पाई। से मैरा बिछोह किया है । इस पर कलि ने कहा इसलिए बेहतर है कि आप लोग आज यहाँ आए कि तुम मेरा महात्म्य जानो मेरा जो महात्म्य है हैं, सब लोग। और दिल्ली वालों का जो उत्साह खड़े हुए हैं। इस कलयुग के बारे में अनेक कि नल, जो दमयंति के पति थे, के हाथ एक उसे समझ लो। उस महात्म्य में गर तुम समझो कि मुझे मार डालना है तो मार डालो, में खत्म हो जाऊंगा। उसने कहा तुम्हारा क्या महात्म्य है? है, वो कमाल का है। ऐसा ही उत्साह सब जगह हो तो ये भारतवर्ष सहजयोग का महाद्वार बन जाएगा। ये एक समय है, ऐसा कहना चाहिए, तो उन्होंने ये कहा कि इसी कलियुग में जब जिसे घोर कलयुग कहते हैं। इस घोर कलयुग लोग कलि की भ्रांति के चक्कर में आ जाएंगे, की एक विशेषता ये है कि मनुष्य बहुत जल्दी उसी वक्त ये बड़ा कार्य होने वाला है- भ्रांति में आ जाता है। उसको जरा सा भी विवेक नहीं रह जाता और इस भ्रांति के चक्कर में वो न जाने कहाँ-कहाँ भटकता रहता है। आज कल है। भारतवर्ष में तो यही जीवन का लक्ष्य माना आप देख रहे हैं कि लोग कैसे-कैसे गलत लोगों के पीछे भाग रहे हैं और गलत-गलत धारणाएं हों, उसके अलावा और जीवन का कोई भी अर्थ अपना करके अपना जीवन बरबाद कर रहे हैं। नहीं माना जाता। यही एक लक्ष्य है। यही एक ये समझना चाहिए कि ये घोर कलयुग है। इस कलयुग की विशेषता ये है कि कलयुग में आपने प्राप्त किया है। आपने इसे मनुष्य धर्म का पथ छोड़ करके अधर्म की ओर आसानी से चला जाता है। उसमें उसे कोई बाद अब आपने उसकी महत्ता भी समझी। हिचक नहीं होती। वो परेशान नहीं होता और वो उसकी आप गहराई में भी उतरे और उस गहराई वैसे कर्म करते ही रहता है। उसमें एक तरह की में उतर के आप देख रहे हैं कि इसी से आपको उद्दामता आ जाती है जिसे अपने अंदर लेकर वो शांति की प्राप्ति होगी और आपको आनन्द की समझता है कि वो बड़ा सत्कर्म कर रहा है। प्राप्ति होगी बहुतों को हो भी गई, बहुतों को आत्मसाक्षात्कार आत्मसाक्षात्कार पाना ही जीवन का लक्ष्य गया है कि आप पहले आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त है। परम पाने की चीज़ है, और ये आत्मसाक्षात्कार पाया, ये बहुत बड़ी चीज़ है । इसको पाने के

मिल भी गयी है, और भी इसमें सूक्ष्मता आने वो कार्यान्वित होती है क्योंकि अब आप अपनी लगी है। ये सूक्ष्मता समझने की बात है। इस सूक्ष्मता को आप समझेंगे तो आप जान जाएंगे भी कार्य है वो उत्थान का कार्य है और उस कि आप किधर अग्रसर हो रहे हैं, किधर आप बढ़ रहे हैं, कौन सी आपकी दशा है। अगर अभी भी आप सूक्ष्म नहीं हो रहे हैं तो सोचना सबके अंदर स्थित है। अब ये मैं बता रही हूँ, चाहिए कि आपमें कुछ कमी है और उस कमी लेकिन ये बातें हमारे यहाँ वहुत पुरानी लिखी को ठीक करना चाहिए। इस सूक्ष्मता की बात हुई हैं कि हमारे अंदर कुण्डलिनी की शक्ति है। करते वक्त शास्त्रों से ही इसका बड़ा आधार मिलता है। ये देश अपना जो है यह अत्यंत गहन विचारों से भरा हुआ और अत्यंत महान् सत्वों से भरा हुआ है इसमें जो लिखा गया हैB वो अद्वितीय है, उसके जैसी चीज़ दूसरी संसार में जैसे इतने महान कहना चाहिए कि विद्वान उन्होंने लिखी नहीं गई। यहाँ से लेकर के तो और लोग कुछ ज्ञान लेकर चले जाएं, लेकिन इसकी गहराई लिखा, तुकाराम ने लिखा, नामदेव ने लिखा। में आप ही लोग उतर सकते हैं। लेकिन हम जानते ही नहीं कि हमारे देश में कितना महान व पवित्र ऐसा वांट्गमय हो गया। कितनी बढ़िया-बढ़़िया चीजें हमारे यहाँ प्राचीन काल में लिखी गई और लिखा? क्योंकि हम जो ये इस देश के देशवासी उस पर विवरण किया गया, बताया गया कि हैं ये कोई तो विशेष लोग हैं । ये धर्म में पले क्या चीज़ है ‘ आत्मासाक्षात्कार’ और उससे आप क्या-क्या ग्राप्त कर सकते हैं। हालाकि हमने आपको बहुत चीजें खोल-खाल कर बता दीं, है कि हम समझते हैं ये अधर्म है। ये करना समझा दीं लेकिन उसकी अनुभूति हुए बगैर उसको महसूस किए बगैर आप किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं हो सकते। उसकी अनुभूति होनी चाहिए। वो अनुभूति क्या है? ये समझने की बड़ी भारी हमारे लिए एक Challenge है एक चरम स्थिति में आ गए। इसके बाद आपका जो उत्थान के कार्य में अब आपको आत्म साक्षात्कार प्राप्त करना है। उसके लिए कुण्डलिनी आप उसके बाद अनेक लोगों ने इस पर काफी वर्णन किया हुआ है-जैसे बारहवीं शताब्दी में मैंने बताया था कि ज्ञानेश्वर जी ने वर्णन किया और सोलहवीं शताब्दी में इतने लोग हुए गुरु नानक तक कुण्डलिनी पर बहुत कुछ लिखा। कबीर ने सब लोगों ने लिखा है ये शक्ति हमारे अंदर है, इसे जागृत करना चाहिए। ये बात समझने की है कि ये हमारे ही देश के लोगों ने इतना क्यों हुए लोग हैं। इनके अंदर धार्मिकता है। संदियों धर्म हमारे अंदर बसा हुआ है। और धर्म ऐसा से गलत बात है। और देशों में मैं देखती हूँ कि वो धर्म, अधर्म के अंदर कोई भी अंतर नहीं पाते। अगर कोई अधर्म करना हो तो सोचते हैं ये तो जरूरत है। सबसे पहले तो समझना चाहिए कि हम पाँच तत्वों से बने हुए हैं। ये पाँच तत्व हमारे अंदर सारी क्रियाएं करते हैं। सब उसी से हमारी घटना हुई है। उसी से हम एक मनुष्य जीव बने। सारे जानवरों में हर एक में ये होते हैं पर विशेष रूप से इंसान में इसका प्रार्दुभाव इस तरह से होता है कि कुण्डलिनी जो है, वो सिर्फ मनुष्य में मानव में ही स्थित होती है और मानव में ही आह्वान है, उस आह्वान के लिए ये हम यह कर रहे हैं। अगर उनको Drug लेना है तो कहते हैं कि इसमें डरने की कौन सी बात है, ये तो हमारे लिए आह्वान है। कुछ भी गलत काम करना है उसको हम कहते हैं ये हमारे लिए आह्वान है और गलत काम करना वहाँ समझा जाता है कि बड़ी भारी उच्चतर स्थिति मनुष्य की है जहाँ वो बड़ा भारी, एक कहना चाहिए, कि योद्धा प्रमाणित होता है। अब इस चीज़ को समझना चाहिए कि

उतर नहीं सकते इसलिए सहजयोग को फैलाना चाहिए । कम से कम हर आदमी चाहे तो एक हजार आदमी को आत्मसाक्षात्कार आसानी से दे सकता है। तो इस मामले में शर्माने की कोई जरुरत नहीं है, इस मामले में हिचकने की कोई ज़रुरत नहीं। इस मामले में खुले आम बातचीत करने की जरुरत है क्योंकि आप भारतीय हैं| बार-बार मैं कहुँगी कि भारतीयता जो है वो एक विशेष अनुपम हमारे पास बस्तु है और इसीलिए कहा जाता है कि हज़ारों घुण्य करने के बाद आप भारतवर्ष में जन्मे। लेकिन इस धर्म में, जो भी धर्म हम मानते हैं, इसको मैं हिन्दू-मुसलमान या क्रिश्चन नहीं कहुँगी, पर धर्म माने अच्छाई जो हमारा रुझान है, हम अच्छाई को और इसलिए पसंद करते हैं, ये जो रुझान हमारे अंदर है। हमारी बुद्धि में और उनकी बुद्धि में फर्क है। मूल में ही हममें फर्क है और मूल में ही हम जानते हैं कि धर्म और अधर्म क्या है? वो कोई माने या न माने। पढ़े हो, लिखे हो या देहात के हो, शहर के हों, सब भारतीय जानते हैं कि धर्म क्या हैं और अधर्म क्या है। निश्चित रूप से जानते हैं तो भी अधर्म करते हैं. तो भी अधर्म में फँसते हैं, तो भी ये चीजें करते हैं और उसपे सोचते हैं कि हाँ हमने किया लेकिन गलत ये मूलत: है। त् किया तो क्या करें? पर जो बाहर के लोग हैं उसको गलत नहीं समझते, इतनी उन लोगों की धारणाएं ही नहीं बनी हुईं। मूलतः उनके अंदर ये विचार ही नहीं आया कि कोई चीजज़़ पाप और पुण्य है। पाप और पुण्य की जो कल्पना है वो की ओर सिर्फ भारतीयों को मिली हुई है वो आप लोग एक विशेष रूप के नागरिक हैं जो रुझान है उसका कारण ये है कि हमारे देश जिनके लिए ये उपलब्ध है, ये मिला हुआ है। ये में अनेक-अनेक ऋषि-मुनि हो गए और उन्होंने ज्ञान मिला हुआ है कि धर्म क्या है। छोटी-छोटी बहुत-कुछ लिख दिया, बहुत-कुछ बताया कि बातों में भी हम लोग बहुत कुछ जानते हैं जो ये लोग नहीं जानते। इनको मालूमात नहीं लेकिन पवित्रता की ओर हमारे अंदर बहुत चिंतन हुआ इनकी खोज में गहराई है। हमारी खोज में गहराई कम। हम लोग ये सोचते हैं कि भई हम तो ये नहीं संपूर्ण आपको स्वतंत्रता है। इस स्वतंत्रता में करते ही आए हैं ऐसा-ऐसा तो हमने किया ही ही हम बहक गए है, तो इसमें कौन सी विशेषता है? लेकिन इन उसी से हमने रास्ते दूसरे ले लिए। अब पूरी लोगों ने क्योंकि अंधेरा देखा है इसलिए प्रकाश जीवन में क्या चीजा करने से पवित्रता रहती है। है और इस पवित्रता की ओर कोई जबरदस्ती से । ये जो स्वतंत्रता हमें मिली तरह स्वतंत्र हैं और ये स्वतंत्रता का मतलब होता का महत्व बहुत जानते हैं। वही बात हमारे अंदर, मैं सोचती हैं, कुछ कम से हिन्दुस्तानी सहजयोग में आकर के गहरे हिन्दी भाषा में कहिए आप संस्कृत में हर एक उतरना कठिन समझते हैं । गहरे उतर नहीं पाते, आप सबसे मुझे ये कहना है कि सहजयोग में एक वार आपका बीज मानों जैसे प्रस्फुटित हुआ जैसे क, ख, ग, घ वगैरा होते हैं, ये सब व्यंजन पर इसे एक विशाल पेड़ बनना है। इस विशाल जिसे कहते हैं, ये सबमें अर्थ है। एक-एक चीज़ पेड़ बनने के लिए ध्यान-धारणा आदि करना है में अर्थ है निरर्थक कोई चीज़ नहीं। एक-एक और सहजयोग को फैलाना है। आप अगर सहजयोग को फैलाएंगे नहीं तो फिर आपका प्रसार नहीं हो है कि स्व का तंत्र। स्व का तंत्र जानना, स्व माने है और इस वजह आत्मा उसका तंत्र जानना ये स्वतंत्रता है तो शब्द का अर्थ है। उसके व्याकरण की विशेषता यह है कि उसके जो कुछ भी वर्ण हैं या दूसरे अक्षर आप ले लौजिए तो इसमें बड़ा भारी व्याकरण हुआ है। अब ये सारी बात बताने का शायद अभी समय न हो पर मुझे ये कहना है सकता। आप बढ़ नहीं सकते। आप अंदर गहरे

चाहिए कि ये हम लोगों ने अपने यहाँ ऋषि-मुनियों कि ये पाँच तत्वों को बताने वाले अपने अंदर पाँच तरह के व्यंजन बने हुए हैं। इसीलिए व्यंजन से बात सुनी। अब अंतर एक कि जो लोग, को वो शक्ति कहते हैं। और जब व्यंजन में परदेसी जिनको हम कहते हैं, जो दूसरे देश के शक्ति आ जाती है तो बो ही व्यंजन का अर्थ रहने वाले हैं उनकी विचारधारा और हम लोगों निकल आता है। अब छोटी-छोटी बातों में हम लोग समझते हैं कि कुछ भी नाम रख दो लड़के विचारने का भी जो तरीका है वो बिल्कुल का, लड़की का कुछ भी नाम रख दो, नाम में क्या रखा है? तो ये इतनी गलत बात है कि नाम में क्या रखा है? नाम भी, लड़के का नाम जो है, वो भी सोचकर रखना चाहिए; क्योंकि एक-एक अक्षर में उसमें निहित है, छिपा हुआ है, एक बड़ा भारी मर्म। और वो मर्म है उसका ‘अर्थ’। अर्थ और शब्द दोनों एक साथ रहते हैं और अर्थ जो है, वो शब्द की सैवा करता है। कोई भी आप शब्द कहिए तो उसके अर्थ में और शब्द य में कोई अंतर, ऐसा हम लोग नहीं जानते हैं, पर अर्थ जो है, वो शब्द की सेवा करता है। हर एक की विचारधारा बिल्कुल अलग है। सोचने का ा, अलग है। इतना अलग है कि आश्चर्य होता है। गर विदेश में आप गर कोई बात कहें, परदेस में लेने आप कोई र बात कहें तो उसका पड़ताला लग जाएंगे उस पर साइंटिस्ट लगा देंगे उसको देखेंगे ये है या नहीं? लेकिन उससे वो कहां तक पहुँच पाते हैं? अपने देश में तरीका और है, और वो ये है कि गर कोई बात कही गई है तो उसका पड़ताला बनाने की जरुरत नहीं क्योंकि ये ऋषि मुनि जो बड़े पहुँचे हुए लोग थे, उन्होंने कही है। उसको स्वीकार्य करना चाहिए। जो जो बात उन्होंने बताई वो स्वीकार्य करना चाहिए, क्योंकि इतने पहुँचे हुए लोगों ने वो बात कही है। जो भी बात कही उसको मान लेना चीज़ का अलग-अलग शब्द होता है। हर एक वर्णन में, हर एक चीज़़ अलग-अलग होते हैं। ये भाषा की विशेषता ही चाहिए, क्योंकि उनसे ज्यादा अक्लमंद हम नहीं नहीं है, ये भारतीय संस्कृति की विशेषता है। हैं। लेकिन परदेस में सब सोचते हैं, हम सबसे इसलिए इस संस्कृति से जो लोग उत्पन्न हुए हैं, ज्यादा अक्लमंद हैं। वैसे अपने यहाँ नहीं है। इस संस्कृति में पढ़़े हैं, और पढ़ रहे हैं, उनको जानना चाहिए कि हमारी संस्कृति है क्या? हम गया है कि गर आपका आत्मसाक्षात्कार हो जाए अपनी संस्कृति को जानते भी नहीं, कुछ समझ में भी नहीं आता कि सचमुच ऐसा क्यों करते आपमें पूर्णता आ जाए, तब आप देख सकते हैं, हैं? पता नहीं हमारे बाप-दादे करते थे इसलिए प्रयोग करके कि जो ऋषि-मुनियों ने बात कही हम करते हैं। तो सबसे बड़ी चीज़ है कि अपनी संस्कृति को जानें और पहचाने कि क्या बात है? हम क्यों हमारे यहाँ शब्द किसी ने में अब इसका पड़ताला नहीं लेना चाहिए। पर कहा और आप सम्पूर्ण आत्मसाक्षात्कारी हो जाएं, ब थी वो सच है या नहीं। अब सहजयोग में आप लोग यही करते हैं। हमने एक बात कह दी। आप मान जाते हैं कि माँ ने ये बात कही और उसको आप समझ लेते हैं कि माँ की कही हुई इस तरह से धार्मिक है? अपने आप ही हम लोग धार्मिक हो जाते हैं। उनको कुछ बताने की ये बात है। इसमें जरुर तथ्य है। उसमें आप ये जरुरत नहीं है। कोई उनके ऊपर जबरदस्ती नहीं नहीं सोचते कि माँ ने कहा, इसका पड़ताला है कि तुम ऐसे ही करो कि वैसे ही करो। पर वो धार्मिक हैं। ये मानव की धार्मिकता कहाँ से आती है? क्यों आती है? उधर हमको ध्यान देना करो। ये करो, वो करो। फिर आत्मसाक्षात्कार के बाद जब आप सम्पूर्णता में आ जाते हैं, जब आप उस दशा में पहुँच जाते हैं, तब आप खुद

ही इसका पड़ताला कर सकते हैं। जैसे हमने के जो चक्कर हैं, यही कम करने हैं। जब कहा है वो बातें हैं या नहीं। इसलिए अपने यहाँ हमारे शास्त्रों में ये बात कही है। तो वो सत्य ही गुरु का बड़ा भारी स्थान माना जाता है कि गुरु है। अब नानक साहब ने गुरु ग्रंथ साहब जब ने जो बात कही, उसको कभी भी शंका नहीं बनाया, वो सारे Realize souls पहुॅचे हुए लोगो करनी चाहिए। पर आजकल के जैसे गुरु निकल की कविताएं ले करके उससे बनाया अब आए वो देखने के बाद, मुझे समझ में नहीं आता है कि गुरु के लिए क्या कहा जाए! पर उसकी भी बेकार बात है। उसमें क्या लिखा है वो भी पहचान है। गुरुओं की पहचान है कि किसको आत्मसात असली गुरु मानना चाहिए और किसको नकली। होगा, हमारे अंदर बसेगा और हम उसी के सहारे जो आपको अनुभव दे वो ही असली गुरु। ये नहीं कि पैसा दे और ये डायमंड निकाल के दे। ये गुरु-वुरु नहीं हो सकते। ये तो तमाश-खोर हैं, सीधी-सीधी बात कि जो कुछ भी ऋषियों ने या कहना चाहिए, ये अपनी दुकानें खोल रखी और गुरुओं ने बताया उसको प्रमाण मान लेना, हैं। उसकी पढ़े ही जा रहे हैं, पढ़े ही जा रहे हैं ये समझने की कोशिश करो। उससे फिर वो उठ सकेंगे। तो अब आपसे मैंने दो ही बात बताई | गुरु वही है जो आपकों अनुभव दे। जब ये क्योंकि आप अभी तक इतने प्रवीण नहीं हैं, अनुभव आपमें प्राप्त होता है तो उसको स्वीकार्य करो। स्वीकार्य करके उसमें बढ़ो। उसमें पूर्णता आप इतने पहुँचे नहीं हैं। फिर उसके बाद दूसरी बात कि आप प्रवीण होने का प्रयत्न करें। उधर अग्रसर हों और प्रवीण हो जाएं। और प्रवीण होने आप लाओ, और फिर उसका पड़ताला आप देख लो। उसके उलट वहाँ पर, परदेस में, देखा पर, फिर आप पड़ताला इसका लें कि है कि मैंने कि किसी ने ग़र कोई बात कही कि ऐसी नहीं। ये तो एक हिन्दुस्तानी के लिए हुआ। है तो पहले उसकी सिद्धता दो: पहले उसको लेकिन मैंने ये देखा है कि परदेसी जो आपके साइंटिस्ट को दो। अब वो साइंटिस्ट पार है या नहीं है, उसमें इतनी क्षमता है या नहीं, वो समझ सकता है या नहीं, इसके लिए वो समर्थ है या नहीं, ये नहीं देखा जाता। किसी ने भी कुछ बात कह दी उसके पीछे लग गए। फिर उसकी दोहरा कर के दूसरा ये नहीं इसमें ऐसे हैं। तीसरा आदमी कहेगा कि कि नहीं, उनको समझा कि नहीं, उनको अपनाया नहीं नहीं ये जो है चीज इसमें ये गड़बड़ ऐसा है, वैसा है, क्योंकि अभी तक आत्म साक्षात्कारी वो लोग नहीं हैं, और उनमें वो विल्ला रहे हैं। ये बड़े-बड़े संत-साधुओं ने सम्पूर्णता नहीं है। तो इस तरह का जब तक आपमें एक पूरी तरह से जीवंत अनुभव न आए। जब तक आप उस अनुभव से पूरी तरह से पंथ निकाला. हर जगह पंथ निकले। बेचारों को प्लावित न हों मतलब Nourish न हो, तो आप भाई हैं ये तो बड़ी जल्दी पार भी होते हैं और ये गहरे उतर जाते हैं । क्योंकि इनके अंदर गहराई आ गई है। हमारे अंदर गहराई नहीं आई। हमारे गुरु ने ये कहा, हो गया काम खत्म। ये फ़लाने कह गए, काम खत्म। श्री राम ऐसे थे, काम खत्म। अरे भई उनके नज़दीक तुम कहीं गए. आदमी कहेगा कि नहीं-नहीं है। कि नहीं? उसके अंदर से आपको क्या प्रेरणा मिली? बस भजन गा रहे हैं। चीख रहे हैं. महाराष्ट्र में खास कर और यहाँ भी, ये कहा कि आप भजन गाते रहें। एक उन्होंने वहाँ वाक्करी ये क्या मालूम था कि इन्सान इतना बेवकूफ है अधूरे हैं और अधूरे होने पर आपको कैसे समझ कि उसको कुछ दे दो तो बस वो ही करके बैठे में आएगा कि ये सत्य है या झूठ है? ये बुद्धि रहेगा वो तो संत साधु थे। उनको क्या मालूम

कि ये गहरा नहीं उत्तरेगा, इस पर विचार नहीं जाने की जगह तुम परमात्मा का ध्यान करो। करेगा, इस तरफ अग्रसर नहीं होगा? तो बस उसी की एक चीज़ चल पड़ी। अब जिसने जो क्योंकि उससे तुम्हारा चित्त इधर-उधर नहीं जाएगा। कुछ लिखा वो ही चीज़ चल पड़ी। अब जैसे महाराष्ट्र में मैंने बताया; वार्करी पंथ हैं। तो एक महीना बो लोग जाते हैं पैदल, बदन पर फटे कपड़े पहन कर। पता नहीं क्यों? ऐसा तो कहीं को कोई लाभ नहीं हुआ और पुश्तन-पुश्त लिखा नहीं होगा। वहाँ महीना भर जागते हैं और वोही-वोही चीजें चल रही हैं। अब आप सहजयोगी परमात्मा को याद करो। उनका नाम स्मरण करो। देखिए उन्होंने जो बात कही थी, उसको वहीं तक सीमित रखा और इसी तरह से हमारे यहाँ के अनेक पंथ निकल चुके हैं। पर उससे किसी वहाँ रहते हैं। पूरे समय वो, क्या कहते हैं आप लोग पता नहीं उसको, झाँझ, झाँझ बजाते-बजाते विशेष लोग हैं। ये समझ लीजिए। अब इसमें पहुँचते हैं। अब वहाँ पहुँच कर के एक महीना आपको और गहरा उतरना चाहिए। उस गहरे रहते हैं। उसके बाद वो सोचते हैं कि हमने तो उतरने से आपके अंदर जो सूक्ष्मता जागृत होगी भगवान को पा लिया। ऐसे थोड़े ही बताया था। वो मैं अभी आपको समझाती हैँ। वो अब अंग्रेज़ी उन्होंने तो ये बताया था कि इधर-उधर चित्त में मैं इन लोगों को बताऊंगी। हैं। आपने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किया, आप

[Hindi translation from English, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

भारतीय सहजयोगियों को मैं बता रही थी लिया जाए तो वे धर्मान्ध हो जाते हैं परन्तु कि भारतीय ज्ञान की शैली पाश्चात्य ज्ञान से सूझ-बूझ की भारतीय शैली के अनुसार यदि अत्यन्त भिन्न है। पश्चिम में आप यदि कुछ किसी महान ऋषि मुनि या सन्त ने कुछ कहा है बताएं तो लोग इसकी परीक्षणात्मक स्वीकृति तो आपको उसकी बात सुननी होगी क्योंकि माँगते हैं। वे वैज्ञानिकों या अन्य ज्ञानशील लोगों के पास जाते हैं और पूछते हैं कि इन पुस्तकों में कहा है यह उसका अपना अनुभव जो लिखा है वो सत्य है या असत्य। ईसा मसीह को भी वे आँकते हैं, मोज़िज़ को भी वे आँकते हैं। वे सभी को आँकने का प्रयत्न करते हैं मानो और एक बार जब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त वही सर्वाधिक विवेकशील एवं योग्य व्यक्ति हों। हो जाएगा, तो ये स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है इन लोगों के विरुद्ध वे एक के बाद एक पुस्तक कि, आत्मसाक्षात्कार के बाद आपको उन्नत लिखते चले जाते हैं मानो उन्हीं लोगों ने अपने होना होगा पूर्णतः जब आप उन्नत हो जाएंगे तब मस्तिष्क से कुछ कहा हो! प्रायः इसे कभी स्वीकार नहीं किया जाता और यदि स्वीकार कर आप उतने बड़े सन्त नहीं हैं। जो भी कुछ उसने है, अपना ज्ञान है। आपको उसे आँकने या असत्य कहने का कोई अधिकार नहीं। आप इसे स्वीकार करें आप स्वयं देख सकेंगे कि जो भी कुछ उन्होंने कहा है वह सत्य है, अत: वह सत्य है। अत:

मार्ग भिन्न है, एक मार्ग से यदि आप विज्ञान से हो जाती है। यह परमेश्वरी शक्ति तब आपके आदि के माध्यम से समझने का प्रयत्न करते हैं तो आप कहीं भी नहीं पहुँच पाते, इतना ही नहीं, आपकी उन्नति में बाधा पड़ती है। तो जो कुछ होता है? इसकी सू्ष्मता हमें समझनी चाहिए। भी इन महान ऋषि मुनियों ने कहा है उस पर विश्वास करते हुए उस ज्ञान को समझें। जो भी कुछ ईसा मसीह, हज़रत मोहम्मद, ज्ञानदेव ने तत्वों में जोड़ने लगती हैं। कहा गया है, बाइबल कहा है आपको उस पर विश्वास करना होगा। अभी तक आपका आध्यात्मिक स्तर उतना उच्च नहीं है। अत: आपको विश्वास करना होगा इसे ‘ शब्द’ मौन आदेश (Silent Commandment) स्वीकार कर इसकी छानबीन करने का प्रयास न है। हम इस प्रकार कह सकते हैं। परन्तु भारतीय करें। किसी भी चीज़ की छानबीन करते हुए दर्शन के अनुसार शब्द से बिन्दु की उत्पत्ति आप उसमें खो जाते हैं। एक बार जब आप उस स्तर के आत्मसाक्षात्कारी बन जाएंगे तब पूर्णत्व जाता है और फिर बिन्दु और इस बिन्दु से ये की ऊँचाई तक आप उन्नत होंगे। केवल तभी पांचों-तत्व एक के बाद एक अभिव्यक्त होने आप ये समझ पाएंगे कि इन सन्तों की कही लगते हैं। बातें सत्य हैं या असत्य और तभी आप छानबीन माध्यम से बहने लगती है। तार जुड़ जाता है। जब ये शक्ति आपमें से बहने लगती है तो क्या सूक्ष्मता ये है कि जिन पंच तत्वों से हम बने हैं उन्हें ये चैतन्य लहरियां शनै: शनै: उनके सूक्ष्म में भी कहा गया है, कि ‘शब्द’ ही परमात्मा है। परन्तु ये शब्द’ है क्या? आप कह सकते हैं कि होती है, या हम कह सकते हैं कि शब्द नाद बन प्रथम तत्व जो आता हैं वह है ‘तेज। प्रकाश अभिव्यक्त होने वाला प्रथम तत्व है। तो कर सकेंगे। तब सत्य, असत्य का भेद कर पाना बहुत सुगम हो जाएगा। सहजयोगियों के लिए ये पता लगाना अत्यन्त आसान होता है कि कोई में लिखा हुआ है। परन्तु हमें समझना चाहिए कि चीज़ वास्तविक है या अवास्तविक, ये सत्य है सहजयोग में प्रकाश किस प्रकार प्रसारित होता या असत्य, प्रेम है या घृणा चैतन्य लहरियों के है। आप सर्वत्र प्रकाश देखते हैं। तो प्रथम तत्व प्रकाश पहले तत्व का सार है। यह सब संस्कृत प्रकाश का सूक्ष्म तत्व है, ज्ञानोद्दीप्ति (ज्ञान का प्रकाश) हो जाना। परन्तु ज्ञानोद्दीप्ति का अन्य अर्थ भी है, हम इसे ‘तेज’ कह सकते माध्यम से आप यह भेद जान सकते हैं। इससे आगे जाने के लिए, व्यक्ति क लिए जानना आवश्यक है कि ये चैतन्य लहरियाँ हैं। क्या हैं और किससे बनी हैं? इन चैतन्य लहरियों के पीछे कौन सी सूक्ष्म शक्ति है? इस शक्ति के पश्चात् व्यक्ति का मुखमण्डल तेजोमय हो को हम परम-चैतन्य कहते हैं। परन्तु ये परम चैतन्य है क्या? परम चैतन्य प्राप्त करने के बाद सूक्ष्म तत्व तेजस्विता है, यह तेजस्विता आपके आपमें क्या घटित होता है? यह बात, इस उदाहरण के रूप में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने उठता है। तो हम कह सकते हैं कि प्रकाश का मुखमण्डल पर दिखाई देने लगती है। तेजस्वी मुखमण्डल से लोग बहुत प्रभावित होते हैं और सूक्ष्मता को, समझ लेना आवश्यक है। जैसा मैंने कहा, हम पाँच तत्वों से बने हैं, ऐसे आभावान व्यक्ति को विशेष सम्मान देने ठीक है? तो जब आपको जागृति प्राप्त होती है, लगते हैं। आपने मेरे फोटो देखे हैं बहुत बार जब कुण्डलिनी आपके सहस्रार पर पहुँचकर आपको उनमें अथाह प्रकाश देखने को मिलता आपके ब्रह्मरन्ध्र का भेदन करती है तो आपकी है। यह कुछ और न होकर मेरे अन्दर का एकाकारिता परमेश्वरी शक्ति (Divine Power) प्रकाश है जो सूक्ष्म होकर दैदीप्यमान हो रहा है।

पंच तत्वों में से प्रकाश भी एक है। मुझमें जब किसी से जब वह बातचीत करता है तो उसकी आवाज में प्रेम होता है या यूँ कहें कि जल की प्रकाश सूक्ष्म हो जाता है तो यह तेजदायी हो जाता है तथा आपके अन्दर यह सूक्ष्म विकास शीतलता होती है। तो आपके अन्दर जिस अन्य घटित होता है। आपके मुखमण्डल भी तेजोमय सूक्ष्मता की अभिव्यक्ति होनी चाहिए-आपके हो उठते हैं उन पर तेज होता है और आपकी त्वचा का रंग भी भिन्न हो जाता है। इस तेज को आपके व्यवहार में-वह यह है कि आपको जल समझा जाना चाहिए। जिस स्थूल प्रकाश से हम बने हैं यह उसका सूक्ष्म तत्व ( सार तत्व) है । गतिशील, शीतलता, शांति एवं स्वच्छता प्रदायक आचरण में, आपकी त्वचा पर, दूसरों के प्रति की तरह से होना चाहिए। जल की तरह से होना चाहिए। आत्मसाक्षात्कारी होने के पश्चात् ये तत्पश्चात् प्रकाश तत्व से एक अन्य तत्व का उद्भव होता है, जिसे हम संस्कृत में ‘वायु’ गुण आपके व्यक्तित्व का अंग-प्रत्यंग हो जाते कहते हैं अर्थात् हवा। इस स्थूल वायु का सूक्ष्म तत्व, आपको प्राप्त होने वाली शीतल चैतन्य लहरियां हैं। शीतल चैतन्य लहरियां उसी वायु आपमें अग्नि भी है परन्तु यह अत्यन्त शांत तत्व का सार हैं। हमें बनाने वाले पाँच मूल तत्वों अग्नि है। यह किसी अन्य को नहीं जलाती, में से वायु तत्व का सार ही शीतल चैतन्य आपके अन्दर की बुराइयों को जलाती है। न लहरियां कहलाता है। जब आपका आध्यात्मिक केवल आपके अन्दर की बुराइयों को, आपके विकास होता है तो ये सभी सूक्ष्म तत्व अपनी अभिव्यक्ति करने लगते हैं। आप केवल लहरियां ही नहीं प्राप्त करते, शीतलता का भी अनुभव करते हैं और यही वायु तत्व का सार है। इसके पश्चात् जल तत्व है। जल भी हमें है। इतना ही नहीं गहन आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बनाने वाले तत्वों में से एक है। इसका सूक्ष्म तत्व क्या है? (कभी-कभी अंग्रेज़ी भाषा में उस तक नहीं आ सकती यह बात समझ लेना अभिव्यक्ति के लिए शब्द नहीं होते) जल तत्व सूक्ष्म रूप में जब अभिव्यक्त होता है तो यह कठोर त्वचा को कोमल करता है। त्वचा कोमल परन्तु यदि आप अच्छी सहजयोगी हैं पूर्णतः हो जाती है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति का एक अन्य चिन्ह ये है कि उन्हें स्निग्धता लाने के जलाएगी नहीं। हमारे सम्मुख सीताजी का उदाहरण लिए चेहरे पर किसी क्रीम का प्रयोग नहीं करना पड़ता। उनके अन्दर का जल तत्व ही उनके उन्हें नहीं जलाया। तो हमें समझना है कि अग्नि चेहरे की त्वचा को चमक और पोषण प्रदान हैं। जल तत्व के पश्चात् अग्नि तत्व है। माध्यम से अन्य लोगों की बुराइयों को भी आपकी ये अग्नि जला देती है। मान लो कोई अत्यन्त क्रोध से मेरी ओर आता है तो मेरे अन्दर की अग्नि से उसका क्रोध शांत हो जाता को अग्नि जला नहीं सकती। अग्न की जलन बहुत आवश्यक है। आप यदि कोई गलत कार्य कर रहे हैं तो अग्नि आपको जला सकती है। विकसित सहजयोगी हैं तो अग्नि आपको कभी है जो अग्नि में प्रवेश कर गईं फिर भी अग्नि ने तत्व का सार यदि हमें प्राप्त हो जाता है तो अग्नि हमें जला नहीं सकती। इस प्रकार अग्नि तथा जल, दोनों ही तत्व करता है तथा उसे कोमल बनाता है। चेहरे की ये कोमलता प्रत्यक्ष दिखाई देती है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के मुख पर ये अभिव्यक्ति अत्यंत दिव्य बन जाते हैं। उदाहरणार्थ जिस जल को आवश्यक है। इसी के साथ-साथ आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति अत्यन्त विनम्र एवं मृदु हो जाता है। आप छूते हैं, जो जल आप पीते हैं, जिस जल में आप अपना हाथ डालते हैं, वह चैतन्यित हो

जाता है। इसका क्या अर्थ है? जल की सूक्ष्मता इसमें आ जाती है-शीतल तथा रोगमुक्त करने भी हममें होने लगती है। पृथ्वी माँ की तरह से की शक्ति उस जल में आ जाती है। तो सूक्ष्म होने के पश्चात् सभी शक्तियों की अभिव्यक्ति लगते हैं। आप यदि सहनशील नहीं हैं, उग्र होने लगती है और इन्हें आप स्वयं देख सकते हैं इनके लिए आपको प्रयोग (experiment) नहीं करने पड़ते । अंत में पृथ्वी माँ है। पृथ्वी माँ बहुत महत्वपूर्ण हैं, बहुत महत्वपूर्ण। रुस में (डाचा करते हैं परन्तु वे सभी कुछ सहन करती हैं। में) लिया गया एक फोटोग्राफ है जिसमें कुण्डलिनी पृथ्वी माँ से निकल रही है। स्पष्ट दिखाया गया है कि पृथ्वी माँ ही यह सब दर्शाती है। उदाहरण के रूप में आपने फूल देखे हैं, पुष्प यदि आप मेरे कमरे में रखें तो वे खिल उठते हैं, इतने बड़े सभी सहजयोगी जिनमें चैतन्य लहरियाँ हैं उनमें हो जाते हैं कि लोगों ने कभी इतने बड़े आकार के फूल देखे नहीं होते। मैं उन पर कुछ नहीं आपकी चैतन्य लहरियों में जिन चीजों की करती। मैं तो केवल वहाँ बैठी होती हूँ। फूलों के अभिव्यक्ति होती है वे सभी मैंने आपको बताई साथ क्या घटित होता है? धरा माँ का नियम हैं। ये समझ लेना आवश्यक है कि अब आप कार्य करता है। माँ ही आपको पोषण प्रदान करती है और आप स्वस्थ हो जाते हैं और इस प्रकार पृथ्वी तत्व की सूक्ष्मता कार्य करती है। पृथ्वी माँ इन सब पेड़ों और पुष्पों को जन्म देती मन्दिर जाते हैं आप उन्हें देखें। उनके चेहरे देखें। है। यह हमारे अन्दर भी एक बहुत बड़ी भूमिका उनकी ओर देखें वे कैसे दिखाई देते हैं? मन्दिर निभाती है। पृथ्वी माँ के हमसे गहन सम्बन्ध हैं से उन्हें कुछ नहीं मिला, मस्जिद से उन्हें कुछ परन्तु हम पृथ्वी माँ का सम्मान नहीं करते। हमने नहीं मिला, किसी भी पूजा के स्थान से उन्हें पृथ्वी को प्रदूषित किया है । इस पर लगे पेड़ों कुछ नहीं मिला। अतः ये सब बनावटी हैं को काट डाला है तथा सभी प्रकार की मूर्खता क्योंकि सत्य (वास्तविकता) से उनका नाता ही की है। परन्तु वे हमारी माँ हैं। पृथ्वी माँ की नहीं जुड़ा। केवल आत्मसाक्षात्कार के बाद ही बहुत सी सूक्ष्मताएं हममें आ जाती हैं इनमें से एक गुरुत्वाकर्षण है। गुरुत्वाकर्षण की अभिव्यक्ति आपके माध्यम से कार्य करने वाली सूक्ष्मताओं से व्यक्ति अत्यन्त आकर्षक हो जाता है-शारीरिक की समझ आपको आ सकती है। रूप से नहीं आध्यात्मिक रूप से। ऐसा व्यक्ति अन्य लोगों को आकर्षित करता है। लोग सोचते हैं कि उसमें कुछ विशेष है। यह पृथ्वी माँ का एक गुण है पृथ्वी माँ में यदि गुरुत्वाकर्षण न डोता तो हम पृथ्वी की गति की तेजी से ही दूर स्वयं को समझ लेंगे, स्वयं को पहचान लेंगे तो जा गिरते। पृथ्वी माँ के अन्य गुणों की अभिव्यक्ति हम भी अत्यन्त सहनशील एवं धैर्यवान बनने स्वभाव हैं तो पृथ्वी तत्व की सूक्ष्मता की अभिव्यक्ति आपमें नहीं हुई है। पृथ्वी माँ की ओर देखें, किस प्रकार वे हमारी मूर्खताओं को सहन करती हैं। कितनी ज्यादतियाँ हम उन पर श्री गणेश जी का ये गुण है कि वे आरम्भ में सहन करते हैं, एक सीमा तक वे सहन करते हैं। इसी प्रकार हम भी अत्यन्त सहनशील, धैर्यवान और क्षमाशील बन जाते हैं। स कम से कम ये गुण तो आ ही जाना चाहिए। बहुत महान हो गए हैं। अन्य लोगों के साथ ऐसा नहीं हुआ। जो सहजयोगी नहीं हैं उनके साथ ये घटना नहीं घटी। जो लोग चर्च, मस्जिद या आपका सम्बन्ध वास्तविकता से होता है और मैं ये सब आपको क्यों बता रही हूँ? क्योंकि मैं चाहती हूँ कि आप अपने को समझं, अपने को पहचाने; समझें कि आप क्या हैं और आपको क्या प्राप्त हुआ है। एक बार जब आप

आप बहुत कुछ कर सकते हैं। सर्वप्रथम आप ये कहें कि मैं एक सहजयोगी हूँ। पूर्ण आत्मविश्वास परन्तु अभी आपको उनकी चिन्ता करने की के साथ ये कहें और आत्मविश्वस्त व्यक्ति की तरह देखें कि सहजयोगी के रूप में मैंने क्या किया है? सहजयोगी के रूप में मैं क्या कर गण और देवदूत आपकी सहायता कर रहे हैं आवश्यकता नहीं है। मुख्य चीज़ तो ये है कि आप महसूस करें कि आप क्या हैं, आप को क्या प्राप्त हुआ है और आपने इसका कितना सामना किया है तथा इसने किस प्रकार कार्य किया है। मैंने देखा है कि जब भी मुझे कोई सकता हूँ? कुछ सहजयोगियों ने अद्भुत कार्य किए हैं। उन्होंने सहजयोग का बहुत सा कार्य किया है। परन्तु कुछ अन्य सहजयोगी अब भी छोटी-मोटी समस्या होती है तो यह ( परम चैतन्य) मुझे लिखते हैं कि “मेरे पति मुझसे झगड़ते हैं, तुरन्त कार्य करता है। ऐसे स्थान पर और ऐसे मेरा बेटा ऐसा है, मेरी माँ ऐसी है।” मुझे पत्र के लोगों में ये कार्य करता है जिसकी मैंने कभी बाद पत्र आते रहते हैं। आप एक सहजयोगी हैं। आपको चाहिए कि अपनी सूक्ष्मताओं को देखें और इन्हें कार्यान्वित करें। लोग सोचते हैं कि मैं होता है, आपके विकास के लिए होता है और यहाँ उनकी, उनके परिवार की, उनकी नौकरियों आपको ये समझाने के लिए होता है कि आप की समस्याओं का समाधान करने के लिए हूँ। सहजयोगी हैं। आप परमात्मा के साम्राज्य में इस कार्य के लिए मैं यहाँ नहीं हूँ। मैं यहाँ प्रवेश कर गए हैं। परन्तु यह चीज आपको आपको आत्मसाक्षात्कार देने तथा आपको प्राप्त आशा भी न की थी! सभी कुछ कार्यान्वित हो जाता है। परन्तु ये सब आपके हित के लिए विकसित करनी होगी। हुई उपलब्धियों का ज्ञान देने के लिए हूँ। इसे आप चुनौती के रूप में स्वीकार करें। चुनौती की सभी सूक्ष्म गुणों को कार्यान्वित कर रहे हैं कि तरह आप इसे लें तो आप हैरान होंगे कि किस नहीं। अन्तर्दर्शन यदि आप करने लगेंगे तो यह प्रकार आपकी सहायता होती है और किस देखकर आप हैरान हो जाएंगे कि आपमें शक्तियाँ प्रकार आपको परिणाम प्राप्त होते हैं। सहज का अर्थ केवल यही नहीं है कि सकते हैं। आपको स्वत: आत्मसाक्षात्माकार मिल अन्न्तदर्शन आपको बताएगा कि आप इन हैं और आप चमत्कारिक रूप से कार्य कर मैं आप सबको आशीर्वाद देती हूँ। कृपया ये सभी सूक्ष्म गुण अपने अन्दर विकसित करें। पहले से ही ये आपमें विद्यमान हैं, आपको कुछ नहीं करना; केवल इन्हें समझें और स्थापित जाए। इसका अर्थ ये भी है कि आपको सहजता प्राप्त हो जाए। पूर्ण प्रकृति सहजता प्राप्त करती है। ये सभी सूक्ष्म गुण जो मैंने आपको बताएं हैं ये भी करें। सहजता प्राप्त करके कार्यान्वित होते हैं। नि:सन्देह ३० आप सबका हार्दिक धन्यवाद। प